Message for the day आज का संदेश – August 2023


01. प्रयत्नों का फल अवश्य मिलेगा, यह जानना अर्थात प्रसन्न व स्वस्थ रहना।

विस्तार:

यह जानना कि मेरे प्रयत्नों का फल एक दिन अवश्य मिलेगा, प्रयत्न करने के महत्व को समझाता है। जब यह समझ आ जाती है, तो प्रयत्न जारी रखना आसान हो जाता है, जो खुशी की खुराक की तरह होता है। फिर प्रयत्न तब तक नहीं रोका जाता, जब तक कि लक्ष्य हासिल न हो जाए।

अनुभव:

यह जानते हुए कि मेरे प्रयत्न निश्चित रूप से फलदायी होंगे, मैं जो कुछ भी करता हूं उसका आनंद लेता हूं। यह मुझे खुश, उत्साहित और थकान-मुक्त रखता है, तब भी जब चीज़ें मेरे हिसाब से नहीं होती। इस प्रकार मेरे मन की प्रसन्नता मुझे स्वस्थ रखती है।

निश्चय:

भगवान हमारे हैं और हम भगवान के हैं, इस निश्चय के फलस्वरूप हर कदम पर हमें भगवान से मदद मिलती है।


 

02. चीज़ों की सुंदरता उनकी सराहना करने की क्षमता में निहित है।

विस्तार:

कुछ भी अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता, पर जिनकी नज़रें अच्छा देखने की होती हैं, वे बुरे में भी अच्छा ही देखते हैं। ऐसे लोग हंस के समान होते हैं, जो कंकड़ में से केवल मोती ही चुनते हैं।

अनुभव:

जब मैं केवल सकारात्मक पहलू को देखता हूं तो खुश रह पाता हूं। अगर मैं रास्ते में आने वाली हर चीज़ की सराहना करता हूं, भले ही वह नकारात्मक हो, तो मुझे कोई भी चीज़ समस्या नहीं लगती, बल्कि हर चीज़ आनंददायक हो जाती है।

खुश रहें:

खुश रहना और दूसरों को खुश करना ही दुआएं देना और दुआएं लेना है।


 

03. स्वतंत्रता अर्थात स्वतंत्रता के नियमों को स्वीकार करना।

विस्तार:

जिसे स्वतंत्रता चाहिए, वह अनकहे नियमों को स्वत: ही स्वीकार करता है। वह अपने हर निर्णय व कर्म की ज़िम्मेदारी स्वयं लेना चाहता है। ऐसा व्यक्ति कभी दूसरों को दोष नहीं देगा, बल्कि अपने स्वयं की गलतियों को जांचने की कोशिश करेगा।

अनुभव:

जब मैं स्वतंत्र होकर निर्णय लेता हूं और उसकी ज़िम्मेदारी लेता हूं, तब जो कुछ भी गलत होता है उससे मैं सीखता हूं। साथ ही, मैं हल्का और मुक्त महसूस करता हूं, जिससे मैं आगे काम कर सकूं। इस प्रकार मैं निरंतर उन्नति का अनुभव करता हूं।

एकता:

एकता से सेवा की भावना जागृत होती है।


 

04. विशेषता अपने भाग्य की अनुभूति करने में समायी हुई है।

विस्तार:

जब अपने भाग्य की स्मृति आती है, तो हर बोल और कर्म में विशेषता दिखाई देती है, क्योंकि सभी चीज़ों को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने की इच्छा होती है। साथ ही, दूसरों को देने की भी शुद्ध इच्छा होती है, जो व्यक्ति को विशेष बनाती है।

अनुभव:

जब मुझे अपने भाग्य की पहचान होती है, और मेरे पास जो कुछ है उसके बारे में पता चलता है, तो मैं स्वयं को संतुष्ट पाता हूं। मुझे कोई अपेक्षा नहीं रहती लेकिन जो कुछ मेरे पास पहले से है, उसका मैं अपने और दूसरों के लाभ हेतु सर्वोत्तम उपयोग करता हूं। इसलिए मुझे लगता है कि मैं विशेष हूं और अपना भाग्य स्वयं बना रहा हूं।

स्वमान:

यह सूक्ष्म बात है कि जो स्वमान में स्थित रहते हैं, वही दूसरों को सम्मान दे सकते हैं।


 

05. इच्छाओं से मुक्त होना ही व्यर्थ से मुक्त होना है।

विस्तार:

जो इच्छाओं से मुक्त है वही अपेक्षाओं से मुक्त है। जब कोई अपेक्षा नहीं होती, तो इस बारे में ज़्यादा संकल्प नहीं चलते कि क्या नहीं है या क्या होना चाहिए। चूंकि मन इन सभी प्रकार के व्यर्थ संकल्पों से मुक्त होता है, इसलिए तब जो भी किया जाता है वह सर्वश्रेष्ठ होता है।

अनुभव:

जब मैं इच्छाओं या कामनाओं से मुक्त होता हूं, तब मैं हमेशा संतुष्ट रहता हूं। इससे मैं राह में आने वाली हर चीज़ की सराहना कर उसका आनंद ले पाता हूं, और परिस्थितियों व लोगों से कोई अपेक्षा नहीं करता। इस प्रकार मेरा मन व्यर्थ संकल्पों और प्रश्नों से मुक्त हो जाता है।

सत्य:

सत्य ही परम शक्ति है। यह स्थायी खुशी, संतुष्टि व शांति प्रदान करता है और सभी समस्याओं के बीच ऐसा बने रहने में मदद करता है।


 

06. हर संकल्प पर दृढ़ संकल्प की मोहर लगाना ही विजयी बनना है।

विस्तार:

जब संकल्पों में दृढ़ता होती है, तब स्वाभाविक रूप से अनेक रूकावटों के बाद भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की क्षमता होती है। परिस्थितियां ऐसे व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति से नहीं रोक सकतीं। और इसलिए जो सदा दृढ़ निश्चयी है उसकी स्वतः ही निरंतर विजय होती है।

अनुभव:

जब मेरे संकल्पों में दृढ़ता होती है, तो मैं कभी नहीं डरता, चाहे कुछ भी हो जाए। इसके विपरीत, रूकावटें केवल संकल्प को दृढ़ करने का ही काम करती हैं। मैं जिसे शुरू करता हूं, उसे कभी बीच में नहीं छोड़ता। यह दृढ़ संकल्प ही है जो मेरे संकल्पों में बल भरकर उन्हें साकार करने में मेरी मदद करते हैं।

निर्मानता:

निर्मानता का गुण स्वीकृति, नि:स्वार्थता और संतुष्टि जैसे भाव के माध्यम से दिखाई देती है।


 

07. जो स्वयं को निरन्तर चेक करता है वही उन्नति का अनुभव करता है।

विस्तार:

जो स्वयं को निरंतर चेक करता रहता है, वह स्वयं में परिवर्तन कर पाता है। ऐसा व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति को अवसर रूप में देखता है, ताकि वह कुछ नया सीख सके और बेहतरी के लिए कुछ बदलाव ला सके। इसलिए उसके जीवन में निरंतर सुधार होता रहता है।

अनुभव:

जब कुछ गलत होता है, तब यदि मैं खुद की जांच करना सीखूं और तुरंत बदलाव लाऊं, तो मैं निरंतर प्रगति का अनुभव करूंगा। कोई भी परिस्थिति मुझमें नकारात्मकता नहीं लाएगी या मुझे रोक नहीं पाएगी, बल्कि मैं रास्ते में आने वाली हर चीज़ का आनंद ले सकूंगा।

देने की कला:

इस दुनिया में जहां सभी रिश्तों में सुख-दुख का हिसाब-किताब होता है, यहां पर सुखी रहने की सबसे बड़ी सीख यही है: सुख दो और सुख लो; न दुःख दो, न दुःख लो।


 

08. सच्चा प्यार रिश्तों में सफलता लाता है।

विस्तार:

जो प्रेमपूर्ण होता है, वह दूसरों के साथ रहना पसंद करता है। ऐसा व्यक्ति कभी उन लोगों से भी दूर रहने की कोशिश नहीं करता, जो उसके प्रति प्रेम भाव नहीं रखते, बल्कि वह उन्हें भी अपने प्रेम से बदल देता है। इसलिए जिसमें प्रेम होता है, वह रिश्तों में हमेशा सफल होता है।

अनुभव:

चूंकि मैं प्रेम से भरपूर हूं, इसलिए मैं अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति के लिए प्रेम भाव रखता हूं। चाहे दूसरा व्यक्ति प्रेम देने में सक्षम हो या नहीं, किंतु मैं अपने वास्तविक स्वरूप की स्मृति से कभी अपना प्रेम नहीं खोता।

ऊर्जा बचाएं:

कम बोलें, धीरे बोलें, मीठा बोलें और ऊर्जा की बचत करें।


 

09. श्रेष्ठ संकल्प करने से खुशी और हल्कापन आता है।

विस्तार:

जब श्रेष्ठ संकल्प किए जाते हैं, तब संकल्प अधिक नहीं होते, बल्कि हर संकल्प विशेष होता है। श्रेष्ठ संकल्पों की झलक श्रेष्ठ बोल व श्रेष्ठ कर्म में देखने को मिलती है। ये थकान व अलबेलेपन को कम करते हैं, क्योंकि संकल्पों की मात्रा कम होती है।

नुभव:

जब मेरे संकल्प श्रेष्ठ होते हैं, तो मुझे खुशी, मिठास व स्वमान की अनुभूति होती है। मैं अपनी महानता को पहचान पाता हूं और हर परिस्थिति में सहजता से आगे बढ़ता हूं।

मेडीटेशन:

मेडीटेशन परमात्मा के साथ हमारा निजी संबंध और वार्तालाप है।


 

10. अतीत के प्रभाव से मुक्त होना अर्थात आगे उड़ने की क्षमता रखना।

विस्तार:

अतीत की बहुत सी बातें होती हैं जो बार-बार मन में आती रहती हैं। अतीत की शाखा को पकड़े हुए पंछी की तरह बनने के बजाय; जो साफ आकाश को देखने वाले पंछी की तरह बनता है, उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। साफ आकाश को देखने का अर्थ है वर्तमान को देखना और उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना।

अनुभव:

जब मैं स्वयं को अतीत के नकारात्मक प्रभाव से मुक्त रख पाता हूं, तब मेरी दृष्टि सबके प्रति एक समान हो जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि फिर मैं दूसरों को इस आधार पर जज नहीं करता, कि मेरे उनके साथ पिछले अनुभव क्या हैं। मैं वर्तमान के प्रत्येक क्षण का लाभ लेता हूं। इसलिए मैं निरंतर उन्नति का अनुभव करता हूं।

हल्के रहें:

मन भावनाओं का एक वाहक है जो हमारे विचारों का भार वहन करता है। यदि विचार कम और हल्के हों तो मन हल्का रहता है।


 

11. जिसे निश्चय है उसकी सदा ही विजय होती है।

विस्तार:

जिसे निश्चय है, उसे स्वयं पर और स्वयं की प्रगति पर पूरा निश्चय होता है। निश्चय वाला सदा विजयी होता है, क्योंकि वह जो कुछ भी करता है उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ देता है। वह बाधाओं से कभी विचलित नहीं होता बल्कि निरंतर प्रगति करता रहता है।

अनुभव:

जब मुझे पूर्ण निश्चय होता है, तब मैं कोई कमज़ोरी आने पर भी हल्केपन का अनुभव करता हूं, क्योंकि मुझे निश्चय है कि मैं प्रगति कर रहा हूं। जो कुछ भी होता है मैं उससे सीख पाता हूं व सुधार कर पाता हूं।

विनम्रता:

जहां विनम्रता होती है वहां सभी झुकते हैं, क्योंकि जो पहले स्वयं झुकते हैं उनके सामने ही सभी झुकते हैं।


 

12. स्वराज्य अधिकारी बनना ही मर्यादा में रहना है।

विस्तार:

जो स्वराज्य अधिकारी हैं, उन्हें मर्यादित रहने में कभी कठिनाई नहीं होती है। उन्हें मर्यादा का उलंघन कर पुनः मर्यादित होने की आवश्यकता नहीं पड़ती। क्योंकि जिस घड़ी स्वयं को आदेश दिया जाता है, उसी घड़ी प्रत्येक संकल्प, बोल और कर्म व्यवस्थित हो जाते हैं।

अनुभव:

स्वराज्य अधिकारी होना अर्थात् अपनी विशेषताओं को पहचानना और उनके आधार पर कार्य करना। जब मैं स्वराज्य अधिकारी होता हूं तो अपने को स्वतंत्र अनुभव करता हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि कोई भी चीज़ मुझे बांधती नहीं, बल्कि मैं अपनी कमज़ोरियों पर भी विजय प्राप्त कर लेता हूं। इस प्रकार मैं स्वयं को सभी परिस्थितियों में पूर्णतः प्रसन्न पाता हूं।

वायब्रेशन:

हमारे संकल्प हमारी आभामंडल का निर्माण करते हैं, जिसे हम इत्र की तरह ही अपने साथ लेकर चलते हैं। लोगों तक हमारे बोल और कर्म पहुंचने से पहले हमारे वायब्रेशन पहुंच जाते हैं।


 

13. निर्मानता में महानता समायी है।

विस्तार:

जो निर्मान होता है, वह हमेशा दूसरों से और परिस्थितियों से सीखने को तैयार रहता है। इसलिए चाहे कुछ भी हो जाए, निर्मान व्यक्ति कभी भी परिस्थितियों में नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देता, बल्कि स्वमान में स्थित रह सकारात्मक प्रतिक्रिया देता है। इस कारण, जिसमें निर्मानता होती है, उसमें महानता दिखाई देती है।

अनुभव:

निर्मानता सम्पन्नता और सम्पूर्णता का अनुभव कराती है। इससे स्वतः ही मैं सेवा के लिए तैयार रहता हूं, और यथासंभव लोगों को लाभ पहुंचाने का संकल्प करता हूं। निर्मानता स्वयं का मालिक होने का भी अनुभव कराती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति मुझे बांधती नहीं, बल्कि मैं मुक्त अनुभव करता हूं।

अंग दान करें:

जीवन का अर्थ है देखभाल और दान करना। आत्मा के अनंत यात्रा पर, हम एक जीवन से दूसरे जीवन में जाते हैं और एक नया शरीर धारण करते हैं। तो क्यों ना हम उन अंगों का दान कर दूसरों का जीवन बचाएं, जिन अंगों को हम साथ लेकर नहीं जा सकते?


 

14. एवररेडी रहना अर्थात विजय निश्चित करना।

विस्तार:

जो एवररेडी रहते हैं वह क्रियाशील होते हैं, इसलिए जब कोई भी कार्य आता है तो वे झट समझ लेते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। वे अधिक सोचने में समय और ऊर्जा बर्बाद नहीं करते। वे कार्य के महत्व को पहचानकर उसमें पूरी तरह जुट जाते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं।

अनुभव:

जब मैं एवररेडी होता हूं तब मैं सहज रह पाता हूं। सहज रहने से मुझे सभी कार्य भी सहज लगते हैं, और उनकी सफलता हेतु किए गए प्रयास भी सहज हो जाते हैं। अतः मुझे बहुत अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता, बल्कि अपना सर्वश्रेष्ठ देना होता है। इस प्रकार मैं हर परिस्थिति में हर क्षण सफलता का अनुभव करता हूं।

परिवर्तन:

स्व-परिवर्तन से विश्व परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।


 

15. अपने व्यक्तित्व की विशिष्टता को पहचानना अर्थात् नकारात्मक प्रभाव से मुक्त होना।

विस्तार:

जिसे अपनी विशिष्टता की स्मृति होती है, वह दूसरों पर अपने व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव डालने में सफल होता है। इसलिए, ऐसा व्यक्ति किसी अन्य के व्यक्तित्व से नकारात्मक रूप से प्रभावित नहीं होता। यदि कोई बहुत शक्तिशाली व्यक्तित्व वाला व्यक्ति भी हो, तब भी वह नकारात्मक प्रभाव से मुक्त रह पाता है।

अनुभव:

जब मैं अपने भीतर मौजूद विशेषताओं को पहचान कर उनका उपयोग कर पाता हूं, तब मैं भीतर से शक्तिशाली रहता हूं। सभी परिस्थितियों में और सभी लोगों के साथ मैं इस अंतर्निहित शक्ति का अनुभव करता हूं। चूंकि मैं सदा अपनी विशेषताओं से जुड़ा रहता हूं, इसलिए मैं हल्का और खुश रह पाता हूं।

स्वतंत्रता:

स्वतंत्रता तब है जब हम किसी भी बाहरी प्रभाव से मुक्त होकर, सचेत रूप से अपने संकल्पों और भावनाओं का चुनाव करते हैं।


 

16. अंतर्मुखता भीतर की सकारात्मकता को जागृत करती है।

विस्तार:

प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव वास्तविक रूप से सकारात्मक होता है, क्योंकि उसमें प्रेम, शांति, सुख जैसे अनादि गुण अंतर्निहित होते हैं। अंतर्मुखता यानी भीतर देखने का अभ्यास, व्यक्ति को स्वयं से और अपने वास्तविक स्वभाव से निरंतर जोड़ता है। साथ ही, यह हर कर्म में इन गुणों को व्यक्त करने में मदद करता है। बहुतकाल इन गुणों का अभ्यास करने से ये गुण आवश्यकता के समय स्वतः ही उभर कर सामने आते हैं।

अनुभव:

अंतर्मुखी होने का अभ्यास मुझे अपने भीतर विद्यमान उन गुणों का अनुभव कराता है, जो कठिन परिस्थितियों के दौरान छिपे रहते हैं। इस प्रकार यह मुझे स्वमान में स्थित रह अहंकार को समाप्त करने में मदद करता है। यह मुझे अपनी गलतियों को पहचानने और स्वीकार करने की भी शक्ति देता है, जिससे मुझे उन्हें सुधारने की ताकत मिलती है।

प्रेम:

भगवान से प्रेम करना अर्थात मानवता से प्रेम करना।


 

17. जहां संतुष्टता है वहां समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

विस्तार:

संतुष्टता मनुष्य को जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने में मदद करती है। इसलिए जो संतुष्ट होता है वह सदा समाधान के ऊपर काम करता है, क्योंकि वह कभी भी परिस्थितियों से परेशान नहीं होता, बल्कि हमेशा तनावमुक्त रहता है। इससे दूसरों को योगदान देने और उनकी उन्नति के लिए सहयोग देने की क्षमता अपने आप आ जाती है। ऐसा व्यक्ति स्वयं की उन्नति के लिए भी कार्य करता है।

अनुभव:

जब मैं जो कुछ भी हो रहा है उससे संतुष्ट रहता हूं, तो मैं सभी परिस्थितियों में हल्का रह पाता हूं। इसलिए बड़ी से बड़ी कठिनाई में भी मैं कभी समस्या में नहीं फंसता, बल्कि हमेशा समाधान के बारे में सोचता हूं। मेरा मन समाधान ढ़ूढ़ने में व्यस्त रहता है, इसलिए आंतरिक रूप से मैं समस्या से अप्रभावित रहता हूं।

रिश्ते:

स्वस्थ रिश्तों की कुंजी है अपने अंतर्मन की बात मानना और उसके विरुद्ध कुछ भी न करना।


 

18. जो दूसरों के दुख दूर करने का काम करते हैं वे सबको प्रिय लगते हैं।

विस्तार:

जब दूसरों के दुख दूर करने का एक ही लक्ष्य होता है, तो दूसरों के साथ व्यवहार करते समय कुछ भी नकारात्मक नहीं होता। दूसरों से कोई अपेक्षा भी नहीं रहती। अधिक से अधिक लोगों को लाभ पहुंचाने की इच्छा के साथ काम करने से, व्यक्ति यथासंभव योगदान कर पाता है।

अनुभव:

जब मैं दूसरों को अधिक खुश रहने में मदद करने की इच्छा रखता हूं, तो मैं दूसरों की खुशी व उन्नति में योगदान कर पाता हूं। फिर मैं देखता हूं कि अन्य लोग स्वत: ही मेरे नि:स्वार्थ योगदान की सराहना करते हैं, और उनकी दुआएं मुझे हल्केपन और उन्नति का अनुभव कराती है।

आनंद लें:

जीवन की यात्रा का आनंद लेना ना भूलें। जीवन में सकारात्मक व नकारात्मक दृश्य आएंगे, और उनमें से कोई भी सदैव नहीं रहेगा। हम किसी नकारात्मक परिस्थिति में भी चिंता और तनाव से मुक्त रह सकते हैं, यह जानकर कि यह भी बीत जाएगा।


 

19. ईमानदारी रिश्तों में सफलता लाती है।

विस्तार:

ईमानदारी का अर्थ है अंदर और बाहर एक जैसा होना। स्वयं के प्रति ईमानदार होने से व्यक्ति स्वयं में निरंतर सुधार ला पाता है। दूसरों के प्रति ईमानदार होने से व्यक्ति सभी परिस्थितियों में सकारात्मक रह पाता है। रिश्तों में अशिष्टता के बजाय सच्चाई होती है, जिससे एक-दूसरे के लिए प्रेम बढ़ता है।

अनुभव:

जब मैं ईमानदार होता हूं, तो मैं अपने जीवन में उन्नति का अनुभव करता हूं और मेरी उन्नति से दूसरों को भी लाभ होता है। मैं दूसरों के साथ रिश्ते में सामंजस्य बनाए रखने में सफल होता हूं क्योंकि मैं उनके साथ ईमानदार रहता हूं, और इस प्रकार मैं रिश्तों में सफल होता हूं।

भाग्यवान होना:

भाग्यवान आत्मायें वे हैं जिन्हें सत्यता के आधार पर सर्व आत्माओं से दिल की दुआएं प्राप्त होती हैं।


 

20. दाता बनना अर्थात् आवश्यकतानुसार देना।

विस्तार:

जो दाता होता है, वह दूसरों की ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील होता है। वह दूसरों को उनकी ज़रूरत के समय वही देता है जो उन्हें चाहिए, ना कि वो जो वह खुद देना चाहता है। साथ ही, ऐसा व्यक्ति बदले में कुछ भी अपेक्षा नहीं करता।

अनुभव:

जब मेरे पास जो कुछ भी है, उसे दूसरों के साथ बांटने का मुझे ज़रा भी संकल्प आता है, तब स्वत: ही मुझे अपने आंतरिक खज़ानों का ज्ञान होता है और मैं परिपूर्ण महसूस करता हूं। जब मैं जो कुछ भी दे सकूं वह दूसरों को देता हूं, तो मुझे उनकी शुभकामनाएं भी प्राप्त होती हैं। इस प्रकार मैं जीवन में समृद्धि का अनुभव करता हूं।

पसंद:

लोगों का हमारे प्रति व्यवहार बाह्य है इसलिए हमारे नियंत्रण में नहीं है। उसके प्रत्युत्तर में हम जो संकल्प करते हैं वह आंतरिक है, जो पूरी तरह से हमारी पसंद है।


 

21. सबसे बड़ा खज़ाना है अनुभव का खज़ाना।

विस्तार:

जिसके पास अनुभव का खज़ाना है वही दूसरों का कल्याण कर सकता है। वह सोचने में स्पष्ट और निर्णय करने में सटीक होता है। इसलिए वह स्वाभाविक रूप से अपने अनुभवों के आधार पर निर्देश देने या गलतियों को सुधारने में सक्षम होता है, और उनमें सफल भी होता है। साथ ही, उसके बोल और कर्म समान होते हैं।

अनुभव:

अनुभवी मूर्त बनना अर्थात् जो कुछ होता है उससे सीखना। अतः जब मैं अनुभवी मूर्त बन जाता हूं, तब मैं आने वाली हर परिस्थिति का ज्ञाता महसूस करता हूं। मेरे अनुभव की शक्ति मुझे सभी परिस्थितियों में सहजता से आगे बढ़ाती है।

सोच:

अपने बारे में, लोगों और परिस्थितियों के बारे में सकारात्मक सोचें। विकट या आलोचनात्मक न बनें।


 

22. स्वयं को परिवर्तन करना अर्थात् दुआएं प्राप्त करना।

विस्तार:

जो हर परिस्थिति से सीखकर स्वयं में परिवर्तन लाता है, वह निरंतर विजयी होता है। वह स्वाभाविक रूप से सभी परिस्थितियों से सीख लेता है, तथा नकारात्मक परिस्थिति के बावजूद भी आगे बढ़ता है। वह दूसरों के साथ अपने रिश्तों में भी सफल होता है, क्योंकि वह खुद को ढालना जानता है।

अनुभव:

जब मैं समय के अनुसार स्वयं में परिवर्तन लाता हूं, दूसरों से परिवर्तन की अपेक्षा किए बिना, तब मैं सभी का प्रेम और शुभकामनाएं प्राप्त करता हूं। अपने आप को ढालने की क्षमता के कारण मेरे संकल्प भी सहज और हल्के होते हैं।

अच्छा देखना:

हर चीज़ में अच्छा देखना एक बेहतर भविष्य की कुंजी है। हमारे पास सदा ही अच्छा देखने का विकल्प होता है।


 

23. अचल रहने की शक्ति सर्व विघ्नों को पार करा देती है।

विस्तार:

जो अचल रहता है, वह अपनी पुरानी आदतों या प्रतिक्रिया देने की प्रवृत्ति के वशीभूत नहीं होता, बल्कि सभी परिस्थितियों में सही सोचने और कर्म करने में सफल होता है। अचल रहने की शक्ति, सबसे कठिन परिस्थिति में भी सर्वश्रेष्ठ निर्णय कर समाधान दिलाती है, और उस परिस्थिति के प्रभाव को कम करने में मदद करती है।

अनुभव

जब मैं स्वराज्य अधिकारी के सीट पर स्थित होता हूं, तब मैं कमज़ोरी के पुरानी आदतों के प्रभाव से मुक्त हो जाता हूं। इसके बजाय, मैं पुरानी आदतों को नए शक्तिशाली आदतों में बदल देता हूं। सबसे कठिन परिस्थितियों में भी अचल रहना मुझे सभी विघ्नों को सहजता से पार करने में सफल बनाता है।

अचल रहें:

अचल रहना अर्थात संकट के बीच भी समभाव रहना। जब हम सबसे नकारात्मक परिस्थिति में भी अचल रह पाते हैं, तो हम भीतर छिपे खज़ाने का उपयोग करना सीख जाते हैं।


 

24. सदैव सम्मान से बात करने का पॉजिटिव रिकार्ड रखें।

विस्तार:

जब मैं दूसरों का सम्मान करता हूं, तब मेरे बोल के माध्यम से दूसरों के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त होती हैं। ऐसे बोल नकारात्मकता से पूरी तरह मुक्त होते हैं और बहुत अच्छा परिणाम लाते हैं। जब बोल सकारात्मक होते हैं, तो वे कम किंतु सारयुक्त होते हैं। इसलिए उनका दूसरों पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

अनुभव:

जब मैं दूसरों का सम्मान करता हूं, तब मैं स्वयं को नकारात्मक और व्यर्थ बोल से मुक्त रख पाता हूं। इस तरह मेरे हर बोल स्वाभाविक रूप से सकारात्मक और शक्तिशाली बन जाते हैं। अतः मैं अपने बोल से केवल जमा करता हूं, उन्हें व्यर्थ नहीं गंवाता। मेरी ऊर्जा की बचत होती है तथा दूसरों के मन में भी मेरे लिए शुभकामनाएं ही रहती हैं।

करुणा:

करुणा प्रेम, दया और सहयोग भाव को जन्म देती है, जिसमें कोई सीमा नहीं होती; यह व्यक्तिगत रूप से महसूस या अनुभव करने योग्य है।


 

25. स्वयं का जज बनना अर्थात दूसरों को जज करने से मुक्त होना।

विस्तार:

जो दूसरों का नहीं, स्वयं का जज अर्थात मूल्यांकन करने वाला बनता है, वह दूसरों की अनावश्यक आलोचना करने से मुक्त हो जाता है। ऐसा व्यक्ति बहाने देकर और खुद को सही साबित करके अपना वकील भी नहीं बनता। इसलिए वह स्वयं में सकारात्मक बदलाव ला पाता है, एवं उसके बदलाव से दूसरे लोग प्रेरित होते हैं।

अनुभव:

जब मैं चीज़ों के गलत होने पर बहाने व कारण देने से मुक्त हो जाता हूं, खासकर स्वयं को ही, तब मैं अपने जीवन में उन्नति का अनुभव करता हूं। जो कुछ भी होता है, उसके लिए दूसरों को दोष देने के बजाय मैं उससे कुछ नई सीख लेकर, उसे अपनी स्व-उन्नति हेतु उपयोग कर पाता हूं। मैं हल्का महसूस करता हूं क्योंकि मुझे दूसरों से कोई अपेक्षा नहीं रहती, बल्कि मैं अपने कर्मों से उनमें बदलाव लाने में सफल होता हूं।

प्रशंसा:

प्रशंसा का जादू नकारात्मक विचारों को सकारात्मक में बदल सकता है। सामने आने वाली चीज़ों की प्रशंसा अथवा सराहना करने से जीवन सुंदर बनता है।


 

26. जो सदा स्नेही होते हैं, उनकी विजय निश्चित है।

विस्तार:

जो लोग स्नेही होते हैं, वे अपने स्नेह से अपने हर कार्य में दूसरों को सम्मिलित कर पाते हैं। इसलिए कोई भी कार्य हो, उन्हें बहुत आसान लगता है और वे बड़े से बड़ा कार्य भी आसानी से पूरा कर लेते हैं। साथ ही, हर कार्य प्रेम से किया जाता है इसलिए हर कार्य सहजता से होता है, अतः विजय निश्चित होती है।

अनुभव:

जब मैं स्नेही होता हूं और सबकुछ स्नेह से करता हूं, तो दूसरों की दुआओं के कारण मुझे सदा हल्केपन की अनुभूति होती है। मैं निश्चिंत रहता हूं क्योंकि किए जाने वाले कार्य का कोई बोझ नहीं होता। स्नेह मेहनत को मनोरंजन में बदल देता है। मेरा आंतरिक हल्कापन मुझे बड़े से बड़े कार्य को बड़ी सहजता से, तथा सभी को प्रेमपूर्वक शामिल कर संपन्न करने में मदद करता है।

ढलने की शक्ति:

ढलने की शक्ति से, हम संकल्पों, बोल और कर्मों में बदलाव लाने के इच्छुक बनते हैं।


 

27. सदा शुभ भावना का बीज बोना ही श्रेष्ठ फल का अनुभव करना है।

विस्तार:

जब भावनाएं निरंतर सकारात्मक और शुद्ध होती हैं, तब तुरंत फल मिलने की अपेक्षा मन में नहीं होती। यदि अन्य लोग प्रत्युत्तर में अपेक्षित व्यवहार नहीं कर पातें या परिस्थितियां मेरी अपेक्षा के अनुरूप नहीं होती, तब भी देने की भावना बनी रहती है। इस प्रकार यह सकारात्मकता चारों ओर फैले वायब्रेशन से, तथा हर बोल और कर्म से व्यक्त होती है।

अनुभव:

जितना अधिक मैं आस-पास के लोगों के लिए शुद्ध भावनाएं रखता हूं, उतनी ही अधिक सकारात्मकता मेरे भीतर से उभरती है। भीतर की सकारात्मकता की पहचान होने के कारण, मैं बिना किसी शर्त के दे पाता हूं। अतः मैं जो देता हूं उसका प्रत्यक्ष फल पाता हूं, और भविष्य के लिए भी जमा करता हूं। इस प्रकार मैं जो देता हूं, उसका अनेक गुना फल प्राप्त करता रहता हूं।

राहना करें:

अपने वातावरण की सराहना करने की क्षमता विकसित करने से हमारी मन: स्थिति (मूड) बेहतर होती है, और हमें सकारात्मक दृष्टि बनाए रखने में मदद मिलती है।


 

28. जो लोग संपूर्णता प्राप्त करने की दिशा में काम करते हैं, वे स्वतः ही दूसरों को संपूर्ण बनने के लिए प्रेरित करते हैं।

विस्तार:

जो लोग संपूर्णता प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्ध होते हैं, उनके लिए जीवन की सभी परिस्थितियां प्रगति लाने के लिए सबक होती हैं। ऐसे लोग कभी दूसरों से संपूर्ण होने की उम्मीद नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि हर इंसान की अपनी कमजोरियां होती हैं। इसके बजाय वे दूसरों की कमज़ोरियों को स्वीकार करते हैं, और उन्हें केवल परिवर्तन लाने और संपूर्णता की दिशा में काम करने हेतु प्रेरित करते हैं।

अनुभव:

जब मैं लगातार अपने भीतर संपूर्णता लाने की दिशा में काम करता हूं, तब मैं अपने साथ होने वाली हर चीज़ को स्व-उन्नति का अवसर समझ सकारात्मक रूप में लेता हूं। साथ ही, मैं दूसरों की केवल अच्छाइयों को देखकर व उन्हें प्रोत्साहित कर स्वयं को सकारात्मक बनाए रखता हूं। इस प्रकार मैं जीवन के हर क्षण का आनंद ले पाता हूं।

सुरक्षा:

अनासक्ति एक महान गुण है, यह हमें अचल रहने व दूसरों की भावनाओं से मुक्त होकर अपनी भावनाओं को रचने में मदद करता है। यह भावनात्मक सुरक्षा लाता है।


 

29. जो अनासक्त होता है वह सभी साधनों का आनंद लेता है, और फिर भी उनपर निर्भर नहीं होता।

विस्तार:

जो अनासक्त होते हैं, उनके लिए उपलब्ध साधन कुछ पाने का माध्यम मात्र होती हैं। वे अपने अर्थ और दूसरों के अर्थ उपलब्ध हर वस्तु का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करते हैं। वे साधनों की कमी के कारण नहीं रुकते, क्योंकि कुछ ना उपलब्ध होने पर भी वे रास्ता ढूंढने में सक्षम होते हैं।

अनुभव:

जब मैं अनासक्त होता हूं तब मेरी आंतरिक स्थिति उतार-चढ़ाव से परे होती है। मैं रास्ते में आने वाली हर चीज़ का आनंद लेता हूं और निरंतर हल्का रह पाता हूं। साथ ही, यह मुझे निर्भरता से मुक्त रखती है। इस प्रकार मैं सभी साधनों का उपयोग भी करता हूं, और उनके न रहने पर नकारात्मक भावनाओं से मुक्त भी रह पाता हूं।

करुणा:

करुणा एक कला है जिसे सीखने और अभ्यास करने की आवश्यकता है। इसमें हम दूसरों के लिए प्रेम को अपने आराम से अधिक महत्व देना चुनते हैं।


 

30. दया का अर्थ है हिम्मत देना।

विस्तार:

जो दयालु होते हैं वे कमज़ोरों को साहस देते हैं, क्योंकि वे उनमें सकारात्मक गुणों को देख पाते हैं। वे कमज़ोर लोगों को कभी भी नकारात्मक और दिलशिकस्त करने वाली बातों से अधिक कमज़ोर नहीं बनाते, बल्कि उन्हें अपने भीतर छिपी शक्तियों को ढ़ूढ़ने व उनका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अतः वास्तविक दया दूसरे व्यक्ति को भी बदलने का साहस देती है।

अनुभव:

जब मैं दूसरों पर दया करता हूं, तो मैं कभी किसी पर उम्मीद नहीं खोता, बल्कि सभी के लिए शुभ कामना रखता हूं। चाहे कैसा भी व्यक्ति हो, सबसे नकारात्मक स्थिति में भी क्यों न हो, तो भी मैं अपने शुभकामनाओं का खज़ाना सदा भरपूर पाता हूं। इस प्रकार, मैं दूसरों से तुरंत बदलाव लाने की अपेक्षा नहीं करता।

संतुलन:

समभाव का अर्थ है हार व जीत, दरिद्रता व समृद्धि, निंदा व स्तुति में आंतरिक संतुलन बनाए रखना।