गुरु पूर्णिमा
महोत्सव
गुरु पूर्णिमा का दिन भक्तगण बहुत श्रद्धा से मनाते हैं। इस
दिन हर एक गुरु स्थान पर उनका आशीर्वाद लेने जाते हैं। गुरुओं
के पद पर प्रस्थापित महान आत्माएँ सतगुरु की स्मृति दिलाने वाली
होती हैं। सतगुरु ही उनके द्वारा अपने भक्तों को मनोकामनाएँ
पूरी करते हैं। सतगुरु अर्थात परमपिता परमात्मा, वे गुरुओं को
निमित्त बनाकर सबकी मदद करते हैं।
कहते हैं ‘गुरु बिन ज्ञान नहीं’, ‘गुरु बिना घोर अँधियारा’,
‘गुरु बिना सद्गति नहीं’ इसलिए गुरु को बहुत महान माना जाता
है। सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा तथा उनके साथी विष्णु और
शंकर को भी गुरु रूप में याद किया जाता है। कहा गया है,
‘गुरुर्ब्रहमा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर, गुरु
साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः’ इस तरह ब्रह्मा विष्णु
शंकर के साथ-साथ परब्रह्म में रहने वाले परमपिता परमेश्वर को
भी सतगुरु के रूप में विशेष याद करके उन्हें नमन किया जाता है
जैसे ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देवताय नमः, वैसे ही शिव परमात्माय
नमः। ऊँचे से ऊँचे लोक के रहने वाले, सर्व आत्माओं के परमपिता,
गुरुओं के भी सतगुरु, गुरुणाम गुरु एक ही थे, एक ही हैं, और एक
ही रहेंगे, ऐसे सतगुरु को भी इस दिन विशेष रूप से याद किया जाता
है। मनुष्य आत्माओं की सभी चाहनाएँ गुरुओं के भी सतगुरु परमपिता
परमात्मा पूरी करते हैं। हमें उनका पूर्ण परिचय न होने के कारण
हम अन्य गुरुओं के पास जाते हैं।
लेकिन अब समय आ गया है कि हम सच्चे सतगुरु परमपिता को जानें,
जो एक ही हैं। श्री राम, श्रीकृष्ण, और शंकर आदि देवताओं ने भी
शिव का ध्यान किया है। वे इस सृष्टि के निवासी नहीं हैं, सृष्टि
के पाँच तत्वों से भी पार ब्रह्मतत्व, परलोक, परमधाम है, वहाँ
के रहने वाले हैं। हम सबके लिए सतगुरु के साथ-साथ माता, पिता,
सखा, बंधु आदि सर्व सम्बन्धी हैं। वे गुरु या सतगुरु के रूप
में हमें जीवन में मदद करते आए हैं, शिक्षा देते आए हैं और
दुख-दर्दों से मुक्त करते आये हैं। जब किसी भी व्यक्ति की
पूर्णता को, विशेषता को पूर्ण रूप से दिखाना होता है तो कहा
जाता है वह चंद्रमा की तरह 16 कला पूर्ण है। गुरु भी सर्व गुणों
के सागर, सर्वज्ञ, सर्व शक्तियों से पूर्ण, सर्व दुखों, विकारों
से मुक्त करने वाले, सभी आत्माओं को सुख शांति देने वाले होने
चाहिएँ।
ऐसे सतगुरु तो एक ही परमपिता परमात्मा हैं जिनके स्मरण से ही
सारे गुरुओं को गुरु पद मिलता है। जो भी गुरु हैं वे परमात्मा
की मदद के बिना किसी का दुख दूर नहीं कर सकते, इच्छाओं को
पूर्ण नहीं कर सकते क्योंकि वे खुद जीवन-मृत्यु और
जन्म-पुनर्जन्म के बंधन में बंधे हुए हैं। याद रहे, केवल एक ही
निराकार सतगुरु परमपिता हैं जो सर्व बंधनों से मुक्त हैं, कालों
के काल सद्गति दाता हैं। इसलिए गुरुपूर्णिमा उन्हीं सतगुरु की
याद में मनानी है। भले ही हम इन गुरुओं पर श्रद्धा रखें, आदर
करें परंतु याद रखें कि इन गुरुओं की महानता भी केवल सतगुरु के
कारण ही है। इसलिए हमें सतगुरु को जानने का यत्न करना है। गुरु
तो दलाल होते हैं। उनसे बुद्धि की सगाई करने के बजाय सतगुरु की
याद में पूर्णिमा मनाएँ। उस सतगुरु परमपिता परमात्मा को हम अपने
विकारों की भेंट दें ताकि फिर कभी उन विकारों के वश न हों और
सदा सफलता को प्राप्त करें।
***आप सभी को
गुरु पूर्णिमा पर्व की कोटि-कोटि मुबारक हो***