अवतार की यात्रा

सिद्धी स्वरूप सूत्र सेट 4

27 और 28 जनवरी, 2016 के लिए


मैं अर्न्तमुखी होकर एकान्त में नीचे दिये गऐ सूत्र का प्रयोग और अनुभव करता हूँ। एकान्त का यह अर्थ नहीं है कि मैं लोगों से और बातों से दूर हो जाऊँ, इसका अर्थ है संसार में रहते और काम करते मैं एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो जाऊँ। एकान्त का अर्थ है मैं अपने मन और बुद्धि को एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित करूँ।

सूत्र

(पालना ऊँचे ते ऊँचे बाप का प्रेम) + (पढ़ाई श्रेष्ठ टीचर से प्राप्त श्रेष्ठ शिक्षा) + (श्रीमत सतगुरू से प्राप्त निर्देश) = सौभाग्य

अभ्यास

पालना: मैं बाबा का विशेष बच्चा हूँ। बाप होने के नाते, वह हर पल मेरी पालना करते हैं। वह मुझ पर प्रेम की बरसात करते हैं और मुझे अलौकिक पालना देते हैं।

पढ़ाई: सच्चे टीचर ने मुझे सबसे ऊँची उपाधी: त्रिकालदर्शी में स्नातक और ज्ञान स्वरूप में स्नातक, लेने के काबिल बनाया है। ऊँचे ते ऊँचे टीचर से मैंने रचना और रचयिता का ज्ञान- आत्मा, परमात्मा और सष्टि चक्र सिद्धांतो के साथ पाया है।

श्रीमत: मैं सतगुरू के द्वारा नीचे दी गई शिक्षाओं को धारण करने में बहुत सावधानी बरतता हूँ: केवल बाप को और सेवा को ही याद करो। संसार में रहते हुए और कार्य करते हुए, स्वयं को परमात्मा का निमित्त समझें। अपनी मनमत मिला कर श्रीमत को दूषित नहीं करें।

प्राप्ति

सौभाग्य: इस प्रकार की ईश्वरीय पालना का व्यवहारिक परिणाम एक सहज योगी जीवन के रूप में होता है। मैं ऊपर की तीन पालनाओं के आधार पर अपने वर्तमान और भविष्य का भाग्य बनाता हूँ।


29 और 30 जनवरी,2016 के लिए

मैं अर्न्तमुखी होकर एकान्त में नीचे दिये गऐ सूत्र का प्रयोग और अनुभव करता हूँ। एकान्त का यह अर्थ नहीं है कि मैं लोगों से और बातों से दूर हो जाऊँ, इसका अर्थ है संसार में रहते और काम करते मैं एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो जाऊँ। एकान्त का अर्थ है मैं अपने मन और बुद्धि को एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित करूँ।

सूत्र

(ताज पवित्रता के प्रकाश का ताज) + (तख्त मस्तक का और बापदादा के दिल का अविनाशी तख्त) + (तिलक चेतना/ योगी) = स्वराज्य

अभ्यास

ताज: मैं अपने पवित्रता के ताज के बारे में अवगत हूँ। और सेवा करके मैं अपना जिम्मेवारी का ताज पहनता हूँ।

तख्त: मैं इस बात का ध्यान रखता हूँ कि मैं सदा बापदादा के दिलतख्त पर विराजित रहूँ।

तिलक: मैं इस साकारी तन में निराकारी आत्मा के रूप में स्वयं को स्थित करता हूँ।

प्राप्ति

स्वराज्य: ऊपर के अभ्यास से मैं अपनी कर्मेंद्रियों पर सम्पूर्ण कन्ट्रोलिंग पावर और रूलिंग पावर का अधिकार प्राप्त् कर लेता हूँ।


31 जनवरी और 1 फरवरी, 2016 के लिए

मैं अर्न्तमुखी होकर एकान्त में नीचे दिये गऐ सूत्र का प्रयोग और अनुभव करता हूँ। एकान्त का यह अर्थ नहीं है कि मैं लोगों से और बातों से दूर हो जाऊँ, इसका अर्थ है संसार में रहते और काम करते मैं एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित हो जाऊँ। एकान्त का अर्थ है मैं अपने मन और बुद्धि को एक शक्तिशाली स्थिति में स्थित करूँ।

सूत्र

(राज़युक्त ज्ञान के रहस्यों को बुद्धि में रखना) + (योगयुक्त रचता बाप से सदा जुड़े रहना) + (युक्तियुक्त निरंतर योग्य तरीकों का प्रयोग करके कर्मों को मज़बूत बनाना) = दिव्य समझ/ ज्ञान

अभ्यास

राज़युक्त्: न्यारा और प्यारा बनकर मैं हर बात के महत्व को समझता हूँ। ज्ञान के सभी राज़ मेरी बुद्धि और स्मृति में स्पष्ट रहते हैं।

योगयुक्त: मैं निरंतर रचयिता बाप को याद करता हूँ।

युक्तियुक्त: क्योंकि मैं ज्ञानी और योगी हूँ, मेरा हर कर्म सही और श्रेष्ठ है। मेरे विचार भी युक्तियुक्त हैं।

प्राप्ति

दिव्य समझ: ऊपर दिये अभ्यास से मैं, दिव्य समझ- तीसरी आंख रूपी सबसे श्रेष्ठ वरदान की प्राप्ति करता हूँ। मैं महसूस करता हूँ कि बाबा जीवन का उपहार वरदान रूप में दे रहे हैं।