Soul Sustenance – Hindi - July 2023
Index
01. अपने ऑफिस के वातावरण को आध्यात्मिक बनाने के 5 तरीके
02. खाने के हर पल का आनंद लें और प्यार करें
03. भगवान क्यों सर्वव्यापी नहीं है - आओ समझें।
04. विश्वास रखें और आप सफल होंगे
05. चिड़चिड़ेपन (Irritation. पर काबू पाने के उपाय
06. मेडिटेशन के फायदे
07. सफलता के लिए 8 स्वमान
08. मेरे भाग्य के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
09. स्वस्थ रहने के लिए खुश रहें
10. आत्म-साक्षात्कार के लिए कार और चालक का तुलनात्मक उदारहरण
11. सकारात्मक जीवन के लिए 10 नई मान्यताएं
12. आत्म नियंत्रण की कला को अपनाएं
13. अहंकार का त्याग करें
14. राजयोग के 4 विषय एवं उनका महत्व
15. बच्चों को भगवान से जोड़ने के लिए 5 कदम
16. क्या पुनर्जन्म एक सच्चाई है?
17. आप किसी भी आदत को बदल सकते हैं
18. हर वायदे का सम्मान करें
19. भीतर की सकारात्मकता को जागृत करें
01. अपने ऑफिस के वातावरण को आध्यात्मिक बनाने के 5 तरीके
1. हमारे ऑफिस के लिए एक बहुत ही सुंदर अभ्यास यह है कि हम सब आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा एक दूसरे की शुद्ध व साकारात्मक सोच से जुड़े, और यह आध्यात्मिक ज्ञान हर सुबह इंटरनेट या अन्य माध्यमों के द्वारा सभी के साथ बांटी जा सकती है, या एक नोटिस बोर्ड पर लिखी जा सकती है जिसे सभी पढ़ सकें। एक तरह के ज्ञान को पढ़कर एक तरह के विचार पैदा होते हैं, जिससे ऑफिस में आत्मिक सद्भाव का जन्म होता है और ऑफिस का वातावरण बहुत सुंदर और पॉजिटिव वाइब्रेशन से भरपूर बनता है।
2. आत्मिक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए, ऑफिस में आध्यात्मिक मार्गदर्शन के तहत एक मेडिटेशन रूम बनाया जा सकता है, जहां ऑफिस का कोई भी व्यक्ति जाकर कुछ मिनटों के लिए बैठ सके और मेडिटेशन की गहन अनुभूति कर, स्वयं को आत्मिक ऊर्जा से भर सके। इसके साथ ही, अपने वर्क डेस्क पर बैठे-बैठे हर घंटे में एक मिनट के लिए मन के संकल्पों का ट्रैफिक कंट्रोल किया जा सकता है।
3. ऑफिस के लोग एक दूसरे के बारे में क्या सोचते हैं और बातें करते हैं, इससे ऑफिस का वाइब्रेशन निर्धारित और प्रभावित होता है। चूंकि एक ऑफिस में अलग-अलग व्यक्तित्व के लोग काम करते हैं, और सबके तरीके अलग होते हैं, इसलिए लोग एक या अनेक लोगों के सामने एक दूसरे के विषय में नकारात्मक तथा अनावश्यक टिप्पणी (comment. करते रहते हैं। यदि ऐसा करने से बचा जाए और नो गॉसिप (No Gossip. को ऑफिस का सफल मंत्र बनाया जाए, तो ऑफिस की आध्यात्मिक ऊर्जा फिर से जीवंत हो जाती है।
4. ऑफिस के सकारात्मक माहौल को कम कर उसे तनावपूर्ण बनाने में जो बातें सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार होती हैं, वे हैं एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या, घृणा, एक दूसरे से तुलना और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा। जब हम हमेशा दूसरों से आगे निकलने और दूसरों से बेहतर बनने की कोशिश करते हैं, तब हम एक-दूसरे के लिए सकारात्मक भावनाएं रखना बंद कर देते हैं। परंतु जब हम एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, उनके साथ विनम्र होते हैं, और दूसरों को अपने से आगे रखते हैं, तब हम एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण करते हैं।
5. अनेक देशों के कई ऑफिस में एक खूबसूरत विधि अपनाई जाती है; वे अपने ऑफिस में धीमी आवाज़ में मेडिटेशन संगीत बजाते हैं, जो मन को सुख प्रदान करने वाली होती हैं। साथ ही ऑफिस के इंटीरियर को इस तरह बनाया जाता है कि ऑफिस में सभी को शांति का अनुभव हो। दीवारों, फ़र्निचर और विभाजनों के लिए हल्के आध्यात्मिक रंग और डिज़ाइन चुनना, जो ऑफिस के वातावरण को दिव्य और हल्का बनाए, ऑफिस के लिए स्थूल रूप से एक महत्वपूर्ण कदम है।
2. खाने के हर पल का आनंद लें और प्यार करेंहम सभी दिन में तीन बार भोजन करते हैं। वे हमें बैठने, चलने, बोलने, मुस्कुराने और अन्य सभी कार्य करने के लिए ताकत देते हैं। भोजन से हमें जो प्राप्त होता है, उसके लिए ज़रूरी है कि हम भी भोजन को प्रेम दें और उसका सम्मान करें। हम अक्सर अपनी थाली में मौजूद भोजन की कुछ न कुछ बुराई या आलोचना करते हुए पाए जाते हैं। हम भोजन को इस तरह की बातों से अनजाने में अस्वीकार कर देते हैं – मैं इसे हर सुबह खाकर ऊब गया हूँ, यह व्यंजन बहुत फीका है, काश मेरी माँ इससे बेहतर बनाती। हमें चिंता भी रहती है – इससे मेरा वजन बढ़ सकता है, कहीं मेरा शुगर लेवल ना बढ़ जाए, ये भोजन ताज़ा नहीं लगता है, आशा है कि इसे खाकर मैं बीमार नहीं पड़ूंगा।
एक बार जब हम किसी भोजन को खाने का फैसला कर लेते हैं, तो आइए भोजन का आनंद लें, न कि इसके प्रभावों के बारे में सोचें। भोजन से पहले और भोजन करते समय धन्यवाद और प्रेम के विचार रखें। भोजन की गुणवत्ता या मात्रा हमेशा सही नहीं हो सकती, किंतु कोई बात नहीं – हमने हज़ारों स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया है, और आनंद लेना जारी रखेंगे। कुछ कमियों के कारण भोजन के प्रति हमारा सम्मान कम ना हो।
जो भोजन हम प्रतिदिन खाते हैं, वह हमारे शरीर के लिए पोषण होता है। हम वही चुनते हैं जो स्वस्थ है। हम स्वादिष्ट भोजन का चुनाव कर सकते हैं, किंतु अगर हम ये कहें कि जब हम कुछ विशेष खाएंगे तब हम खुश होंगे, तो इसका मतलब है कि हमारी खुशी हमारे भोजन पर निर्भर हो जाती है। जब आप खाना खा रहे हों तो आराम से बैठें, और खुद को देखें कि आप खुश हैं और भोजन में खुशी के वाइब्रेशन फैला रहे हैं। हम अक्सर ऐसे भोजन को खाते वक्त, जो हमारे लिए स्वादिष्ट नहीं होती, चिड़चिड़ेपन का भाव पैदा कर लेते हैं। खाना भले ही स्वादिष्ट न हो... लेकिन खुशी या चिड़चिड़ेपन का भाव पैदा करना है – यह हमारे अपने हाथ में है। अपने भोजन का प्रभाव अपने मन पर ना पड़े, इसका आज ही अभ्यास करें। अपने भोजन की बुराई करने से भोजन में नकारात्मक वाइब्रेशन फैलते हैं, जो बाद में हमारे मन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। आज प्रत्येक भोजन से पहले रुकें, और पुनः ध्यान रखें कि मैं भोजन करते समय खुश और शांतचित्त हूं। मैं अपने खुशी की ऊर्जा से भोजन को शक्तिशाली बनाता हूं।
03. भगवान क्यों सर्वव्यापी नहीं है - आओ समझें।
दुनिया में एक बहुत ही सामान्य मान्यता है, जिस पर कि बहुत से लोग विश्वास करते हैं, वह यह कि भगवान हर जगह, हर एक में, हर जीवित प्राणी में मौजूद हैं। इस मान्यता से उनका तात्पर्य यह है कि भगवान सर्वव्यापी हैं। इस संदेश में हम 5 कारणों पर गौर करेंगे कि यह मान्यता सत्य क्यों नहीं है -
1. भगवान सभी आत्माओं के पारलौकिक पिता हैं और वे अपने हर बच्चे अथवा इंसान में मौजूद नहीं हैं।
भगवान द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान से हमें पता चलता है कि हम सभी एक आध्यात्मिक ऊर्जा; आत्मा हैं, और इस संसार में बहुत सारी मनुष्य आत्माएं हैं, जो भिन्न-भिन्न स्थूल शरीरों के माध्यम से अपनी भूमिका निभाती हैं। हमें यह भी पता चलता है कि ईश्वर भी हमारी तरह एक आध्यात्मिक शक्ति; आत्मा हैं, लेकिन वे परम आत्मा हैं जो हम आत्माओं से कई गुणा अधिक शक्तिशाली हैं। तो इस तरह, हम सभी आत्माएं भाई-भाई हैं और इसीलिए हम आमतौर पर कहते भी हैं - हम अलग-अलग धर्मों और देशों से हैं, लेकिन हम सभी भाई-भाई हैं। चूँकि हम सभी आत्माएँ हैं, हम सभी की अपनी-अपनी पहचान है। हम सभी दुनिया में भगवान की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं और दिल से उनके लिए प्यार महसूस करते हैं, हमारे साथ-साथ पूरी दुनिया उन्हें बहुत याद करती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भगवान स्वयं हमारे अंदर, हर इंसान में विद्यमान हैं। भगवान हमारे आत्मिक पिता हैं और आत्माओं की दुनिया; परमधाम में रहते हैं, जो कि पांच तत्वों से बने इस स्थूल जगत के पार है। वे इस भौतिक जगत में नहीं रहते, किंतु यहां अपनी तरंगें प्रवाहित करते हैं, और हम मनुष्य आत्माओं को भिन्न-भिन्न प्राप्तियां कराते हैं।
2. यदि भगवान हमारे भीतर होते, तो हम सभी हर प्रकार से एक जैसे होते।
ईश्वरीय ज्ञान से हमें यह भी पता चलता है कि सभी मनुष्यात्माओं के मन, बुद्धि और संस्कार एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न व अलग हैं। इसी तरह भगवान का भी अपना मन, बुद्धि और संस्कार है। यदि भगवान हम सबके भीतर होते, तो हमारे मन, बुद्धि और संस्कार अलग-अलग नहीं होते। लेकिन हम सभी अपने मन में अलग-अलग सोचते हैं, अपनी बुद्धि से अलग-अलग निर्णय और कल्पना करते हैं और हमारे अपने अलग-अलग संस्कार होते हैं। इसका मतलब है कि भगवान एक अलग व्यक्तित्व हैं और वे हमारे माध्यम से सोच, बोल और कर्म नहीं कर रहें। वे केवल हमें सोचने, बोलने और कर्म करने का मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। हम सभी अपने मन, बुद्धि और संस्कार की क्षमता व गुणवत्ता अनुसार उनके निर्देशों का अलग-अलग पालन करते हैं।
3. यदि भगवान सर्वव्यापी होते, तो संसार पूर्णतः सुखी होता, जो कि सत्य नहीं है।
भगवान अच्छाई और दिव्यता के सागर हैं, जिसे वे निरंतर चारों ओर प्रवाहित करते रहते हैं। यदि दुनिया में हर किसी के भीतर भगवान होते, यदि वे प्रकृति में हर जगह विद्यमान होते, तो सभी मनुष्य केवल अच्छे कर्म करते और दुनिया में कोई पाप, बुराइयां और बुरी आदतें नहीं होतीं। सभी लोग सद्भाव से रहते और लोगों में एक दूसरे के प्रति शुभ भावना होती, क्योंकि वे सभी भगवान की तरह होते। साथ ही, भौतिक प्रकृति भी हर प्रकार की अशांति और आपदाओं से पूरी तरह मुक्त होती, क्योंकि भगवान तो कण-कण में होते। लेकिन ये सारी ही बातें सत्य नहीं हैं।
4. यदि भगवान हमारे हृदय में होते, तो हम उन्हें नहीं ढूंढते और उन्हें शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति के लिए नहीं पुकारते।
हमने हज़ारों वर्षों से भगवान को पुकारा है और उन्हें बाह्य जगत में ढूंढा है। प्रेम, शांति, आनंद और आध्यात्मिक शक्ति को बनाए रखने के लिए हम उनकी ओर देखते हैं। इसके अलावा, जब भी हम उन्हें पुकारते हैं, तब हम अक्सर ऊपर आकाश की ओर देखते हैं। यदि भगवान हमारे अंदर ही होते, तो हम ऐसा नहीं करते। हम भगवान के ज्ञान, गुणों और शक्तियों को अपने अंदर महसूस करते हैं और अंतर्चेतना में उनसे बातें भी करते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तब हम उनसे निकटता महसूस करते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वे स्वयं संसार के हर मनुष्य में और हर जानवर, पक्षी, जीव-जंतु के साथ-साथ दुनिया में हर जगह मौजूद हैं।
5. भगवान परम दाता हैं। यदि वे हर मनुष्य में होते, तो वे ऐसे नहीं होते।
भगवान सर्व गुणों व शक्तियों के परम सागर हैं, और वे संपूर्ण ब्रह्मांड और मानव के प्रति इन गुणों और शक्तियों के निरंतर दाता हैं। यदि वे प्रत्येक मनुष्य में होते तो वे भी कर्म और फल के चक्र में आते। साथ ही, वे अब दाता नहीं रह जाते और मनुष्य की तरह अपेक्षा करने वाले, इच्छा करने वाले बन जाते। इसके अलावा, यदि भगवान प्रत्येक मनुष्य में होते, तो वे प्रकृति के भौतिक तत्वों (5 तत्वों. के प्रभाव में आते, जो कि वास्तव में वे कभी नहीं आते हैं।
04. विश्वास रखें और आप सफल होंगे
क्या आप अपने छोटे-बड़े लक्ष्यों को लेकर बहुत उत्साहित थे, वहां तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की... लेकिन कहीं न कहीं आपको सफलता पर संदेह भी था? ज़रा याद करें कि इसने परिणाम को कैसे प्रभावित किया। लक्ष्य चाहे व्यक्तिगत हो या व्यवसायिक, हमें सफल होने के लिए आम तौर पर लोगों के सहायते की आवश्यकता होती है। सभी के लिए ये आवश्यक है कि वे शांत, तनावमुक्त और स्थिर दिमाग से काम करें। वातावरण में आत्मविश्वास और दृढ़ता भरी होना भी ज़रूरी है। जब हम एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, तो हमें उन पर गहराई से विश्वास करना आना चाहिए। हम सभी ने अनुभव किया है कि लोग तब सबसे अधिक कार्यकुशल व निर्माण होते हैं, जब कोई उनकी क्षमताओं पर भरोसा करने वाला होता है। आइए, इस बात का ध्यान रखें, कि कोई भी अपने या दूसरों के बारे में संदेह, असुरक्षा, अक्षमता या चिंता के विचार पैदा न करे। नकारात्मक विचार सफलता में बाधक बनते हैं। अगर यह हमारा लक्ष्य बन जाता है, तो समाधान ढूंढना हमारी ज़िम्मेदारी बन जाती है। आइए, हम केवल इस बात पर ध्यान दें कि लोगों की मदद कैसे करें और उन्हें प्रेरित कैसे करें। साथ ही, खुद को प्रतिदिन यह याद दिलाएं कि मुझे विश्वास है कि एक साथ मिलकर हम ज़रूर सफल होंगे।
हमने सुना ही होगा – अच्छी शुरुआत होना आधी काम पूरी हो जाने के बराबर होती है। चाहे आज हमारे पास 10 काम हों या 20, यदि हम उन्हें आत्म-विश्वास, अनुशासन और उत्साह के साथ शुरू करते हैं, तो हमारी कार्य-क्षमता और कार्य करने की गति (स्पीड. जादुई रूप से बढ़ जाती है। जो लोग हमारे साथ काम करते हैं, वे भी हमारी ऊर्जा को ग्रहण कर प्रेरित होते हैं। सभी में उस स्थान, लोग और कार्य के प्रति अपनेपन की भावना विकसित होती है। समय बाधक नहीं बनता। आराम से बैठें और आज अपने काम के दिन को श्रेष्ठ रीति से व्यतीत करें। जब हम आंतरिक रूप से स्थिरता, आराम और खुशी की अनुभूति करेंगे, तब हमें बाह्य सफलता प्राप्त करना आसान होगा। हमारे समय और शक्ति की बचत होगी क्योंकि चिंता, तनाव या चिड़चिड़ेपन जैसी भावनाएं हमारी शक्ति को कम नहीं करेंगी। हम प्रसन्न और खुश होकर अपने कार्यस्थल से घर लौटेंगे।
05. चिड़चिड़ेपन (Irritation. पर काबू पाने के उपाय
बहुत बार ऐसा होता है कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाते और अपना आपा खो देते हैं, हमें बहुत चिड़चिड़ापन महसूस होता है। चिड़चिड़ापन इस बात का संकेत है कि कुछ है जो ठीक नहीं है और उसे ठीक करने की ज़रूरत है। चिड़चिड़ापन उत्तेजना, तनाव, दुख, परेशानी, भ्रम के कारण हो सकता है, या बिना किसी कारण भी हो सकता है। अगर इसे नियंत्रित या समाप्त नहीं किया गया, तो ये हमारी आदत बनकर हमारे प्रतिदिन के कार्यों व हमारे रिश्तों को प्रभावित करता है। इसलिए हम अक्सर चिड़चिड़े हो जाते हैं और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं। मानसिक थकान, तनाव, असुरक्षा और घबराहट से चिड़चिड़ापन उत्पन्न होता है। इन भावनाओं से जूझते हुए यदि कोई ऐसी चीज़ सामने आती है जो हमें नापसंद होती है, तो हम भड़क उठते हैं। यहां तक कि किसी का आवाज़ करके खाना, या ट्रैफिक में हॉर्न बजाना भी हमें घंटों तक परेशान कर सकता है।
चिड़चिड़ेपन पर काबू पाने के लिए इन बातों का पालन करना चाहिए -
1. जल्दी उठें, अपने साथ 30 मिनट बिताएं और मेडीटेशन व आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा मन को शक्तिशाली बनाएं। यह हर परिस्थिति में हमें सही सोचने और सही अनुभव करने में मदद करता है।
2. कम से कम 30 मिनट के लिए व्यायाम करें। स्वस्थ शरीर से मन भी स्वस्थ रहता है।
3. हर एक या दो घंटे के बाद रुकें और खुद को याद दिलाएं - मैं एक शांत स्वरूप आत्मा हूं। सब कुछ अच्छा है।
4. स्वस्थ, संतुलित भोजन लें। व्यर्थ आकर्षणों से मुक्त होकर मन लगाकर भोजन करें, और केवल निर्धारित समय पर ही खाएं।
5. पर्याप्त नींद का समय निर्धारित कर, रोज़ाना सोने और जागने का एक ही समय रखें।
6. लोगों को प्रभावित करने के लिए, इस बात को समझें कि उनके रहने और कार्य करने के तरीके आपसे अलग हैं। इस असमानता का सम्मान करें। जब ज़रूरत हो तो उन्हें सलाह दें, किंतु उसके परिणाम से खुद को मुक्त रखें।
एक बार जब आप अपने मन और शरीर का ध्यान रखेंगे, तब आपको परिस्थितियों के विषय में चिंता करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। आप शांतचित्त होकर उनका सामना करेंगे। धैर्य और समझदारी के गुण स्वाभाविक रूप से आ जाएंगे।
चिड़चिड़ेपन पर काबू पाने के लिए इन स्वमानों का भी अनुभव करें -
मैं एक शांत स्वरूप आत्मा हूं... मैं हर सुबह अपने मन को शक्तिशाली बनाता हूं... मैं सारे दिनभर में अपने मन का उपयोग बहुत ध्यान से करता हूं... मैं रोज़ाना अपने शरीर को ऊर्जावान बनाता हूं... मैं सही भोजन लेता हूं... मैं अच्छी नींद लेता हूं... मुझे बहुत कुछ प्राप्त करना है... मेरे पास बहुत समय है... मैं अपने सारे कार्य धैर्यपूर्वक पूर्ण करता हूं... मुसीबत के समय भी मेरे संकल्प शांत होते हैं... मैं परिस्थितियों के ऊपर विजयी होता हूं।
06. मेडिटेशन के फायदे
आज हमारा स्वयं के बारे में क्या विचार है?
जीवन स्मृति और विस्मृति का खेल है। हम जीवन के खेल को तब हार जाते हैं जब हम भूल जाते हैं कि हम वास्तव में कौन हैं। लेकिन जब हमें ये स्मृति आती है कि हम शरीर नहीं, परंतु शरीर को चलाने वाली एक चेतन्य आत्मा हैं, तब हम जीवन में विजयी होते हैं। आत्मा एक चेतन्य शक्ति है जो विचार कर सकती है, आत्मा अजर, अमर, अविनाशी, प्रेम स्वरूप, आनंद स्वरूप, और शांत स्वरूप है। मेडीटेशन के माध्यम से हमें अपने वास्तविक और अनादि स्वरूप की स्मृति आती है, जिससे हमारे विचार नकारात्मकता और कमज़ोरियों से मुक्त हो जाते हैं।
यही समय होता है इस बात को समझने का, कि आत्मा के भीतर कौन सी चीज़ें सत्य और अनादि हैं, और कौन सी चीज़ें झूठी और बाद में प्रवेश हुई हैं। जब हम असत्य को पहचान जाते हैं, और यह समझते हैं कि जो व्यर्थ और नकारात्मक विचार हमारे मन में चलते हुए हमारी आशाओं को समाप्त करते हैं, वे हमारे नहीं हैं; तब हमें मेडिटेशन में उन क्षणों को प्राप्त करना आना चाहिए, जो आत्मा की वास्तविकता को पुनः जीवित करे और हममें बदलाव लाए। रुककर सोचने में एक सेकंड लगता है, “अब मैं भीतर की ओर जाता हूं; अंतर्मुखी होता हूं।“ भीतर हम क्या देखते हैं? आज हमारा अपने बारे में क्या विचार है – मैं धैर्यवान हूं या चिड़चिड़ा, सकारात्मक हूं या नकारात्मक, चिंतित और तनावग्रस्त हूं या तनावमुक्त और शांतचित्त?
स्वयं के परिवर्तन में हमारी वृत्ति अथवा सोच सबसे महत्वपूर्ण है। जब हम मेडिटेशन में बैठते हैं, तो सबसे पहले हम खुद को मस्तक के बीच एक चमकता हुआ सितारा अनुभव करते हैं, जो शांति, प्रेम और आनंद प्रवाहित कर रहा होता है। इस शुद्ध अनुभूति में हम आत्मिक स्वरूप में परमधाम की यात्रा करते हैं, परमधाम जो कि आत्माओं की दुनिया है जो इस पांच तत्वों की दुनिया के पार है। वहां हम परमात्मा के साथ एक गहरा संबंध स्थापित करते हैं, जिन्हें हम एक शाश्वत चमकते हुए परम सितारे के रूप में अनुभव करते हैं, जो कि अनादि सत्य, प्रेम व शक्ति स्वरूप हैं। जब हम मेडिटेशन में उनसे जुड़कर उनसे बातें करते हैं, तब वे हमारी बातों को सुनते हैं। भगवान से प्रतिदिन बातें करें, और जीवन की मुश्किल परिस्थितियों का बिना भय और घबराहट के सामना करने हेतु उनकी शक्तियों से स्वयं को भरपूर करें। जब हम ऊपर रहने वाले उस शाश्वत सत्य से अपने मन की तार जोड़ते हैं, तब हम उनकी दिव्य शक्तियों को स्वयं में भरते हैं। सत्य बहुत शक्तिशाली ऊर्जा होती है जो आत्मा को अपार शक्तियों से भर देती है। इस शक्ति से एक सेकंड में हम सभी उलझनों से परे निकल जाते हैं और स्वयं को अपने वास्तविक शांत स्वरूप में पाते हैं।
योग अथवा ध्यान की शक्ति मन में चल रहे शोर को शांत करती है, और थकान और भ्रम पैदा करने वाले संकल्पों को समाप्त कर आत्मिक ऊर्जा की बचत करती है। हमारे मन की शक्ति व्यर्थ नहीं होती क्योंकि अतीत के विचार अथवा भविष्य की चिंता वाले विचार उत्पन्न होना बंद हो जाते हैं। मेडीटेशन अंतरात्मा की आवाज़ को स्पष्ट बनाती है। इस स्पष्टता से हमारे मन के लिए एक जगह ध्यान केंद्रित करना आसान हो जाता है। जब मन एकाग्र हो जाता है तब हम अधिक कुशलता से कार्य करते हैं, और हम अधिक निर्माण (productive. बनते हैं। स्वयं को अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में देखने से हम वैसे ही हो जाते हैं, और हमारी ये सोच हमारे कर्मों में भी दिखाई देती है। इस तरह हम सफलतापूर्वक अपना जीवन बनाते हैं और दूसरों को भी ऐसा करने में मदद करते हैं।
07. सफलता के लिए 8 स्वमान
1. मैं अपनी सुंदर और अनोखी विशेषताओं से भरपूर, इस दुनिया की बहुत विशेष आत्मा हूं... मैं अपने प्रत्येक कर्म इस ऊंची स्मृति में स्थित होकर करता हूं और सफलता प्राप्त करता हूं...
2. मैं शांति, प्रेम और आनंद के खज़ाने से संपन्न हूं... मैं इन गुणों को अपने हर बोल और कर्म में प्रवाहित करता हूं और जीवन के हर क्षेत्र में चमत्कारिक रूप से सफलता प्राप्त करता हूं...
3. मैं भगवान का लाखों में एक बच्चा हूं... उनकी नज़रें हमेशा मुझ पर रहती हैं, और वे हर पल मेरी मदद करते हैं और मेरी रक्षा करते हैं... मुझे यह आत्मविश्वास अपने हर कर्म में तथा वार्तालाप में रहती है... यह आत्मविश्वास मेरी सफलता की कुंजी है...
4. मैं दिव्य मन और बुद्धि से संपन्न ज्ञान का फरिश्ता हूं... मैं अपने जीवन में ज्ञान का प्रयोग कर जीवन को सुंदर और हीरे-तुल्य बनाता हूं... मैं दूसरों को सम्मान देता हूं और उनसे सम्मान प्राप्त करता हूं...
5. मैं सकारात्मकता की तेजोमय आभामंडल के भीतर एक पवित्र और शक्ति स्वरूप आत्मा हूं... मैं इस आभा के साथ हर दिन अपने कार्य क्षेत्र में कदम रखता हूं... इससे मेरे जीवन में अच्छा स्वास्थ्य, भरपूर धन और सुंदर रिश्ते बनते हैं...
6. मैं लव एंड लॉ (love and law. के बीच बैलेंस रखने वाली आत्मा हूं... मैं सभी से प्यार करता हूं, और साथ ही मैं भगवान की बात भी सुनता हूं और कर्म के सिद्धांत अनुसार अपने सभी निर्णय बुद्धिमानी से लेता हूं... यह मेरे जीवन में सफलता लाता है...
7. मैं अच्छाई और मधुरता का भंडार हूं... मैं इसे स्वयं को और प्रतिदिन मिलने वाले लोगों को बांटता हूं... बदले में मुझे स्वयं से, भगवान से और दूसरों से सफलता का वरदान मिलता है...
8. मैं ऊंचे स्वमान में स्थित एक नम्रचित्त आत्मा हूं... मैं अपनी आत्मिक स्थिति को हमेशा शक्तिशाली और हल्का रखता हूं... मुझे ज्ञात है कि भगवान मेरे हर कार्य को मार्गदर्शित कर रहे हैं और मैं केवल निमित्तमात्र हूं...
08. मेरे भाग्य के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
हममें से बहुत लोग मानते हैं कि भगवान हमारा भाग्य लिखते हैं। हमें थोड़ा रुककर इस मान्यता पर पुनः विचार करने की ज़रूरत है। यदि भगवान ने हमारा भाग्य लिखा होता, तो दो चीज़ें होतीं: पहली, चूँकि हम सारे ही उनकी संतान हैं, इसलिए हम सभी का भाग्य एक-समान होता। दूसरी, हमारे माता-पिता होने के कारण भगवान ने हमारे लिए एक श्रेष्ठ भाग्य लिखा होता। किंतु आज हम सबका भाग्य न तो एकसमान है, न ही श्रेष्ठ। हम कर्म के नियम पर भी विश्वास करते हैं जो कि कहता है - जैसा मेरा कर्म होगा, वैसा ही मेरा भाग्य होगा। हमारे कर्म सदा ही श्रेष्ठ नहीं होते और हम सभी एक जैसे कर्म नहीं करते। इसलिए हमारे भाग्य न तो श्रेष्ठ हैं, और न ही एक जैसे। हमें अपने आप से पूछने की ज़रूरत है कि इन दोनों में से कौन सी मान्यता हमें सही लगती है। कर्म का सिद्धांत कर्म और उसका फल, या क्रिया और प्रतिक्रिया से संबंधित है। यह कर्म सिद्धांत हमारे जीवन में लगातार काम कर रहा है, क्योंकि हमारे प्रत्येक संकल्प, बोल और कार्य उसी कर्म में आते हैं। कर्म सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक कर्म - चाहे वह कितना भी छोटा हो या महत्वपूर्ण हो ना हो - उसका एक फल अथवा परिणाम होता है। फल हमेशा निष्पक्ष और उचित होता है। सही कर्म करने से अच्छा फल प्राप्त होता है, और गलत कर्म का फल बुरा प्राप्त होता है। कुछ कर्मों का फल तुरंत मिलता है। वहीं, अन्य कर्मों का फल एक घंटे बाद, एक साल बाद, 20 साल बाद, 50 साल बाद या भविष्य के जन्मों में प्राप्त होता है।
कुछ मामलों में हम कर्म को उसके फल अथवा परिणाम से जोड़कर देख पाते हैं। किंतु जब हम सूक्ष्म रूप में कर्मों से पड़ने वाले प्रभाव को देखते हैं, तब हम परिणाम को कर्म से नहीं जोड़ पाते, क्योंकि कर्म कई साल पहले या पिछले जन्म में भी किया गया होता है। इसलिए हमें हर बार परिणाम के पीछे कारण की पहचान करना आवश्यक नहीं है। हम केवल यही याद रखें तो काफी है -
1. कर्म का नियम हमेशा सही रूप से कार्य करता है और सभी के लिए सदा एक जैसा, अर्थात निष्पक्ष होता है।
2. हमारी वर्तमान परिस्थितियां हमारे पिछले कर्मों का ही परिणाम हैं। इसलिए, हमारे साथ जो कुछ भी घटित होता है उसके लिए हम ज़िम्मेदार हैं।
3. हमारा वर्तमान कर्म ही हमारा भविष्य तय करता है। इसलिए, हमारे पास अपना भाग्य निर्माण करने की शक्ति है।
हम सभी ने सही कर्म और गलत कर्म - दोनों के परिणाम का अनुभव किया है। चाहे हम उसपर विश्वास करें या न करें, पर कर्म का सिद्धांत हमारे जीवन में लगातार काम कर रहा होता है। हमें इससे डरने की ज़रूरत नहीं है, किंतु इसके प्रति जागरूक रहने की ज़रूरत है। हमें यह भी याद रखना है कि कर्म केवल हमारे बोल और स्थूल कार्य नहीं हैं, बल्कि संकल्प भी कर्म हैं। तो आइए हम सही सोचें, सही बोलें, और सही कार्य करें, ताकि हम एक सुंदर भाग्य का निर्माण कर सकें।
09. स्वस्थ रहने के लिए खुश रहें
हमारा मानना है कि स्वस्थ रहना हमें खुश रखता है। किंतु मेडीकल साइंस के पास इस बात के प्रमाण हैं कि खुश रहना हमें स्वस्थ रखता है। प्रत्येक संकल्प का प्रभाव हमारे शरीर की कोशिकाओं (cells. पर पड़ता है। गलत सोच शरीर में बीमारी को जन्म देती है। शरीर को ठीक करने के लिए, हमें अपनी भावनाओं को ठीक करना होगा। आइए, हम अतीत में मिले किसी भी दर्द को पकड़कर न रखें। हम कैसा महसूस करते हैं, इसके आधार पर हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति प्रभावित होती है अर्थात उसमें उतार-चढ़ाव होता है। खुशी, संतुष्टता, आनंद या उमंग जैसी भावनाएँ शरीर को सकारात्मक संकेत भेजती हैं। इससे शारीरिक बल यानी स्टैमिना बढ़ता है। चिड़चिड़ापन, भय, आलोचना या चिंता जैसी नकारात्मक भावनाएं शरीर में जाने से शरीर संवेदनशील हो जाता है और बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से बीमारी को रोका नहीं जा सकता, लेकिन दर्द को कम किया जा सकता है। खुश रहने पर हम दुख और तकलीफों का सामना बेहतर ढंग से करते हैं। वहीं, जब हम दुखी होते हैं तो ठीक होने में समय लग जाता है। खुशी एक स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देती है; हम ऊर्जावान रहते हैं, स्वस्थ भोजन लेते हैं, अच्छी नींद लेते हैं, और सामाजिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। वहीं अगर हम दुखी होते हैं तो इन बातों पर ध्यान नहीं देते।
मन का चीज़ों पर निरंतर प्रभाव पड़ता है। गलत विचार बीमारी पैदा कर सकते हैं जबकि सही विचार उपचार में मदद कर सकते हैं। मेरी तबीयत ठीक नहीं है... मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है... मेरे परिवार में डायबिटीज़ का इतिहास रहा है - ये विचार बीमारी की ऊर्जा फैलाते हैं। वर्तमान में जो भी बीमारी शरीर में है, उसके बारे में बार-बार सोचते रहने से शरीर में वही ऊर्जा प्रवाहित होती है और बीमारी बढ़ जाती है। अपने शरीर को ठीक करने के लिए अपने संकल्पों और शब्दों की शक्ति का उपयोग करें। आपका शरीर अपनी सामान्य स्थिति में वापस आ सके, इसके लिए केवल सामान्य और उत्तम स्वास्थ्य के संकल्प करें। आज दिन में रुकें और अपने शरीर को ठीक करने के लिए उचित व शक्तिशाली संकल्प करें - मेरा शरीर संपूर्ण स्वस्थ है।
10. आत्म-साक्षात्कार के लिए कार और चालक का तुलनात्मक उदारहरण
आत्म-साक्षात्कार, यानी यह जागरूकता कि मैं इस स्थूल शरीर से अलग एक शक्ति; आत्मा हूं, इसे दृढ़ करने में ड्राइवर और कार का तुलनात्मक उदारहरण बहुत मदद करता है, जिसमें ड्राइवर आत्मा का प्रतीक है, एवं कार भौतिक शरीर का प्रतीक है जो आत्मा शक्ति द्वारा नियंत्रित होता है। आज मेरा मेरे शरीर रूपी वाहन पर और मेरे कर्मेंद्रियों पर जैसा मुझे चाहिए वैसा नियंत्रण नहीं होने का सबसे बड़ा कारण यही है, कि मुझे इनका ड्राइवर; इन्हें नियंत्रित करने वाला चालक होने की विस्मृति हो गई है। इसके विपरीत, मैंने यह चेतना विकसित कर ली कि मैं ही यह शरीर रूपी वाहन हूं। इस चेतना ने मुझे मेरे वाहन को नियंत्रित करने की शक्ति और क्षमता से अलग कर दिया। अब यदि मैं इच्छित नियंत्रण प्राप्त करना चाहता हूं, तो मुझे चालक होने की स्मृति में रहना होगा, यानी यह जागरूकता कि मैं एक आत्मा हूं और यह शरीर मेरा वाहन है, जिसके माध्यम से मैं इस जीवन का अनुभव करता हूं। यह चेतना, यह अनुभूति मुझे जागृत करके शक्तिशाली बनाती है ताकि मैं अपने शरीर पर आवश्यक नियंत्रण हासिल कर सकूं।
कार को गियर, ब्रेक, एक्सीलेटर और स्टीयरिंग व्हील नियंत्रित करते हैं, जिनकी तुलना आत्मा की सूक्ष्म इंद्रियां - मन, बुद्धि, संस्कार, और शरीर की स्थूल इंद्रियां - आंखें, कान, नाक, हाथ, जीभ से की जा सकती हैं। एक अच्छा ड्राइवर वह होता है जो बेहद सतर्क रहता है, और वाहन पर पूरी तरह से नियंत्रण रखने तथा किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचने के लिए गियर, ब्रेक, एक्सेलेरेटर और स्टीयरिंग व्हील का कुशलता से उपयोग कर पाता है। उसी तरह, जैसे-जैसे मैं जीवन की राह पर आगे बढ़ता हूं, मुझे अपनी सूक्ष्म और स्थूल इंद्रियों (ऊपर वर्णित. पर पूर्ण नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। यदि मैं ऐसा करता हूं, तो वे मेरी यात्रा को सुखद बनाए रखेंगे, और मुझे सुरक्षित ढंग से तथा सफलतापूर्वक, मानसिक शांति व खुशी की अनुभूति करने में मदद करेंगे। और यदि मैं ऐसा नहीं करता हूं और उन्हें अपने ऊपर हावी होने देता हूं, तो निश्चित ही दुर्घटनाएं घटेंगी, जिससे मैं अशांत और दुखी होऊंगा।
यदि एक अच्छा ड्राइवर कार चलाते समय, रास्ते में आने वाले नेगेटिव और परेशान करने वाले दृश्यों से विचलित हो जाता है, और उसका ध्यान कई अलग-अलग दिशाओं में आकर्षित होता है, तो वह अपनी यात्रा को असुरक्षित बना देगा और दुर्घटना होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। जब यही नियम आत्मा और शरीर पर लागू होते हैं, तो मुझे भी यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि जीवन की राह पर आगे बढ़ते हुए, मैं उन दृश्यों से विचलित न हो जाऊं जो मेरे लिए उपयोगी नहीं हैं। जैसे कि उदाहरण के लिए, जब मैं आत्मा अपनी आंखों की खिड़की से बाहर देखता हूं, तो मुझे रास्ते में आने वाले सारे दृश्य, तस्वीरें और सूचनाएं अपने भीतर नहीं आने देनी हैं, अन्यथा मैं दुर्घटना का शिकार हो सकता हूं। कानों से सुनते समय, मुझे लोगों द्वारा कहे गए सभी शब्दों को भीतर नहीं आने देना है, अन्यथा मेरे साथ दुर्घटना हो सकती है। मैं उन चीज़ों को भीतर लेना चुन सकता हूं जो मेरे लिए उपयोगी हैं, लेकिन मुझे ध्यान भटकाने वाली, नकारात्मक और हानिकारक दृश्यों, शब्दों और व्यवहारों को चुनने की आवश्यकता नहीं है। एक ड्राइवर की तरह, मैं परिस्थितियों को देखता और समझता हूं, और अपनी आंखें और कान खुली रखता हूं, क्योंकि उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज़ करना असुरक्षित है, मुझे उनके बारे में जागरूक रहने की आवश्कता है। लेकिन मैं उनमें केवल सकारात्मकता की तलाश करता हूं, ताकि यात्रा करते समय मेरा ध्यान केंद्रित रहे और मैं आंतरिक संतुष्टि और आनंद की अनुभूति कर सकूं।
मुझ आत्मा को इस शरीर रूपी वाहन का चालक होने के नाते, यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि मैं लापरवाही से गाड़ी न चलाऊं, अर्थात मैं अपने आंखों, शब्दों और कर्मों के माध्यम से प्रकट होने वाली अपने भावनाओं और वृत्तियों पर नज़र रखूं। लापरवाही से गाड़ी चलाना, यानी इस रीति से नकारात्मक ऊर्जा प्रकट करना, जीवन की राह में चलते हुए अन्य किसी यात्री को नुकसान पहुंचा सकता है। जब ये भावनाएं और वृत्तियां सकारात्मक होते हैं तथा मधुरता, पवित्रता और सम्मान से भरे होते हैं, तो वे भी यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि मेरी यात्रा सुचारू और आनंदमय तरीके से गुज़रे। जब मैं एक ड्राइवर के रूप में सतर्क और जागरूक होकर सावधानी से गाड़ी चलाता हूं, तो मेरे कर्म मुझे मेरे अनादि सत्य के करीब ले जाते हैं और मैं अपनी सकारात्मकता को अपने आस-पास के लोगों के साथ बांट पाता हूं। किंतु जब मैं एक क्षण के लिए भी जागरूकता खो देता हूं, तब दूसरों को मुझसे या मुझे दूसरों से खतरा उत्पन्न हो जाता है।
11. सकारात्मक जीवन के लिए 10 नई मान्यताएं
भगवान या परमात्मा और हम मनुष्य आत्माओं में एक बहुत ही विशेष अंतर यह है कि, परमात्मा ही इस विश्व नाटक में मौजूद एकमात्र ऐसी आत्मा हैं, जो इच्छाओं से पूरी तरह मुक्त हैं और सदा ही वैसे रहते हैं। हम मनुष्य आत्माएं जो भी कर्म करते हैं, वे इस इच्छा से करते हैं कि हमें शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति की अनुभूति हो। ये सारे गुण हम आत्माओं के मूल गुण हैं, जब हम अपने जन्म-पुनर्जन्म की यात्रा शुरू करने से पहले आत्माओं की दुनिया में निवास करते हैं, और जब हम विश्व रंगमंच पर अपनी जीवन की यात्रा शुरू करते हैं, तब केवल यही गुण हमारे भीतर मौजूद होते हैं। गलत मान्यताओं के कारण कई आत्माएं आज शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति की अनुभूति हेतु काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, आदि भावनाओं से भरे कर्म करती हैं। लेकिन हमें ये एहसास नहीं होता कि कैसे ये कर्म हमें उन अनुभूतियों से दूर ले जाते हैं, ना कि उनके करीब।
भगवान या परमात्मा इच्छाओं से पूरी तरह मुक्त हैं, क्योंकि वे शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति के सागर हैं। परमात्मा के पास आत्माओं के इन विभिन्न इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति और ज्ञान है। परम शिक्षक होने के नाते, वे हमारा मार्गदर्शन करते हैं और सिखाते हैं कि कौन से सही कर्म हमारी शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने में मदद करते हैं, और कौन से कर्म हमें उनसे दूर ले जाते हैं। इसके अलावा, एकमात्र वे ही हमें सिखा सकते हैं कि हम उनके साथ कैसे जुड़े ताकि हमारी ये इच्छाएं पूरी हों, क्योंकि वे इन सभी गुणों के सागर हैं जो हमारी वास्तविक स्थिति में हमारे भीतर मौजूद रहती हैं। और परमात्मा से जुड़ना हमें इन गुणों से भर देता है। परमात्मा द्वारा दिए गए ज्ञान और सिखाए गए योग के माध्यम से जब हम उनके साथ जुड़ते हैं, और सही मान्यताओं अथवा सत्य के आधार पर सही कर्म करते हैं, तब कई जन्मों की हमारी स्थायी शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण होने में मदद मिलती है।
हम शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति का अनुभव कैसे कर सकते हैं, इस बारे में हम कई गलत धारणाएं अथवा मान्यता रखते हैं और उन्हीं के आधार पर कई कर्म करते हैं। भगवान जो हमारे परम शिक्षक हैं, वे हमारी सोच को बदलते हैं और हमें इन गलत धारणाओं से अवगत कराकर सत्य अथवा सही धारणा बताते हैं, ताकि हम उनके आधार पर कर्म करना शुरू कर दें और स्थायी शांति, प्रेम, आनंद और शक्ति का अनुभव करें। यहां हमारी ऐसी ही गलत धारणाओं के 10 उदाहरण, और उनके बारे में सच्चाई क्या है वो बताए गए हैं –
मान्यता 1 – रिश्तों में सफलता के लिए क्रोध ज़रूरी है और काम निकालने और सम्मान पाने के लिए भी ये ज़रूरी है। क्रोध मानसिक ऊर्जा को बढ़ाता है और हमें शक्तिशाली बनाता है।
सच्चाई – जब दो इंसानों के बीच शांति, प्रेम और अच्छाई की ऊर्जा का लेन-देन होता है तो रिश्ते खूबसूरत हो जाते हैं। जब हम उन्हें अपने गुस्से से नियंत्रित करने के बजाय अपने शांत और प्रेमपूर्ण स्वभाव से प्रभावित करते हैं, तब लोग हमारा अधिक सम्मान करते हैं और हमारे साथ काम करने का अधिक आनंद लेते हैं। क्रोध क्षणिक व नेगेटिव रोमांच पैदा कर एड्रेनालाईन को बढ़ा देता है, लेकिन यह हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है और आत्मा के विवेक और संतुष्टि जैसे आध्यात्मिक खज़ाने को नष्ट करता है।
मान्यता 2 – चिंता और डर हमें नकारात्मक परिस्थितियों के लिए तैयार करते हैं। अपने प्रियजन के लिए चिंतित होना उनके प्रति हमारे प्यार की निशानी है।
सच्चाई – पहले से मौजूद किसी भी नकारात्मक परिस्थिति के लिए डर और चिंता करना समस्या को और अधिक बढ़ा देता है और समाधान को हमसे दूर रखता है। भविष्य में होने वाली नकारात्मक परिस्थिति के लिए डर और चिंता करना अर्थात पहले से ही नकारात्मक कल्पना कर लेना, जो आत्मा को भावी बुरे परिणाम के लिए तैयार करने के बजाय आत्मा की आध्यात्मिक शक्ति को खत्म करता है और ब्रह्मांड में नकारात्मक ऊर्जा भेजता है, जो उस परिस्थिति को बेहतर बनाने के बजाय नुकसान पहुंचाता है। अपने प्रियजनों के लिए शुभ सोचना, ना कि चिंतित होना उनके प्रति हमारे प्यार का संकेत है, जिससे उन्हें हमसे जिस भी सहायता की आवश्यकता होती है वो प्राप्त होती है, क्योंकि हम उस समय सकारात्मकता और शक्ति से भरे होते हैं। इसके विपरीत जब हम चिंतित होते हैं तो हम अपनी सकारात्मकता और शक्ति खो देते हैं।
मान्यता 3 – अहंकार शक्ति है; अहंकार रहित व्यक्ति आमतौर पर शर्मीला या कमज़ोर होता है।
सच्चाई – अहंकार एक झूठी शान है, जो आत्मा को उसके वास्तविक स्वमान से दूर कर देती है, जिससे आत्मा कमज़ोर हो जाती है, क्योंकि वह अपनी पहचान अपने स्थूल शरीर, भूमिका और रिश्तों से करती है, जो अस्थायी और परिवर्तनशील हैं। एक विनम्र व्यक्ति जो अपने श्रेष्ठ स्वमान में स्थित होता है, वो आत्मिक स्तर पर स्वयं और दूसरों से प्रेम करता है और उनका सम्मान करता है, जिससे उसे भगवान और सबकी दुआएं प्राप्त होती हैं, ये दुआएं उसे आंतरिक रूप से मज़बूत बनाती हैं और हर कोई उसे सकारात्मक दृष्टि से देखता है। ऐसा व्यक्ति जहां भी जाता है वहां सकारात्मकता फैलाता है, जिससे उसमें आत्मविश्वास आता है और वो शर्मीला नहीं होता।
मान्यता 4 – वासना और मोह रिश्ते में प्यार बढ़ाते हैं।
सच्चाई – आत्मा में वासना और मोह उसके दूसरे इंसान को पाने की इच्छा का रूप हैं, जो आत्मा की दिव्य शक्ति को खत्म कर देती है। एक रिश्ते में प्यार तब बढ़ता है जब हम दूसरी आत्मा को खुले दिल से देते जाते हैं, और उसके भौतिक शरीर व व्यक्तित्व के बजाय उसके गुणों से जुड़ते हैं।
मान्यता 5 – लोभ संसारिक समृद्धि को आकर्षित करता है और खुशियां लाता है।
सच्चाई – लोभ एक नकारात्मक इच्छा है, जो कर्मों में बेईमानी और असत्यता लाती है और रिश्तों को नुकसान पहुँचाती है। लोभयुक्त आत्मा अपना विवेक भी खो देती है क्योंकि वह परिवार, कार्यस्थल या किसी अन्य क्षेत्र में आर्थिक या अन्य रूप से अधिक हासिल करने के लिए अपनी आंतरिक अच्छाई का त्याग कर देती है। आध्यात्मिक ज्ञान कहता है – आत्मा जितनी अधिक दिव्य प्राप्तियों से भरपूर होती है, उतनी ही अधिक वो सांसारिक समृद्धि और बहुत काल के सुख को आकर्षित करती है।
मान्यता 6 – जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है। इसलिए जब हमारे जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा हो तो खुश रहना सही है, और जब हमारे जीवन में नकारात्मक परिस्थितियां हों तो दुखी और तनावग्रस्त रहना सही है।
सच्चाई – हमारे जीवन में हर दिन परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं और हर दिन कुछ न कुछ ऐसा होता है जो सही नहीं होता। तो उसके कारण हमारी मानसिक स्थिति भी ऊपर नीचे होती है। हम कभी-कभी यह भी सोचते हैं कि हमारे जीवन की सभी परिस्थितियां ईश्वर निर्मित हैं और ईश्वर ही हमें सुख और दुःख दोनों दे रहा है। लेकिन कर्म का नियम कहता है कि हम अपने जीवन में घटनाओं का निर्माण अपने वर्तमान कर्मों और पिछले कई जन्मों के कर्मों के आधार पर करते हैं। इसमें ईश्वर का कोई हाथ नहीं है और वे हरेक मनुष्य के जीवन की अलग-अलग परिस्थितियों का निर्माण नहीं कर रहे हैं। परमात्मा केवल हमें सद्बुद्धि देते हैं और यह ज्ञान देते हैं कि कौन से कर्म अच्छे कर्म हैं और कौन से बुरे कर्म हैं। जितना अधिक हम इस ज्ञान का अपने जीवन में उपयोग करेंगे और सही ढंग से पालन करेंगे, उतना ही अधिक हम आंतरिक रूप से हमेशा खुश रहेंगे। यदि कुछ नकारात्मक परिस्थितियां भी आएंगी तो हम तनावग्रस्त नहीं होंगे और अपने भीतर की सकारात्मकता से उन परिस्थितियों को सकारात्मक बना देंगे, और ऐसा करते हुए हमेशा खुश रहेंगे।
मान्यता 7 – दूसरों के बारे में परचिंतन अथवा व्यर्थ बातें (gossip. करने से सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है और हमें आनंद की अनुभूति होती है।
सच्चाई – परचिंतन दूसरे लोगों की कमज़ोरियों और उनके कार्यों पर केंद्रित होता है। ऐसा कहा जाता है – जिधर हमारा ध्यान जाता है, उधर हमारी ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है। जितना अधिक हम अपना ध्यान और ऊर्जा दूसरों पर केंद्रित करते हैं, उतना ही हमारे भीतर की सकारात्मक ऊर्जा कम होती जाती है, और हमारी रचनात्मक शक्ति व क्षमताएं नकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं। जब हम दूसरों की पीठ पीछे उनके बारे में बातें करते हैं, तब हमसे उनकी तरफ नकारात्मक ऊर्जा जाती है, जो हम दोनों के अच्छे रिश्ते को नुकसान पहुंचाता है और हमें आनंद की अनुभूति से दूर कर देता है।
मान्यता 8 – ईर्ष्या हमें बेहतर कर्म करने और अधिक हासिल करने के लिए प्रेरित करती है।
सच्चाई – हम सभी आत्माएं अपने भिन्न-भिन्न गुणों और विशेषताओं के साथ सुंदर हैं। यदि हम जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो हमें अपने गुणों और विशेषताओं को गहराई से पहचानना होगा और फिर जीवन के हर क्षेत्र में उनका उपयोग कर आगे बढ़ना होगा। जितना अधिक हम उनका उपयोग करेंगे, उतना ही वे बढ़ेंगे, और न केवल आस-पास के सभी लोगों को लाभान्वित करेंगे, बल्कि हमें भी हर कदम पर सफलता दिलाने में मदद करेंगे। किंतु यदि हम ईर्ष्या करेंगे तथा दूसरों की विशेषताओं व सफलता पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो हम कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे, बल्कि दूसरी ओर, आत्मिक स्तर पर खालीपन का अनुभव करेंगे।
मान्यता 9 – अनेक संसारिक प्राप्तियां, धन और संपत्ति होना तथा अच्छा शारीरिक व्यक्तित्व, रूप और खूबसूरत रिश्तें होना हमें स्थायी खुशी देता है।
सच्चाई – आज की दुनिया में संसारिक प्राप्तियां, धन और संपत्ति जमा करने की इच्छा बहुत आम है। हमारा ध्यान अंतर-आत्मा पर कम जाता है, जो स्थायी खुशी और संतुष्टि देती है। हमें अच्छी कारें, आधुनिक मोबाइल फोन, भव्य घर, सुंदर फर्नीचर और अन्य भौतिक वस्तुएं पसंद हैं। हमें सुंदर और आकर्षक कपड़े, महंगी घड़ियां और जूतों के कई सेट खरीदना भी पसंद है। साथ ही, हम खाने, पार्टी करने, फिल्में देखने और सोशल मीडिया में भी अत्यधिक व्यस्त रहते हैं। लेकिन, यह सब करते हुए हम यह भूल गए कि ये सभी चीज़ें हमारी पांच इंद्रियों – आंख, कान, नाक, जीभ और हाथ को तो सुख देती हैं किंतु ये आत्मा को स्थायी सुख नहीं देती। ऐसा इसलिए क्योंकि कभी-कभी इनमें से कुछ चीज़ें एक सेकंड में हमारा साथ छोड़ सकती हैं, और जब हम इन्हें किसी कारण से प्राप्त नहीं कर पाते तो हम दुखी और तनावग्रस्त महसूस करते हैं। आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने से, और आत्मा के संस्कारों को सुंदर कर आत्मा को समृद्ध बनाने से हमें जो आंतरिक खुशी प्राप्त होती है, वो स्थायी होती है, जो भौतिक संपत्ति या इंद्रियों पर आधारित नहीं होती।
साथ ही, आज हर कोई अपने शरीर और बाहरी व्यक्तित्व को अधिक से अधिक सुंदर और आकर्षक बनाने के पीछे भाग रहा है। हालांकि अच्छा दिखना और सभी को अच्छा लगना गलत नहीं है और हमें इसका ध्यान रखना चाहिए, लेकिन जब हम इसके प्रति बहुत ज़्यादा जुनूनी हो जाते हैं, तब हम अपनी आत्मिक चेतना और आत्मिक सुंदरता से अपना संबंध खो देते हैं, और खुद को सरलता और पवित्रता, जो हमें शारीरिक रूप से भी आकर्षक बनाता है, से सजाना बंद कर देते हैं।
साथ ही, दूसरों के साथ खूबसूरत रिश्ते मनुष्य जीवन के सबसे आवश्यक पहलुओं में से एक है और यह मनुष्यों के बीच प्यार, देखभाल और सहयोग लेने-देने का माध्यम है। लेकिन, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्थायी खुशी के लिए हमें मानवीय रिश्तों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी हमें लोगों से वो नहीं मिलता जिसकी हम अपेक्षा करते हैं और उस समय हम दिलशिकस्त और कमज़ोर बन सकते हैं। तो आइए, हम मनुष्यों के साथ अपने सभी रिश्तों का आनंद लें, लेकिन पहले परमात्मा के साथ भी एक खूबसूरत और नज़दीकी रिश्ता स्थापित करें। ऐसा इसलिए क्योंकि परमात्मा मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष के चेतन्य बीज हैं और जितना अधिक हम उनसे प्रेम करेंगे, उनके प्रेम से भरपूर होंगे, और उनके नज़दीक होंगे, उतना ही अधिक हम दूसरों से प्रेम करेंगे और दूसरों का प्रेम प्राप्त करेंगे।
मान्यता 10 – प्रकृति से जुड़ने एवं उसकी सुंदरता का आनंद लेने से स्थायी शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।
सच्चाई – प्रकृति अपने शुद्ध व सुंदर स्वरूप में आत्मा को आनंद और सुख प्रदान करती है। लेकिन प्रकृति से मिलने वाली शांति और आनंद स्थायी नहीं होते हैं, क्योंकि हमारी भागदौड़ भरी ज़िंदगी हमें हर समय प्रकृति के बीच रहने की अनुमति नहीं देती। जब हम अपने आत्मिक स्वरूप और परमात्मा से जुड़ते हैं, तब हम आंतरिक, स्थायी शांति और आनंद से भर जाते हैं। प्रकृति के नज़ारों का आनंद लेना अच्छी बात है, लेकिन हमें जीवन के हर नज़ारे का आनंद लेने के लिए और कठिन परिस्थितियों के बीच अचल व स्थिर रहने के लिए आध्यात्मिकता (स्वयं और परमात्मा. से भी जुड़ना चाहिए।
12. आत्म नियंत्रण की कला को अपनाएंहम सभी अच्छी तरह से जीने के लिए अपने जीवन पर नियंत्रण रखना चाहते हैं। यह हमारे मन, बुद्धि और संस्कार पर राज्य करने की शक्ति है। इससे हमारी शारीरिक इंद्रियां भी स्वतः नियंत्रित हो जाती हैं। हम समाज द्वारा तय किए गए नियमों और बंधनों में नहीं उलझते, क्योंकि हम अपने नैतिक मार्ग पर चलते रहते हैं। जब हम स्वयं को अच्छी रीति संभाल पाते हैं, तभी दूसरों को भी सही तरीके से संभाल पाते हैं। हम जिन चीज़ों को और अधिक पाने की इच्छा रखते हैं, उनमें आत्म-नियंत्रण का स्थान सबसे ऊपर होना चाहिए। यह हमारे सोचने, रहने और व्यवहार करने के तरीकों को नियंत्रित करने की हमारी क्षमता है। यूं तो आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करना संभव लगता है, लेकिन ऐसे क्षण भी आते हैं जब हमें मन करता है कि हम कुछ और कर लें, और हम वैसा कर बैठते हैं।
आत्म-नियंत्रण हासिल करने और सुख की अनुभूति करने के लिए इन तरीकों का पालन करें:
1. आत्म-नियंत्रण एक ताकत है जिसे हम जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं में अभ्यास करके विकसित कर सकते हैं।
2. मेडीटेशन के दौरान अपने संकल्पों पर ध्यान दें। यह हमें मन को नियंत्रित करने और उसके साथ एक सुंदर रिश्ता बनाने में मदद करता है।
3. हर परिस्थिति में अकास्मिक और पहले की तरह ही प्रतिक्रिया देने के बजाय शक्तिशाली और सही प्रतिक्रिया देने का चुनाव करें। हमारे पास बहुत तरह से प्रतिक्रिया देने का विकल्प है और हम किसी का भी चुनाव कर सकते हैं – यह ज्ञान होना हमारे आत्म-नियंत्रण को बढ़ाता है।
4. अपने नियमों और सिद्धांतों पर अडिग रहें। इनका पालन सबके साथ और हर परिस्थिति में निर्भय होकर करें। उदाहरण के लिए, अपनी गलती स्वीकार करें और माफी मांगें, भले ही इसका गंभीर परिणाम हो। इसी तरह, यातायात नियमों का पालन करें, भले ही आप सड़क पर अकेले हों।
5. आप जो भी पढ़ें, देखें, सुनें और कहें, उसमें पवित्रता चुनें। प्रलोभनों से आकर्षित हुए बिना सही खान-पान के सिद्धांत का पालन करें। सार्वजनिक स्वीकृति लिए बिना वही करें, जो आपके लिए सही और स्वस्थ है।
अपने जीवन पर वापस नियंत्रण पाने के लिए इन स्वमानों को 3 बार दोहराएं। फिर देखें कि आपका मन कैसे आपका कहना मानता है और शरीर आपके लक्ष्य प्राप्ति में सहयोग करता है।
आत्म-नियंत्रण की कला को अपनाएं:
मैं एक शक्तिशाली आत्मा हूं... मैं अपने हर संकल्प, बोल और कर्म का रचयिता हूं... मैं अपने मन का उपयोग सही रीति करता हूं... परिस्थितियां मेरे हिसाब से नहीं हो सकती, किंतु मेरा मन मेरे हिसाब से चलता है... मैं स्वयं यह चुनता हूं कि मुझे किस ओर ध्यान देना है... क्या देखना है... क्या सुनना है... क्या कहना है... मैं सभी में अच्छाई देखता हूं... मुझे लोगों की राय प्रभावित नहीं करतीं... मैं अनुशासित जीवन जीता हूं... मैं अपने मन को नियंत्रण में रखने वाला मालिक हूं... मैं अपने शरीर का मालिक हूं..।
13. अहंकार का त्याग करें
हम सभी अहंकार पर काबू पाना चाहते हैं, लेकिन अहंकार क्या है? अहंकार तब होता है जब हम किसी प्राप्ति को गलती से अपनी पहचान बना लेते हैं। वो हमारी योग्यता, पद, विशेषता, संबंध या संपत्ति हो सकती है। हम इनसे जुड़कर इस चेतना के साथ जीते हैं कि मैं ये हूं, मैं वो हूं। फिर हम उम्मीद करते हैं कि लोग भी हमें उसी पहचान से देखें, समझें। जब हम कहते हैं, उसने मेरे अहंकार को चोट पहुंचाई है, तो वास्तव में हमारा मतलब यह होता है कि उसने मेरी जो अपने बारे में पहचान है, उसे नुकसान पहुंचाया है।
आराम से बैठें और देखें, अपने वास्तविक स्वरूप की चेतना में; अर्थात आप वास्तव में कौन हैं, इस चेतना में आप अहंकार पर कैसे विजय प्राप्त करते हैं। कुछ होने से या कुछ भी न होने से पैदा होने वाले अहंकार को समाप्त करने के लिए, इस स्वमान को प्रतिदिन दोहराएं। जैसे-जैसे आप अहंकार से विनम्रता/निर्मानता की ओर बढ़ते हैं, आप दूसरों से प्यार और सम्मान प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखते। आप लेने के बजाय दूसरों को प्यार देने और उन्हें स्वीकार करने वाले बन जाते हैं।
स्वमान –
मैं एक पवित्र आत्मा हूं। मुझे यह स्पष्ट है कि मैं कौन हूं... मैं अपनी वास्तविक पहचान के प्रति सजग रहता हूं... मैं एक आत्मा हूं... मैं बहुत सारी भूमिकाएं निभाता हूं... मैं इस जीवनकाल में बहुत कुछ हासिल करता हूं... वो सभी मेरे हैं.. पर वो मैं नहीं हूं... मैं पवित्र, शक्तिशाली, प्रेम स्वरूप, सुख स्वरूप आत्मा हूं... शक्ति हूं..जिसने वो सबकुछ प्राप्त किया है। मुझे यह ज्ञात रहता है.. कि मैं अपना नाम नहीं हूं... ये शरीर नहीं हूं... रिश्ते नहीं हूं... डिग्री नहीं हूं... पद नहीं हूं... मैं केवल मैं हूं..एक पवित्र आत्मा... और बाकी सारे जिनसे मैं मिलता हूं, वे भी यही हैं। मुझे कुछ भी खोने का डर नहीं है। मेरे पास जो कुछ है, मैं उसका ट्रस्टी हूं... मैं उनकी देखभाल करता हूं... लेकिन मैं वह नहीं हूं। मैं निर्मान रहता हूं... मैं हल्का और पवित्र हूं... मैं बिना किसी पद या संपत्ति के अहंकार के रहता हूं। कोई भी मुझसे छोटा नहीं है... कोई भी मुझसे श्रेष्ठ नहीं है... हर कोई समान है... हर कोई एक पवित्र, शक्तिशाली आत्मा है... मुझे लोगों को अपने तरीके से चलाने की आवश्यकता नहीं है... वे अपने तरीके से रह सकते हैं... मैं अपने तरीके से रहता हूं... सही तरीके से...निर्मानता और आत्मबल के साथ प्रतिक्रिया देते हुए... मुझे पता है मैं कौन हूं... मैं अपनी तुलना नहीं करता... मैं प्रतिस्पर्धा भी नहीं करता... मैं अपनी यात्रा का आनंद लेता हूं... मेरी भावनाएं मेरी अपनी हैं..दूसरों पर निर्भर नहीं हैं। मुझे कुछ नहीं चाहिए... मुझे केवल प्यार और खुशी देना है..।
14. राजयोग के 4 विषय एवं उनका महत्व
भगवान हमें वर्तमान समय पर, जो कि कलियुग का अंत है, राजयोग सिखा रहे हैं। विभिन्न रूपों में राजयोग भारत में लंबे काल से रहा है और कई आत्माओं ने इससे लाभ उठाया है। परन्तु कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं जानता कि वास्तविक राजयोग भगवान ने ही 5000 वर्ष पहले सिखाया था, जब उस समय हम कलियुग के अन्त में थे। यह भी कोई नहीं जानता कि राजयोग सीख उसका अभ्यास करने से, और उसके चार विषयों को अपने जीवन में लाने से आत्माएं शुद्ध हुई थीं। साथ ही, कोई नहीं जानता कि शुद्ध होने के बाद आत्माएं पवित्रता, शांति, प्रेम और आनंद के श्रेष्ठ स्वरूप को प्राप्त हुईं, और सतयुग या स्वर्ण युग का निर्माण हुआ। यह सब 5000 वर्ष पहले हुआ था। अब हम फिर से कलियुग या लौह युग के अंत में आ गये हैं और विश्व की सभी आत्माएं इन 5000 वर्षों के अनेक जन्मों की यात्रा के बाद अशुद्ध हो गई हैं। तो अब भगवान हमें फिर से राजयोग और उसके 4 विषय सिखाकर सतयुग या स्वर्ण युग की स्थापना कर रहे हैं। ये 4 विषय क्या हैं एवं इनका क्या महत्व है?
आइये समझते हैं –
1. ईश्वरीय ज्ञान को सुनना और समाना
राजयोग का पहला विषय है ईश्वरीय ज्ञान, जिसमें भगवान आत्मा, उसका वास्तविक स्वरूप, मूल गुणों, निवास स्थान और उसके जन्म-पुनर्जन्म के बारे में हर चीज़ का हमें ज्ञान देते हैं। साथ ही, भगवान अपने बारे में भी हमें संपूर्ण ज्ञान देते हैं – उनका नाम, वास्तविक रूप, गुण, निवास स्थान और विश्व नाटक में उनकी भूमिका क्या है। फिर वे विश्व नाटक का ज्ञान, उसकी अवधि, उसके विभिन्न युग, सत्य इतिहास और भूगोल का ज्ञान देते हैं। परमात्मा यह भी बताते हैं कि विश्व नाटक पृथ्वी ग्रह पर चलता है, जिसमें परमात्मा और आत्माएं अलग-अलग भूमिका निभाती हैं, और आत्माएं प्रकृति के संबंध में आती हैं। हम प्रतिदिन परमात्मा से आध्यात्मिक ज्ञान सीखते हैं और उसे सुनते हैं। यह न केवल हमें समझदार बनाता है, बल्कि हमें शांति, आनंद और शक्ति से भी भर देता है। भगवान हमसे कहते हैं कि जो ज्ञान हम प्रतिदिन सुनते हैं, उसे हमें पूरे दिन कर्म करते समय अपनी स्मृति में रखना चाहिए। यह हमें पूरे दिन सकारात्मक और शक्तिशाली बनाए रखेगा।
2. योग में परमात्मा से जुड़ना
योग अथवा मेडिटेशन राजयोग का अगला विषय है और इसका अभ्यास हम तभी कर सकते हैं जब हमने पहले ईश्वरीय ज्ञान को पूरी तरह सीखा और समझा हो। योग आत्मा का परमात्मा से संबंध है, जिसमें आत्मा पहले स्वयं को पहचानती है, फिर बुद्धि के नेत्र से अपने स्वरूप और गुणों को देखती है व उनकी अनुभूति करती है। आत्मा स्वयं से बातें करती है और अपने ज्ञान के आधार पर मन की स्थिति और स्मृति को सकारात्मक बनाती है। योग एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिसमें आत्मा अपने मन, बुद्धि और ज्ञान का उपयोग कर परमात्मा से जुड़ती है। योग में हम परमात्मा; सर्वोच्च सत्ता के साथ सूक्ष्म रूप से बातें करते हैं। योग आत्मा का शुद्धिकरण करता है, जिसमें परमात्मा की किरणें प्राप्त कर आत्मा के मन, बुद्धि और संस्कार पूरी तरह से स्वच्छ हो जाते हैं। योग आत्मा की आंतरिक शक्तियों को जागृत करता है। योग में आत्मा को परमात्म गुण और शक्तियां प्राप्त होते हैं और आत्मा स्वयं को परिवर्तित कर अपने वास्तविक गुणों को इमर्ज करती है। योग परमात्मा के साथ हमारी निकटता को भी बढ़ाता है और हमें कर्मों में हल्का और खुश बनाता है, साथ ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमें अधिक कुशल और निर्माण बनाता है। अंत में, योग हमारे कर्मों को अधिक सुंदर और संस्कारों को श्रेष्ठ बनाता है, और हमें कमज़ोरियों से मुक्त बनाता है।
3. दैवी गुणों की धारणा
यह राजयोग का तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। यह हमें ये समझने और जांच करने में मदद करता है, कि हम अपने जीवन में ईश्वरीय ज्ञान को कितनी अच्छी तरह समझकर आत्मसात कर रहे हैं, और योग का अभ्यास कितनी अच्छे रीति कर रहे हैं। इसकी निशानी यह है कि हमारे अंदर दैवी गुणों की वृद्धि होने लगती है, जिसे हम दूसरों के साथ बांटना शुरू कर देते हैं, और जिनसे भी मिलते हैं उनसे दुआएं लेते और देते हैं। जितनी अधिक हमारे अंदर आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है, उतने ही अधिक गुण हमारे व्यक्तित्व में दिखाई देने लगते हैं। साथ ही, हम परमात्मा की दिव्यता से परिपूर्ण हो जाते हैं, और रहने व देने में उनके समान बनने लगते हैं। जैसे-जैसे हम संकल्प, बोल और कर्म में हर कदम पर परमात्मा का अनुसरण करते हैं, वैसे-वैसे हममें मधुरता, पवित्रता और निर्मानता बढ़ने लगती है; और हमारे संस्कार दूसरों के सामने परमात्मा को, जो हमारे परम शिक्षक और मार्गदर्शक हैं, अनेक तरह से प्रत्यक्ष करते हैं।
4. विभिन्न तरीकों से लोक सेवा करना
राजयोग का चौथा विषय है मन, वचन और कर्म से दूसरों की सेवा करना। एक बार जब हम ज्ञान को अच्छी रीति समझ लेते हैं; योग की गहराई को सीखकर उसका अनुभव कर लेते हैं; और दिव्य गुणों और अच्छाई से भरपूर हो जाते हैं; तब इसके बाद ये सबकुछ जो हमने परमात्मा से सीखा और प्राप्त किया है, वो हमें दूसरों को देना होता है। हम इन्हें अपने संकल्पों और वाइब्रेशन के माध्यम से, तथा अपने विभिन्न कर्मों के माध्यम से दूसरों को दे सकते हैं। आध्यात्मिक मार्ग स्वयं को भरपूर करने और दूसरों को देने के लिए होता है। यह दोनों हमें आध्यात्मिकता व उसके महत्व को और अधिक समझने में, तथा परमात्मा को गहराई से समझने में मदद करता है। यदि हम परमात्मा की प्राप्तियों से केवल स्वयं को भरते हैं और उन्हें दूसरों को नहीं देते, तो हमारी आध्यात्मिक समझ और गुण उतने नहीं बढ़ते, जितने दूसरों को देने से बढ़ते हैं। साथ ही ज्ञान, गुणों और शक्तियों को हमेशा गहराई से स्वयं में भरकर ही दूसरों को दान देना चाहिए। अन्यथा, यदि हम स्वयं को भरपूर किए बिना ही दूसरों को देते जाते हैं, तो समय बीतने के साथ हम सशक्त बनने के बजाय कमज़ोर और खाली महसूस करते हैं। सेवा एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह आंतरिक जागृति लाती है और हमें हर किसी की दुआएं दिलाती है, जिससे हमारे जीवन की राहें बाधाओं और कठिनाइयों से मुक्त होती हैं।
इस लेख में हमने जो 4 विषय बताए हैं, उन्हें मिलाकर राजयोग बनता है और ये सभी भगवान ने सिखाए हैं। दुनिया भर में कई आत्माएं राजयोग सीख रही हैं और अपना जीवन बदल रही हैं। राजयोग भारत के सभी ब्रह्माकुमारीज़ केंद्रों और 120 से अधिक देशों में सिखाया जाता है, और दुनिया भर की आत्माएं इन 4 विषयों को अपने दैनिक जीवन में अपनाकर इससे लाभान्वित हो रही हैं। जो कोई भी ब्रह्माकुमारीज़ से जुड़ चुका है और राजयोग का अभ्यास कर रहा है, उसकी दैनिक दिनचर्या घर पर सुबह अमृतवेले उठकर योग अभ्यास करने, फिर तैयार हो निकटतम ब्रह्माकुमारीज़ केंद्र जाकर आध्यात्मिक ज्ञान सुनने से शुरू होती है। उसके बाद हर कोई अपने परिवार की देखभाल करना, अपने ऑफिस या कार्यस्थल पर जाना, घर की अन्य गतिविधियां करना और अपनी शारीरिक देखभाल करना, यह सारे कार्य भगवान की याद में पूरा करता है। शुद्ध खान-पान और जल्दी सोने व जल्दी उठने की आदतों को अपनाकर हर कोई पवित्र जीवन जीता है। आत्मा को स्वच्छ व सतोप्रधान बनाकर, अन्य आत्माओं को भी स्वयं को स्वच्छ व सतोप्रधान बनाने के लिए मार्गदर्शन करना राजयोगी जीवन का लक्ष्य है।
15. बच्चों को भगवान से जोड़ने के लिए 5 कदम
1. बच्चों को आत्मा और परमात्मा के ज्ञान से परिचित कराएं
बच्चों का मन शीघ्र ग्रहण करने वाला होता है। हम उन्हें जो कुछ भी सिखाते हैं वे आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। इसलिए उन्हें कम उम्र से ही आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व, उनके स्वरूप, गुणों, निवास स्थान और विश्व नाटक में उनकी भूमिका के बारे में सिखाना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे वे आध्यात्मिक रूप से समझदार बनेंगे।
2. बच्चों को अपने जीवन में भगवान के लिए एक जगह बनाना सिखाएं
वर्तमान समय में बच्चों के लिए नकारात्मक रूप से प्रभावित होना बहुत आसान है, और वे या तो भगवान को महत्व नहीं देते हैं या सोचते हैं कि वह सिर्फ एक कल्पना है, जो कि आम धारणा है। इसलिए हमें उन्हें सवेरे और सोने से पहले भगवान को याद करना, और दिन के हर कर्म में भगवान को अपने साथ रखना सिखाना चाहिए।
3. बच्चों को भगवान का हाथ पकड़कर जीवन में सफलता पाने का मार्ग दिखाएं
बच्चों के अपने पढ़ाई, परीक्षा, संबंध, व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, खेल और शौक को लेकर कई लक्ष्य होते हैं। भगवान का हाथ पकड़कर इन लक्ष्यों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसलिए हमें बच्चों को प्रेरित करना चाहिए कि वे मेडिटेशन सीखकर, जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाने हेतु अपनी आंतरिक शक्तियों का प्रयोग करें।
4. घर पर सामूहिक रूप से आध्यात्मिक चेतना पैदा करें
हर सुबह पूरे परिवार द्वारा, कम से कम 15 मिनट के लिए आध्यात्मिक ज्ञान को सामूहिक रूप से पढ़ना या सुनना एक अच्छा आध्यात्मिक अभ्यास है। साथ ही, बच्चों को पूरे दिन उस आध्यात्मिक ज्ञान को याद रखने और उसका पालन करने की शिक्षा देनी चाहिए।
5. बच्चों को डायरी रखना और अपनी कमज़ोरियों का दान करना सिखाएं
माता पिता अपने बच्चों को सिखाएं कि एक डायरी रखकर भगवान को अपने जीवन के बारे में बताया करें, और अपनी विशेषताओं और कमज़ोरियों के बारे में भी उन्हें बताएं। साथ ही, उनमें जो भी कमज़ोरियां हैं उन्हें भगवान को दान करना और उनके स्थान पर नए गुण अपनाना भी सीखाना चाहिए। यह उन्हें भावनात्मक रूप से समझदार बनाएगा और भगवान के करीब ले जाएगा।
16. क्या पुनर्जन्म एक सच्चाई है?
हम सभी आध्यात्मिक शक्ति या आत्माएं हैं, जो अपने-अपने शरीरों के माध्यम से अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जब हम सभी अपने अलग-अलग संस्कारों के कारण अलग-अलग तरीकों से सोचते, समझते और कर्म करते हैं, तब हम खुद को आध्यात्मिक रूप से महसूस कर सकते हैं। साथ ही, आम तौर पर ये माना जाता है कि हम समय-समय पर अपने शरीर रूपी वस्त्र बदलते हैं और जन्म-पुनर्जन्म के चक्र में आते रहते हैं। और यही पुनर्जन्म कहलाता है। वहीं इसके विपरीत, दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते, और उन्हें लगता है कि यह सिर्फ एक कल्पना है, और जीवन केवल एक भौतिक प्रक्रिया है, और सारे संकल्प और कल्पना मस्तिष्क द्वारा की जाती हैं, न कि आत्मा द्वारा। उनका यह भी मानना है कि संस्कार या स्वभाव हमें हमारे माता-पिता से मिले भौतिक जीन (genes. के अलावा कुछ नहीं हैं, और वे आत्मा के साथ नहीं चलते।
आध्यात्म हमें यह महत्वपूर्ण ज्ञान देता है कि परमात्मा भी हमारी तरह एक आध्यात्मिक शक्ति; आत्मा हैं, और वे जन्म-पुनर्जन्म के चक्र में नहीं आते हैं। वे निरंतर आत्माओं की दुनिया, परमधाम में निवास करते हैं, और धरती पर केवल एक बार आते हैं जब ये सृष्टि अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा खो देती है, और इसकी गुणवत्ता में भारी गिरावट आ जाती है। भगवान धरती और धरतीवासियों को अपने आध्यात्मिक गुणों से भर देते हैं और सृष्टि का फिर से उत्थान करते हैं। वे कलियुग अथवा लौह युग को सतयुग यानी स्वर्ण युग में बदल देते हैं, जिसे ही स्वर्ग कहा जाता है। जब भगवान पृथ्वी पर आते हैं तब हमें पुनर्जन्म का ज्ञान देते हैं, और बताते हैं कि कैसे आत्माएं विभिन्न शारीरिक वेशभूषा धारण कर अभिनय करती हैं – सतयुग की शुरुआत से लेकर कलियुग के अंत तक, और फिर भगवान द्वारा आत्माओं को स्वच्छ बनाने के बाद पुनः कलियुग से सतयुग तक। सतयुग से कलियुग तक का यह चक्र बार-बार दोहराता रहता है।
17. आप किसी भी आदत को बदल सकते हैं
क्या आपने किसी से कहा है या किसी ने आपसे कहा है – आपने बचपन से ये आदत बना ली है, आप कभी नहीं बदलोगे। क्या आप मानते हैं कि किसी आदत को बदलना मुश्किल या असंभव होता है, खासकर जब वो बहुत पक्की और पुरानी आदत हो? सबसे पहले हमें अपनी यह कहने की आदत बदलनी होगी, कि मैं अपनी आदतें नहीं बदल सकता। निःसंदेह किसी भी बुरी या परेशान करने वाली आदत को बदला जा सकता है। आइए, हम ये ना कहें कि मुझे देर से आने की इतनी पुरानी आदत है... गपशप करने की आदत है... चिड़चिड़ा होने की आदत है... नाश्ता न करने की आदत है... इसलिए मैं बदल नहीं सकता। हम जो भी कार्य बार-बार करते हैं, वह हमारी आदत बन जाती है। तो अब यदि हम उस आदत को कुछ बार टालें या बदल दें, तो वो पुरानी आदत समाप्त हो जाती है। हमें इस पर लगातार काम करने की ज़रूरत है, भले ही हम पहले असफल रहे हों। यदि हम हार मान लेते हैं तो यह आदत मज़बूत हो जाती है और हमारी इच्छा शक्ति कमज़ोर हो जाती है। आइए, परेशान करने वाली आदतों का सामना करें और खुद से पूछें – मुझे यह आदत क्यों बदलनी चाहिए? मैं इसे कैसे बदलूं? क्या मैं इसे बदलना चाहता हूं? एक बार जब हमारी बदलाव की इच्छा प्रबल हो जाती है, तो बदलाव भी आसान हो जाता है।
क्या हम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसने कभी कोई आदत नहीं बदली हो? अवश्य ही ऐसा कोई नहीं होगा। हम सभी ने ही कुछ आदतें बनाई हैं, और किसी कारण से उन्हें बदला है। हम आदतें नहीं बदल सकते – यह गलत धारणा बुरी आदतों को मज़बूत बनाती है और हमारे परिवर्तन को बाधित करती है। आराम से बैठें और देखें, कैसे आप अपनी आदतों को नियंत्रित करते हैं, और अब आदतें आपको नियंत्रित नहीं करतीं। जैसे-जैसे आप बार-बार चेक करते हैं, और वही संकल्प करते हैं जो अपने जीवन में चाहते हैं, तो आपकी इच्छा शक्ति बढ़ती है। आप परेशान करने वाली आदतों को, कमज़ोरियों को, और व्यसनों को छोड़ देते हैं। आप अपने मन के संकल्पों को नियंत्रित कर पाते हैं। ऐसी कोई आदत नहीं रह जाती जो आप बदल ना सकें। छोटी-छोटी आदतें जैसे बहुत अधिक चाय-कॉफी पीने की आदत, या खाना खाते समय टीवी देखने की आदत ही नहीं, बल्कि आप गहरी लतों से भी छुटकारा पाने के काबिल बन जाते हैं। और अंततः आप वही बन जाते हैं जो आप बनना चाहते हैं।
18. हर वायदे का सम्मान करें
हम सभी अपने वायदों को लगातार अपनी समय सीमा पर पूरा करना चाहते हैं। जब हम कोई वायदा करते हैं, तो हम जैसे कि एक वचन दे रहे होते हैं। साथ ही, हम अपने शरीर और दिमाग को एक मैसेज भेजते हैं, और अपने इरादों के बारे में आसपास की दुनिया को भी एक मैसेज देते हैं। जो हमने कहा है कि हम करेंगे, उसे करके हम न सिर्फ दूसरे लोगों का भरोसा जीतते हैं, बल्कि अपनी नज़रों में भी ऊंचा उठते हैं। अपने वायदों का सम्मान करने से हमारे चरित्र, आत्मविश्वास, सत्यनिष्ठा और छवि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अधिकतर समय हम अपने वायदों को पूरा करने का रास्ता ढूंढ लेते हैं। लेकिन कभी-कभी हम वो नहीं कर पाते जो हमने करने का वायदा किया था। हम या तो कर्मों में चूंक जाते हैं, या अपनी क्षमता से अधिक करने का गलत वायदा कर लेते हैं। बिल्कुल ना टालें जाने वाली स्थितियों में छोड़कर, हमें हर वायदे का सम्मान करना चाहिए और उन्हें पूरा करना चाहिए।
वायदों को पूरा करने और अपनी सत्यनिष्ठा को मज़बूत करने के लिए इन बातों का पालन करें:
1. आप किसी प्रतिस्पर्धा में नहीं हैं। इसलिए सावधानी से वायदे करें। आपको वायदे अपनी प्राथमिकताओं, कार्य करने की स्पीड, क्षमता, साधनों और सिद्धांतो के अनुसार करनी चाहिए।
2. केवल कोशिश, इच्छा या उम्मीद ना करें। निर्णय लें और सफल होने के लिए दृढ़ संकल्पित रहें।
3. हर सुबह सफलता के करीब जाने के लिए कुछ संकल्प करें, जैसे, आपको कैसा होना चाहिए या क्या करना चाहिए, इससे जुड़े संकल्प करें। कल्पना करें कि आपने लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। ये सभी आपके मन और शरीर के लिए संकेत की तरह काम करते हैं, जिससे वे आपके सहयोगी बनते हैं।
4. संदेह या भय का एक भी संकल्प कर अपने वायदे को कमज़ोर न होने दें। खुद पर यकीन रखें।
ये अभ्यास आपको अपने वायदों को गंभीरता से लेने में मदद करते हैं। साथ ही, अपने वायदों को गंभीरता से लेने और पूरा करने के लिए इन स्वमानों को कुछ बार दोहराएं –
मैं एक समझदार आत्मा हूं... मैं ईमानदार और अनुशासित हूं... मुझे कुछ ज़िम्मेदारियां पूरी करनी हैं... मैं थोड़ा रुक कर यह जांच करता हूं, कि क्या मैं उन्हें पूरी कर सकता हूं... मैं अपनी समय-सीमा का मूल्यांकन करता हूं... मैं अपनी क्षमता को जांचता हूं... मैं देखता हूं कि क्या यह मेरे सिद्धांतों के अनुरूप है... क्या मुझे यकीन है कि मैं यह कर सकता हूं... मैंने ऐसा करने के लिए वायदा किया है... मैं यह करूंगा... मैं जो करना चाहता हूं, उसमें सफल होता हूं... परिस्थितियां मेरे अनुसार नहीं हो सकतीं... परंतु मैं अडिग हूं, दृढ़ हूं... मैं अपने वायदों को हमेशा पूरा करता हूं।
19. भीतर की सकारात्मकता को जागृत करें
सकारात्मकता हमारा स्वभाव है जिसे हम कभी-कभी अपनी व्यस्त जीवनशैली में खो देते हैं। यह उस गले की हार की तरह है जो हमारे गले में पड़ा है, लेकिन हमें इसका एहसास नहीं होता और हम इसे चारों ओर ढूंढते हैं। जब हम दिन की शुरुआत करते हैं, तो हमें अपने मन को कुछ सकारात्मक ज्ञान की बातों से भरना चाहिए। ये बातें हमारे मन को मज़बूत बनाते हैं और इसे चारों ओर मौजूद नकारात्मकता से बचाते हैं। अक्सर गले के हार की तरह, सकारात्मकता कुछ समय के लिए खो जाती है और इसे ढूंढना बहुत आसान होता है, लेकिन नकारात्मक प्रभाव हमें सकारात्मकता को पुनः प्राप्त करने के तरीके सोचने नहीं देता।
एक बार एक अमीर व्यापारी था, जो दिन के दौरान हमेशा छोटी-छोटी वजहों से परेशान होने का कोई न कोई बहाना ढूंढ लेता था। हर सुबह वह दिन भर सकारात्मक रहने का निर्णय लेता, और खुद से वादा करता कि वह आने वाली किसी भी कठिन समस्या से अपने दिमाग को प्रभावित नहीं होने देगा। लेकिन, जैसे ही वह अपना व्यापार या व्यवसाय शुरू करता, तो अपने जटिल काम के कारण वह किसी न किसी समस्या का शिकार हो जाता था। ये समस्याएं या तो काम से संबंधित होते, या पैसों से, या उसके सहयोगियों से, या कभी-कभी उसके अपने दिमाग से पैदा हुई समस्याएं होतीं। एक ऐसा मन जो आसानी से कठिनाइयों के सामने झुक जाता है, उसकी तुलना उस घर से की जा सकती है, जहां समस्या एक छोटे चूहे के रूप में प्रवेश करती है और पूरे घर में अशांति ला देती है। जब घर का मालिक चूहे से छुटकारा पाने में कामयाब हो जाता है और सोचता है कि सब कुछ ठीक है, तो एक बिल्ली प्रवेश करती है और परेशानी बढ़ा देती है, और घर का मालिक फिर उसे बाहर निकालने की कोशिश में व्यस्त हो जाता है। फिर बिल्ली के बाद कुत्ते की एंट्री होती है और घर का मालिक पूरा दिन इसी तरह बिताता है। कहानी का सार यह है - जो अशांत रहता है वह अशांति को आकर्षित करता है, जिसे वह दूर रखने की कोशिश करता रहता है। समस्याओं को दूर रखने की कोशिश करने और इसमें अत्यधिक लिप्त होने की यह प्रक्रिया या मानसिकता, बदले में और अधिक समस्याओं को आकर्षित करती है। इसलिए, जब दिन की पहली समस्या आए तो शांत रहें और इसे दूर रखने की कोशिश में अत्यधिक लिप्त या भ्रमित न हों। पूरे दिन समस्याओं को दूर रखने का यह पहला कदम है। शांतचित्त रहने से हमारे चारों ओर एक समस्या मुक्त वातावरण बनता है, और हम संतुष्ट, शक्तिशाली और शांतिपूर्ण रह पाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि हम औसतन हर 2 सेकंड में या कभी-कभी उससे भी कम समय में एक नया संकल्प करते हैं? जब हम घबराते हैं और परेशान होते हैं, या किसी बाहरी परिस्थिति के नकारात्मक प्रभाव में होते हैं, तब संकल्पों की गति बढ़ जाती है। हम इसे बाहरी इसलिए कहते हैं, क्योंकि मैं अर्थात आत्मा जो भीतर बैठा है, वह परिस्थिति का निर्माता नहीं है। यहां तक कि हमारा भौतिक शरीर भी बाहरी है। हमारे अपने नकारात्मक स्वभाव द्वारा निर्मित स्थितियों को छोड़कर, जो पूरी तरह हमारी आंतरिक रचना हैं, बाकी सभी परिस्थितियां बाहरी हैं। भीतर निर्मित स्थितियों के कई उदाहरण हैं। जैसे कभी-कभी हम बिना किसी विशेष कारण के उदास या निराश महसूस करते हैं। किसी दूसरे दिन हम अपनी विशेषताओं, गुणों या शक्तियों को लेकर, जो सभी आंतरिक हैं, अहंकार या अभिमान महसूस करते हैं। कभी-कभी हमें भय की अनुभूति होती है, लेकिन कोई विशेष व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति नहीं होता जिससे हमें भय हो, हम बस यूं ही भयभीत हो जाते हैं। किसी दिन हमें लगता है कि हम असफल हैं, भले हमारा जीवन अच्छा चल रहा होता है। वहीं किसी अन्य दिन हमें बीमार होने की चिंता सताने लगती है, हालांकि हम बिलकुल स्वस्थ होते हैं और ना हम किसी बीमार व्यक्ति से मिले होते हैं, ना ही बीमारी के कोई समाचार सुने होते हैं; अतः हमारी ये चिंता पूरी तरह स्व-निर्मित होती है। ये सारे उदाहरण पूर्ण रूप से हमारे द्वारा बनाई गई स्थितियों के हैं।
इसके बाद, हमारे अपने स्वभाव से जुड़ी कुछ ऐसी स्थितियां होती हैं, जो किसी बाहरी परिस्थिति से उत्पन्न होती हैं। इन बाहरी परिस्थितियों में हमारा कुछ पढ़ना, देखना या सुनना शामिल है, जो हमारे भीतर किसी नकारात्मक स्वभाव को जन्म देता है। उदाहरण के लिए, हमारा दोस्त अपने शैक्षणिक करियर में अधिक सफल होता है और यह देखकर हमारे अंदर ईर्ष्या के विचार उभरने लगते हैं। इस मामले में, ये ईर्ष्या का भाव हमारी स्व-निर्मित स्थिति है, लेकिन यह किसी अन्य व्यक्ति या बाहरी घटना से उत्पन्न हुई है। उसने हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया और न ही ऐसी स्थिति पैदा की, बल्कि हमने अपनी सोच के कारण यह स्थिति पैदा की। ऐसी स्थिति का एक और उदाहरण है - हम ऑफिस में अपने बॉस से सिर्फ इसलिए डरते हैं क्योंकि उनका पद हमसे ऊंचा होता है। वे भले बहुत अच्छे इंसान हो, हमारे साथ बेहद विनम्र हों, और कभी भी हम पर हावी होने की कोशिश नहीं करते, लेकिन हम अपनी सोच के कारण खुद को हावी महसूस करते हैं। या किसी और दिन, हमने एक खबर सुनी कि कैसे लोग दिल के दौरे से मर रहे हैं। तो इससे हमारे अंदर असुरक्षा के विचार पैदा होने लगे, हालांकि हम अनियंत्रित हाई कोलेस्ट्रॉल या हाई बीपी जैसे किसी भी लक्षण से पीड़ित नहीं हैं, जो संभवतः इसका कारण बन सकता है, फिर भी हम भयभीत महसूस करते हैं।
अभी हमने उन स्थितियों के उदाहरण देखें, जो स्व निर्मित हैं, अर्थात हमारे अपने मन द्वारा निर्मित होती हैं। कभी-कभी ये किसी बाहरी परिस्थिति के कारण उत्पन्न होती हैं और कभी-कभी उस स्थिति के लिए कोई बाहरी घटना ज़िम्मेदार नहीं होता।
इसके पश्चात कुछ ऐसी स्थितियां भी होती हैं, जो हमारे भौतिक शरीर, हमारे संबंधों, हमारे दफ़्तर या घर से जुड़े होते हैं। इनमें से आधी स्थितियां इन बाह्य कारणों से, किंतु आधी स्थितियां स्व निर्मित होती हैं। अर्थात कभी-कभी बाहरी घटना मौजूद होती है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता, किंतु कई बार ये सच नहीं होता। यानी कभी-कभी परिस्थिति को परिस्थिति के रूप में माना जाता है, किंतु वास्तव में कोई परिस्थिति नहीं होती, यह बस नकारात्मक धारणा वाले व्यक्ति का विश्वास होता है। और बाकी सभी मामलों में, परिस्थिति सचमुच मौजूद होती है और उसे सकारात्मक धारणा वाला व्यक्ति भी स्वीकार करता है।
हम किसी भी परिस्थिति को कैसे देखते हैं, उसमें कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और कैसे संकल्प निर्माण करते हैं, उस आधार पर परिस्थिति सर्वप्रथम हमारे मन में बड़ी या छोटी होती है। हालांकि कभी-कभी जीवन की कुछ परिस्थितियां खौफनाक होती हैं और सबसे शक्तिशाली आत्मा को भी विचलित कर सकती है। निःसंदेह मनुष्यों के दृष्टिकोण अनुसार उन्हें कम या अधिक भय की अनुभूति होती है। शांत मन वा शक्तिशाली बुद्धि वाला मनुष्य इन सभी परिस्थितियों का सामना कर सकता है। साथ ही, मेडीटेशन जैसे तरीकों से, जो ब्रह्माकुमारियों द्वारा सिखाई जाती हैं, हमें ऐसा करने में मदद मिलती है।
मेडिटेशन हमें सही संकल्प करना सीखाता है - ठीक उसी तरह जैसे एक क्रिकेटर बहुत सावधानी से अभ्यास करता है कि एक निश्चित रन बनाने के लिए वह प्रत्येक गेंद को कैसे खेलेगा। उसी तरह, जब हम मेडिटेशन का अभ्यास करते हैं, तो हम सीखते हैं कि हम अपने प्रत्येक विचार को कैसे महत्व दें और मेडिटेशन के कुछ मिनटों में केवल सकारात्मक विचार ही पैदा करें। ये सकारात्मक विचार आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित होते हैं, और आत्मा वा परमात्मा के विषय में होते हैं। ये विचार बहुत धीरे-धीरे, एक-एक कर और सावधानीपूर्वक बनाए जाते हैं। प्रतिदिन लगभग कुछ मिनटों का यह मेडिटेशन अभ्यास, वास्तव रूप से मौजूद नकारात्मक परिस्थितियों के लिए हमें तैयार करते हैं। फिर जब हमारे जीवन में नकारात्मक परिस्थितियां आती हैं, तो इस अभ्यास के कारण हम शांत रहते हैं और केवल सकारात्मक संकल्प करते हैं, और उन नकारात्मक संकल्पों को दूर रखते हैं जो हमारे मन और जीवन में अशांति पैदा करते हैं।