मम्मा मुरली मधुबन 14-04-65
सर्वव्यापी का ज्ञान
14 अप्रैल।
कोई नहीं मानते हैं कि परमात्मा कोई है, परंतु कई हैं, परन्तु जो मानते हैं, उन्हों को यह भी जानना जरूरी है कि पहले पहले परमात्मा क्या है, क्योंकि उनका भी यथार्थ नॉलेज होना चाहिए। एक परमात्मा की ही विषय है, जिसके लिए अपने संसार में कहे हां, सभी तरफ जिसके लिए अनेकानेक बातें हैं। कोई परमात्मा के लिए कुछ बतलाते हैं, कोई परमात्मा के लिए कुछ। कोई कैसा, कोई कैसा। जो अगर मानते हैं तो फिर उसके लिए अनेकानेक विचार हैं। अभी यह भी समझने की बात है कि जो चीज है, और मानी जाती है तो उनकी नॉलेज भी जरूर होनी चाहिए। अगर कई उनके लिए विचार है तो यह भी समझना चाहिए कि यह भी कोई मूंझी हुई बात है क्यों एक चीज के ऊपर इतने विचार क्यों होने चाहिए। एक आदमी है यह फलाना है, जैसा है जो है उसके लिए सबके पास एक ही होना चाहिए भाई यह लव जी है, इसका ऑक्यूपेशन क्या है, यह कौन है, यह क्या करता है, तो उनका एक ही सबके पास नॉलेज होना चाहिए न यानी उनका परिचय ऐसे तो नहीं कहेंगे ना कोई कहेंगे नहीं जी ऐसा नहीं है यह ऐसा नहीं है एक ही चीज के लिए इतने विचार क्यों होना चाहिए। जो अगर है इतने विचार तो यह समझना चाहिए उस बात में कोई रोला है। यानी यानी उन बात में यथार्थ जाना नहीं गया हुआ है। अब यह भी समझने की बात है कि जिस विषय के ऊपर, परमात्मा की जानकारी के विषय के ऊपर कितना अनेकानेक विचार है अभी इसकी जानकारी यथार्थ कौन देवे यहां आखर(आखिर) भी वह कौन है इसलिए उनकी जानकारी के लिए खुद ही आना पड़ता है स्वयं परमपिता परमात्मा को जो अपनी आकर करके जानकारी देता है, कि मैं कौन हूं। इसीलिए उसने कहा है कि जब जब ऐसा अधर्म, यानी इस चीज का अज्ञान हो जाता है कि मनुष्य ना मुझे जानते हैं ना अपने को जानते हैं। क्योंकि अपने को भी जानेंगे कैसे मेरे द्वारा ही उन्हों का नॉलेज यानी अपने का यानी मनुष्य का का भी नॉलेज, मनुष्य को अपना पता भी मेरे द्वारा पढ़ने का है और मेरा पता भी मेरे द्वारा। क्योंकि मेरा तो कोई क्रिएटर नहीं है ना जो मेरा पता दे। अगर मेरा भी क्रिएटर, मेरा भी क्रिएटर अगर क्रिएटर के ऊपर क्रिएटर है तो आखिर तो कोई रहेगा जिसका कोई क्रिएटर नहीं है तो उसको ही तो गॉड कहेंगे ना इसीलिए बाप कहते हैं कि मैं वह हूं जिसका कोई क्रिएटर नहीं है। तो मैं तो क्रिएटर किसका हूं मनुष्य आत्माओं का। आत्माएं भी वास्तव कर कर करके अनादि हैं कोई उनका भी कोई क्रिएटर नहीं है। परंतु फिर भी कहा जाता है कि मनुष्य आत्माओं का क्रिएटर गिना जाता हूं, इसी ख्याल से कि मैं आकर करके आत्माओं को अपनी कंप्लीट प्यूरीफाइड स्टेज जो है, उसी पर ले आता हूं। तो प्यूरीफाइड बनाना आत्माओं को यह मेरा काम है, इसीलिए मैं क्रिएटर गाया हुआ हूं। बाकी ऐसे नहीं है कि कभी आत्माएं भी नहीं है आत्मा भी इम्मोर्टल चीज है परमात्मा भी इम्मोर्टल चीज है, लेकिन यह दोनों ही अनादि हैं। तो दोनों अनादि अविनाशी होने के नाते, जैसे परमात्मा का कोई क्रिएटर नहीं है वैसे आत्माओं का भी कोई क्रिएटर नहीं है, वैसे तो इस मनुष्य सृष्टि का भी कोई क्रिएटर नहीं है यानी मनुष्य भी अनादि हैं तो ऐसे तो कोई चीज का कोई क्रिएटर हुआ ही नहीं परंतु फिर भी जो उसको क्रिएटर कहा जाता है वह उसी नाते कहा जाता है कि वह आकर करके हम मनुष्य आत्माओं को, हमारी जो कंप्लीट स्टेज है जिसको प्यूरीफाइड स्टेज कहा जाए. उसी पर ले आता है। इसीलिए हमारे में पुरीफिकेशन भरने के कारण उनको उनका क्रिएटर कहा जाता है कि मनुष्य के जीवन की जो स्टेज कंप्लीट है उसी पर मनुष्य आत्मा को ले आता है। तो इसी नाते उनको कहा ही जाता है न्यू वर्ल्ड का क्रिएटर। वैसे वर्ल्ड तो अनादि है ऐसे नहीं कि कभी वर्ल्ड है ही नहीं वर्ल्ड अनादि है। परंतु वह आकर करके मनुष्य को इसी तरीके से नया बनाता है। यह पुराने हो गए हैं ना अभी देखो अभी हम सब यह ओल्ड हो गए हैं पुराने उनका मतलब ही है आयरन एजेड वर्ल्ड। अभी-अभी है इसको कहा ही जाएगा पुरानी दुनिया तो हम सब अभी पुराने तमोप्रधान हो गए हैं। अभी बाप आकर करके फिर हमको सतोप्रधान बनाते हैं इसलिए उनको कहा जाता है नई दुनिया अथवा नई दुनिया का क्रिएटर। बाकी ऐसे नहीं दुनिया ही नहीं है। तो यह भी चीजें समझने की है कि उसको क्रिएटर इसी नाते कहा जाता है। परंतु यह समझना कि जो परमात्मा इसी सभी बातों का जो यथार्थ नॉलेज है वह वहीं आ कर के देते हैं इसीलिए इस सभी बातों का निर्णय, यथार्थ परमात्मा क्या है और हम मनुष्य आत्माएं क्या है और यह मनुष्यों की सृष्टि का चक्कर भी कैसे चलता है इन्हीं सभी बातों की यथार्थ नॉलेज, वो नॉलेज फुल गॉड ही जो है ना वह आकर करके देते हैं। इसीलिए उनको नॉलेज फुल भी कहते हैं, क्रिएटर भी कहा जाता है और हिंदी में भी कहते हैं पतित को पावन करने वाला, दुखहर्ता सुखकर्ता, यह सभी महिमा उनको दी जाती है। अभी जिसको दी जाती है उसको भी समझना चाहिए ना वह कौन सी चीज है उनको भी कहेंगे सुप्रीम सोल वह भी सोल है। अभी उनको जो कई समझते हैं सर्वव्यापी, अभी सोल को तो सर्वव्यापी कह नहीं सकते हैं ना। यह भी चीज समझने की है कि वह कौन सी चीज है जैसे हम आत्मा है तो आत्मा अपने शरीर में हर एक की आत्मा अपने अपने शरीर में अपनी अपनी आत्मा है ऐसे नहीं है कि सब की आत्मा एक ही है। अगर एक ही आत्मा होती तो सबके संस्कार, सब की एक्टिविटी एक ही हो जाती परंतु नहीं, जितने मनुष्य हैं उतनी आत्माएं हैं तो आत्माएं कहेंगे सोल्स। यानी बहुत जितने मनुष्य दुनिया में जितनी संख्या है इतनी आत्माएं हैं तो यह भी समझने की बातें हैं। एक आत्मा तो नहीं है ना तो परमात्मा भी जो चीज है वह भी तो सोल ही है ना तो सोल जिस चीज को कहा जाता है और उनका है भी वो शास्त्रों में भी है की ज्योतिर्लिंगम आकारी जिसका यादगार अपने अनुभव के आधार पर चित्र भी निकाला हुआ है तो परमपिता परमात्मा जिसको कहा जाता है, यह कहा ही जाता है उस सुप्रीम सौल को। तो निराकार परमात्मा जिसको कहें जिसकी प्रतिमा भी हमारे भारत में भी यह शिवलिंग की जो प्रतिमा है वास्तव कर कर के, ये जो रामेश्वर की आप लोगों ने मूर्ति देखी होंगी, राम बैठकर करके भी शिवलिंग का पूजन कर रहा है और कई चित्रों में आप देखेंगे सभी देवताएं भी शिवलिंग के आगे रिस्पेक्ट में खड़े हैं अथवा हाथ जोड़कर करके। तो इससे यह निर्णय होता है सभी का ऊंचे में ऊंचा जो है वह वो ही परमपिता परमात्मा है तो यह प्रतिमा जो है शिवलिंग की यह उसी परमपिता परमात्मा की है। तो उनको ही कहा जाता है सुप्रीम सौल अथवा निराकार परमात्मा। तो वह भी तो आकार में है ना जिसको निराकार कहा जाता है उसका मतलब यह नहीं है कि उनका कोई अपना रूप या अपना कोई भी आकार नहीं है नहीं! उसको भी कहेंगे यह यहां तो बड़ा दिखाया हुआ है नहीं तो इसको स्टार लाइट कहो... बिंदी जैसे बिंदी होती है ना तो तो उनको एकदम तो उनको कॉल परंतु ज्योतिकार। परंतु वह भी चीज है ना ऐसा तो नहीं है कि ज्योति कोई फर्टाइल है फैली हुई चीज है जो सब में सर्वव्यापक होंगी नहीं फैली हुई कोई चीज नहीं है जो सब में अंदर हो बाहर भी हो जैसे कई समझते हैं कि परमात्मा वह चीज है जैसे सब में व्याप्त है सब में व्यापक कैसे, सोल कैसे सब में भला व्यापक होंगी। होंगी तो भी सोल है ना तो परमात्मा भी तो सोल है परंतु उनको परम आत्मा सुप्रीम सौल कहा जाता है, तो वह चीज सब में व्यापक की तो चीज ही नहीं है ना। तो यह सभी बातें समझने की है कि वह कोई व्यापक चीज होने की चीज नहीं है पर ऐसे कह सकते हैं हां सब उनको याद करते हैं याद सब उसमें याद सब में व्यापक है वह बात अलग है बाकी यह चीज सब में व्यापक है यह चीज व्यापक कैसे हो सकती है इसलिए जो कई समझते हैं परमात्मा सर्वव्यापी हैं। पहले तो यह व्यापक होंगा ही कैसे यह चीज कैसे व्यापक होंगी बताए तो सही ना कोई बाकी परमात्मा कोई ऐसी तो चीज नहीं है ना जो जो ऐसी फर्टाइल चीज हो फैली हुई जैसे कई समझती है जैसे आकाश है ना अंदर भी है बाहर भी है वह आकाश की तरह से फैली हुई कोई चीज है। परंतु नहीं ऐसी कोई चीज नहीं है वह उनको कहा जाता है अखंड ज्योति तत्व, जिसको इंफिनिट लाइट कहा जाता है, जिसमें यह निराकार परमात्मा भी और हम सब सोल्स रहते हैं जैसे इस घर में हम सब मनुष्य रहते हैं तो हम घर तो नहीं है ना हम सब मनुष्य रहने वाले इसी घर में रहते हैं। इसी तरह से अखंड ज्योति तत्व में जिसको इंफिनिट लाइट अंग्रेजी में कहा जाता है, उसमें यह सोल सुप्रीम सौल भी और सब हम आत्माएं रहती है। लेकिन हम जो रहने वाली चीज है वह तो सोल है ना भले सोल भी ज्योति रूप है ज्योति परंतु लिंग आकारी यानी उनको कहेंगे वह बिंदी वह अपना संस्कार हर एक के संस्कार रूप आत्मा है। तो इसीलिए वह सब फैली हुई चीज में या फैलाओ में आने वाली तो चीज ही नहीं है न इसीलिए यह जो कहीं मानते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी है और एक तो वह चीज नहीं है व्यापक होने वाली और दूसरी उसके व्यापक होने का कोई महत्व नहीं है। अगर व्यापक है तो व्यापक होकर करके हमारे लिए क्या उसका महत्व है हमारे पास व्यापक होते हम दुख अशांति में भी हैं। व्यापक होते आज हमारी दुनिया में कई अधर्मों के काम भी हो रहे हैं तो क्या परमात्मा के व्यापकता के होते भी और हमारी जीवन गिरती रहे या हमारे से कोई ऐसे अकर्तव्य काम होते रहे और हम दुख अशांति में आते रहें यह क्या हुआ उसका व्यापकता का क्या महत्व हुआ। तो मैं तो आज कोई बड़ा आदमी भी कहाँ हाजिर होता है ना कोई भी देखो हमारा प्राइम मिनिस्टर था तो आकर के हाजिरी में ऐसे बड़े आदमी मे, कोई भी ऐसा काम उल्टा हो जाता है तो कहते भाई तुम्हारी हाजरी में तो और हमारा देश या हमारी जनता ऐसी दुखी है तो आपका प्राइम मिनिस्टर बनना या ऐसे होने से फायदा ही क्या है तो अगर हमारा परमात्मा जो है ही सुखदाता, वह अगर ओमनीप्रेजेंट होता और सब में व्यापक होता तो यह सोचने की बात है कि उसकी प्रजेंट में और हम ऐसे दुख और अशांति तो उसकी प्रजेंट से फायदा ही क्या हुआ। सब तो उसको कहते जैसे कोई यहां काम नहीं करते तो सब उसको कहते प्राइम मिनिस्टर को आओ उतरो उतरो देखो वो प्राइम मिनिस्टर कहते अरे अभी तुम अब संभाल नहीं सकते हो तुम जनता की सेवा ठीक नहीं कर सकते हो तो उतरो उतरो, तो अभी अगर गॉड ओमनीप्रेजेंट है और हम ऐसे दुख और अशांति में पड़े हैं तो उसको भी कहना चाहिए ना कि तुम प्रेजेंट रह कर करके या तुम्हारे हाजरा हजूर होते तुम्हारे हमारा क्या फायदा करते हो इससे तो तुम ना होता तो अच्छा होता। तुम्हारी हाजिरी में और हम ऐसे दुखी और अशांत मनुष्य और हमारे करतूत और ही बुरे जिसको आज कहते भी हैं कि भ्रष्टाचार दुनिया हमारा आचरण इतना बिगड़ता जाए और हमारी दुनिया इतनी दुखी होती जाए तो फिर गॉड के ओमनीप्रेजेंट होने का फायदा ही क्या है तो एक तो उनका फायदा ही नहीं है और दूसरी कोई ऐसी चीज भी नहीं है जो वह चीज बैठकर करके सब में व्यापक रहे। इसीलिए यह भी बातें समझने की है कि जिसको परम आत्मा कहा जाता है वह सोल है। उनका अपना नॉलेज फुल जिनमें अपने सभी हम आत्माओं का नॉलेज है कि हम आत्माएं कैसे ऊपर थी यानी ऊंची थी, ऊपर का मतलब ऐसे नहीं है कि हम अपनी लाइफ में ऊंचे थे और फिर कैसे गिरे हैं, यह सारा हमारे कर्मों के चक्कर का जो है यह सब इसके पास नॉलेज है। इसीलिए उसको नॉलेजफुल कहा जाता है और वह अपने टाइम पर आकर करके नॉलेज देते हैं। और फिर आकर के हम मनुष्य आत्माओं को नॉलेज के थ्रू वह हमारे में ताकत भरते हैं, जिससे हमारे जीवन को सुख और शांति प्राप्त करते हैं हम। और यह कराने वाला निमित्त बनता है। तो इनका कल्प यह हो गया ना और इनका जो अपना संस्कार है नॉलेज देना और सब का नॉलेज इनके पास रहना, तो वह तो कोई चीज है ना। ऐसे नहीं कहेंगे कि कोई फर्टाइल या फैली हुई कोई चीज है, या सब में व्यापक कोई चीज है। अगर व्यापक होती तो सब इसके गुण वाले जैसा परमात्मा का गुण है तो सभी पास गुण होने चाहिए गुण कहा जाता है नॉलेज को तो फिर सब नॉलेज फुल हो जाने चाहिए। बाकी वह व्यापक हो करके बैठ करके क्या करता है हां? उनके व्यापक होने का कोई तो फायदा या कोई तो गुण चलना चाहिए न। तो जबकि वह चीज है ही नहीं तो कैसे हम उनको कैसे कह सके कि वह ओमनीप्रेजेंट है इसीलिए ऐसा कहना और ही परमात्मा की ग्लानी करनी है। अगर हम उनको ऐसे समझे कि हां वह हाजरा हजूर है या वो ओमनीप्रेजेंट है, वह व्यापक है तो उनकी व्यापकता से हमें क्या फायदा है। नहीं, हमारे हर एक में अपनी अपपनी आत्मा व्यापक जरूर है लेकिन लेकिन हम अपनी आत्मा में भी अभी तमोप्रधान है यानी आत्मा हमारी भी अभी तमोप्रधान है इसीलिए हम अपनी आत्मा में भी अभी तमोप्रधान होने के कारण ही हमारे कर्तव्य अथवा करतूत जो है ना, वह उल्टे चल पड़े हुए हैं, इसीलिए हम दुख और अशांति में हैं। वहां तो कोई परमात्मा के ओमनीप्रेजेंट या उनके व्यापक होने के की कोई बात ही नहीं रही ना। यह तो हर एक के कर्म के हिसाब हैं। हर एक अपनी अपनी आत्मा अपने-अपने हिसाब जो कुछ बनाया है उसी का अपना नतीजा भोग रही है। इसमें उनके ओमनी प्रजेंट होकर के रहने का भी क्या मतलब है या क्यों रहे। रहने की तो कोई बात ही नहीं। कई तो यह समझते हैं वो ही तो कोई चैतन्य सत्ता है न यह जो हमारा हाथ भी चलता है ना, पैर भी चलता है या हम बोलते हैं, अगर वह परमात्मा ना होता तो यह चैतन्यता ना होती। तो इसीलिए कई समझते हैं कि वह चैतन्यता परमात्मा की है, परंतु ऐसी बात नहीं है, चैतन्य तो आत्मा भी है ना। आत्मा को भी कहा जाता है सत चित्त आनंद स्वरुप, यानी वह भी चैतन्य है, परंतु वह चैतन्य तो आत्मा देखो अपना शरीर से जब भी आत्मा निकल जाती है, एक शरीर आत्मा छोड़ती है दूसरा लेती है, वो डेड बॉडी पड़ी हुई है, क्या निकल गई? आत्मा निकली ना। तो आत्मा को चैतन्य कहेंगे ना, ऐसे थोड़ी कहेंगे परमात्मा निकल गया, कहेंगे आत्मा निकल गई। तो आत्मा में भी अपनी चैतन्यता तो है ना, जो शरीर में थी तो शरीर के द्वारा आत्मा बोलती थी और चलती थी यह सब होता था। जब भी आत्मा निकल गई तो वह बॉडी पड़ी है तो फिर कुछ रहा चलती फिरती हाँ बॉडी तो कुछ नहीं हिलेंगी न हाँ वह आत्मा निकल गई तो आत्मा निकल गई कहेंगे ना। उसने जाकर के फिर जो शरीर लिया फिर वह चलना फिरना शुरु करेगा। तो यह सभी चीजें समझने की है कि आत्मा भी अपने गुण में चैतन्य है। ऐसे नहीं कहेंगे सिर्फ परमात्मा चैतन्य है, आत्मा भी तो चैतन्य है ना तो आत्मा में भी जो अपनी चैतन्यता की सदा है तो वह तो चलना फिरना है हर एक वो आत्मा की चैतन्यता से बाकि ऐसे नहीं कहेंगे कि कोई परमात्मा है तभी चलता फिरता है। अगर परमात्मा ना होता तो चलते फिरते कैसे, तो चलने फिरने के लिए कोई परमात्मा की वह चैतन्यता मानना, परमात्मा को चैतन्य इसी तरीके से मानना यह भी रॉन्ग है। तो यह सभी चीजों को बहुत अच्छी तरह से समझना है कि परमात्मा वास्तव करके क्या है, भले हमारे भारत में उसकी प्रतिमा की यादगार पूजा भी मानी जाती है परंतु यथार्थ रीति से ना जानने के कारण यह इतनी शिवलिंग की क्यों महिमा है, क्यों यह सभी चित्रों में भी दिखलाया हुआ है कि देवता ने भी उनका इतना रिस्पेक्ट करते हैं तो जरूर देवताओं से भी कोई ऊपर है ना। तो देवताओं से ऊपर कौन है? यह जिसने बैठकर करके मनुष्य को देवता बनाया। बाकी ऐसे नहीं है कि देवताओं ने कोई बैठकर करके उनका कोई पूजन किया यह तो चित्रकारों ने चित्र पीछे बनाए हैं। यह तो चित्रकारों ने बनाए बाकी ऐसा नहीं है कोई सामने बैठ कर के इनका पूजन किया है परंतु ऐसा राम, ऐसा कृष्ण जैसे मनुष्य जो थे देवताएँ है वह कैसे बने थे? इन परमात्मा ने आकर करके यह प्यूरीफाइड बना कर करके ऐसा ऐसा मनुष्य को पावन बनाया हा फिर उनकी यादगार में चित्रकारों ने बैठकर करके यह चित्र बनाएं। बाकी ऐसे नहीं है कि उन्होंने बैठकर करके कोई उन्हों को पूजा है तो यह सभी चीजों को अच्छी तरह से समझने का है, कि परमात्मा क्या और हम आत्माएं क्या और हम आत्माएं कैसे नीचे आती हैं अर्थात तमोप्रधान बनती हैं और फिर हम आत्मा को ही सतों प्रधान बनने का है। बाकी उसी परम आत्मा को, सुप्रीम सोल को न ये तमोप्रधान बनता है न इनको सतोप्रधान बनने की कोई बात है यह एक ही सोल है जो जन्म मरण रहित होने के कारण इनको नीचे ऊंचे होने की कोई बात ही नहीं है इसीलिए इनकी महिमा है कि ऊंचे ते ऊँचा भगवन, यानी हमारे को भी ऊँचे में ऊंचा आ करके बनाते हैं मनुष्य को, जिसके ऊपर कोई मनुष्य है ही नहीं। देखो ऊँचे ते ऊँचे मनुष्य कौन से हैं? देवताएं। तो ऐसा सबसे ऊंचा मनुष्य बनाना ये किसने बनाया? इसने, परमात्मा ने। तो मनुष्य को भी ऊँचे ते ऊँच बनाने वाला यह सबसे ऊंचे हो गया ना, इसलिए इनकी महिमा है कि ऊँचे ते उंचा भगवन तो भगवान ही मनुष्य को ऊंचा बनाएगा। मनुष्य मनुष्य को ऊंचा नहीं बना सकता। तो यह सभी चीजों को अच्छी तरह से समझने का है इसीलिए परमात्मा जो चीज है ना, वह इन्हीं को ही कहा जाएंगा। अभी यह चीज तो कोई सर्वव्यापी या सब में कैसे आएंगी, जैसे सोल सब में कैसे आएंगे? सोल आएगी तो फिर हर एक आत्मा अपने अपने कर्म के हिसाब से एक शरीर छोड़ेंगी, दूसरा लेंगी, बाकी ऐसे तो नहीं कहेंगे ना कि सभी के में एक ही सोल है, नहीं। न सबकी सबकी अपनी अपनी सोल है, जो इतनी सब सोल हैं न सबकी अपनी अपनी सोल है देखो इनकी आत्मा का अपना कर्म का हिसाब तुम्हारी आत्मा का अपना कर्म का हिसाब। अभी तुम शरीर छोड़ करके दूसरा लिया, तीसरा लिया या कुछ भी है तुम्हारी आत्मा के अपने कर्मो के हिसाब से तुमने अपने शरीरों को लिया एक छोड़ करके दूसरा। तो हर एक आत्मा का अपना अनेक जन्मों के खाते का अपना हिसाब किताब हुआ ना। इसमें सब में एक ही साथ, एक टाइम पर, एक ही एक ही आत्मा सब में व्यापक, वो तो बात ही नहीं है। तो जैसे आत्मा व्यापक बात नहीं है, वैसे इसको भी व्यापक होने की तो कोई बात ही नहीं है न। और ना कोई व्यापक होने से कोई महत्वता निकलती है कि भाई व्यापक होने से कोई फायदा मिलता है। फायदा क्या मिलेगा? तो यह सभी चीजों को बहुत अच्छी तरह से समझना है, क्योंकि यह तो बातें ऐसी है कोई एकदम जहां एक ही टाइम पर समझाई नहीं जा सकती। यह तो बहुत अच्छी तरह से कोई बातें बैठकर करके कुछ टाइम देकर करके सुने, तभी इन बातों को कोई अच्छी तरह से समझ सकता है। तो इसके लिए चाहिए टाइम और इसको अच्छी तरह से, ये कोई ऐसे क्लासों में भी समझाने की चीज नहीं है तो कोई अकेले आकर करके और अच्छी तरह से इन बातों के ऊपर सुने और समझे फिर कोई बात ना समझ में आए तो पूछ भी सके, यहां क्लास में तो कोई पूछ नहीं सकते हैं ना, क्योंकि उसमें सब का टाइम खराब होगा। तो यह सभी बातें भी अच्छी तरह से समझने के लिए जरा कोई टाइम अच्छी तरह से दे करके सुने और सबझे तो बहुत अच्छी तरह से समझ सके। यह जो हम बहुत काल से बातें सुनते हैं आए है, सिर्फ उसी के आधार पर समझना कि ये बहुत काल तो हम परमात्मा को सर्वव्यापी मानते आए हैं और बहुत काल से हम ऐसे ही कहते आएं हैं तो उसकी माना वही बातें सत्य होंगी, नहीं यह जो हम बहुत काल से सुनते आए यह मनुष्य के द्वारा सुनते आए हैं। यह हमारे वेद, शास्त्र, ग्रंथ आदि भी जो हैं, वह भी तो मनुष्यों ने लिखा है इसीलिए ये सभी हैं मनुष्यों की मत, अभी हमको मिल रही है स्वयं परमपिता परमात्मा की मत वो क्या समझ आता है अपने लिए तो उनकी बात को भी समझना चाहिए ना। क्योंकि यथार्थ अपना नॉलेज यही देंगे, इसलिए अभी यह क्या समझाता है और क्या बतलाता है कि मैं क्या हूं और तुम मनुष्य भी क्या हो, तो उन्हीं बातों को भी सुनना समझना चाहिए बाकी जो हम जो सुनते चले आए हैं न तो इसीलिए ये नही है कि बहुत काल फिर चली आई है बहुत इसीलिए वह सत्य होंगी, नहीं। परमात्मा ने तब क्यों कहा कि जब जब ऐसा अधर्म यानि अज्ञान होता है तभी मैं आता हूं तो इस के पहले वेद शास्त्र ग्रंथ भी थे ना। तभी तो अर्जुन को कहा ना कि ये सभी अध्ययन करने से मेरी प्राप्ति नहीं होगी, तब तो कहना इन सब को भूलो और अर्जुन के ही मिसाल में है न गीता में है की यह सब जो तुमको गुरु आदि सभी जो तुम्हारे पढ़ाने वाले हैं जिसने तुमको पढ़ाया है इन सभी को भी भूलो कहा ना, उसमें तो कहा है मारो। यह द्रोणाचार्य भीष्म पितामह आदि आदि जो तुम्हारे गुरु खड़े हैं, इन सब को मारो, परंतु मारो कोई हिंसा के लिए तो नहीं भगवान कहेंगे ना कि इन सब का गला काटो। उनका मतलब यही था की इन सब को भूलो, जो तुमको उन्होंने पढ़ाया, सिखाया तो इन गुरुओं को भी भूलो और यह मामा चाचा काका बाबा इन्हों को भी भूलो और जिन्होंने भी जो भी अभी तुम्हारे यह रिश्ते हैं इनको भूल कर करके अभी मेरे से अपना रिश्ता जोड़ो। अर्थात मनमना भव गीता में भी है ना। मन को अभी निरंतर मेरे में लगाओ। बाकी यह सभी बाते तू भूल जा। क्यों भूलवाई? क्योंकि वह सभी बातें मनुष्यों की थी। मनुष्यों ने बैठकर करके सुनाई थी, इसीलिए बाप ने समझाया कि वह मनुष्य की बुद्धि है अभी मेरी बुद्धि जो है ना वह तो सबसे श्रेष्ठ है ना। और यह यथार्थ मेरी बुद्धि तुमको नॉलेज दे सकेंगी, मनुष्य की बुद्धि तुमको यथार्थ नहीं देंगी। इसीलिए कहा उन सब बातों को भूल कर के अभी जो मैं सुनाता हूं उन्ही बातों को सुन और उसी को सुनकर उसी पर अभी चल तो तू अपने स्वर्ग का अधिकार पा सकेगे। तो ये जो अभी अपन सुन रहें हैं न ये कोई मनुष्य की मत नहीं है। हम कोई मनुष्य के द्वारा नहीं सुन रहे हैं। यह भी कोई भूल ना करें हम को कोई दादा नहीं सुनाते हैं क्योंकि बहुतों ने सुना है दादा का नाम, इसीलिए बतलाया जाता है कि हमको कोई नॉलेज देने वाला दादा नहीं है। दादा को भी नॉलेज देने वाला यह है। तो इसने ही बैठकर करके ये नॉलेज दिया है। अपना परिचय और हम सारे मनुष्य सृष्टि के चक्कर का यह नॉलेज यह स्वयं उसी परमपिता परमात्मा ने बैठकर करके समझाया है जब दाता दादा भी समझ रहे हैं और हम भी सब समझ रहे हैं और उन्ही के द्वारा इसी सभी बातों को जानकर करके और दूसरों को भी सुनाया जा रहा है तो यह नॉलेजी अपनी मनमत या अपनी कोई कल्पना नहीं है, यह उनकी यथार्थ जानी जाननहार और जिसको ही नॉलेजफुल कहा जाता है वह बैठकर करके समझा रहा है अभी इसको भी समझाने के लिए ओर्गंस तो चाहिए न इसलिए वह आकर करके टेंपरेरी मुख का आधार लेकर कर के और सुनाते हैं बाकी सुनाने वाला यह है। तो ये सभी चीजों को भी अच्छी तरह से समझना है की यथार्थ नॉलेज क्या है और परमात्मा क्या है। इस चीज को सर्वव्यापी कहना यह बड़ी भारी भूल हो जाती है और ना ऐसी चीज है जो सर्वव्यापी हो सके, ना उनकी क्वालिफिकेशन है इसके व्यापकता होने से, फिर तो सभी मनुष्य में वह क्वालिफिकेशन की व्यापकता में आनी चाहिए परन्तु कहाँ है? यह तो मनुष्य और ही डिसक्वालिफाइड बनते जा रहे हैं। अगर यह सब में व्यापक है तो फिर इनकी व्यापकता का महत्व क्या हुआ। यह सब सभी चीजों को जो अभी जब मनुष्य भी कोई रहता है जिगर इसी स्थान पर तो उनको उनको भी खींचा जाता है कि भाई आपकी हाजिरी में यह काम ऐसा नहीं होना चाहिए। तो हमारे इतने परम पूज्य परमात्मा अभी हाजरा हजूर तो इसकी हाजिरी में क्यों ऐसी हमारी दुनिया ऐसी गिरती आई है। फिर तो उनके होने से हमारी दुनिया ऊँची ऊँची चलनी चाहिए, परंतु ऐसे नहीं। तो यह सभी बातें समझने की, इसीलिए बाप कहते हैं मैं जभी आता हूं, तो मैं आकर करके दुनिया को ऊँचा उठाता हूं, मैं एक ही बार आता हूं और एक ही टाइम आता हूँ और वाही टाइम आकर कर में दुनिया डिस्ट्रक्शन और कंस्ट्रक्शन का काम करता हूँ। तो उसके कर्त्तव्य करने का तो बहुत महान महिमा है न। ऐसे नहीं है कि उनका कर्तव्य कोई सदा ही चलता रहता है। कई ऐसे समझते हैं की उनका काम तो सदा ही है। ये सब जो कुछ चल रहा है न यही तो परमात्मा की सकाश से चल रहा है लेकिन यह सकाश थोड़ी है जो हम दुःख और अशांति, जहा हमारी दुनिया दुःख और अशांति में, और इतनी अपने आप विष्ठा आचरण में चलती जा रही है तो उसमे उनकी व्यापकता रखना तो गोया ये तो उनकी इन्सल्ट करना है न। तो ये साडी चीजों को समझना और यथार्थ अपने पिता को जब तलक न जाने तब तलक हमारा योग हमारा कनेक्शन उस बाप से हो नहीं सकता। क्योंकि हम परमात्मा कोई देवता को भी नहीं कह सकते।राम क्रिशन आदि को भी परमात्मा नहीं कह सकते हैं, उन्हों को भी देवता कहेंगे वो तो मनुष्य जो देव्ताएं थे, जो क्वालिफाइड मनुष्य थे वो थे, बाकि परमात्मा तो इनको कहेंगे न। तो ये सभी चीजों को समझने का है इसीलिए परमात्मा का ऑक्यूपेशन और देवताओं का ऑक्यूपेशन ये सभी बातों को समझना चाहिए। ऐसे नहीं है सब मिल मिलकर करके एक ही एक हाँ, परमात्मा भी एक ही एक, देवता भी एक ही एक, मनुष्य भी एक ही एक, सब एक ही एक थोड़े ही है, मिनिस्टर भी एक ही एक, गवर्नर भी एक ही एक सब एक ही एक एक ही एक सब में, सब का ऑक्यूपेशन, सब की पोजीशन, सब का कर्त्तव्य अपना अपना है इसीलिए देवताओं का कर्त्तव्य अपना और परमात्मा का कर्तव्य अपना और सभी का अपना अपना समझना ही चाहिए सबको ,इलाकर के एक करने से, ये ही देखो ईसिस कारन से ही तो हम आज भूल के कारण ही तो दुखी हें है न। तो इन सभी बातों को अची तरह से समझना है और समझ कर करके यथार्थ रीती से अगर उससे हम कनेक्शन जोड़ेंगे न तभी हमको उनला यथार्थ बल मिलेंगा। तो ये सभी चीजें समझने की। अच्छा अब टाइम हुआ है इसीलिए क्लास बंद करते हैं लेकिन इन बातों को , ये ऐसी विषय है जिसके उपर तो बहुत टाइम हाँ..समझने की बात होती हैं क्योंकि बहुत काल से ये बातें चली आई हैं न तो इतनी जो बातें चली आई हैं उसको फिर परमात्मा राइट वे कैसे समझाते हैं तो उन बातों को भी तो समझने का टाइम चाहिए। तो इसीलिए कोई नए आए हुए हों, तो उन्हों प्रति राय है कुछ टाइम देकर करके सुनेगे आकर करके समझेंगे तो अची तरह से समझ प् सकेंगे, अच्छा दो मिनट साइलेंस ।उससे रिलेशन जोड़ कर करके हम याद रखें की उससे हमारा क्या रिलेशन है अभी प्रैक्टिकल में उसके साथ रिलेशन है की हम उसकी संतान हैं, प्रैक्टिकल में और उनका जो फरमान है टू बी होली योगी अर्थात पवित्र रहो और फिर मेरे साथ, मुझे याद भी करो। याद करने का क्यों फरमान है क्योंकि हमारे पर जो पापों का बोझ है पहले का चढ़ा हुआ उसको उतरने के लिए। कहा भी है गीता मैं की पापों को नष्ट करना, मेरा योग ही पापों को दग्ध कर सकेंगा। तो मेरा(परमात्मा) योग तो उनको याद रखें, उनको भी जान कर करके ऐसे नहीं की कोई भी रूप से याद करें जैसे भी करें, नहीं। यथार्थ मैं जो हूँ जैसा हूँ मुझे जान कर कर यथार्थ रीती से जो मुझे याद करते हैं वो मुहे यथार्थ पातें है अथवा मेरे द्वारा यथार्थ जो प्राप्तियां हैं वो प्राप्त कर सकते हैं अच्छा।