मम्मा मुरली मधुबन
84 जन्मों
की कहानी
ओम शांति ।
थोड़े देवताओं के नाम हैं, इसको
कहा जाता है प्राय लोप। यानी जैसे के लोप ही है, परंतु थोड़ा, भाई थोड़ा इसके चिन्ह
है बाकी प्राय लोप। प्राय का मतलब है थोड़ा कुछ है, बाकी तो लोप ही हैं। तो बाप
कहते हैं थोड़ी निशानियां बाकी रहती हैं बस । इनकी प्रैक्टिकल बायोग्राफी यथार्थ
सभी बातें वो तो सब गायब है ना । देवताओं की भी गायब है, तो बिल्कुल गायब हो जाती
हैं बहुत पलट जाती हैं, प्रैक्टिकल तो रहता ही नहीं है, परंतु जिन्हों को भी याद
करते हैं उनके भी जीवन का पूरा पता नहीं रहता है इसी को कहा जाता है प्राय लोप ।
खाली नाम मात्र चित्र है बस । चित्र भी कोई ओरिजिनल तो नहीं है खाली नाम मात्र है ।
तो कहते हैं बाकी नाम मात्र जैसे जाकर के रहते हैं, तभी मैं आता हूं और आकर करके
फिर उसकी स्थापना करता हूं । तो यहां ही सब हुआ है ना काम, इधर, इसीलिए भारत का नाम
और इधर ही वर्ण आदि और यह सभी बातें इधर ही मानी जाती हैं । तो यह सभी चीजों को
अच्छी तरह से समझना है और समझ कर करके अभी यहां हम उसी सौभाग्य को पा रहे हैं। तो
अपने पास नशा होना चाहिए कि यहां ऐसी ऊँच प्राप्ति के अधिकारी हम बनते हैं। तो देखो
यह सौभाग्य है ना ऊंचा । तो अपने में उसका शुद्ध नशा.... कि हम ऐसे बेहद बाप के हक
को, हम ही पाने वाले हैं और अभी बाप डायरेक्टली हमको यहां ब्रह्मणों को रच कर कर के
अभी पढ़ा भी रहे हैं, समझा भी रहे हैं और साथ-साथ वह हक जो है वो हमें दे रहे हैं ।
तो ब्राह्मणों को अपना तो ब्राह्मणों को अपने ब्राह्मणपन का भी नशा रहना चाहिए और
कितने ब्राह्मण पवित्र और शुद्ध हैं वह अपनी पवित्रता सबसे श्रेष्ठ है । देखो
ब्राह्मणों को बडा अपना नशा रहता है हां वह समझते हैं कि नहीं हम बड़े,..... परंतु
वह कहां से पकड़ा है? इधर से ।, अभी अपना बाप ने आकर करके हमको..... यह तो अभी
परमात्मा ने, जो अपनी डायरेक्ट पहली पहली संतान जो रची है वह हम हैं ब्राम्हण । तो
पहली पहली संतान को नशा होना चाहिए न, कि हम डायरेक्ट परमात्मा की पैदाइश है एकदम ।
इतनी परमात्मा की पैदाइश, इतनी पवित्रता, इतना अपना रॉयल्टी, इतनी सब बातों की
मर्यादा, किस की मर्यादा? पवित्रता की मर्यादा ।, इसी सभी बातों को बहुत अच्छी तरह
से अपनाना है, इसीलिए इसी कुल का बहुत नाम है ना । तो अपना कुल बहुत ऊंचा है,
इसीलिए उस ऐसे ऊंचे कुल वाले बच्चों को, अपने कुल का, अपने खानदान का, अपने बाप का,
ध्यान रखने का है और अपने एक्टिविटी अपनी धारणाओं के ऊपर भी अच्छी तरह से अटेंशन
देकर करके अभी बाप से ऐसा जो कुछ पाने का है, वह पाना है तभी तो पूरा ले सकेंगे ना
। तो यह है अपने अंदर में रखने की बाते हैं । कोई ऐसे भी नहीं है कि नशा है तो कोई
बाहर से हम अपना कुछ नशा दिखाएं, हां, नहीं यह अंदर की बात है, अंदर में खुशी रहेगी
कि अपना अभी देखो हम किसकी संतान और कौन बनते हैं तो हां, हमारी अभी चढ़ती कला है,
उतरती कला अभी पूरी हुई अभी हमारी चढ़ती कला है । तो उसी समय बाबा आ कर करके हमको
देखो यह सभी नॉलेज देते हैं तीनों कालों की । इसीलिए त्रिकालदर्शी, हम भी अभी
मास्टर त्रिकालदर्शी हां, बाप त्रिकालदर्शी हैं तो हम भी तो कम नहीं है ना, हम भी
उनके बच्चे अभी मास्टर त्रिकालदर्शी यानी तीनों कालों को जानने वाले हम भी बनते हैं
ना । जब बाप बैठ कर करके हमको तीनों कालों की,... तीन काल का..... तीन काल क्यों
कहा है? चार काल नहीं कहा, पांच काल नहीं कहा, काल का मतलब है समय । तो हमको तीन
काल का बैठ कर करके नॉलेज यहाँ.... क्योंकि तीन समय का चेंजेस है, कहते हैं कि हम
आदि आत्माएं शुरू शुरू से निराकारी दुनिया से आती है तो पहला समय वह है जहां से हम
आत्माएं आती है भाई निराकारी दुनिया से । फिर आती है इधर कॉरपोरियल, इसमें फिर हम
बहुत से बहुत 84 जन्म जन्मों का चक्कर चलते हैं । चलते हैं तो 84 जन्म पूरे करते
हैं, फिर हम वापस जाते हैं तो मध्यकाल हो गया हमारा यह जन्मों का । आदिकाल हो गया
निराकारी दुनिया से आने का, हम निराकार है तो आदी हमारी शुरु, आत्मा की आदी की हम
आदि निराकारी है, पीछे मध्य में जन्मों में आते हैं यह पुनर्जन्म का हमारा चक्कर है
। फिर वह पूरा हो करके फिर हमको अंत जहां से आए हैं फिर वहां जाना है । तो आदि मध्य
अंत तो यह सभी है कि फिर हमको पार्ट पूरा कर करके जाना है । तो आना भी है, आना भी
है फिर जाना भी है । और मध्यकाल में हम पुनर्जन्म । तो यह हुआ आत्माओं का आदि,
मध्य, अंत तो तीन काल आत्माओं का । अगर फिर जन्मों का लेंगे तो जन्मों की आदी फिर
सतयुग से, की हमारे पहले पहले जो जन्म हैं वह आत्मा भी पवित्र, शरीर भी पवित्र है,
तो आदी फिर वहां से । वह हो गई सृष्टि की आदि, वह हो गई आत्माओं की आदी । सृष्टि की
आदि लेंगे तो कहां से लेंगे देवताओं से, तो पहले पहले हम देवता, पीछे किस तरह से यह
सभी वर्णों का चक्कर लगाते, अभी फिर मध्यकाल फिर कहेंगे जब हमारे में फिर भी
विकारों की चेंज आती है तो वह फिर हुआ जन्मों का मध्य । तो जन्म का आदि कहेंगे
देवता पहले पहले, पीछे फिर हमारे भाई माया आती है पांच विकार आते हैं तो फिर हमारा
मध्य वहां से शुरू । फिर अंत होता है जभी फिर भी विकारों के इस बंधन से छुटकारा
पाकर करके फिर जाते हैं । तो यह हुआ जन्मों का आदि, मध्य, अंत और वह हुआ आत्मा का
आदि, मध्य, अंत । इसीलिए कहते हैं त्रिकाल यानी तीनों कालों का जन्मों की भी तीन
काल का और आत्मा के भी तीन काल का । की आत्मा पहले नंगी है यानी कि शरीर नहीं है,
फिर के शरीरों के जन्मों में आती है फिर हां उन्हीं शरीर के जन्म के बंधन से भी
छुटकारा पा करके फिर जाती हैं यह तीम काल आत्मा का और वह जन्मों का तीन काल । तो
कहते हैं तीनों कालों का सृष्टि के भी और आत्मा के भी मैं जानता हूं फिर बच्चों को
सुनाता हूं । तो फिर बच्चे भी जानते हैं तभी हम भी मास्टर त्रिकालदर्शी बने हैं ना
। बाप ने बुद्धि में नॉलेज दी है की बच्चे अभी यह लास्ट चोला है, लास्ट जन्म है
अंतिम । इसीलिए कहते हैं मैं आता ही अंत के समय हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि
तुम्हारा बुद्धि योग निकलना बड़ा मुश्किल है । तो ऐसे भी नहीं है कि बीच में आऊँ की
अभी थोडे जन्म पड़े हुए हो, नहीं । मैं आता ही लास्ट में हूं, तो वैसे भी तुम्हारा
अभी लास्ट है छूटना ही है । परंतु क्यों नहीं अपने हिम्मत और पुरुषार्थ के बल से
छोड़ते हो । तो बुद्धि योग बल से छोड़ेंगे तो फिर तुमको उससे ऊँच प्राप्ति होगी
इसीलिए कहते हैं बच्चे अभी देह सहित देह के सर्व संबंधों का अभी बुद्धि से आसक्ति
हटाओ । तो बुद्धि योग बल से छोड़ेंगे, तो फिर तुमको उससे ऊँच प्राप्ति होगी ।
इसीलिए कहते हैं बच्चे अभी देह सहित देह के सर्व संबंधों का अभी बुद्धि से आसक्ति
हटाओ । यह कैसे हटाओ? जबकि अभी तुम्हारा 84 जन्मों का चक्कर पूरा हुआ है ना, यानी
सभी जन्मों का, तो अभी जन्मों का चक्कर पूरा हुआ है तो बाकी तुम बुद्धि से क्यों
नहीं निकालते हैं । इसीलिए बाप कहते हैं, तू ना भी निकालेंगे, तो भी तेरा पूरा हुआ
है अब तो तुमको ले ही जाना है अब मुझे । परंतु अगर बुद्धि से पहले से ही करेंगे तो
इसका तुमको फायदा मिलेगा । इसीलिए कहते हैं अपनी आसक्ति ममत्त्व तू इससे निकाल । यह
तो है रावण के राज्य का प्रॉपर्टी, यह सब पुरानी उसकी है ना । उसके कर्मों के हिसाब
से, विकारों के कर्मों के हिसाब से बने हुए हैं । इसीलिए कहते हैं उसकी यह
प्रॉपर्टी है ना, यह देह भी उसकी अभी है, उनको दे दे, तुम चलो मेरे साथ, मैं उनका
हूं, जिनका हूं बाप करते हैं अभी मेरे साथ चलो । तुम मेरी प्रॉपर्टी हो, यह (देह और
उसके सम्बन्ध) उनकी प्रॉपर्टी है रावण की, यह दे दो उसको । उसमें तुम अपनी आसक्ति
ना रखो । अब आप कहते हैं अभी यह देह जो रावण की प्रॉपर्टी है या उसके कर्मों के
हिसाब से, विक्रमी खाते के कर्म के हिसाब से बना है, तो जो उसके हिसाब से बना है,
तो वह हिसाब खाता उसको दे दे । तुम तो मेरी प्रॉपर्टी हो ना तो अब मेरे साथ चल । तो
अभी बाप कहते हैं बच्चे तो मेरे साथ चल तो इसीलिए बुद्धि अपनी इस से निकाल इससे
ममत्व को निकाल दें, यह उसकी प्रॉपर्टी है यह देह के सब संबंध, ये तेरी देह और देह
के संबंध, यह सब उनके हैं (रावण के) तो अभी उनसे अपना ममत्व को निकाल । यह सब उनकी
प्रॉपर्टी से जो इतना समय खाया है उसका हां परंतु उसे नतीजा तो तुमको दुखी ही भोगना
पड़ा । इसीलिए कहते हैं अभी वह देह सहित, यह देह के यह जो संबंध है ना, ये विकारी
खाते के हैं, इस सभी खाते से दे दे रावण को । वह भी खत्म होने का है उसका राज्य यह
सब उसे छोड़ दे उसको अभी । अभी तो जहां की है वहां की अपनी प्रॉपर्टी वह बना । वह
बनाएंगे, मेरे खाते में आएंगे, तो मैं फिर तुम आत्माओं को जो फिर तेरा, तेरा खाता
बना करके दूंगा, वह सुख का संबंध तुमको दूंगा, वो सुख के शरीर तुम को मिलेंगे ना,
फिर सदा सुख के । रावण के खाते के मिले हैं, पराया खाता है ना तो पराया खाता तो
उससे देखो दुख मिला है तो यह रावण के खाते के बने हुए हैं शरीर । वह मेरे खाते के
बने हुए हैं अभी मेरे बनेंगे तो फिर मेरा खाता तुम बनाएंगे, फिर मेरे खाते से जो
तुम खाते पीते रहेंगे और देह के संबंध भी रहेंगे सदा सुख के । कभी उसमें रोग नहीं
होगा, कभी कोई दुख नहीं होगा, कभी अशांति नहीं होंगी इसीलिए बाप कहते हैं यह सब अभी
पुराना, यह रावण का खाता, रावण की प्रॉपर्टी हो गई वह दे दे उसको, छोड़ दे अभी ।
उसकी क्या करेंगे? इसने तो तुमको दुख दिया है ना, तो उससे अपनी आसक्ति अभी निकाल दे
। अभी मेरी प्रॉपर्टी तुम बनो और मेरी प्रॉपर्टी से तुमको जो शरीर, सब, सारी दुनिया
देह के सुख के संबंधी जो मिलेंगे स्त्री पति सभी राजा, प्रजा, सभी जो भी समबन्ध
मिलेंगे न सभी सुख के मिलेंगे । रावण के संबंध देखो कैसे हैं दुःख के, लड़ते
झगड़ते, प्रजा प्रजा पर फलाना उसके उपरसब लड़ते झगड़ते रहते हैं बाप बेटा भी लड़ता
है, स्त्री पति भी लड़ते हैं, जो भी हैं जो राजा बन के नेता है बैठे हैं सब लड़ते
झगड़ते रहते हैं आपस में, नेता नेताओं से लड़ते हैं, नेता प्रजा से लड़ते हैं,
प्रजा उनसे लड़ती है सब लड़ते ही रहते हैं कोई है, सारा दिन देखो समाचार, मारामारी,
लड़ाई झगड़े, फलाना फलाने यह सब देखो क्या लगा है । तो कहते हैं देखो ये रावण का
राज है ना । बाप कहते हैं इनका सब छोड़ो संग जी अभी तुमको दुख देने वाले सब है ।
इसीलिए कहते हैं उससे आसक्ति तोड़ो। अभी अपना मन मेरे से लगाओ तो मेरे राज में आ
जाएँगे और मैं जो तुम्हारा भी अपना संबंध बनाता हूं इसमें देखो कितना सुख है तो
मेरी प्रॉपर्टी में सुख है ना । रावण की प्रॉपर्टी में दुख है तो अभी दे दो उसको ।
छोड़ो आसक्ति, अब चलो मेरे साथ, अब मैं फिर जो तुम्हारा बनाऊंगा तो सदा सुख का ।
क्या? राय पसंद है ना, तो फिर चलो । अब उनके साथ संबंध जोड़ो, वह कहता है रिलेशन
मेरे से जोडो और फिर मेरे रिलेशन से तुमको जो अपना रिलेशन भी बनेगा ना, देह का वह
भी अच्छे बनेंगे । तो पहले मेरे से रिलेशन जोड़ो तो देह के रिलेशन भी तुमको अच्छे
मिलेंगे । अभी मेरे से रिलेशन तोड़ा है, रावण से विकारों से रखा है, तो विकारों के
रिलेशंस जो भी है वह सदा दुख के, तुमको दुख ही देंगे । और देख ही रहे हो दुखी ही
पाते आए हो ना तभी तो मुझे याद करते हो । शुरू से आया रावण और शुरू से मुझे याद
करना शुरू किया । भक्ति चली तभी थोड़ा भी रावण का पांव चला ही उसने अभी पाँव ही रखा
तो तो तुमने मुझे याद करना शुरू किया । परंतु उसी समय थोड़ा दुख था, पहले थोड़ा
उसका भभका था, अच्छा तुम को सुखी रखा उसने, पीछे तो अभी उसकी भी ताकत चली गई है ना
तो अभी दुख होता जा रहा है । इसलिए बाप कहते हैं पुकार तो तुम उसी टाइम से ही शुरु
कर दी पर उस समय उसका पहला समय था तो कुछ सुख था परन्तु अभी तो उसका सार निकलता गया
उसकी भी ताकत अभी, वह जो थोडा सुख था वो उसकी चली गई । बाकी हाँ भभका उसका जोर है
अभी साइंस फलानी वो सब वो नहीं समझते हैं अभी अंत है वो समझते हैं सब कुछ अभी ही तो
मिलना शुरू होता है, अभी तो दुनिया का पता चला है, अभी तो दुनिया खोज ली है, अभी तो
दुनिया क्या है उसका मालुम पडा है, वो सब समझते हैं अभी तो दुनिया को भोगने लगे हैं
इसलिए समझते हैं, आज देखो एयरोप्लेन फलाना ये, वो, हाँ हवा में उड़ते हैं ये करते
हैं अभी तो सबके ऊपर राज करना शुरू करते हैं चाँद के उपर सूर्य के ऊपर, हवा के ऊपर
पानी के ऊपर सब के ऊपर अभी तो राज करना शुरू करते हैं वो समझते ऐसे है परन्तु नहीं,
बाप कहते हैं, ये तो सब तुम्हारे आर्डर में चलने वाले हैं, लेकिन वो कैसे चलेंगे जब
तुम अपने कायदे पर अथवा अपनी धारणाओ के ऊपर, जो तुम्हारी श्रेष्टता है उसके ऊपर
आएँगे । तो ये तो सब तुम्हारे सब सेवाधारी अपने आप तुम्हारे आर्डर में काम करेंगे ।
तो ये सभी चीजे बैठकर करके बाप समझाते हैं तो ये सभी बुद्धि में रखने की है की हम
बाप से सभी, वो गीत भी है न एक... तो ये सब की वाघे मेरे हाथ मे होंगी चाँद की सूरज
की ये सब की वाग्हें तेरे हाँथ में होंगी पृथ्वी की आकाश की सब तेरे हाँथ में । तो
देखो ये सब वाघें अभी हाँथ में मिलती हैं न । एक पृथ्वी एक आकाश तो उसमें एक राज्य,
एक धर्म, बहुत हैं तो देखो टुकड़े टुकड़े कर दिया है न, प्रथ्वी एक लेकिन उसके टुकड़े
टुकड़े कर दिए हैं, आकाश एक उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए हैं, क्योंकि बहुत हो गया है
इसीलिए बाप कहते हैं एक तो एक में एक ही होने से सदा सुखी रहेंगे, इसीलिए कहते हैं
देखो सबकी बाघे तेरे हाथ में दे दी है, तो ये है अभी अपने हाथ मेंतो यह सभी चीजें
अच्छी तरह से समझने की है। इसलिए बाप बैठकर करके अच्छी तरह से यह सभी बातें बुद्धि
में डालते हैं। और कैसे अपनी दुनिया को पूरा सुखी बनाओ, अपने दुनिया से पूरा सुख लो
उसी सभी बातों की पूरी तरकीब देते हैं। बाकी तो दुनिया की सब सजावट है, यह चांद,
सूर्य, सितारे यह कोई दुनिया नहीं है, दुनिया एक है यह तो उनके लिए सब सजावट है,
जैसे एक घर है ना देखो तो इसमें बिजली है, इसमें सजावट होती है जो अच्छा साहूकार
आदमी है तो अच्छा फर्नीचर, सजावट सब रखेंगे और इसी तरह से जितना जितना होता है यह
भी ऐसा ही है। जितने हम.... देखो पहले सतयुग है अच्छे हम है तो हमारे घर की भी
सजावट अच्छी है पक्की अच्छी, वनस्पति अच्छी, पशु अच्छे, जो भी वृक्ष आदि सब फल फूल
सब हमको अच्छे अच्छे तो उसी टाइम हा, ये तो बत्तियां हैं चाँद और ये सब हाँ तो
रौशनी है ये न होता तो दिन और रात ये सब कैसे होता, तो ये सभी घर की सजावट है, बाकि
ये नहीं की वो घर है, घर तो यही है, तो वर्ल्ड जो है उसमे जो है ... जैसे हर में
बाकि सजावट होती है फर्नितुरे होते हैं न यहाँ ये सब इसी तरीके से ये सब चाँद सूरज
सजावट हैं बाकि ऐसे नहीं की इसमें कोई दुनियाएं हैं, या इनमें कोई दुनिया चलती है
या कोई मनुष्य रहते है नहीं , ऐसा नहीं ये तो बिचारे खोजते खोजते इनकी दुनिया ही
ख़तम हो जाएंगी ना बस इनका नतीजा ये ही है बाकि ये नहीं की इनमें कुछ खोज पाना है या
कोई दुनिया इनको मिलनी है है ही नहीं तो मिलेंगी कहा से? तो ये सभी चीजें अच्छी तरह
से समझने की है जो बाप बैठ कर कर के समझाते हैं और इसका सारा चक्कर कैसे चलता है
अपना टाइम का और इसी टाइम का होकर के गिर कैसा रिपीट होता है ये सब बातें समझने की
है की हूँ बा हूँ सबकी लिए इनका फिर हूबहू रिपीट होता है इसिलए कहते है न ये तुम और
हम अभी भी हैं फिर भी होंगे परन्तु कभी ? 5000 वर्ष के बाद फिर हूँबहू। देखो ये आज
का हूबाहूँ जो हम एक एक अक्षर कहती हैं और ये भी फिलोसोफी बड़ी दीप है जिसको समझना
है की हूँ बा हूँ फिर वो ही रिपीट होता है तो हूबहू ये जैसे ये हमारा ये हाँथ ,ये
जैसा भी रखा है इसी टाइम पर फिर 5000 वर्ष बाद ये ऐसा ही रहेंगी, इसका ज़रा ऐसा ऐसा
थोडा भी फरक नहीं होंगा, परन्तु कई बिचारे इसमें मुझते है की ऐसा कैसे वाही चीज
कैसे बनेंगी परन्तु ये जैसे ड्रामा शूट किया हुआ होता है न, फिल्म अगर चलेंगी तो
जिस टाइम चलेंगी जो सीन होंगी उसमे किसी का हाँथ ऐसे चला तो भी उसी टाइम पर फिर
हूँबहूँ ऐसा ही रिपीट होंगा, क्योंकि एक बार शूट हो गई न, तो ये अपने टाइम पर फिर
उसका हूँबहूँ चलेंगा उसका ज़रा भी फरक नहीं। ये सभी बातें समझने की हैं इसमें बड़ा
दीप बुद्धि चाहिए और बहुत इसमें गुह्यता भी परन्तु ये बातें जो पुराने हैं न उन्हों
को समझाने की, अगर नयों को समझाएंगे न देखना उसका माथा खराब हो जाएंगा, समझेंगा अगर
हूँ ब हूँ तो फिर अभी हम गिरा है तो फिर भी गिरेंगे हूँ ब हूँ गिरेंगे तो फिर अभी
हम चढ़े ही क्यों, वो तो ये सोचेंगा उनको ये नहीं आएंगा....वो कहेंगा अभी हा हम गिरे
हैं फिर अभी हम पुरुषार्थ करें फिर भी अगर गिरना है तो गिरे ही रहे, गिरे ही पड़े
रहे अच्छा है, ये नहीं ख्याल करेंगे के नहीं, अरे भाई जीवन में मनुष्य कभी ये
सोंचता है की अच्छा अभी मैं मरुंगा ही, मरना तो है ही तो उसके लिए कुछ न करू बैठा
है, बस मरना है मरना है खाली ये सोंचता रहे, मरना ही है तो न कुछ कमाऊं न खाऊ, अ
पढू न कुछ लिखू न कुछ करूँ बस, ऐसा कोई मनुष्य करता है ? भाई मरना तो है न, न ,
मालूम कल को मर जाऊ, कल को मर जाऊ कल को मर जाऊ करते कोई बैठ जाता है ? नहीं , करते
तो सब हैं पढूंगा, लिखूंगा, शादी करूंगा, बच्चे पैदा करूंगा, ये करूंगा वो करूंगा,
तो मनुष्य ये सोंचते और करते हैं न, बैठे थोड़ी रहते हैं । तो जैसे एक जीवन जो अकाले
मृत्यु की है तो उसको भी मनुष्य ऐसा न समझ करके की मै कहीं कल को न मर जाऊ, इसीलिए
कोई कुछ न करे, ये तो बात सही नहीं है न तो ये सोंच की हा कल को फिर गिरना है
इसीलिए कुछ न करे ये तो बात ही नहीं है न तो ये सोंचना की हाँ फिर कल को गिरना है
इसिस्लिये कुछ न करें ये कोई समय थोड़ी है नहीं अभी तो चढने का टाइम है न तो अभी तो
चढ़ जाए न । चढ़ कर कर के चढ़ाई का मजा ले ले न । अब तो जो कुछ अपनी चढ़ती कला का टाइम
है उसका आनंद ले लें । बाकि ये चक्कर है उसको चक्क्कर को तो चलना ही है, इसलिए उसका
मतलब ये थोड़ी है की गिरना है तो गिरे ही रहे, गिरे ही रहे तो९ फिर गिरे ही पड़े
होंगे यानि फिर तो चढ़ने का कभी चांस उसको मिलेंगा ही नहीं कल्प कल्प का चांस उसको
बैठेंगा न । ऐसा आना भी उसी की बुद्धि में है जिसको गिरने के समय ही आना है वो गिरा
ही रहा न, सदा जब गिरने का टाइम होंगा न तभी आएंगा जब गिरने का टाइम होंगा तब आएंगा
तो गिरा ही रहा न तो ऐसे करने वाले फिर पुरुषार्थहीन फिर गिरे ही पड़े रहेंगे यानि
जब दुनिया के गिरने का टाइम होगा तब गिरने वाली दुनिया में ही आएँगे, इस रावन वाली
दुनिया में वो राम वाली दुनिया ,इ नहीं आएँगे वो तो गिरा ही पडा न, मानों उसने
अप्पना लक नूंध ही ऐसा लिया वो गिरा ही पड़ा रहा, वो सदा ही गिरा ही रहा, तो उसने
अपना गिरा ही बना लिया, परन्तु नहीं, हमको अपना जभी है चढ़ने का चांस, और चढ़ने का
चांस अभी हमरा पूरा है, और हम इतना भाग्य अपना बना सकते है तो क्यु नहीं बनाएं,
क्यों हम अपना गिरने में रखे क्यों नहीं चढ़ने में रखें,तो ये तो अकल की बात है न ।
इसलिए बाप कहते है बच्चे अकल्मन्द बनों ऐसे नहीं ही की.कोई.... ये बातें भी बहुत
गुह्य हैं । जो जो अच्छी तरह से समझते जाते हैं, उन्हों को समझाते हैं तो आप पुराने
हो, अब यंग्लोर कितने बरस का है ? 10 बरस का । 10 बरस का देखो 10 बरस का कोई कम
थोड़े ही है 10 बरस के देखो बूढ़े हो गए । बूढ़े का मतलब है ये संगम की आयु बहुत छोटी
है इस संगम की आयु में तो 10 बरस कोई कम नहीं है । इसमें 10 बरस में तो बहुत आगे
बढ़ने चाहिए लाइट बहुत रहनी चाहिए । तो इतना तेज होना चाहिए तो ऐसे जो यहाँ हैं तो
उन्हों को थोडा ये बातें समझाई जाती हैं नहीं ओ नयों के लिए तो उसका माथा चक्कर में
आ जाए, उसका उलटा कोई ले सकते हैं इसिलए कभी नयो को ये बाते नहीं समझनी चाहिए ।
नयों को भी कैसी वातें समझानी चाहिए, क्या समझाना है उसको तो खाली बाप का रिलेशन
समझाओ, नए के लिए । तो उसको ये बहुत बातें भी समझाने की नहीं हैं ड्रामा वगेरह का
ये सब कोइ बातें कोई नहीं देनी हैं, सिवाए बाप से रिलेशन के क्योंकि उसका तो अभी
रिलेशन बाप से टूटा हुआ है न, उसको जुटाने की उसको हिंट देने की है, की तुम्हारा
रिलेशन उस बाप से होना चाहिए वो हमारे पिता हैं, पिता से तो फिर पुत्र का सम्बन्ध
होना चाहिए न, वो सम्बन्ध कहाँ है फिर? पिता है तो तुमको क्या उससे मिलना हैं, वो
मालूम होना चाहिए तुमको, की क्या उससे लेना है तो उसको टेम्पटेशन बैठेंगी न की बाप
से कुछ मिलना है । बस मिलने की बात तो आजकल कोई सुनता है, मिलना है तो झट पकड़
लेंगा, खाली मिलने की बात ही बताओ किसको हाँ । परन्तु क्या है ये मिलना ज़रा इस
आँखों से नहीं देखते हैं न तभी फिर बिचारे ही जाते हैं वो समझते हैं जैसे नए पैसे
हाँथ में कोई मिले न तो देखो फिर कैसे पकड़ लेंगे, सब छोड़ के बैठ जाएँगे, परन्तु अभी
तो वो नए पैसे की तरह तो चीज नहीं है न । ये तो है भविष्य प्रालब्ध, इसीलिए कहते
हैं नहीं बच्चे, अभी तुमको जोड़ना है और मिलना तो तुमको भविष्य जेनेरेशंश में हैं न।
परन्तु करना तो अभी है न । अभी न करेंगे तो मिलेंगा कैसा? इसलिए बाप कहते हैं अभी
मेरे से रिलेशन जोड़ो और जोड़ करके अभी जैसे मैं कहूं, वैसे करो । फिर करने का नतीजा
तुमको जरूर मिलेगा । तो ये सभी चीजें समझने की होती है और समझ कर कर के बाप से अ
अपना अधिकार पाने का है । तो ऐसे बाप से पूरा पूरा जोड़ना है । और कभी भी कोई नए को
ऐसे नहीं समझाना है कि भक्ति मत करो, ये न करो क्योंकि ऐसे भी न हो कि ना भगत रहे
ना ज्ञान प्राप्त करें और ही नास्तिक हो जाए, न इधर का न उधर का कहते हैं न धोबी का
कुत्ता, न घर का न घाट का । ये कहावत है की ना इधर का बने ना उधर का बने और ही
नास्तिक हो जाए। तो ऐसा भी नहीं किसी को कहना है की ये नहीं करना है, भक्ति नहीं
करो, माला नहीं फेरो, ये नहीं करो, नहीं अच्छी बात है न फिर भी उलटी सीधी पर, फिर
भी भगवान् का नाम लेते हैं न फिर भी उलटा ही सही परन्तु उसको कहना नहीं है की ये
छोडो, हाँ विकारों के लिए कह सकते है की छोडो, कहते हैं ना, भाई कि यह विकार, यह
काम, यह क्रोध, लोभ, मोह, इन्हीं को छोड़ो, यह छोड़ने की चीजें हैं बाकी उसको कहो
की माला सिमरना, यह सब करना छोड़ो, नहीं वह अपने आप, जब समझ आ जाएंगे ना। देखो हम
सब भी करते थे ऐसे थोड़ी है हम भी यह ठाकुरों का पूजन, यह सब जो भी होता है, घर में
तो देखते थे अपने मां-बाप को, बड़ों को, वह हम भी करते थे, सब करते थे ज्वेल्लेरी
बजाते थे, उनको कपडे पहनते थे, खिलाते पिलाते थे, रखते भोगते फिर खा जाते थे अपन,
वह समझते थे अच्छा अच्छा कभी उनको बनाकर खिलाते थे, फिर समझते थे कि यह भोग तो फिर
हम ही खाएंगे ना, अच्छा-अच्छा खिलाते थे परंतु फिर खा तो हम ही जाते थे तो यह तो सब
करते थे लेकिन जब समझ आ गई तो कहते हैं यह तो गुड़ियों का खेल है । गुड़िया होती है
ना, बच्चे होते हैं छोटे-छोटे, फिर गुड़िया बनाते हैं, गुड़िया समझते हो? डॉल्स ।
तो डोल्स बनाते हैं फिर डोल्स की आपस में शादी कराते हैं फिर डॉल्स को खिलाते हैं,
फिर डोल्स का सब करते हैं तो अभी जभी बड़े हुए हैं तो ज्ञान आया है, तो लगता है यह
डॉल का खेल है, हा ये तो जैसा डॉल्स हैं । तो इसको कहते ही है आईडीअल्स परसती, तो
देखो यह डॉल्स है ना । तो अभी देखो ये बहुत बंगाली लोग हैं ना ये डॉल्स बनाते हैं ।
यह सरस्वती की, यह सब गुड़िया बहुत ही बनाते हैं । जब नवरात्र होते हैं देवियों का,
नवरात्रि में बहुत देवियों का अच्छी अच्छी बनातें हैं, फिर उनको सात रोज पता नहीं,
नो रोज कितना, ये इनका बहुत पूजन करते हैं, कपडे पहनाते हैं उसको भेंट वेंट बहुत
खिलाते पिलाते हैं अच्छी तरह से, घर घर जा कर कार के अच्छी तरह से, हरी बोल करते है
बहुत अच्छा । उसको बनाया भी, उसको उत्पत्त भी किया, घर को वो तोड़ फोड़ के बनाया भी
और फिर उसको खिलाया पिलाया उसको पालना पोसना भी अच्छी तरह से फिर पलना पोषण करके
उसको विनाश भी कर देते है । तो फिर तो बडे भगवान् तो खुद हो गए न, वो भगवान् की
डॉल्स बना कर के भगवान् को पैदा भी किया भगवान् को पाला भी और भगवान् को डूबोया भी,
तो बाप कहते हैं इसको कहा जाता है आइडल परश्ती । परन्तु अभी में आ कर कर के समझाता
हूँ की..... चलो फिर भी ये आइडल्स से यानी की डॉल्स से खेलते हैं न तो फिर भी ठीक
है, कोई भी करते हैं की भाई ये गणेश है ये हनुमान ये डॉल्स है, फिर भी कम से कम
भावना शुद्ध तो उसमें रखते हैं न उसके लिए वो कम से कम थोडा बहुत शुद्ध रहेंगे,
शुद्ध विचार रखेंगे, ये फिर भी अच्छा है, नास्तिक से ये डॉल्स से खेलना अच्छा है जो
कुछ न कुछ उससे अच्छे तो रहेंगे न, इसीलिए कहते हैं की किसी को ऐसे नहीं कहना
है,..ये तो समझाई जाती है बात जो समझते जा रहे है उन्हों के लिए, बाकि कभी भी कोई
नए को ऐसा नहीं कहना है की नहीं ये आइडल परश्ती है या ये डॉल्स हैं वो तो फिर बिगड़
पड़ेंगे, कहेंगे हाँ हमारे देवता को तुम ऐसे कहते हो हाँ ? लाठी लगाने में देर नहीं
करेंगे तो सब संभालना, ये बातें भी बतला देते है ज़रा ख्याल से..... कभी कभी कोई आते
हैं न यहाँ भी जोश में आ जाते हैं वो सर्विस के जोश में, परन्तु नहीं पहले तो
विकारों का हाँ जो गन्दगी पहले है पहले तो वो छुडानी है, ये फिर भी पूजने में लगे
हुए हैं तो फिर भी कुछ न कुछ तो उससे तो अच्छे रहेंगे न, वो तो विकार तो बिलकुल
गंदा तो पहले बिलकुल ये गन्दी चीज छुडानी है, जब वो छूट जाएंगी, समझ जाएंगे उसको वो
आ जाएँगे समझ में की ये सब वेस्ट ऑफ़ टाइम वेस्ट ऑफ़ मनी ये सब है, उसमें देखो उसमें
कितना खर्चे करते हैं इन सब बातों के ऊपर। तो बाप कहते हैं की ये सब चीजे फिर अपने
आप ही छूट जाएंगी, परन्तु पहले जो सुनाने की है, रहने के लिए जो चीज हैं वो ये
विकारों की है की जिसने गन्दा बनाया है , जिसने जीवन बर्बाद किया है पहले तो उन्हों
को इन बातों पर रौशनी देने की है और बाप से रिलेशन जुटाना है और पवित्र रहने के लिए
उन्हें धारणा देनी है। समझा, तो ये भी पॉइंट्स आप लोगों को क्यों दी जाती हैं, की
किसी के साथ में आप लोगों की बात चीत तो चलती है न तो क्या पहले समझाना चाहिए, इसी
के लिए, ऐसे नहीं है की ये साब ज्ञान की बातें सब उस पर ऐसे ही डाल देना है तो उसका
माथा फिर खराब हो जाएंगा इसलिए क्या पहले समझाना चाहिए, पहला लेसन कौन सा है, पीछे
बाद में जितना पढता जाएंगा अगर छोटे यानि पहले लेसन वाले को हम बड़ी बात सुनाएंगे तो
उसका तो माथा ही खराब हो जाएंगा न फर्स्ट क्लास वाले को यानी जो क्लास पहला है, उस
वाले को अगर हम सातवीं क्लास का बैठकर करके बातें सुनाएंगे तो वो बिचारा बच्चे क्या
समझ सकते हैं, समझे न, नहीं ? और ही माथा उसका खराब हो जाएंगा , ऐसे नहीं की ऊपर
वाले की बात नीचे वाले को लेना चाहिए नहीं लेसन बाए लेसन । इसीलिए नए को हमें इस
बाप का नोलेज देना है क्योंकि वो ही तो रिलेशन जरुरी है और फिर पवित्र रहने का की
हां भाई पवित्र रहे तभी उससे रिलेशन जुट सकेंगा। इसीलिए कभी भी, यहाँ भी समझाने
वाले हैं न कभी नए नए तो ऐसे कभी भूल न कर देना हाँ की किसी को कह दे की क्या करते
हो, भगवान् ऐसा नहीं हैं, उन्ही पूजन या भक्ति के उपर का कुछ भी ये उसको हटाने की
बात नहीं कहनी है, तो अपने आप जभी आ जाएँगे समझ में तो फिर बतलाएंगे जैसे बच्चा
होता हैं न छोटा , छोटेपन में डॉल्स का खेल करते हैं जब बड़े होते हैं न तो इनसे
खेलना बच्चों का अपने आप छूट जाता है ,छोटे होते हैं तो खिलोनो से खेलते हैं जब बड़ा
हो जाता है तो उसका खिलोनों का खेल अपने आप छूट जाता है। ये खिलोने का खेल अपने आप
छूट जाएंगा, बड़े होते जाएँगे समझ आती जाएंगी खेल अपने आप छूट जाएंगा। और छूटने का
है, देखो छूट ही जाता है न। फिर आकर के वो चेतन्य डॉल्स खेलने का आता है की की इसको
चेतन्य डॉल बनाएं,यानि चैतन्य में देवता बनाएं, वो नहीं की वो डॉल्स हम पत्थर की
बना करके ये करें लेकिन चैतन्य डॉल्स देवता बनाएं, देवी बनाएं फिर वो खेलने का सौंख
आ जाता है न तो जिन्हों को चेतन्य का सौंख बैठेंग वो जड़ से बैठ कर कर के खेलेंगे
,नहीं ! फिर वो सौंख चला जा है। फिर आता है की मनुष्य को देवता बनाएं । नारी को
देवी बनाएं, नर को देवता बनाएं तो ये डॉल्स प्रेक्टिकल चैतन्य में, इन्हों को देवी
देवता बनाएं तो फिर हा उन्ही से ये संसार हो जाए तो कितना सुख का हो जाए फिर ये
सौंख आ जाता है न। अभी भी आप देखो तो ये खेल करते हैं परन्तु कौन सा खेल है अभी हाँ
? ये ज्ञान का है , ज्ञान का यानि की हमारे में अभी ये सौंख आया है की नहीं नारी को
देवी बनाएं नर को नारायण , नारी को लक्ष्मी बनाएं। सच सच बनाएं वो तो खाली लक्ष्मी
या नारायण या गुडिया बनाए कर कर के, फिर आपस में करते है शादी । वो तो जड़ की बनाते
हैं न अभी इन्हों को चैतन्य बनाएं । तो ये खेल अच्छा या वो खेल अच्छा ? तो जभी समझ
आ जाती है न फिर वो सौंख आ जाता है की हा बनाएं । परन्तु जब वो इतना ऊंचा बड़ा होंगा
न इतना बनाने की भी हिम्मत चाहिए किसको समझाने की भी सब बातें चाहिए तो जब आ जाती
हैं तो अपने आप उसी में बिजी हो जाते हैं। बाकि तब तलक किसी को कहना नहीं ये सब
बात, सभी के ख़याल में होवे की कभी कोई ऐसी मिस्टेक कर न बैठे। तो इसी लिए ख्याल में
दी जाती हैं । अच्छा चलो अभी टाइम हुआ हाँ आज छुटटी वुट्टी तो नहीं है, फिर सभी ये
धारणा में चलने वाली हैं माताएं? ,सुनीता कभी खिलाया है तुमने? ये तो ब्राह्मणी है
न यहाँ की टीचर । अच्छी है और ये यहाँ की बैंगलोर की सौगात है नहीं, हा? बेंगलोर
वालों ने दी है सेवा के लिए। इसका पिताजी नहीं आया है शायद आज, तो देखो ये भी सेवा
के लिए, सच्ची रूहानी सर्विस के लिए, तो ये भी महादान है,अभी किसको शादी करा देते
थे, बेचारी हाँ जाकर के अभी दो चार बच्चे पैदा हो जाते बस उसी मैं जीवन निकल जाती,
परन्तु ये फिर देखो यहाँ माताएं कितने बच्चों की माताएं बनकर के... ये है दैवीय
सर्विस, ईश्वरीय सर्विस जिससे कितनी जनता का सुख हो जाता है, तो ये तो अच्छी है और
बाप कहते है बच्चे वैसे भी ये एक जन्म तो पवित्र रहना ही है। इससे तुमको बल मिलेंगा
योगी रहेंगा इसमें फिर अपनी क़ुअलिफ़िकतिओन्स भी रखने की है धारणा, इतना फिर इसका
स्टेटस भी जितना जितना फिर इसका स्टेटस बनेंगा,तो ये फिर अपनी अपनी धरनों को रखते
और फिर चलना , और अपने को लायक बनाना, ये फिर हर एक का इंडीविजुअली अपने पुरुषार्थ
के ऊपर है। तो ये रखना है हाँ हर एक जो करेंगा सो पाएँगा । अभी करना और फिर हर एक
का अपना अटेंशन है न तो अपने क्वालीफिकेशनस में धारणा में ले आना।सविता भी बेंगलोर
का कितना शो करती है क्या तमिल है? तेलगु है ?तेलगी अच्छा ये तेलगु है तो देखेंगे
तेलगु को अबकी नाम बाला करेंगी। अच्छा तुम्हारे लिए तो रहना चाहिए एक रह गया (अम्मा
के लिए है) नहीं कोई बात नहीं तो यह सब चीजों को बैठ कर करके समझने का है, तेलुगू
तमिल कंगी वह भी इन सब का नाम वाला करना है ना। तो ऐसा बाप दादा और मम्मा की मीठे
मीठे और सबूत बच्चों को याद प्यार और गुड मोर्निंग। तो बाप कहते हैं देखो क्या कर
दिया, नहीं तो असूल में ओरिजिनल बात है विकारों की बल(बलि) । यह है अपना जीवन का
बल, जीवन कौन सा? यह विकारी जीवन। तो देखो ये जीवन किसको उपर बल चढ़ाई है ? परमातमाँ
के ऊपर शिव के ऊपर। बल चढ़े हैं, शिव काशी हाँ, वो बल चढ़ने का तो हम शिव के ऊपर बल
चढ़े हैं असूल काली के ऊपर बल। वो कहा है न माताओं के ऊपर , अभी बाप कहते हैं की बल
दो ये निमीत्त बनीं हैं न। तो वो माताओं का भी रख दिया है काली का। तो यह सभी असल
में चीजें अभी की है देखो, अभी की बात है न बल चढ़ना परमात्मा ने आ कर के विकारों
से छुड़ाने की अभी यह सब युक्ति बतलाई है न। तो बल चढ़ना वो भी अभी की बात है अभी कि
यह देखो यादगार, तो कैसी शक्लें रख दी है क्योंकि यह शक्ल तो नहीं रख सकते हैं न ।
यह शकल भी कैसे रखें ये फोटो भी कैसे रखे इसीलिए वो न इधर का ना उधर का, वो एक
भयंकर काली की या दुर्गा को बहुत बहुत भुजाएं दे कर के, ये सब इन्हों का शक्ति का
बल का कि हां भाई इन्होने बैठकर करके इन्होने जो काम किया है। तो यह सभी चीजें हैं
अभी की। तो देखो ये बब्राह्मणियों का चित्र जो अभी का है, ये ब्राह्मण है न हम अभी।
तो अभी ब्राह्मणियोंका चित्र और देवियों का , देवता फिर सतयुग के हुए जैसे लक्ष्मी
उसको ब्राह्मणी नहीं कहेंगे, लक्ष्मी सतयुग की है उसको देवी और हम सरस्वती अभी भाई
सरस्वती दुर्गा काली ये सब अभी की हैं तो यह सभी बातें अभी समझने की है ना कि अभी
का कर्तव्य और वह फिर भविष्य परालब्धदेवता बनने का तो ये डिफरेन्स है तो
ब्राह्मणियों का भी पूजन है यानी उसका भी रखते हैं परंतु उसके शरीर तो यह नहीं पूजे
जा सकते न क्योंकि ये शरीर तो विकारी हैं न, वो कैसे फोटो में रखेंगे इसीलिए उनके
अभी अजीब से अजीब से और चित्र बना रखे हैं अलंकार के रूपों में तो ये सभी चीजों ऐसे
तो देखो कृष्ण के भी चित्र बनाएं जो जो अच्छे अच्छे एक्टर्स देखते हैं न अच्छे
अच्छे शकल देखते हैं उसका ऐसे थोड़ी ओरिजनल कृष्ण का कोई फोटो है कृष्ण देखो कई
फीचर्स वाला कृष्ण है नहीं तो होंगा तो एक आध ही न तो एक ही फोटो रखे न परन्तु जो
जो जिसका जिसका अच्छा देखेंगे न कोई एक्टर का कोई एक्ट्रेस का रख देंगे उसमे। नहीं
तो कृष्ण का देखो लक्ष्मी नारायण का देखो कितना, कितना, एक ही कृष्ण है परन्तु उनके
फीचर्स, भले छोटेपन में बडेपन में फर्क पड़ता है परन्तु फिर भी बड़े भी देखेंगे न समे
अपना अपना अपना है। तो होंगा तो एक आध ही न, नाप तो एक जैसा ही होंगा न नाप तो,
आँखे तो एक जैसी ही होंगी न ऐसे थोड़ी इसका फोटो निकालो करके कितने भी फोटो निकालो,
शकल तो ऐसे ही निकलेंगी न, करके छोटेपन में बडेपन में थोडा बहुत फर्क होंगा। परन्तु
श्री कृषन का तो देखेंगे कहाँ कैसा कहाँ कैसा, कोई कैसे फीचर्स वाला एक शकल थोड़ी है
तो क्यों ? ओरिजनल तो नहीं है न जिसका कोई लड़के का, अच्छी देखा तो देवी बना दिया
उसको या कोई एक्टर है या एक्ट्रेस का देखा अच्छा वो लगा देते हैं । बाकी तो कोई
ओरिजनल तो नहीं है न, तो बाप बैठ करके समझाते है की वो तो जो ओरिजनल कृष्ण का फोटो
या ओरिजनल ये सभी वो तो ओरिजनल उन्हों को अपना ही था न तो सभी चीजों को भी बैठकर कर
के ये तो चित्रकारों ने फिर नैथ्लकर कर के अपने अपने ढंग से ये सब बनाएं हैं तो ये
सभी चीजें हैं जिसको अच्छी तरह से समझने का है । तो बाप बैठकर के तो ये चित्रकारों
की चित्र जो बनें हैं उनका भी क्या है ये बैठकर कर के समझाते हैं और मैंने कैसे
किया है वो प्रेक्टिकल कैसे हुआ है वो बैठ कर कर के समझाते हैं तो ये देखो अभी
प्रेक्टिकल। तो बाप ने कैसा काम किया है ये कैसा काम हुआ है जो बैठ कर करके बाप अभी
समझाए रहे हैं। तो इसमें भी अभी कोई मूंझने की तो बात नहीं है न , कैसे आया तन में
? क्या हुआ तो सम्ह्झाते है अभी इसी तन को भी कहा देखो बैल बनाया कहाँ कुछ किया,
कहाँ कुछ किया , कहाँ कुछ किया देखो ।तो वो क्यूंकि उनको कहा न गौशाला खोली है तो
गौशाला में तो बैल भी चाहिए गैया भी चाहिए न तो फिर ये बैल और गैय्याँ और ये सब
चीजें रख दी हैं। परन्तु कोई गौशाला कोई इन्हुमन गौशाला थोड़ी खोली है। ये गौशाला
जिनमें मातें कन्याएं, और पुरुष सब हैं तो ये सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं
मैंने कैसे प्रेक्टिकल काम किया है और उस प्रेक्टिकल काम का कैसे शास्त्र कैसे
ग्रन्थ उसमे कैसे बातें लगाईं हैं, चित्रों में कैसे बातें लगाईं हैं तो फरक पड गया
है तो इसी फरक् के कारण मूंझ गए हैं। तो बाप आकर कर के कहते है तो फिर इसी मूंझी
बात को मैं फिर सुलझाता हूँ । तुम मूंझ जाते हो मैं आकर के हूँ।