मम्मा मुरली 
मधुबन 18-04-65 
 
याद की यात्रा  
         
 
रिकॉर्ड:- 
 
इस पाप 
की दुनिया से...........
         
सुना गीत में की इस पाप की 
दुनिया से और कहीं ले चल। अभी कहां चले? ठिकाने का भी तो मालूम होना चाहिए ना, कि 
और कहां चलने का है। यह तो हो गई पाप की दुनिया। इस दुनिया को ही कहेंगे पाप की 
दुनिया, पाप की दुनिया कोई और नहीं है। जिसमें अभी है इसको कहा ही जाएगा पाप की 
दुनिया। पाप से ही दुख होता है इसलिए इसको कहा ही जाएगा दुख की दुनिया, अशांति की 
दुनिया। तभी तो आज हमारी दुनिया में विश्व शांति, वर्ल्ड पीस यह चाहते हैं ना। देखो 
यह वर्ल्ड पीस का अक्षर भी तो इधर है न भाई वर्ल्ड पीस होनी चाहिए, विश्व शांति 
होनी चाहिए। तभी तो विश्व शांति के लिए यहां धर्म सम्मेलन आदि आदि कहीं यह सब उपाय 
करते हैं। तो उसकी माना हमारी विश्व अशांत है। उसका मतलब ही है विश्व अशांत और दुखी 
है। तो विश्व में हो गई ना यह सारी, तो उसको ही तो कहेंगे ना पाप की दुनिया। तो अभी 
कहते हैं पाप की दुनिया से और कहीं ले चल। अभी किधर चले हां? और ठिकाने का भी तो 
मालूम होना चाहिए कि और कौन सा ठिकाना है जहां सुख और शांति है। तो कई जो समझते हैं 
कि कोई दुनिया. स्वर्ग या कोई ऐसी दुनियाएं हैं जहां जाना है सुख शांति में, नहीं। 
दुख और शांति को भी इस दुनिया में आना है, लेकिन आए कैसे। वो समझने की बात है कि वो 
कैसे बने। बनना इस दुनिया में है दुनिया यह एक ही है, बाकी इस दुनिया का परिवर्तन 
होने का है। तो परिवर्तन कैसे आवे उसके उपाय का नॉलेज होना चाहिए। तो वो बैठ कर 
करके परमात्मा अभी समझाते हैं क्योंकि यह हमारे पास जो समझ है वो समझ कोई हमारी 
कल्पना नहीं है या अपने मन की कल्पनाएं से नहीं समझी हुई बात है। यह तो जो जानी 
जाननहार, सर्व समर्थ जिसको निराकार परमपिता कहा जाता है और जिसको ही ज्ञान का सागर 
कहा जाता है वो बैठकर करके अभी समझा रहे हैं। तो वो समझाते हैं कि किस कारण से 
तुम्हारे पास दुख अशांति भी आई है। ऐसे नहीं कि यह सदा ही कोई दुनिया दुख अशांति की 
है, दुख अशांति भी इस दुनिया में आई है। अभी फिर आई चीज को फिर लौटाओ। अभी उसको 
कैसे लौटाओ फिर सुख शांति को लाओ, उसका बैठ कर कर के उपाय समझाते हैं कि यह हुआ है 
तुम्हारे पाप कर्म से। दुख जो हुआ है वो तुम्हारे पाप कर्म से हुआ है और पाप तुमसे 
हुआ है विकारों के कारण। अभी विकारों को नष्ट करो तो पाप होना बंद हो जाएगा। और पाप 
ना होने से फिर दुख नहीं होगा। तो दुख और अशांति को अगर मिटाना है तो खाली सम्मेलन 
या और कोई उपाय करने से नहीं होगा, जब तलक इन विकारों को नाश नहीं किया गया है तब 
तलक हमारे पाप कर्म बंद नहीं होंगे। और जब तलक वो हमारे पाप कर्म बंद नहीं हुए हैं 
तब तलक हमारे पास सुख नहीं हो सकता है। तो हमारे पास सुख शांति आएंगी तभी जब हम 
अपने कर्मों को स्वच्छ बनाएं। तो उसी स्वच्छ को कैसे बनाएं उसकी बैठकर करके यह अभी 
शिक्षा बाप दे रहा है कि किस तरह से अपने कर्मों को स्वच्छ बनाओ। तो वो बनाएंगे न 
तभी हमारी दुनिया जो है ना सुख और शांति वाली होंगी। तो अभी यह जो गीत में सुना ना 
ले चल तो ले चलने का है कि अभी यह पाप की दुनिया से अथवा दुख की दुनिया से तो सब 
थके हैं ना देखो तो थके है ना कि थके नहीं हो? की पसंद है ये दुनिया? बहुत थके हैं 
तो अगर थके हो और चाहते हो कि हम सुख शांति की दुनिया अथवा सुख शांति में रहे तो 
उसके लिए फिर हमको यह जो दुख अशांति का कारण है उसको नाश करना पड़ेगा। इसीलिए कहता 
है परमात्मा भी अभी उसमें हमको मेरे को उसमें मदद करो क्योंकि तुम्हारे कर्म के 
भ्रष्ट होने के कारण ही तो दुख अशांति हुआ है ना। तो अगर तुम सुख शांति चाहते हो तो 
फिर अपने कर्मों को बदलाव अभी। तो उसमें हां फिर अभी पुरुषार्थ करने का है ना और 
उसी पुरुषार्थ करने के लिए कोई भी ऐसी डिफिकल्ट बात नहीं है। उसके लिए कोई साधन 
करना है कोई क्रियाएं हैं या कुछ उसके लिए कोई ऐसी बात है जो हम कर ना पा सके ऐसी 
कोई भी बात नहीं है, सिर्फ थोड़ा समझना है कि हम जो भी सारा दिन अपने कर्म करते हैं 
उसी कर्मों को पांच विकारों के संग से ना करें, उससे अपने को बचाते रहना है इसीलिए 
अपने को सच-सच वैष्णव रखना है तो विकारों से वैष्णव रखने का है वो कई वैष्णव रहते 
हैं ना, वो समझते हैं कि हम वैष्णव कुल के हैं। वो समझते हैं कि हमारा कोई को कपड़ा 
ना छुएं। हम किसी के ऐसा ना हो या कोई समझते हैं कि हाँ  हम खानपान के वैष्णव हैं, 
परंतु वो तो ठीक, परंतु साथ है जब तलक विकारों का है, वैष्णवपन अर्थात विकारों को 
आत्मा छुए नहीं ऐसा अपना परहेज रखने की तो वो परहेज ही हमको जो है ना वो ऊंचा 
उठाएंगे इसीलिए अपना अभी पुरुषार्थ है विकारों से वैष्णव अथवा विकारों का व्रत। वो 
जो व्रत भी रखते हैं ना तो हमको सच-सच व्रत किसका रखने का है विकारों का। यह पांच 
ही विकार है जिससे ही हम दुख उठाते हैं इसलिए अभी विकारों का व्रत, विकारों से 
वैष्णव, क्योंकि आत्मा को विकारों ने ही मैला बनाया है तो वो मैल जो चढ़ी है 
विकारों की चढ़ी है ना बाकी और कोई चीज की मैल थोड़ी है यह विकारों की। तो अभी हम 
को स्वच्छ भी होना है तो इस मैल को निकालना है। अभी उसी मेल के निकालने के लिए यह 
ज्ञान और योग है उसको कहा गंगा नहाने से या पानी में नहाने से कोई मैल वो विकारों 
कि नहीं धोई जा सकती है। उसको धोने के लिए तो फिर हमको ज्ञान और योग का बल चाहिए 
इसलिए बैठकर करके अभी यह ज्ञान और योग। योग का मतलब ही है उस परमपिता परमात्मा को 
याद करना। योग का मतलब यह नहीं है की आसन लगाना या कोई किसी मूर्ति का बैठ कर कर के 
ध्यान करने का है नहीं। यह है हम को चलते-फिरते, खाते-पीते उस परमपिता परमात्मा की 
याद रखनी परंतु वह भी याद तभी हो सकेंगी जब पहले पहले उनका परिचय होना चाहिए। पहली 
तो बात यह समझने की कि परमात्मा क्या है क्योंकि परमात्मा कई जो समझते हैं कि सभी 
जो रूप है वह परमात्मा के हैं परंतु नहीं, परमात्मा जिसको निराकार कहा जाता है, उस 
निराकार का भी ज्ञान होना चाहिए कि निराकार परमात्मा कौन सी चीज है। तो निराकार 
परमात्मा कौन सी चीज है वो तो हमारे पास इस भारत में उसकी प्रतिमा की भी मानता है 
जिसको शिवलिंग कहा जाता है। परंतु कई इस शिवलिंग की  प्रतिमा का भी अर्थ नहीं समझते 
हैं। वह तो समझते हैं शिव और शंकर जो है न वो एक ही है, वह जो आकार का भी देते हैं 
ना वो जो जताएं वताएं, सांप वांप पड़ा हुआ होता है मूर्ति दिखलाते हैं। परंतु 
वास्तव कर करके परमात्मा जिस को कहा जाता है वो उस निराकार को, जो शिवलिंग की 
प्रतिमा है आप लोगों ने देखा होगा वह रामेश्वर का भी एक मूर्ति दिखलाते हैं या कई 
मूर्तियों में ऐसा भी है कि सभी देवताए जो है ना वह शिवलिंग के आगे हाथ जोड़कर करके 
खड़े हैं। उसमें कृष्ण राम आदि सब ब्रह्मा विष्णु शंकर सभी देवताओं आ जाते हैं जो 
शिवलिंग कि बैठकर करके मान्यता करते हैं। तो उससे सिद्ध होता है कि सभी देवताओं के 
ऊपर भी वह निराकार परमात्मा है जिसी का मान्यता देवताएँ भी करते हैं। तो यह समझने 
की बातें हैं कि हमारा परम पूज्य परम पिता जिसको कहा जाता है वह सबका पिता देवताओं 
का भी पिता उसे निराकार परमात्मा को कहेंगे। तो वह जो शिवलिंग की प्रतिमा है असल 
में यह यादगार है उसी निराकार परमात्मा की। तो वह निराकार परमात्मा जिसको 
ज्योतिर्लिंगम कहा जाता है अथवा ज्योति रूप परंतु वो लिंग आकारी है या स्टार लाइक 
 बिंदी है एकदम छोटी सी। तो यह सभी चीजें समझने की है कि उसी निराकार परमपिता 
परमात्मा जो हम आत्मा ही वैसे निराकार है आत्मा को भी तो इस आंखों से नहीं देखा 
जाता है ना। यह तो शरीर है जो शरीर आंखों से देखा जाता है लेकिन आत्मा को तो इस 
आंखों से नहीं देखा जाता है तो उसको भी निराकार कहेंगे। निराकार का मतलब यह नहीं है 
कि जिसका कोई आकार नहीं है कई ऐसे समझते हैं जिसका कोई शेप ,कोई आकार कुछ है ही 
नहीं उनका परंतु नहीं निराकार का मतलब ही है कि हां यह मनुष्य जैसा उसका शेप और 
शक्ल नहीं है, बाकी उनका अपना आकार अथवा ज्योति रूप निराकार जिसको कहा जाता है वह 
है तो जरूर ना। ऐसे बिना आकार या बिना कोई हां रूप की कोई चीज है ही नहीं यह जो 
आवाज है ना हम जो बोलते हैं तो इसका भी रूप है, अगर इसका रूप नहीं होता ना तो लंदन 
में बोलते हैं हम गीत गाते हैं रेडियो के जरिए यहां जो सुनते हैं, नहीं तो सुन नहीं 
सके तो उनका भी रूप है जिसको अंग्रेजी में वेब्स कहते हैं तभी तो वह इंस्ट्रूमेंट 
के जरिए उसको कैच कर सकते हैं ना। वहां बोलते हैं वो आवाज को कैच करते हैं तो आवाज 
का भी तो रूप है न तो आवाज का इन आंखों से दिखाई नहीं देता अभी हम बोल रहे हैं ये 
क्या चीज आवाज है जो आपके कानों तक आ रहा है आप देखते हो इस आंखों से? tओ इस आंखों 
से तो इस दुनिया की भी कई चीजें नहीं देखी जा सकती तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसका 
कोई रूप ही नहीं है। रूप है लेकिन इस नजर से वह बड़ा सूक्ष्म है इसलिए इस आंखों से 
नहीं देखी जा सकती, परंतु हां वह परमात्मा तो और ही सूक्ष्म चीज है ना इसीलिए इस 
आंखों से भले नहीं देखी जा सकती है, दिव्य दृष्टि से देख भी सकते हैं परंतु वह 
दिव्य दृष्टि से देखा है। उस चीज का ज्ञान होना चाहिए। तो यह चीजें समझने की है 
जिसको परमात्मा कहा जाता है निराकार और जिसकी यादगार हमारे भारत में मानी पूजी भी 
जाती है, परंतु कई इस बात को जानते नहीं है कि यह किस की मान्यता है। वह राम-राम का 
रामेश्वर का भी चित्र है तो राम भी देखो उसको बैठ कर के उनका पूजन कर रहा है तो 
इसका मतलब है कि उससे भी ऊपर कोई है ना तो यह है वह अथॉरिटी सर्वशक्तिमान परमपिता 
परमात्मा की जिसको ही परमात्मा कहा जाता है। तो अभी यह समझना है तो उनको भी यथार्थ 
विधि से समझ करके उसके साथ भी हमारा कौन सा रिलेशन है, जैसे हर एक देखो हम लौकिक 
रीति से लौकीक  का मतलब है जो जन्म देने वाले माता-पिता हैं तो हाँ उनके बच्चे कहकर 
करके उनको पिता कहते हैं क्योंकि उसने उसको पैदा किया है तो यह भी समझने की बात है 
कि आत्मा का जो पिता है वह उसी परमपिता परमात्मा को कहेंगे, इसी हिसाब से हर एक के 
दो बाप है एक शरीर का पिता जिसको हर एक ने अपने अपने पिता से जन्म लिया है और दूसरा 
है आत्मा का पिता तभी उसी पिता से भी रिलेशन होना चाहिए जिससे ही हमारे सदा सुख की 
प्राप्ति का कनेक्शन है। तो अभी उसी बाप से कैसे रिलेशन, तो रिलेशन कहो, कनेक्शन 
कहो या योग कहो बात एक ही है परंतु वह योग, योग कोई दूसरी ऐसी चीज़ नहीं है उसको 
याद रखने का है। इसलिए हम योग अक्षर को निकाल कर के अगर याद अक्सर कहे तो और अच्छा 
सिंपल है, नहीं तो योग से कई समझते हैं वह योग शायद कोई आसन लगाना है या कोई ऐसा 
हटयोग व प्राणायाम या कोई ऐसी बात है, क्योंकि योग आश्रम और बहुत योग के नाम पर 
बहुत स्कूल और यह सभी चीजें खोली हुई है ना, इसलिए यह समझते हैं कि योग शायद कोई 
ऐसी बड़ी चीज है परंतु वास्तव में करके योग का मीनिंग है याद, और याद का मतलब ही है 
जैसे देखो कॉमन भी किसी का किसी प्रति लगन होती है, प्रेम होता है तो देखो तो वह 
याद आती है ना चीज। तो यह हमको उसको याद रखने का है। चलते फिरते, खाते पीते वास्तव 
करके योग इतनी इजी चीज है। याद के लिए क्या बेठ करके कोइ आसन थोड़ी किसको याद रखना 
 होता है तो आसन लगा के बैठना थोड़ी होता है या कोई याद के लिए कोई हठयोग या कोई 
प्राणायाम, नही, याद जिसकी होती है जिसकी तरफ लगन होती है, काम भी करो लेकिन उसकी 
लगन उधर चली जाएंगी। तो यह है उसको याद रखने की बात परंतु वह याद आवे कैसी ऐसी लगन 
बैठे कैसे उसके लिए इन बातों को समझना है कि उनको और मेरा क्या कनेक्शन है। तो वह 
कनेक्शन को जब समझेंगे उसकी उसके रिलेशन को समझेंगे और उससे वह बैठेगा कि वह हमारे 
क्या को क्या देने वाला है, उससे हमें क्या प्राप्त करना है तो फिर हां उनकी तरफ 
हमारी लगन बढ़ेंगे और उसी आधार पर उस चीज की याद रहेंगी। तो यह सभी चीजों को समझना 
है और उसी याद रखने का भी क्या कारण है कि क्यों हम उसको याद रखें उसका भी फरमान है 
गीता में भी कहा है ना मनमना भव, निरंतर मुझे याद करो उसने भी कहा है स्वयं 
परमात्मा ने कि मुझे याद करो। क्यों कहा है कि मुझे याद करो? क्योंकि मुझको याद 
करने से तुमको वह शक्ति मिलेंगी, वह बल मिलेगा जो तुम्हारे ऊपर पापों का बोझ है वह 
तुम्हारे पाप  दग्ध होंगे। यह जितने गीता के भी वर्सेस है कि मुझे याद करने से 
तुम्हारे पाप दग्ध होंगे अर्थात नाश होंगे। तो पापों को नाश करने के लिए उसको याद 
रखने का है। तो इसीलिए बाप कहते हैं कि यह एक तो मुझे जानो, समझो मेरा परिचय, मैं 
क्या हूं और फिर मुझे याद रखो तो इससे तुम्हारे पाप भी नाश होंगे और तुम अपने 
कर्मों में श्रेष्ठ भी रहेंगे। दूसरा फिर पवित्र भी रहो अर्थात बी होली एंड बी योगी 
अर्थात अपने को पवित्र भी रखो, पवित्र का मतलब ही है पांच विकारों से कोई कर्म मत 
करो तो उनको कहेंगे बी होली एंड बी योगी तो मुझे याद करो तो उस से क्या होगा कि याद 
करने से कि जो पहले किए हुए विक्रम है अर्थात पाप का बोझा है वह भी तुम्हारा नाश 
होगा क्योंकि हमारे जीवन में दो
कर्मों का चलता है एक जो 
किया है वह पातें हैं दूसरा फिर बनाते भी जाते हैं जो पाना है, इसीलिए एक कर्म किया 
हुआ नतीजे में आ रहा है दूसरा नतीजा बना रहे हैं तो हमको दोनों तरफ को संभालना है। 
जो किया है वह भी अच्छा नहीं किया है क्योंकि हम पाप कर्म करते ही आए हैं तो वह भी 
तो हमारे सिर पर बोझा है ना। अभी दूसरा फिर हमको कर्म अपने स्वच्छ बनाने हैं जिससे 
हमारे कोई कर्म ऐसे ना बने जो हमारा कोई कर्म का खाता उल्टा जमा हो जाए इसलिए उसमें 
भी हमको खबरदार रहने का है। तो एक है प्लस दूसरी है - माइनस समझा ना वह जो 
मैथमेटिक्स का हिसाब होता है तो न तो एक है कर्म खाता जो हमको माइनस करना है, काटना 
है अर्थात हमने जो जोड़ा है वह उल्टा जोड़ा है अभी दूसरा जो जोड़ते जा रहे हैं 
उसमें संभलना है कि हमारा कोई बुरा खाता ना जुटे। तो एक
प्लस को संभालना है एक 
माइनस करना है। तो अभी माइनस वह कैसे होवे, वह होंगा बी योगी, याद करने से हमारा 
पिछला जो माइनस का खाता है वो माइनस होंगा और बी होली यानी पवित्र रहने से फिर 
हमारा खाता जो है वह बुरा ना बनेगा क्योंकि विकारों के संग से हम कोई बुरा काम नहीं 
करेंगे इसी से हमारा नतीजा यह होगा कि हमारे कर्म श्रेष्ठ रहेंगे। तो इसलिए 
परमात्मा का फरमान है कि अपने को, अपने कर्मों को अच्छी तरह से समझ कर करके यह कर्म 
की फिलॉसफी कहो या कर्म की थ्योरी कि तुम्हारे कर्म का खाता कैसा चलता है उसको कैसे 
बनाओ, उसको ठीक रीति से बनाने के ज्ञान को समझो। तो अभी यह बैठ कर करके शिक्षा देते 
हैं कि तुम्हारे बनते तो रहते ही है। एक भोगते रहते हो और दूसरा बनाते रहते हो तो 
क्यों नहीं तुम अपना कर्म को स्वच्छ बनाओ जिसके आधार से तुम सदा सुख को प्राप्त 
करो। तो वह कैसे करो और किस तरीके से करो उसका बैठकर करके ये डिटेल समझाते हैं 
जिसको फिर लेकर करके अपने को स्वच्छ रखने का है। तो यह सभी ये चीजें हैं जिसको बहुत 
अच्छी तरह से समझने का है। क्योंकि यहां कोई यह कामन सत्संग या कामन कोई चीज नहीं 
है बस आया दो भजन सुना या कोई दर्शन करना है या कोई देखने की चीज है या कोई दर्शन 
वर्शन की बात नहीं है, यहां तो है कॉलेज है अथवा स्कूल है जैसे स्कूल कॉलेज में 
जाते हैं बच्चे तो पढ़ने जाएंगे ना तब तो उस डिग्री को लेंगे बाकी ऐसे नहीं है कि 
टीचर को देखने जाएंगे, दर्शन करने जाएंगे या देखेंगे। देखने से, कोई डॉक्टर को 
देखने से कोई डॉक्टर थोड़ी हो जाएगा नहीं पढ़ना होता है नॉलेज को समझ कर करके उस 
डिग्री को तभी प्राप्त करेंगे। तो यह भी पढ़ाई है यह भी समझने की बात है बाकि खाली 
देखने से कुछ हां देखने के लिए तो भगवान के सामने हो जाए न तो भगवान में देखो 
अर्जुन के सामने भगवान था ना गीता में, गीता का यह जो बनाया हुआ है उसके देखो 
अर्जुन के सामने भगवान था, लेकिन सामने होते भी उसको ज्ञान देना पड़ा न। भगवान को भी 
डायरेक्ट ज्ञान देना पड़ा समझाना पड़ा तब तो देखो सर्व शास्त्र शिरोमणि गीता, वो 
शास्त्र गीता जो बनी है वह वर्संसअ की बनी है न। तो भगवान को भी वर्संस बोलना पड़ा 
ना, समझाना पड़ा। बाकि ऐसे नहीं कि अपने दर्शन से कहा  तेरा बेड़ा पार है नहीं। वह 
तो सामने खड़ा था, खड़ा होते भी उसको ज्ञान देना पड़ा ना तो ज्ञान बिना गति नहीं 
है। ऐसा नहीं कहा जाता है दर्शन बिना गति नहीं है तो ज्ञान चाहिए, ज्ञान का मतलब ही 
है समझ तो यह बातें समझने की है और समझ कर कर के अपने प्रैक्टिकल लाइफ में लाने की 
बात है। तो वह प्रैक्टिकल में कैसे लाएं और प्रैक्टिकल उसकी प्रैक्टिस कैसे करें यह 
सभी सिखाया जाता है यहां यहां परिवार के परिवार हैं। ऐसे नहीं कि बड़े कुटुंब के 
कुटुंब है, फैमिली के  फैमिलीज हैं जो अपना स्त्री, पति, बाल बच्चे सब अपनी जीवन को 
घर गृहस्ती में रह करके और कैसे अपनी गृहस्थी को आश्रम अथवा गृहस्थ को धर्म, कहा भी 
जाता है ना गृहस्थ धर्म, गृहस्थ आश्रम लेकिन अभी आश्रम कहां है हां अभी धर्म कहां 
है अभी तो अगर गृहस्थ को कहा जाए अधरम तो कह सकते हैं  क्योंकि विकारों का है ना। 
तो यह चीजें समझने की है कि हमारी जो प्राचीन गृहस्थ आश्रम की प्रवृत्ति थी वह कैसे 
बने उसी चीज को बनाया जाता है। तो उसके लिए यह सभी बातें समझने की है और समझ कर कर 
के प्रैक्टिकल उसी चीज को कैसे लाना है लाइफ में वह लाइव बनाने की बात है। बाकी 
यहां कोई कामन तरह से आया, दो भजन सुनाया या कुछ देखा उससे कोई लाभ की बातें इस 
तरीके से नहीं है। यह स्कूल इसीलिए इसको नाम ही है ईश्वरीय विश्व विद्यालय, देखो 
बाहर बोर्ड पर भी है ना तो यह विद्यालय है परंतु किसका? ईश्वर का, क्योंकि यहां पर 
पढ़ाने वाला स्वयं परमपिता परमात्मा स्वयं पढ़ा रहा है हम सभी स्टूडेंट्स है। हम को 
पढ़ाने वाला वह निराकार है जो बैठकर करके पढ़ाता है और नॉलेज देता है कि कैसे हम 
अपने कर्म को, क्योंकि कर्म की गति को शिवाय परमात्मा की और कोई समझाए नहीं सकता 
है। मनुष्य तो सभी कर्म के चक्कर में है ना, वह तो सभी कर्म के भोग में है इसीलिए 
जो कर्म अकर्म विकर्म से अलग है ना वही तो समझा सकेगा लेकिन कर्म की गति क्या है 
बाकी तो सभी मनुष्य कर्म की गति के चक्कर में हैं इसीलिए जो चक्कर में है वह नहीं 
समझा सकेंगे। जो फक्र से बाहर हैं वही तो समझा सकेंगे ना इसीलिए वह बाप जो कर्म की 
गति से बाहर है वो कभी ना कभी न दुर्गति में आता है ना उनको सद्गति चाहिए। वह तो 
सद्गति और दुर्गति से अलग है बाकी हम मनुष्य दुर्गति में भी आए हैं देखो पाप की 
दुनिया तो देखो हम पाप में आ गए हैं ना। अभी हम को ही फिर पुण्य आत्मा बनकर करके और 
सद्गति को प्राप्त करना है तो सद्गति क्या है वह भी तो समझना है ना। तो यह सभी 
चीजों को समझना है कि सद्गति भी जीवन में है, ऐसे नहीं कि जीवन से बाहर है जैसे कई 
समझते हैं ज्योति ज्योत समाना है या कहां हमको जाकर करके बैठ जाना है नहीं, दुनिया 
यही है इधर ही आना है परंतु वह दुनिया सद्गति की थी, अभी यह दुनिया है दुर्गति की। 
इसीलिए गीतों में भी देखो आता है ना अभी ले चल अर्थात हमको उसी दुनिया में अथवा उस 
दुनिया को अभी ले आ, जिस दुनिया में हम सदा सुखी थे तो दुनिया थी सुख की भी दुनिया 
है। ऐसे नहीं है कि सुख कोई ज्योति ज्योत समाना में है, नहीं सुख की भी दुनिया थी 
जैसे दुख की दुनिया है तो हमारे जीवन में हमको सुख था। और सुख ऐसा था जिसमें कभी 
कोई दुख नहीं था जिसको यह कहते हैं कि यहाँ एवर हेल्दी, एवर वेलदी, फॉरएवर हैप्पी। 
क्योंकि कई बिचारी यह भी नहीं समझते हैं कि सुख हमको हो भी कैसे सकता है, सुख और 
दुख का भी अर्थ समझना चाहिए न की हमको दुख क्यों है जीवन में। आज हमारे जीवन में 
अगर रोग नहीं होता, हमारे संसार में अकाल मृत्यु नहीं होती, निर्धनता नहीं होती, यह 
लड़ाई झगड़े नहीं होते, फिर तो संसार अच्छा है ना। यह लड़ाई झगड़े की बातें ना 
होती,  यह सब हंगामे न होते और ना हमारे पास अकामें मृत्यु आता, हम अपने टाइम पर 
शरीर छोड़ते और शरीर लेते और कभी कोई रोग आदि होता ही नहीं, न ये डॉक्टर्स, न ये 
हॉस्पिटल यह सब चीजें होती ही नहीं और यह सभी निर्धनता आदि की बातें भी नहीं होती, 
सब अपने खाने पीने में अच्छे सुखी होते, सबको अपने सुख के साधन कंप्लीट पूरे होते, 
राजा प्रजा सब सुखी होते फिर तो संसार अच्छा है ना। फिर तो नहीं कहते ना संसार में 
दुख है। तो दुख के कारण तो यही है ना तो मनुष्य को समझना चाहिए कि हम काले संसार 
में दुख का कारण कौन सा है। दुख का कारण है यह लोभ, अकाले मृत्यु, निर्धनता, लड़ाई 
झगड़ा, यह सभी जितने भी दुख के कारण। अभी यह कैसे निकले, तो हमको है हमारे संसार से 
उन चीजों को निकालने का प्रयत्न सोचना। बाकी ऐसे नहीं है कि संसार से ही हम चले 
जाएं, इसका मतलब यह नहीं है कि संसार में सदा ही यह चीजें हैं। यह रोग आदि अकाल 
मृत्यु यह सब पीछे आया है, नहीं तो हम कभी अकाले नहीं मरते थे, कभी हमारे पास रोग 
आदि नहीं होता था, कभी यह निर्धनता, धन नहीं, खाने पीने के लिए मनुष्य मोहताज यह 
सभी बातें थी नहीं। हमारी प्रकृति पूरी दासी थी, हम हमको सब सुख थे। कभी यह 
अर्थक्वेक्स नहीं होती थी, कभी यह फ्लड्स नहीं होता था, यह सभी बातें होती ही नहीं 
थी, लेकिन आज सब कुछ होता है। मनुष्य को हर चीज से भी दुख हो रहा है क्यों दुख हो 
रहा है क्योंकि मनुष्य कर्म भ्रष्ट है ना तो हम को समझना चाहिए तो हमारे दुख के 
कारण कौन से हैं। तो यह भी चीजें समझ नहीं है ना बाकी ऐसे नहीं कि खाली दुख सुख, हम 
को समझना चाहिए कि दुख होता ही क्यों है और किस कारणों से दुख है तो दुख है इस कारण 
से। अगर यह चीजें हमारी दुनिया में नहीं होती हम अपने मरने जीने में भी समर्थ होते 
जैसे सांप होता है ना एक खाल उतारता है दूसरी खा लेता है, वैसे टाइम पर हम कपड़े 
पुराने उतारते हैं नए-नए पहनते हैं तो हमारे शरीर उतारने पहनने का हमारे में बल था, 
बाल युवा वृद्ध जब स्टेज पूरी होती थी तो हम टाइम पर अपने शरीर को अपने आप छोड़ते 
थे और नया शरीर लेते थे, लेकिन आज नहीं है, अभी बैठे हैं अभी-अभी मर गए, कोई ऐसा 
एक्सीडेंट हो जाते हैं कई कैसा भी अकाल मृत्यु होता है ना, तो बाप कहते हैं यह जीवन 
तुम्हारा जीवन है तुम्हारे पास लेकिन जीवन के सुख के साधन तुम्हारे पास नहीं है 
क्योंकि तुमने अपने कर्मों से वो साधन को भ्रष्ट बना दिया है। इसीलिए बाप कहते हैं 
अभी अपने कर्मों को श्रेष्ठ करो तो फिर तुम्हारे जीवन में सदा सुख रहेगा। तो वह 
कैसे रहे उसका बैठकर करके तरीका समझाते हैं। तो अभी इसी बातों को तो प्रैक्टिकल 
समझना है और प्रैक्टिकल उसकी प्रैक्टिस में आकर करके अभी उसका क्या उपाय करना है वह 
सभी बातें समझ कर के अपने जीवन में लानी है। तो यह तो अभी थोड़े टाइम ही है क्योंकि 
कभी-कभी नए आते हैं ना तो थोड़ा डीटेल्स ऐसी ऐसी बातें समझानी पड़ती हैं क्योंकि 
उन्हों को पता होना चाहिए की लाइफ की ऍम क्या है, परंतु उसके लिए फिर भी कहेंगे कि 
कुछ टाइम दे करके आकर के सुनेंगे तो अची तरह से समझ पा सकेंगे। अच्छा दो मिनट 
साइलेंस... अभी टाइम हो गया है। 
 
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