मम्मा मुरली मधुबन
गति और सद्गति
ओम शांति ।
.....करने वाला... वह तो हो ही नहीं सकता है, इसीलिए यह सभी चीजें बहुत समझने की बात है। सद्गति, दुर्गति मनुष्य के लिए करने वाला अलग। सद्गति देवताओं को, तो देवताएं किस को सद्गति दे नहीं सकते हैं, भले सद्गति वाले हैं परन्तु वो दे तो नहीं सकेंगे न! वो तो सद्गति को पा रहें हैं, भोग रहे हैं जीवनमुक्त में हैं, लेकिन वो दे नहीं सकते हैं, देंगे तो परमपिता परमात्मा, जो दुर्गति सद्गति से अलग है। तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए कोई देवताएं भी किस को सद्गति दे नहीं सकते हैं तो मनुष्य की क्या बात रही, सो भी आसुरी संप्रदाय। आज के संसार के मनुष्य, जिसको कहा ही जाता है संसार को कलह्युगी, तमोप्रधान, दुर्गति वाला संसार। उसी संसार के मनुष्य कैसे दे सकते हैं, नहीं दे सकते ना... जभी सतयुगी मनुष्य, देवताएं, सद्गति पाए हुए, वह भी किस को सद्गति नहीं दे सकते हैं, यानी न तो उस समय टाइम है न किसको जरूरत है सद्गति देने की क्योंकि कोई दुर्गति वाले है ही नहीं और देने का मनुष्य का है ही नहीं इसीलिए वह भी नहीं दे सकते हैं तो फिर आज की दुर्गति दुनिया वाले कैसे किस को सद्गति देने की दावा कर सकते हैं, क्योंकि सद्गति के लिए तो फिर आदि मध्य अंत का सब का नॉलेज चाहिए ना। तो वह नॉलेज अभी मिलती है परमात्मा के द्वारा और हम ब्रहमण जानते हैं कि अभी बाप के द्वारा समझा है, तो हम ब्राम्हण किसको गति सद्गति दे सकते हैं परंतु हम कोई देने वाले अभी बने हैं जबकि बाप के द्वारा, तो दाता तो एक हो गया ना। हम भी तो उनके द्वारा पाया है, पाकर के, नॉलेज को समझ कर के फिर दूसरों को गति सद्गति दिलवाने का मार्ग बता सकते हैं। लेकिन हमको बताने वाला भी वो रहा ना, तो मुख्य तो वही हो गया ना। हम भी तो अनजान में थे ना, ऐसे तो कहेंगे ना, हम भी तो शूद्र से ब्राम्हण बने हैं ना, तो यह सभी चीजों को समझना है, इसीलिए खाली अंधविश्वास में तो...... विश्वास रखकर करके चलने की बात नहीं है। यह बुद्धि, विवेक से, अनुभव से समझने की बातें हैं इसीलिए अपना है अनुभव और विवेक के आधार पर। बाकी ऐसे नहीं शत शत शत शत । तो अभी यह तो समझा है, की ऐसा बाप अभी बेहद का मिला है तो ऐसे बाप से अभी पूरा पूरा वर्सा पाने का.. इसका अविनाशी वर्सा, अविनाशी बाप से अविनाशी वर्सा, यानी जिसमें अल्पकाल का कोई यानी दुख की प्राप्ति नहीं है। सुख जन्मते, शरीर में होते, शरीर छोड़ते सदा सुख। ऐसे सुख की प्राप्ति वाला जो वर्सा है ना उसका पाने का पूरा पूरा अपना पुरुषार्थ रखते रहना। तो अभी बुद्धि में पुरुषार्थ और प्रालब्ध यह सभी। तदबीर और तकदीर, तदबीर समझते हो? तदबीर का मतलब है, पुरुषार्थ, तकदीर का मतलब है प्रालब्ध। तो अभी दोनों बुद्धि में अच्छी तरह से हैं, एम तो मिली हुई है क्लियर। अभी उस पर काम करना तो अपना काम होगा ना अभी। ऐसे तो नहीं हमारा काम भी वह करें, तो हम ऐसे ही बन जाएं हैं? नहीं, हमको करना पड़ेगा और करना भी हर एक को अपना अपना है पड़ेगा। जो करेगा सो पाएगा, इसीलिए गीता में भी है कि जीवात्मा अपना शत्रु अपना मित्र, जैसे करेगा सो पाएंगे, ना करेंगे ना पाएंगे तो मित्र और शत्रु हुआ न, अभी क्या बनना है? शत्रु तो नहीं बनना है ना। शत्रु तो बने थे, देखो शत्रु बने ना अपने, जो दुख और अशांति भोगी। अभी बाप कहते हैं अपने मित्र बनो, तो अपने साथ भी मित्र बनने का बाप बैठ कर करके सिखलाते हैं इसीलिए कहते हैं सच्ची मित्रता भी कैसे करनी होती है वह भी मैं सिखाता हूं, नहीं तो तब तलक एक दो के ऊपर कोई मित्रता जानते ही नहीं है। वह तो समझते हैं, स्त्री समझती है कि हां पति की हम बड़े अच्छे हैं, उनके आज्ञा में.... फलाने फलाने। पति भी समझ लेते हैं हम बाल बच्चों का, स्त्री का सबका अच्छा करते हैं। ये फिर विकारों से हानि करते हैं । यह कोई जानते थोड़ी है इसकी हानि हो रही है। इस हानि को कोई महसूस नहीं करते हैं और जानते ही नहीं है। नहीं तो देखो यह भी पति पत्नी के विकार का संबंध, विकारों से एक दो का हानि करते हैं। एक दो का गला काटते हैं जैसे की एक दो का मानो हानि करते हैं ना, लेकिन इस हानि का किसको पता थोड़ी है की यह हानी है, यह हम नुकसान करते हैं। एक दो का यह जीवघात करते हैं जैसे की। तो अभी तो पता रहा हैं ना यह घातक है । हम आत्मा की हानि यहां से होती है तो अभी इस हानि से बाप ने आकर करके बचाया है। इस महापाप करने से अभी बाप ने आकर करके बचाया है, तो अभी पुण्य आत्मा बनना है ना। पुण्य आत्मा बनेंगे तो फिर तभी तो पुण्य आत्माओं की प्रालब्ध सदा सुख की पाएंगे। पुण्य आत्मा एक ही देवताओं को कह सकते हैं। महान आत्मा भी एक देवताओं को कह सकते हैं। इस टाइम कोई महान आत्मा है ही नहीं। नाम तो बहुत रखाते हैं महात्मा, साधु फलाने इधर। परंतु महान आत्मा देवताएं हैं, जिनकी आत्माएं कंप्लीट प्यूरीफाइड थी। उन्ही को हक है महान आत्मा जिनके शरीर भी पवित्र, आत्मा भी पवित्र और तभी तो प्रारब्ध भोगते थे ना, पवित्रता के बल से तो उन्हों को कह सकते हैं, तो महान आत्मा अगर कहैं तो उन्हों को। बाकी कोई मनुष्य को इस दुनिया में अभी कह नहीं सकते हैं। महान माना जिसके ऊपर फिर कोई आत्मा महान हो ही ना। देवताओं के ऊपर कोई महान आत्मा है नहीं। देवताओं के ऊपर तो वो परमात्मा तो वह तो परमात्मा है ना, बाकी आत्माओं में महान तो वह है, देवताएं, जिसके ऊपर फिर कोई मनुष्य आत्मा महान नहीं है जिसकी ऊपर कोई मनुष्य नहीं है, तो मनुष्य की कंप्लीट स्टेटस और कंप्लीट स्टेज जो है, वह देवता। तो कंप्लीट को ही महान कहेंगे ना। तो यह अभी बाप बैठकर के समझाते हैं बच्चे अभी मैं तुमको अभी ऐसा बनाता हूं, ऊंचे में ऊंचा मनुष्य जिसके ऊपर फिर कोई मनुष्य भी ना हो। तो मैं तुमको ऐसा मनुष्य बनाता हूं ऊंचे में ऊंचा, क्योंकि मैं ऊंचे में ऊंचा हूं ना। तो जैसा बाप वैसे बच्चे। बच्चों को भी तो ऊंचे में ऊंचा बच्चा बनाएगा ना ऐसा । तभी तो बाप की महिमा है ना ऊंचे ते ऊंचा भगवन यानी की हम सब को ऊँच में ऊँच बनाता है बच्चों को। तो ऐसे बाप की स्टेटस, ऐसा दूसरा तो बाप, लौकिक करके किसको इंजीनियर बनाएगा, बैरिस्टर बच्चों को बनाएगा, डॉक्टर बनाएगा, बस न और कोई स्टेटस बस ना, इतना न। अभी यह तो अब बाप हमको क्या, राजाओं के राजा सो भी सतयुगी महाराजा जिनके ऊपर कोई है नहीं। और जहां कोई दुख है ही नहीं। इधर तो बनाएंगे तो कोई डॉक्टर बनाएगा बच्चे को, परंतु क्या फिर डॉक्टर को नही बेचारे को कुछ हो जाएगा तो बाप भी क्या करेगा या वह डॉक्टर भी क्या करेगा? दूसरों का इलाज करेगा, लेकिन अपना कोई कर्म की ऐसी है तो फिर क्या करेंगे? इलाज करते भी कोई बात ऐसी हो जाएगी, तो कहेंगे न की तकदीर, किस्मत तो फिर किस्मत वाली बात आ गई ना। तो वह किस्मत कहां से बनी ऐसी. तो यह सभी चीजें बैठकर करके बाप समझाते हैं बच्चे वो बनाने की फुल पावर जो है न वह मैं देता हूं और समझाता हूं कि किस तरह से कैसी बनाओ तो अभी जभी वह बनाने की तरकीब, बनाने का पूरा लक्ष्य का पता चला है तो उसको पकड़ते और अपना पुरुषार्थ रखते रहना। अच्छा आज तो छुट्टी का दिन है ना। अभी बेंगलुरु में आए, देखो कितना हो गया.. ढाई तीन पोना तीन मास कुछ हो गए हैं। अच्छा तो अभी इतना समय रहे, अभी इतना समय में आप लोगों का खजाना, पॉकेट, यह बुद्धि रूपी पॉकेट तो भरा अभी.... तो गाय होती है ना गाय देखी वह गऊ वह घास खा लेती है। एक बार तो खा लेती है, पीछे बैठकर करके उसको फिर उगारती है। उगारने का कुछ आप लोग अपनी भाषा में कहते होंगे कुछ तो उसको फिर उगारती है। तो आप लोगों ने अभी ढाई मास में जितना भी घास तो खा लिया ज्ञान का, अभी इसको उगारना है। तो इससे फिर ताकत बनेगी फिर दूध बनेगा, तो गाय में दूध बनता है ना, आप तो दूध पीते हो ना, हाँ.. तो अभी ये तुम बनाएंगे हर एक इंडिविजुअली। अपने में इसको जितना मंथन करेंगे इसको बैठकर के एकांत में उसको फिर इसको प्रैक्टिकल में लाना, तो जितना होगा फिर आप लोग भी हां दूसरे को दूध देंगे, कोई एक दो की हानि नहीं, यानि सुख देंगे, सुख लेंगे। खुद भी सुखी रहेंगे और दूसरों को भी सुख देंगे, शांति देंगे और सुख देंगे। और तो आपका कोई काम रहा ही नहीं। किसको दुख देने का तो अभी रहा ही नहीं। सुख और शांति देना’ सुख और शांति में रहना तो यह है फिर। लोग कहेंगे कि हाँ फिर गौ दूध देती है। इसीलिए बाबा कहते हैं ना जो दूध देने वाली अच्छी कोई गाउ होती है, आध सेर भी देती है दस सेर भी देती है। कोई गौ होगी तो एक सेर भी देंगी वो भी देंगी। वो भी डिफरेंट होता है न। तो देखो आप लोगों को कौन सी गउ बननी चाहिए। 10 सेर वाली हाँ। तो ऐसा गौ बनना है जो अच्छा दूध दे, भला दूध दे। जो जैसे-जैसे होंगी गौ तो उसको कहेंगे महारथी गौ और जो कम देंगी उसको क्या कहेंगे, घोड़े सवार, नंबर नीचे नीचे। इसीलिए अब बनना है तो अच्छी भटानी गौ जो अच्छी तरह से, खुद भी हरी-भरी रहे दूसरों को भी हरा भरा करें। तो ऐसे हरा भरा बनाने का अपना पुरुषार्थ अच्छी तरह से रखना और ऐसी सर्विस में लगे रहने का प्रयत्न करना। अभी देखो बेंगलुरु को अभी तो एक कोने में हो जैसे की । अभी बेंगलुरु को भी पता नहीं है, कभी-कभी ऐसे भी आते हैं बेचारे उन्हों को जैसे मालूम ही नहीं है कि कोई ब्रह्माकुमारी आश्रम है तो अभी बेंगलुरु में ही वह बात फैली नहीं है। तो अभी आप लोगों को ऐसी सर्विस करनी हैं कि कम से कम बेंगलुरु निवासियों को इन चीज का अच्छी तरह से परिचय दे देना है, फिर भले कोई गाली देगा, कोई इंसल्ट करेगा, कोई कुछ कहेगा तो उसमें देह अभिमान नहीं रखने का है। यह तो थोड़ा सुनना सहना पड़ता है परंतु हां फिर भी देख करके, ऐसे नहीं हैं कि..... कहते हैं कि पात्र को देना है जो पात्र नहीं है... यह गीता में भी है कि मेरा ज्ञान पात्र को देना। पात्र माना जो लायक हो, जो सुने जिसको जिज्ञासा हो, जिसको जिज्ञासा ना हो, जबरदस्ती देंगे तो जबरदस्ती देने वाले के ऊपर भी बड़ा दोष चढ़ता है इसीलिए कहते हैं मेरे ज्ञान का ऐसा काम ना कर जो तिरस्कार करें, कराओ मत। हाँ कोई करते हो और अनायास कुछ हो जाता है वह बात एक अलग है, लेकिन ऐसा नहीं है कि जानबूझ ऐसे को दो, ऐसे से डिस्कस करो या कुछ जिसमें फाल्ट हो, तुम्हारा भी समय जाए, ऐसा नहीं। बाकी हां कोशिश रखनी है कि अपना फर्ज है चीज जब हमारे पास है तो दूसरों को मालूम हो। नहीं तो टाइम आएगा ऐसा जो कहेंगे आप लोगों को, अरे! आप लोगों को मालूम था, तो आप तो हमारे देश के हो, हमारे जात के हो, आप लोगों ने हमें क्यों नहीं बताया कि परमात्मा आया है और यह विनाश होने का है। यह सब बातें ऐसी हैं आप लोगों ने हमें क्यों नहीं सूचना दी पहले से। तो फिर वो दोष लगा देंगे। वह कथा भी है एक ऋषि का तो सबको निमंत्रण मिला था वो एक भागवत में है, फिर एक ऋषि को पता नहीं चला था, पीछे जब ये हुआ तब उसने कहा क्यों हमें निमंत्रण नहीं मिला, हमें नहीं बुलाया गया। तो ऐसा ना हो ना कि पीछे कोई उलाहना मिले। फिर ऐसा कहेगा कि क्यों हमें पता नहीं दिया कि परमात्मा आया है और अभी यह टाइम विनाश का है। तो जब भी टाइम आएगा तो फिर दुनिया की आंख खुलेगी। लोग मानेंगे कहेंगे यह तो आप पहले से ही कहते थे। यह तो बात अभी देखने में आ रही है तो पीछे अटेंशन जाएगा, जब थोड़ा हाहाकार का थोड़ा समय भी नजदीक पड़ेगा ना, तो फिर लोगों की जरा आंख नजर में आएंगे ज्ञान, परंतु उस टाइम कुछ कर नहीं पा सकेंगे क्योंकि नाजुक समय आ करके पड़ेगा। उसी टाइम किसी को आ करके सुनना करना बड़ा मुश्किल क्योंकि जब भी कोई हाल देखो अभी कोई इन चीजों पर घमासान हुआ फिर मारामारी फिर कौन कोई घर से निकले जभी पाकिस्तान और इसका हुआ था तो कोई घर से निकल सकते थे? जब कोई ऐसी हालत होती है ना, तो बड़ा मुश्किल हो जाता है। तो यह भी सभी चीजें हैं तो जिस टाइम कुछ होगा उस टाइम तो कुछ कर नहीं सकेंगे। करना है पहले करना है, इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे यही टाइम है आप लोगों का जो भी तरह से इस ज्ञान को ले सकते हो कर सकते हो। देखो हम भी इधर बेंगलुरु तक पहुंच सकते हैं नहीं तो ऐसा समय आएगा हम तो क्या, परंतु हम तो क्या मुरली भी नहीं आ सकेंगे पोस्ट भी बंद हो जाएगी। कोई टाइम ऐसे भी नाजुक पड़ जाते हैं तो रास्ते रेलवे पोस्ट सब। तो यह भी फिर उसका भी ना मिलेगा मुरली तो ऐसे नहीं कि अवस्था ही खराब हो जाएगा। अभी यह नहीं , ऐसी नहीं कच्ची अवस्था। इतनी मजबूत रखनी है कि कैसे भी समय आए जो धारणा बनाई है वह धारणा बनी रहे तो यह सभी आप को इन एडवांस में यह बातें समझाई जाती हैं कि ऐसे ऐसे समय आने के हैं कि आप कभी आप लोगों को मुरली नहीं मिलेगी कितने कितने रोज और हां हां यह सब होंगा तो आप लोगों को बताते हैं। ऐसे नहीं है कि मुरली ना मिले, आप क्लास में ना आ सको, कोई कारणवस तो ऐसी अवस्था एकदम। वो जो है सोडा वाटर, वो बतलाया ना सोडा वाटर, का सोडा चढ़ती है तो फां...हा फिर फ़िस्स होती है तो एकदम ठंडी हो जाती है । एसा नहीं होना चाहिए, नहीं तो उसको कहेंगे ये तो सोडा वाटर वाला जोश था एकदम, शमशानी वैराग वो मसानी में जाते हैं न, मसाना समझते हैं न? शमशान में, जभी शमशान में जाते हैं तो थोड़ा वैराग आता है, की भाई क्या हुआ कैसे मर गया क्या हुआ थोडा सा वैराग अभी कुछ करेंगे हम। कुछ मसाने से बाहर आया ना, वह तो बस फिर वहां की वहां रही फिर खत्म हो जाती है। तो ऐसा वैराग नहीं चाहिए थोड़े समय के लिए और फिर सोडा वाटर हो जाए। नहीं, इसको स्थाई बनाना है जो कुछ करने का है करके रहना है। तो ऐसी ऐसी बातों को अच्छी तरह से रखते अपना पुरुषार्थ अच्छा बनाने का यह अपना ध्यान रखना है। और ऐसे पुरुषार्थ करने वाले ही अपना कुछ अच्छा बना सकेंगे, पा सकेंगे और अपने लिए करने का है। बाकी तो आप लोगों को बाप जो अभी टीचर है, सतगुरु है, अभी बाप है उनकी तो जितनी फर्ज अदाई है और पार्ट है वह तो अपना देता ही रहेगा। उसको बजाना ही है, उनको तो अपना कंप्लीट देकर के ही जाना है। परंतु उसका भी लिमिट है, ऐसे नहीं जहां हम भी ढीले ढीले चलेंगे तो हमारे लिए बैठ जाएगा, हमारे लिए थोड़ी बैठेगा, उसका टाइम है। वह उतना टाइम अपना सर्विस कर कर करके अपना काम पूरा... उसी के अंदर हमको बनना है। बाकी ऐसे नहीं हम ढीले ढीले चलेंगे तो वह बैठ जाएगा हमारे लिए। गाडी थोड़ी हमारे लिए रुकेंगी, हमको तो गाड़ी के टाइम पे पहुंचना है न। गाड़ी हमारे लिए थोड़ी रुकेंगी की आए नहीं है पैसेंजर तो हम बैठ जाए, नहीं उसको तो टाइम पर जाना ही है। तो यह भी ऐसे ही है तो हमको टाइम का ख्याल रखना है कि भाई गाड़ी का यह टाइम है हमको पहुंचना है, कि हां फिर गाड़ी भी हमारा ख्याल रखेंगी, की हमको रखना है ना जिनको चढ़ना है। तो यह भी हम गाड़ी में बैठते हैं ना तो अपना ख्याल रखना है। ऐसे ना हो कि कहीं गाड़ी छूट जाए। तो एक ख्याल रखने का है। देखो यह भी गाड़ी कहां चलती है यह मुक्ति जीवनमुक्ति धाम। यात्रा की गाड़ी निकालते हैं ना ट्रेन निकलती है यात्रा की तो यह अभी हमारी बाबा ने सच्ची यात्रा की गाड़ी निकाली है। तो यह है यात्रा की गाड़ी जिसमें हम बैठे हैं हां। तो टिकट तो ले लेनी है, नहीं तो बुक हो जाएंगी, तो बुकिंग ऑफिस ही बंद हो जाएंगी तो कहेंगे अभी to-late। तो ऐसे भी ना हो जाए इसीलिए बाप कहते हैं अपना उसमें बैठ तो जाओ, पीछे अपनी अपनी ताकत बनाओ। कोई फर्स्ट क्लास पैसेंजर, कोई थर्ड क्लास पैसेंजर, कोई एयर कंडीशन, कोई कैसा तो जितना जितना धनवान होगा ऐसा ऐसा करेगा। तो इस ज्ञान में भी जितना जितना होगा ऐसे ऐसे टिकट लेंगा। तो अभी अपने को साहूकार बनाओ और एयर कंडीशन, फलाने जो बड़े-बड़े टिकट हो वह ले सको। तो अभी ऐसा, परंतु ऐसे भी नहीं है कि ले तो रहे हैं एयर कंडीशन नहीं तो फिर गाड़ी में भी न चढ़े, गाडी में तो चढ़े पहुँच तो जाएंगे न, चल तो जाएंगे ना। पीछे करके, उधर पीछे करेंगे तो पीछे नंबर में आ जाएंगे जो बड़े-बड़े उतरेंगे तो उसको जरा सत्कार मिलेंगे अच्छी तरह से। फर्क तो पड़ेगा परंतु फिर भी सतयुग की उसमे तो चले जाएंगे ना, इसीलिए तो भी ऐसा भी कोई ख्याल ना करें चलो थोड़ा ही सही इसमें भी राजी हो जाए, न कोशिश कभी बड़ी करनी चाहिए तो यह सब चीज है, इसीलिए ऐसा पुरुषार्थ अपना करते और अपने को आगे बढ़ाने का अच्छा-अच्छा रखते रहना। बाकी बैंगलोर निवासी तो बहुत दिखाई पड़ा। रिजल्ट भी बतलाया था ना अच्छे पुरुषार्थी हैं परंतु अभी थोड़ा.... बतलाया ना वह एकदम पूरा जोश और होश वाला काम अभी चलाना चाहिए। अभी अच्छी तरह से सर्विस करने की है क्योंकि हम तो इतनी अपनी भाषा नहीं समझा सकते हैं। आप लोग तो भाषा जानते हो, तो यहां माताएं भी हैं अच्छी-अच्छी, उन्हों को भी थोड़ा खड़ा होना चाहिए और गोप भी हो मेजोरिटी यहां गोपों की है माताएं शायद भाषा के कारण इतनी आगे नहीं बढ़ती हैं, परंतु हां थोड़े खड़े हो जाएंगे भाषा समझाने वाले तो फिर एक दो में आप लोग हेल्प कर सकेंगे और अपने जो है जात के, उन्हीं की आप सेवा करेंगे। तो सच्ची सेवा है ना, तो अभी आप लोग को रखना चाहिए जब जवाबदारी अपने पर, रिस्पांसिबिलिटी कि जो चीज हमारे को मिली है, हम अपने देशवासियों को अथवा उनको कहते हैं ना चैरिटी बिगिंस एट होम। तो अभी पहले अपने जो है उन्हों को देना और फिर आगे भी बढ़ना, तो ऐसा ऐसा कोशिश करो। और अपना इसमें तो और कुछ नहीं है काम अच्छा। अब 8 घंटा अपने सर्विस में देते हो लौकिक। 24 घंटे हैं सारे दिन में तो अभी 16 घंटे रह जाते हैं उसमें भी 8 घंटे चलो नींद करो, आराम करो, दूसरा करो जो कुछ करना है सोलह घंटा छोड़ देते हैं, 8 घंटा सर्विस का, 8 घंटे सोया, तो भी 8 घंटे बचेंगे, अच्छा 8 घंटे नहीं तो भी चलो 4 घंटे तो दो, इतना तो भला करो। तो 4 घंटे में भी कितना काम हो सकता है। कहते हैं घड़ी, आधी घड़ी, आधी की पुनः आधी इतना भी काम दो तो भी बहुत काम हो सकता है। समझा। तो ऐसा कुछ करो और थोड़ा बहुत अपना तो इससे देखो बल मिलेगा। यह जीवन भी अच्छी रहेगी और बाकी शरीर निर्वाह का काम तो करना ही है। यह तो आपको नहीं कहते कि सन्यास हो कि मुआफिक की छोड़ो, बच्चे। रचना रची है उनको संभालना है, अपना शरीर भी निर्वाह करना है। कर्मयोगी है ना, कर्म तो करना ही है पेट के लिए, रोटी के लिए तो काम करना ही है तो यह तो बात कोई कहते भी नहीं है कि छोड़ो। करो, परंतु टाइम जाया बहुत जाता है। अगर कोई अच्छा टाइम को चलाने वाला हो तो बहुत टाइम निकाल सकते हैं, तो इसी तरीके से अपना ख्याल रखते और अपना पुरुषार्थ रखते रहो और इसी में अपना बनाना है, बाकी तो देखो बहुत झंझटों में, घर गृहस्ती सिर्फ इतना नहीं है। बहुत झंझटों में मनुष्य अपना टाइम वेस्ट करते हैं, वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ एनर्जी और वेस्ट ऑफ मनी। अभी तो बाबा ने आकर करके सब वेस्टेज से बचाया है, तो अभी देखो कितने आप लोगों के फालतू खर्च होते होंगे सिगरेट, पिक्चर, फलाना, फलाना कितने हैं, खाना-पीना, फालतू इधर। अभी देखो आप लोगों को अब खर्चे का बचाव् मिला है। इसमें अपना जीवन भी अच्छा जिस्मानी भी रुहानी भी और सब में फायदे ही फायदे हैं, तो यह तो फायदे की नॉलेज है ना किस को नुकसान पड़ा है क्या कुछ? नहीं, अगर कुछ कोई बीमार पड़ा होगा, कुछ हुआ होगा तो भी अपने कर्मों का, उसमें कोई ज्ञान का कसूर थोड़े ही है, वह तो होता ही रहते हैं जिसका अपने कर्म का, तो भी ज्ञान से तो और बल मिलता है शांति मिलती है। कोई भी ऐसी बात आती है तो बहुत मन को शांति रहती है। और कोई भी उसमें और ही सूली से काँटा समझना चाहिए तो यह तो कोई नुकसान की तो बात नहीं है फायदा ही फायदा है। तो ऐसी बातों को, सभी बातों को, सो भी कंप्लीट फायदा मनुष्य के लिए जो है वह मिलता है, उसको लेने का पूरा पुरुषार्थ रखकर करके, अपने को आगे बढ़ाओ ठीक है ना। अच्छा अब बजाओ गीत। अभी गीत तो बजा ही नहीं, हमने ऐसे ही शुरु कर दिया, (किसी भाई ने कहा) वो बहन आये हैं (मम्मा ने कहा) इसको बताना है कुछ? हां बताना है (मम्मा ने कहा ) तो आओ, हां इधर इधर आओ ऊपर, तो आओ... यह तो हमारा रोज फ्लावर... देखो यह आप लोगों की टीचर.. इंग्लिश में.. समझाने वाले हैं और अच्छी हैं इसीलिए नहीं तो इसको लंडन तैयारी कर रहे हैं भेजने के लिए परन्तु कहते हैं फिर बेंगलोर वाले कहते हैं की बेंगलोर में एक तो एक तो भाषा की पहले ही है फिर भी ये ये इंग्लिश वगेरह समझा सकती हैं तो अभी फिलहाल रोंक रखा परंतु कभी फिर भेज देंगे इसके लिए लन्दन से बुलावा आ रहा है कि कोई भेजो, कोई भेजो कोई उधर है दो-चार जो अच्छी-अच्छी समझे हुए हैं, परंतु वो समझते हैं कि थोड़ा यह की कुछ अच्छी आएगी तो हम लोगों को भी रहेंगा, दूसरों को भी करेंगी तो बुला रहे हैं। परंतु देखेंगे तब तलक आप लोग रेडी हो जाएं फिर ये इंग्लिश भी चली जाएंगी फिर आप कैसा होंगा ? इंग्लिश, तमिल, तेलुगू, कनाडा, यह सब तैयार हो जाओ और माताएं वाताए भी, यह हमारी लक्ष्मी, अरे इसको तो सीखते अभी कितने साल हो जाएंगे इनमें से कोई तैयार हो जाए इसमें से। दादा है दादा भी करेगा परंतु यह तो जानते हैं ना जो जानने वाले हैं उनको इजि है नॉलेज को धारण करके सुनाना है तो इन लोगों को खड़ा होना चाहिए। अभी यह अच्छी तरह से हो जाए फिर यहां वालों को हम दूसरी जगह भेज देंगे फिर यहाँ वाले यहाँ का सर्विस के सेंटर संभालो। ऐसे खड़े हो जाओ अपनी माताओं वाताओं को लाओ मैदान पर। देखो इंद्रा नेहरू वो विजयलक्ष्मी देखो है ना वो नेहरु की फैमिली के, उनकी ओरतें भी बहुत अपना सर्विस में, अपने देश सेवा में हिरी हुई है ना तो उसको बच्चे नहीं थे क्या, इन्द्रा नेहरु को बछ्हे भी हैं दो, फिर बच्चे हैं तो बच्चे होते क्या देश की सेवा नहीं करती है? ऐसे थोड़ी है दो बच्चों के कारण, खाली हम अपनी जिंदगी, वो कहेंगी दो बच्चों में अपनी जिंदगी दे उससे हम लाखों की सेवा करें वह अच्छा, वो बच्चे को तो चलो बोर्डिंग में रखाया किसी तरीके से हो सकता है उनका काम भी चलाएं और ऐसा नहीं है उनको कहते हैं कि बच्चे छोड़ो, यह तो बात नहीं है ना, परंतु सारी जिंदगी उसमें ही बस खत्म करना, वह थोड़ी बात है। कुछ जिंदगी को आगे भी करना चाहिए, अपनी सेवा में सफल करनी चाहिए जीवन। यह भी सेवा है ना। देश की सेवा है, तभी तो उन्होंने तन, मन, धन, देखो सैक्रिफाइस कर करके देश की सेवा करी। वो हद की सेवा यह तो और बड़ी सेवा है उससे, उससे तो कुछ नहीं हुआ। बिचारा गांधीजी रामराज्य रामराज्य कहते-कहते बेचारा नेहरू भी गए, गांधी भी गए वह तो राम राज्य नहीं और रावण राज्य और ही रावण राज्य बनता रहा अभी भ्रष्टाचार फलाना फलाना कितना माथा खोटी कर रहे हैं। तो इसको भी सेवा समझते हैं परन्तु इसका कोई फल नहीं निकल रहा है। अभी यह तो फल मिलने वाली है, इसका तो फल प्रत्यक्ष है। तो बाप कहते हैं कि ऐसी सेवा करने के लिए तो माताओं को आना चाहिए मैदान पर, गोपों को आना चाहिए, उसमें तो बड़ी उमंग से। तो अभी ऐसी अपना पुरुषार्थ अच्छा रखते चलते रहो, अच्छा शाबाश। बोलो.. इंग्लिश बोलेंगे ना? हाँ चलो.... We from Bangalore centre deeply dipress to express our heart pulse separation of our beloved mamaji.... after being in our company for over 40 days we honestly request our gratitude towards exposition of godly knowledge which we will remember forever and put in practice also
अच्छा यह है.... प्रत्यंगना कि हम रहेंगे। अच्छा है, यह भी रखना अपने पास हर एक को, यह भी हर एक के लिए है और यह तो जो करता है सो पाता है। कोई करे प्रत्यंगना कहे या ना कहे। कहने की भी बात नहीं है प्रैक्टिकल करने की बात है और जो करेगा सो पाएंगे तो कर कर कर के रहने का है और कर कर करके अपना पाने का है। हमको भी तो प्रैक्टिकल पाना है हम ही मांगते हैं हमको मिले न प्रैक्टिकल, तो हम भी करें ना प्रैक्टिकल, बाकी कहेंगे खाली कहते रहें और मिले हमको प्रैक्टिकल, ऐसा कोई होंगा? मांगते प्रैक्टिकल है कि हमारे जीवन में सुख शांति चाहिए तो हम करें भी जीवन से ना प्रैक्टिकल। बाकी खाली कहते रहे कि हां, महिमा करते रहे भगवान की,. कीर्तन गाते रहेंगे., वह करते रहेंगे तो खाली कहने से क्या हो जाएगा। हम भी प्रैक्टिकल करें, हम भी करें तो हमको भी प्रैक्टिकल मिलेगा तो ऐसी बातें हैं ना। तो अभी बाप से पूरा पूरा वफादार, वफादार समझते हो ना? हम उनके कहे प्रमाण जो बाप कहते हैं एसा चलना आज्ञाकारी, वफादार, फरमानबरदार, उससे सच्चा रहना वफादार का मतलब उनसे सच्चा रहना बाप से। और उसके फरमान पर रहना और अपने लिए ही है, उससे सच्चा रहना माना अपने आपसे सच्चा रहना, उसे झूठा बन्ना अपने से झूठा बना तो उनसे झूठा बैठ कर क्या करेंगे? वह तो धर्मराज के डंडे में अच्छी तरह से समझ ही जाएँगे। हां तो इसलिए बाप तो कहते हैं मेरे से झूठा बन करके तुम्हारा क्या बनेगा, अपने लिए नुकसान करेंगे, मेरे लिए तो कोई नुकसान नहीं पड़ेगा ना, इसलिए अपना नुकसान ना करना है, ऐसा अपना ध्यान रख कर के, अपना पुरुषार्थ करना है । अच्छा आज छुट्टी तो नहीं होगी और स्टेशन के ऊपर भी आप लोगों को बता देते हैं, बहुत तकलीफ नहीं लियो। हम तो यहां मिले अभी स्टेशन पर दो-चार मिनट और मिलेंगे, परंतु बिचारे बहुत भागदौड़ करेंगे, तकलीफ करेंगे, खर्चा करेंगे, यह करेंगे, कोई नहीं, कभी भी बाबा मम्मा बहुत शो पसंद नहीं करते हैं, समझते हैं? (भाई ने कहा) ... बोले थे पानी रखने के लिए आपके लिए, मम्मा के लिए पीने के लिए। (मम्मा ने कहा ) हां वह तो बात है, परंतु हम एक बात बतलाते हैं की कभी भी, देखो हम आते हैं फिर पुणे जाते हैं ना उसके लिए पहले लिख दिया कोई फूल नहीं, कोई घमाशान नहीं। कोई स्टेशन पर तकलीफ नहीं हम घर में आकर पहुचेंगे, अपना घर है न हाँ ? तो कभी माँ बाप बच्चों के पास आते हैं कभी बच्चे माँ बाप के पास आते हैं, अभी तो अपने घर ही है ना। तो कभी मम्मा बाबा जाते हैं बच्चों के पास, कभी फिर बच्चे माउंट आबू पर माँ बाप के पास जाते हैं। तो बच्चों का आना, बच्चों के पास जाना इसमें तो कोई शो की बात नहीं है और ही हम हैं इनकॉग्निटो एकदम गुप्त, अपना कोई बाहर का शो नहीं, वो महात्मा जी जाता है या कोई देवी जी जाती हैं या कोई माताजी जाती है तो हार पहनाओ यह करो वह करो, कोई बाहर का शो नहीं, इनकॉग्निटो एकदम । हम हैं ही गुप्त, बाप भी हमारा गुप्त, हम बच्चे भी उनके गुप्त तो हमारा काम भी गुप्त देखो भगवान् का कितना गुप्त काम है तो हम इनकॉग्निटो है ना, इसलिए इन्कोग्निटो वॉरियर्स। तो अपना कोई इस में अहंकार, अभिमान तो रखने की है नहीं बात, शो रहे हैं। यह भी कभी-कभी थोड़ा सर्विस के लिए भाई फंक्शन, फलाने इकट्ठे करना। अभी देखो यह मम्मा आई तो पहले दिन इतना भीड़ रख दिया, यदि इतना बेठने वेठने का नहीं परन्तु हाँ सर्विस के लिए, किसको बुलाया किया, सर्विस का नहीं तो अपने लिए हमारा कोई स्वमान हो या इन बातों का नही,.. ये सब सर्विस के लिए दूसरों को कौन सा हम एडवांटेज लेवें, किस तरह से दूसरों को लगाएं की यह चीज क्या है। तो ऐसे ऐसे मौके का फायदा लेते है की उन्हों की बुद्धि में कुछ बैठे दुसरे के फायदे के लिए, दूसरों का जीवन बनाने के लिए, बाकि इसमें कोई अपने स्वमान की, इनकी ये तो बातें है ही नहीं, इसीलिए अपना सब बातों का हम क्योंकि निरहंकारी बाप है ना तो हम बच्चे भी निरहंकारी। तो निरहंकारी और फिर निर्वेरी, किसी से बैर नहीं। तो हमको भी ऐसा ही निर्वेरी, निर्भय। निर्भय, कोई भय नहीं, हम किसी से भय खाने वाले नहीं हैं। अरे पांच विकारों के ऊपर ही हम डालने वाले हैं बाकी भय किस से खाने का है। तो नहीं, हमको अपना रहना चाहिए, अपना विश्वास, अपने पर फेथ, दृढ़ता रहनी चाहिए हम किस के संतान हैं, कौन हैं। तो ऐसे जो मजबूत है ना, जिसके पांव अंगद के माफिक मजबूत हैं, ऐसे नहीं ऐसे हिले, वह अंगद का मिसाल है ना, अंगद ने कहा कथा है शास्त्र में तो उसने कहा हमारा कोई पाव हिलाकर तो दिखलाएं तो अंगद के मुताबिक एकदम, हम कभी नहीं हिलेंगे, तो ऐसा खड़ा रहना है तो हम कोई टांग को नहीं खड़ा करने का है, यह बुद्धि को मजबूत उसी के याद में, उसी के फरमान में उन्हीं के बातों के ऊपर चलने पर, ऐसा रहना है तो कोई हिला के तो दिखला यहां से, किसकी मजाल नहीं हां अभी। तो ऐसा मजबूत और स्थिर रहने का है समझा। अच्छा चलो हां 2 मिनट बजाओ, बाकी तो चिट्ठी पत्र सब लिख सकते हो। कोई को मना नहीं है अब समझा दिया है। सब बच्चे प्रिय है। मां-बाप को चिट्ठी लिखना, बच्चों को कभी कोई मना नहीं है। बच्चे सो हो सच्चे सो हो सपूत सो हो, फिर तो उसके मां-बाप भी खुश होंगा हां किसका पत्र आया अरे सपूत बच्चे का आया है तो मां-बाप भी कितने खुश। तो भी कहते हैं कुछ भी हो, कोई भूल भी हो जाए, कोई भी हां कोई कामवश, कोई क्रोध वश कोई कुछ भी डालने से धर्मराज बाबा के आगे तो फिर उसका भी आधा हो जाता है लेकिन उसके साथ सच्चा रहना क्योंकि हमको उससे ही तो तो प्राप्त करने का है ना तो इसिस्लिये ऐसे रहने से आप लोगों की उन्नति रहेगी तो इसीलिए कोई भी डायरेक्शंस, कोई भी बात में मूंछों नहीं। कुछ भी है पूछ सकते हो बाकी अपनी बुद्धि भी तो मिली है ना अभी ऐसे नहीं कि छोटी-छोटी बात पूछना है बाबा यह कैसे, बाबा उठू कैसे बाबा बैठे कैसे , बाबा कहेंगे बच्चा है, क्या है उठूं कैसे बैठू कैसे ऐसे थोडा थोडा थोड़ी, वो तो उतना अकाल तो अपना भी है न। कभी भी कोई ऐसी बात पूँछ सकते हो। तो ऐसे बात पूँछ करके अपना रास्ता क्लियर रखना है, बाकी तो टीचर्स भी आप लोगों की बहुत अच्छी है और आप लोगों को हर तरह से मदद देने वाली हैं। इसीलिए उनसे भी आप लोग बहुत बातों को सहज कर सकते हो परंतु कोई ऐसी बात है तो मां बाप से भी कोई मना तो है ही नहीं। इसीलिए ऐसे मतलब अपना कैसा भी जीवन बनाते चलो और आपस में भी कोई भाव स्वभाव, कभी भी कोई बात को देखकर के कभी भी अपना हानि नहीं करना है, किस किस का देखा, किसने कुछ अपना भाव स्वभाव दिखलाया, तो क्या जो करेंगा सो पाएँगा , हमारा क्या उसमें बिगड़ा जो करता है वो उसका इसमें हम क्यों आपस में एक दो की करें की ये ऐसा वो वैसा ऐसा ऐसा किया ये हम क्यों करें। तो ऐसा ऐसा समझकर करके अपने को ठीक रखना है, कभी भी एक दो के स्वभाव में, टीचर की भी कोई भूल देखो किसकी भी देखो चाहे कोई स्टूडेंट की कोई भी बात का, कभी एक दो में उसका नहीं आना है, हमको अपना गुण लेना है, हमको जिस बात से काम है... और बाप कहते हैं ऑलवेज सी फादर, फॉलो फादर आप मुख्य वो रखो बाकी तो हर एक से गुण ग्रहण करना है। तो ऐसी ऐसी बातों का रख करके चलेंगे ना तो बेडा पार हो जाएंगा समझा इसीलिए अब देखेंगे की बेंगलुरु की कैसा खुशबू आती है, रिटर्न क्या मम्मा को आता है ऐसे नहीं की हम जाए तो फिर देखेंगे अभी। अच्छा अभी तो हम पूने जा रहे हैं, वहां तो होंगे कुछ टाइम, पीछे फिर जहां-जहां जाएंगे वह प्रोग्राम तो आप लोगों को मालूम पड़ता ही जाएगा। मुरली तो आती ही है। चिट्ठी पात्र आते रहेंगे। सब समाँचार मिलता रहेगा। दादियाँ आप लोगों को सुनाती रहेंगी। (एक भाई बोले ) मम्मा आपका मुरली जल्दी से भेजना । हां जल्दी से बिलकुल जल्दी से। अच्छा इतना तो फर्क पड़ता है ये डायरेक्ट....वो तो ज़रा कागज़ पर लिखेंगा, ये होंगा पोस्ट होंगा तो थोड़ी पारुखी हो जाती है न। एक रोटी होती है वो (आंच से) उतरती है और खाया जाता है, गरम गरम का स्वाद होता है और वो ज़रा थोड़ी रखी हुई थोड़ी ज़रा फर्क तो पड़ता ही है न (एक भाई ने कहा वहां जो लोग लिखता है उन लोग को कहें) हाँ उन लोग को भी कहेंगे। अभी आप जैसे हमारे पास चुस्त आएँगे न तो फिर काम लेंगे मधुबन में अच्छी तरह से। अच्छा चलो दो मिनट टाइम हुआ है (म्यूजिक बजा) अच्छा टोली दो । गाडी शायद खड़ी हो गई है क्या? गाडी खड़ी हो गई है। (गाना बजा – रुक जा रात ठहर...) ये स्वर्ग की बादशाही उनका गोला कैंच करना, तो हम अभी कैंच करते हैं बाप से अपना वर्सा एते हैं, तो ये है वरसे का गोला, इसको संतरा नहीं समझो। इसको समझो जैसे उसको देखो कैंच किया है न बदलता है की हाँ मैं अभी स्वर्ग का इसका हिस्सा... आया हुआ हूँ अभी मेरी राजधानी है तो ये अपने स्वर्ग का गोला है। यही तो मक्खन चोर है न। यही तो चुराने की है। अच्छा ये गोपिनाथ ये तो आगे बैठे हैं, ये हमारे शिवराम, लो परमधाम, ये हमारे कौन है, नए आयें हैं शायद, अच्छा, बच्चे हैं न देखो बच्चों से तो खेलना भी होता है, ये तो अपना घर का है , दूसरे सत्संगों में तो कहेंगे वो तो कहेंगे भाई परसाद है हाँ, ये तो बच्चों से तो अपना, अपना तो है ही फैमिली, ये तो है ही रूहानी फैमिली, इसको कहते हैं डिवाइन फैमिली तो अपना है ही फैमिली संबंध, अपना कोई गुरु और साधु संत दूसरा थोड़ी है, उसमें तो बड़ा...यह है प्रैक्टिकल लाइफ से रिस्पेक्ट देना, बाकी तो बच्चे घर में होते हैं, जो जाके बाप की मूंछ भी पकड़ेंगे, और दाढ़ी भी पकड़ेंगे, नहीं हां.. बच्चे होते हैं तो क्या , अगर दूसरा कोई मूंछ में हाथ डाले उसके ऊपर तो केस कर देंगे, एसा एसा दूसरा कोई डालेगा तो इन्सल्ट का केस हो जाए और बच्चा मूंछ को पकड़ेगा तो उसको और ही कहेंगे बच्चा बच्चा बच्चा बच्चा बच्चा एसा एसा करेंगा तो होता है न । तो देखो बाप की उसने, मूछ में बच्चा हाथ डाले तो बच्चा बच्चा कहेगा जैसे और ही प्यार करेगा और दूसरा कोई डालें तो इन्सुल्ट का केस है। यहां तो अपना फैमिली है ना, तो इसमें कोई इंसल्ट का उनका नहीं परंतु बच्चा बच्चा भी होना चाहिए ना। सपूत बच्चा होगा, प्यारा लगेगा। उसको तो आंखों पर बिठाएंगे सर पर चढ़ाएंगे ऐसा बच्चा भी बनना है ना, ऐसे नहीं बच्चा ऐसा हो जो मूंछ पकड़ते रहे खाली। ऐसे भी नालायक बच्चे होते हैं ना, जो बाप की भी दम निकाल देते हैं। ऐसा तो नहीं बनना है ना, वह सपूत सपूत। तो लवली कोई बच्चे होते हैं लवली फादर भी होते हैं बड़े लवली रमणीक रहते हैं घर में बच्चों से । तो अपना बाबा भी बहुत रमणीक है न, लवली बेलवेड फादर। आते हैं जिस रथ में वो भी अनायास रथ भी ऐसा लेते हैं अनुभवी , एक्सपीरियंस हैं उन्हों को भी । बहुत लवली ये देखो बाप भी हाँ यह देखो बाप भी निमित्त किसको बनाया है। अच्छा लो गोपीनाथ,... सुरेंदर , यह हमारे प्रोफ़ेसर कैसे हैं, अभी डबल प्रोफेसर, रूहानी और जिस्मानी दोनों बनने का है और अच्छी तरह से इसको लेते और दूसरों की हां अभी आपको बेंगलुरु की बहुत अच्छी संदली में जो भी भाषा हो आपकी उससे सर्विस करना है अभी टीचर्स से अच्छी तरह से गाइडेंस लेते और अच्छी तरह से, फिर आना माउंट आबू हम तो सब को निमंत्रण दे रहें हैं अच्छी तरह से, अच्छा कुछ करके आएंगे, तो बाबा कहेंगे ये बच्चा बहुत अच्छा काम करके आया है। नेचुरल है जो बच्चे अच्छे होते हैं तो बाप की निगाहों में अच्छा ही होता है यह तो लॉ है। तो ऐसे ऐसे अच्छी तरह से, अच्छे बनकर करके और अच्छी तरह से आएँगे तो और अच्छा वहां रहेंगा बाकी तो जो करता है अपना ही करता है, ऐसा ऐसा अपना रखते रहना। हमारी धनलक्ष्मी, यह हमारा बैकुंठ है, यह हमारा रंगनायक पकड़ेंगे ? आएंगा ? ये हमारा शांति स्वरूप राजपूत और कौन है, लो धर्मराज। ( हाँथ उठाओ ) यह पपैय्या पपिय्या पपिय्या पपोईया पकड़ो अच्छा ये उपर यह कौन है हमारा, देखो ये कौन सी बैकुंठ की बादशाही लेना ग्लोब। ये हाँथ से छूट नहीं जाना चाहिए । ये तो भले छूट जाए लेकिन वो न छूटनी है न। आप पकडिये ये दूसरा नया। हमारी भी एक्सरसाइज होती है न। ये हमारा दादा है जो हाँ पकड़ना, गोप पीछे हैं पकड़ना माताएं तो नहीं इतना । हा भाई बादशाही लेना है सी कौन सी टीम लेना है तो लो यहां से सूट नहीं जाना चाहिए होना तो चाहिए ना आप पकड़िए यह दूसरा नया हमारा है उसको पीछे कौन बैठा है उसको भी दो लो श्याम सुंदर। अच्छा वो हमारा दुसरा जो आते हैं पकडिये। ये हमारा राजगोपाल । अच्छा जयकिशन । ये हमारा बैकुंठनाथ, बैकुंठनाथ नाम है न । अच्छा कोई बात नहीं कोई बात नहीं । ये हमारा जो आया है ये हमारा राम कृष्ण। डबल मिल गया ? अच्छा कोई नहीं राम किशन डबल नाम रखा है न । अच्छा और किशको नहीं मिला है हाथ उठाइए बीच में हमारे कृष्णामूर्ति, ये हमारा श्याम सुंदर और कौन रहा, किसको नहीं मिला ? भूषण, और किसको नहीं मिला हा कौन है, किसको नहीं मिला हाँ ये लो पकड़ो। और किसको नहीं है इधर। (किसी ने कहा श्री राम का बाप, सभी हँसे) और किसको नहीं बस... ? बच्चा है इसको हम देते हैं और दूसरा कौन है किसको नहीं मिला , और किसको नहीं बस, आपको तो जरूर ये तो हमार्रे नजर में है। अच्छा अभी माताएं देखें, ये तो ज़रूर तुम ये तो सीखी होंगी। लो माताजी हम आपको दे रहें है आपको तकलीफ पड़ेगी, हा आपको दे रहे हैं ये हमारी माताजी। अच्छा आलोक देखे.. वाह। लक्ष्मी, अच्छा बहुत अच्छा। रोजी रोज फ्लावेर, ये हमारी ........अच्छा मीठा है न बहुत ? सभी हाँ देखो हमने अभी नहीं खाया है न.... अच्छा मेहनती है हाँ, .....यहीं मेहनत कर लिया ऐसा नहीं कहा की हम वहा लेंगे जमा करो। अच्छा ये तुम कहाँ हैं बुलाओ सबको बुलाओ । अच्छा बाप, बाप भी गोल है बिंदी बिंदी एकदम और सृष्टि भी गोल है और आत्मा भी गोल है और यह चक्कर भी गोल है। सब गोल अभी ....भी गोल। गोल कहता है अभी चलो सभी अब बेग बेग्गेज सब गोल करो अभी, हाँ देह सहित देह के सर्व सम्बन्ध से अभी अपनी बुद्धि को हटाओ। अभी गोल हो जाती है। अब सब गोल करो गोल का मतलब है अभी सब को चलना है यहां के पुराने देह सहित देह के सर्व संबंधों को अभी छोड़ो उसको गोल करो अभी बेग बेग्गेज उठाओ चलना है उधर। उसको कैसे उठाना है हाँथ में नहीं उठाके चलना है अब अपने कर्मों से भरना है। वो भर कर करके आत्मा को ले जाना है। तो अब सब आत्मा में प्योरीफाइड कर करके भरना है, तो कैसे प्योरीफाइड करना है वो सब आपको मालूम पड़ चुका है। अच्छा बाप दादा और मां के मीठे मीठे बहुत सपूत बच्चों प्रित और ऐसे सावधान जो अच्छी तरह से रह कर करके चल रहे हैं ऐसे बच्चों प्रित याद्प्यार और गुड मोर्निंग।