मम्मा मुरली मधुबन
कर्मों की गहन गति
रिकॉर्ड:
एकमात सहायक स्वामी सखा तुम ही सब के रखवारे हो……….एकमात सहायक स्वामी सखा तुम ही सब के रखवारे हो……….
इसी तरह से ये हमारा यह कल्प कल्पान्तर का अधिकार बाप के पास नूंधा हुआ है अपन अभी ऐसे ही कहेंगे । यह अधिकार हमारे सिवा और कोई ले नहीं सकता है यह अपना पार्ट है, यह अभी पार्ट सिद्ध होता है जो जो इसमें आते जाते हैं और दृढ़ता से लगते जा रहे हैं तो जानते हैं कि यह कल्प पहले वाला वही बाप है और बाप से अपना अधिकार लेने वाले ले रहे हैं । तो अभी अपन जानते हैं कि अपना सुख का अधिकार जो बाप के पास संपूर्ण सुख है वह सुखदाता जिस लिए गाया हुआ है वह हमारा अधिकार है और हम ही कल्प कल्प बाप से अपना यह अधिकार लेने के लिए आते हैं । यह सुख का अधिकार और कोई ले नहीं सकते हैं । इसमें कोई कहे क्यों सिर्फ यहाँ ही क्यों या भारत से ही क्यों या दूसरे धर्म वाले क्यों नहीं तो यह तो अभी हम जानते हैं जो अगर दूसरे धर्म के लिए भी कहे कि क्रिश्चंस में क्यों नहीं या बुद्धिज्म में क्यों नहीं, वो क्यों नहीं अपना ये अधिकार लेते या कई ये भी विचार देते हैं ना की बारी-बारी होनी चाहिए कभी दूसरे धर्म वाले ले कभी दूसरे धर्म वाले, क्यों एक ही क्यों । अभी दूसरे-दूसरे का तो नहीं है ना । यह तो फिर ड्रामा है जिसको अपने समय पर पूरा हो करके फिर हूबहू रिपीट होना है इसीलिए यह अपना ही अधिकार है । अगर कोई का भी क्वेश्चन हो तो अच्छा क्वेश्चन है फिर भी यही आएगा कि क्यों हो और बदली भी नहीं होने की बात है कि एक बार क्रिश्चिंस लेवें, दूसरी बार बुद्धिज्म लेवे, तीसरी बारी हिंदू लेवे आदि-आदि, ऐसे भी नहीं है । यह तो ड्रामा है ये तो जैसा शुरू हुआ है, फिर पूरा हो करके फिर शुरू होगा तो वही होगा ना । ऐसे तो नहीं फिर शुरू दूसरे से होगा । यह तो बना बनाया ड्रामा है इसीलिए ही यह गाया हुआ है की बनी बनाई बन रही, अब कुछ बननी नाही, क्या नहीं बनना है? ये ही जो कि बना हुआ है उसमें फिर कोई ऐसा फर्क नहीं पड़ सकता है । तो कहाँ से शुरू हुआ, किस से शुरू हुआ तो वह शुरुआत और एंड उसमें फर्क है शुरुआत और एंड में लेकिन एंड हो करके फिर शुरुआत होगी तो वही होगी, उसमें फिर कोई फर्क नहीं हो सकता है बाकी खेल को चलने में कि शुरू कैसे हुआ फिर शुरू होकर चलते चलते फिर इसका अंत कैसे होता है, यह पूरा खेल कैसे होता है वह अभी सब देख रहे हैं । अभी देखो सब एक्टर्स अभी आ चुके हैं बाकी भी जो आने के होंगे थोड़े बहुत वह भी आते रहेंगे लेकिन मुख्य मुख्य पार्टधारी अभी स्टेज पर स्थित हैं यादव भी हैं, कौरव भी हैं, इधर पांडव भी हैं, परमात्मा भी उपस्थित है तो ये जो अभी सब मुख्य पार्टधारी हैं अपने मुख्य पार्ट में अभी कैसे चल रहे हैं उन्हों का यह पार्ट अदा हो रहा है । यह खेल फिर अंतिम है यह सीन । यह सीन का भी अभी बाकी थोड़ा टुकड़ा बाकी है पर्दा बाकि है यह भी आखिर चल करके वह अपना पर्दा भी पूरा होगा फिर यह खेल समाप्त होगा फिर जैसे वह एक ही राज्य एक ही धर्म और एक ही संसार में देवी-देवताओं का धर्म का पूर्ण सुख का जो है वह अधिकार फिर लेकर चलते रहेंगे तो यह तो अभी सारा चक्र है ना बुद्धि में, सुदर्शन चक्र कहो या स्व को अभी नॉलेज है, सारी अपनी आदि से लेकर के अंत तक कि हमारा खेल कहाँ से शुरू हुआ और कहाँ अभी पूरा होता है यह पूरा हो करके फिर अभी ऐसा । तो यह तो कई बार ऐसा अपना हुआ है और यही हू ब हू इसी तरीके से आज की भी जो सीन है आज भी जैसे कोई मानेगा यह फूल हू ब हू वही कल्प पहले की सदृश्य इसी तरह से हर एक सेकंड अभी जो मिनट चल रहा है यह इसी तरीके से कल्प पहले भी चला था, जिसका सिर जहाँ है जिसकी जैसी है सब जो है वह हूबहू रिपीट हो रहा है । यही एक वंडरफुल बात है और बहुतों की बुद्धि में यह बात आए तो बहुत अच्छी तरह से आए और नहीं आए तो बहुत इसमें संशय बुद्धि भी हो जाते हैं । कईयों की बुद्धि में ये बात की ये ड्रामा बना बनाया है और किस तरह से बना बनाया है, ऐसे नहीं कि कोई फर्क से बना बनाया है । इस ड्रामा में जो सीन जो है जिस तरह से है जैसे देखो नाटक में भी जो शूट किया हुआ है जो सीन जैसे रिकॉर्ड हुई है फिर रिपीट होगी तो वह सीन उस टाइम की वैसे ही रिपीट होगी इसी तरह से यह भी सीन हुबहू जो कल्प पहले चली है वह ही चलेगी । अभी हमारा आना, आप लोगों का यहाँ आना जो जो बैठे हो जिस तरह से बैठे हो यह हू ब हू वही और इसका 5000 वर्ष का अंदाजा है और उस अंदाजे के अनुसार यह सब ऐसे ही रिपीट होता चलता है । तो यह देखो कैसा बुद्धि में स्थित और हर वक्त यह बुद्धि में स्थित रहना है कि यह ड्रामा है । जो हुआ सीन यह ड्रामा है इसीलिए इनका भी हमारे ध्यान में इतना होना चाहिए जैसे परमात्मा की याद वैसे ही साथ-साथ जो हमारी एक्टिविटी एक्शंस है क्योंकि कर्म भी तो है ना, कर्म क्षेत्र भी तो है ना, तो फिर परमात्मा और यह कर्म क्षेत्र भी जो है, यह कर्मों का भी जो सारा चलता है यह भी हू ब हू रिपीट होता ही चलता है इसमें जरा फर्क नहीं पड़ सकता है । जो चला हुआ है वह चलता ही रहेगा और चलते रहेंगे इसी तरह से जानते और समझते उसी दम उसी घड़ी चलते रहे तो कभी किसी बात का दुःख शोक मान अपमान यह सभी बातों की जो उलझने आती है ना, अनेक प्रकार की आती हैं यह हुआ, क्यों हुआ, ऐसा हुआ, क्यों हुआ, क्यों क्या यह सब उड़ जाता है । क्यों और क्या और कैसे यह सब क्वेश्चन जो है ना, वह हट जाते हैं । ये तब हटते हैं जब बुद्धि में यह धारणा स्थिरता की बैठ जाए कि यह हुआ यही था ड्रामा, जो हुआ ना यही ड्रामा था । भले हम जानते नहीं हैं, अगर जानते होते तो ड्रामा कैसा, मजा ही कैसे आवे । पहले से ही पता हो तो फिर तो कोई मजा नहीं । ड्रामा है देखते चलते हैं, जो होता है बस उसी को ही समझना है कि यही ड्रामा है । ऐसी अगर स्थिति से कोई चलते रहे और अपनी धारणाओं को बनाते रहे तो कभी कोई बात की क्या भी हो जाए, कैसी भी भारी बात हो जाए ना तो कभी कोई बात नहीं हिलेंगे नहीं, तो समझेंगे अभी अचानक कुछ हो जाता है कोई ऐसी बात कि हाँ क्या हो गया, नहीं, वह समझते हैं कि हाँ यही तो ड्रामा था न । बस इसी तरह से अगर पकड़ते चले ना तो फिर किसी बात का हिलना या मूंझना या कोई बात में संशय में आना या किसी बात की भी कोई उलझन चली आए ऐसी ऐसी बातें कुछ हो नहीं सकती हैं । यह तब होती है जब हम इसी चीज को भूल जाते हैं तो यह भी एक भारी पॉइंट है । बाप की याद और साथ-साथ फिर यही जो हमारा चक्र भी है, यह चक्र का भी बना बनाया कैसे है, जो बाप बैठकर के समझाया है कि मेरा भी पार्ट नूंध है, मैं भी बंधा हुआ हूँ । मैं चाहूं मैं नहीं आऊं, फर्क निकाल दूं कुछ, अच्छा इस बार नहीं आता हूँ, ऐसे ही कुछ कर लेता हूँ या कुछ और तरीका कर लेता हूँ नहीं, जैसे किया हुआ है, जैसे ड्रामा में है वैसे ही करना है इसमें कोई फर्क पड़ नहीं सकता है इसीलिए मैं भी बंधा हुआ हूँ । मैं भी उसमें कुछ कर नहीं सकता हूँ । जब सर्वशक्तिमान होते हुए भी इसका मतलब यह नहीं है कि परमात्मा सर्वशक्तिमान है क्यों नहीं कुछ कर लेता है । वह कहता है मैं भी ड्रामा में बंधा हूँ मुझे भी आना है । मैं चाहूँ मैं ना आऊं, मैं कुछ ऐसे ही बस चला लूं, नहीं कुछ नहीं, मुझे भी आना ही है, मेरा जैसा पार्ट है तो अगर इस चीज को कोई अच्छी तरह से समझ ले ना कि मेरा जैसा पार्ट है और जिस तरह से है वह ऐसे ही चलता है, इसमें कोई फर्क की बात नहीं है लेकिन हां यह जानते भी फिर अपना पुरुषार्थ भी चलाना है । ऐसे नहीं है कि मेरे भाग्य में होगा ड्रामा में होगा तो होगा । कई फिर इसका उल्टा एडवांटेज ले लेते हैं न । ऐसे भी बहुत है जो इन्हीं बातों को उल्टा भी उठा लेते हैं । तो इसीलिए उल्टा उठाने के कारण फिर मूंझ पड़ते हैं । कहते हैं भाग्य में होगा जैसा भी ड्रामा में होगा, किस्मत में होगा जैसे भक्ति मार्ग में भी कहते हैं कि किस्मत में होगा फिर ऐसी-ऐसी बातों में ठहर जाते हैं । लेकिन ठहरने की नहीं है । यह जानते भी पुरुषार्थ ऐसे करते हैं जैसे कि करके ही पाना है, बिना किए काम नहीं चलेगा । तो करना ऐसा है कि बिना किए काम नहीं चलेगा लेकिन जानते हैं कि काम को भी कैसे चलना है लेकिन पुरुषार्थ तो जरूर है ना । इसीलिए पहले पुरुषार्थ पीछे प्रालब्ध, ऐसे नहीं है कि बना बनाया में जो बना पड़ा होगा या प्रालब्ध में जो होगा, वैसा पुरुषार्थ चलेगा यह तो फिर उल्टी गाड़ी हो जाएगी । फिर चक्र भी उल्टा फिरेगा । उल्टा होगा तो क्या होगा, खत्म होते जाएंगे । नहीं, यह चक्र को भी तो सीधा चलाना है ना । तो चक्र चलाने का भी पूरा-पूरा नॉलेज चाहिए, नहीं तो कई उल्टा चला लेते हैं, पहले प्रालब्ध पीछे पुरुषार्थ तो उल्टी गाड़ी हो गई ना । आगे घोड़ा होना चाहिए, गाड़ी पीछे है ऐसे नहीं है कि पहले गाड़ी रखेंगे फिर तो उल्टी हो जाएगी तो एक्सीडेंट हो जाते हैं । ऐसे बहुत तो एक्सीडेंट हो जाते हैं क्योंकि उल्टे चलाते हैं ना, फिर किस्मत, भाग्य या तकदीर या ड्रामा इन्हीं के ऊपर फिर बैठ जाते हैं । नहीं, तो यह सारी चीजों को बहुत अच्छी तरह से समझना है । भले पहले पुरुषार्थ पीछे प्रालब्ध यह समझते अपने पुरुषार्थ को आगे करते चलना है । तो जितना जितना इन राजों को समझेंगे उतना उतना पुरुषार्थ में और ही तेजी आएगी । ऐसे नहीं पुरुषार्थ ठंडा पड़ेगा, भाग्य के ऊपर बैठ जाएंगे या ड्रामा के ऊपर बैठ जाएंगे नहीं, पुरुषार्थ करेंगे उसी में तो शूट है ना उसी टाइम तो उनका पता लगेगा ना कि हमारी नूंध क्या है जो हम पुरुषार्थ करेंगे सो ही तो नूंध है न, उसी से ही तो हमको नूंध का पता लगेगा की हमारी नूंध क्या है । जो हम पुरुषार्थ करते हैं और उसी को पाते हैं तो वो ही हमारी नूंध है, तो नूंध को देखने के लिए भी पुरुषार्थ चाहिए न । बिना पुरुषार्थ ऐसे ही बैठ जाए तो फिर कुछ काम नहीं होगा । तो यह है एक पॉइंट जिसको भी बहुत अच्छी तरह से अपनी धारणा में प्रैक्टिकल लगाना है । ऐसा भी नहीं है कि खाली बुद्धि में रखने की बात है, हर वक्त जैसे बाप की याद है, उसके साथ यह हमारे एक्शंस की भी हमारे कर्मों की भी जो यह सारा चलता है उसको भी इस तरीके से जानकर कि यह हमारा ड्रामा में किस तरीके से कैसे उसमें हमें क्या करना है, अपने को बुद्धि जो मिली है, समझ भी है ना साथ में, ऐसे थोड़ी ना कि जो किस्मत में होगा । किस्मत में होगा तो फिर बुद्धि ही नहीं होनी चाहिए फिर समझ काहे के लिए है । तो नहीं समझ से काम लेना है और समझ देने वाला भी तो देखो समझ देने के लिए आया है ना । हमारी बुद्धि भी अभी तमोप्रधान हो गई है इसीलिए वह बुद्धि नहीं जान सकती है । तो बुद्धिवानों की बुद्धि अभी आकर के बुद्धि दे रहा है तो बुद्धि की अभी जरूरत है ना । समझने की ही तो बात है ना । तो खाली किस्मत अथवा ड्रामा इन्हीं सभी बातों के ऊपर तो नहीं बैठ जाने की बात है । तो यह सारी चीजें हैं जिसको बहुत अच्छी तरह से समझते और अपने पुरुषार्थ को भी इसी तरीके से आगे करने का जतन करते रहना है तो फिर कभी ऐसी बातों में मूंझेंगे नहीं और कोई उलझन कोई दु:ख, कोई अशांति या कभी कभी किसी बातों में मुरझाईस यह सभी चीजें होंगी नहीं । यह है मुख्य-मुख्य बातें जो बुद्धि में हर वक्त अगर कोई रखे तो अपनी धारणाओं में बहुत स्थित रहे और स्थिर रहे और कभी कोई बात की उलझने फिर आएंगी नहीं । तो अभी सभी उलझनों से पार करने वाला बाप आया है ना तो इसलिए वह कहता है मैं नॉलेज भी उसी मतलब का देता हूँ जिससे तुम्हारे प्रैक्टिकल कर्मों में बल आवे । बाकी बातों से तो तुम्हारा मतलब ही नहीं है । जिन बातों से मतलब है जिन बातों से तुम्हारे कर्मों को बल मिले वहीं बैठ करके तुम्हें सारी नॉलेज समझाता हूँ । देखो परमात्मा का भी परिचय क्यों जानना जरूरी है क्योंकि उनको जानने से ही तो उनको याद कर सकेंगे और जब तुम याद करेंगे तभी तुमको शक्ति मिलेगी । तो यह जो जो जरूरी बातें हैं, मैं समझाता ही वही ज्ञान हूँ जिससे तुम्हारे कर्मों में बल आवे । बाकी बातों से तो कोई मतलब ही नहीं है । यह क्या होगा, कैसे होगा बाप कहते हैं जो जरूरत की बातें हैं वह मैं समझा रहा हूँ । बाकी भी जो जरूरत की होंगी तुम्हारे कर्मों में बल देने की बात होगी, वह मैं तुम्हारे समझाता रहूँगा इसलिए तुम्हें उसका फिक्र नहीं करना है, तुम्हें तो जो बल मिलता जा रहा है, वह अपने कर्मों में लगाते जाओ, धारण करते जाओ बाकी बातों में मूंझने की आवश्यकता नहीं कि यह है तो भला यह कैसे होगा, यह है तो ऐसे कैसे होगा, इन्हीं सभी बातों में कई मूझते हैं ना, तो मूंझने की बातें नहीं है । हमारे कर्म में हमको बल लाना है और इस नॉलेज का भी मतलब यही है इसीलिए बाप कहते हैं कि इस नॉलेज को अच्छी तरह से अपने कर्मों में लगाते और अपने बल को अच्छी तरह से धारण करते चलो । तो यह है बाप के द्वारा जो अभी वर्सा मिलता है ज्ञान का, जिसके बल से फिर हम अपना सदा सुख की प्रालब्ध पाते चलेंगे । आधार तो सारा इसी के ऊपर है ना कर्म के ऊपर । अभी अपने कर्मों में ही सारा बल भरना है । यह ज्ञान का मतलब क्या है, इतना जो सारा दिन सुनते हो, रोज सुनते हो उसका मतलब क्या है । इसका मतलब यही है कि हम अपने कर्मों मे बल कैसे लाएं और उन्हीं कर्मों में अपने को स्थित रखकर चलना ही है । बनते तो हम कर्मों से ही है ना, बिगड़ते भी हम कर्मों से ही हैं और बनते भी हम कर्मों से ही हैं । तो हम अभी जो बिगड़े हैं सो बनाना है । बिगड़ी को कैसे बनाना है उसका तरकीब अभी अच्छी तरह से बाप ने समझाई है । समझाई तो जरूर उसने ही है ना, हमारे पास समझ थोड़े ही थी । समझाई उसने है और वह ही जानता है और कहते हैं बल भी तो मैं ही दूंगा ना । ऐसे थोड़े ही समझाऊंगा मैं, बल दूसरे देंगे या मैं ऐसी चीजों के नीचे आता ही नहीं बल मेरे पास है तो शक्ति भी तो मेरे से ही मिलेगी ना । मेन पावर हाउस तो मैं ही हूँ ना, मेरे से ही पावर लेनी है । तो पावर भी लेनी उससे ही है और ज्ञान भी मिलना उससे ही है । तो ज्ञानदाता और अपने योग से उसमें बल भरने का दाता भी अथवा जिसको गति सद्गति दाता भी कहो, सद्गति का मतलब ही क्या है हमारे कर्म का जो यह पांचों विकारों के बंधन में फंसे हैं, उसी बंधन से निकाल करके गति सद्गति देते हैं । तो यह बल देना यह भी तो उसका ही काम हुआ ना । इसीलिए उस बाप से अपना पूरा पूरा बल लेने के लिए पूरा पुरुषार्थ रखते रहना है । अच्छा सभी राजी खुशी में हो? राजी खुशी तो पूछना ही है, इस दुनिया में पूछना पड़ता है । सतयुग में नहीं पूछेंगे राजी खुशी हो । वहाँ कुछ नाराजी नाखुशी है ही नहीं । जहाँ ऐसी कोई चीज ही नहीं है तो पूछने की कोई आवश्यकता ही नहीं । यहाँ तो रिवाज है ना, पूछना होता है कि कैसे हो, राजी खुशी में हो ठीक हो यह पूछना होता है क्योंकि यहाँ नाठीक है, नाखुश हैं तो पूछना होता है, वहाँ नाठीक की बात ही नहीं है तो पूछने की भी जरूरत नहीं है न रूहानी न जिस्मानी, दोनों तरह से नहीं है । वहाँ हर तरह से तन दुरुस्त मन दुरुस्त सब दुरुस्त है ना इसीलिए वह प्रालब्ध कंप्लीट है तो वहाँ तो यह क्वेश्चन पूछने ही नहीं पड़ते हैं । यहाँ पूछना पड़ता है क्योंकि है । तो अभी बाप से जो अपना वर्सा मिलता रहता है, हक मिलता रहता है उसको लेते और अपना पुरुषार्थ आगे करते चलो । बाकी तो नॉलेज बहुत क्लियर है और बहुत सरल भी है जबकि बाप कहते हैं कि मैं समर्थ हूँ ना और तुम्हारे सभी पापों को सभी माना सभी जन्मों के पापों को बैठकर के दग्ध कराने का बल देता हूँ फिर तो कोई बात ही नहीं रही । इसीलिए यही सर्वशक्तिमान के द्वारा अभी बल मिलता है । तो कोई भी बातों का संकोच रखकर के नहीं लेकिन अभी अपने पुरुषार्थ में आगे बढ़ना है । अभी जो मिल रहा है ना उसको उठाते चलो । उसमें अगर कुछ नीचा ऊँचा हुआ तो फिर उनकी भावी बाकी जो हो गया वह हो गया । वो तो अंजानाई में था न । अब कहते हैं अगर जानते अगर कुछ करते हो तो उनकी सजा भारी है इसीलिए बाप कहते हैं उस भारी सजाओ से बचते और अपना जो कुछ पिछला खाता है, उस सब को अपना दग्ध करते, पुरुषार्थ करते चलो । सब रोशनी है ना बुद्धि में क्या करना है क्या नहीं करना है, यह अभी रोशनी है । अच्छा, तो सब राजी खुशी में है । इसका मतलब है राजी भी हो और खुश भी हो । बहुत अच्छा है, अगर बाप से ऐसा अधिकार लेने मैं पूरे मस्त हो और चलते रहते हो तो बाकी क्या चाहिए और यही टाइम है यही वक्त है यह भी ख्याल रखना है कि लेना अभी है फिर लेने का चांस नहीं है । समा यही है, यही जीवन है इसीलिए इस जीवन में जितनी कमाई कर सके, यह कमाई अविनाशी उतनी करते चले । फिर ऐसा समय भी नहीं मिलेगा और देने वाला भी नहीं होगा । देने वाला तो अभी है ना लेकिन अभी है, बैठा है और अभी उसका कोर्स चल रहा है पूरा नहीं हुआ है इसीलिए बाप कहते हैं जहाँ तक मैं हूँ, कम से कम वहाँ तक मैं जो फरमान करता हूँ उसकी पालना तो करते चलो । कोई भारी बात थोड़ी ही है मुश्किल थोड़ी ही है इसीलिए कहते हैं मैं \जानता हूँ तुम बहुत जन्म तो आत्मा आत्माओं के प्रति देते आए, अब मैं एक जन्म तुम्हारा सो भी यह अंतिम, पिछड़ी का, अभी का यह तुम्हारा लेता हूँ, इसमें अभी मेरे साथ अथवा मेरे फरमान पर चलो तो क्या यह थोड़ा सा भी, छोटा सा जन्म मेरे हवाले नहीं कर सकते हो । छोटा सा भी क्यों कहते हैं मौत है सामने । अब तो छोटे का, बच्चे का, बूढ़े का, छोटा ही जन्म है सब का । अब ऐसे ख्याल नहीं करना है कि बड़े होंगे, यह होगा, यह होगा, यह करूंगा नहीं, अभी बाप कहते हैं ये अंतिम जन्म है इसीलिए बस उसी को अपना दे करके और अपना पुरुषार्थ करो । ऐसे पुरुषार्थ को करते और अपना कल्याण करते आगे बढ़ो जबकि अभी कल्याणकारी बाप मिला है, जानते हो ना अच्छी तरह से, मूंझते तो नहीं हो ना । साधारण तन में आए हुए बाप को न जान करके मूंझते तो नहीं हो ना । जानते हो ना अच्छी तरह से, समझ में आता है ना, वो ही है न, फर्क तो नहीं है न । अच्छा इसीलिए वो ही है , वो ही । कई बार देखा है, याद नहीं आता है देखा है । कई बार देखे हैं, हम ऐसे ही बाप से मिले हैं और ऐसे ही बाप से हक़ लिया है और कोई इसका तरीका है नहीं, सोचो ही मत । क्यों सोचते हो, ये तो तुम लोगों को बाप कहते हैं कि दूसरों ने बैठकर के ऐसी- ऐसी बातें सुनाई है इसीलिए मूंझते हो, लेकिन ये भी सारे शास्त्रों में है, जिन्होंने सुनाया है यह भी सुनाया है कि हाँ आता है तो बड़ा साधारण तन में आता है । आता है तो बड़ा गुप्त भेष में, लेकिन गुप्त क्या होता है इसका मतलब ही क्या है । अगर कोई चीज इन आँखों से देखने वाली होती तो फिर गुप्त भी क्यों कहते हैं । अगर कोई प्रख्यात कोई ऐसी चीज होती जो जल्दी से जानने वाली होती तो उसको गुप्त ही क्यों कहते, जरूर कोई ऐसी गुंजाइश है जिसको फिर गुप्त शब्द भी दिया है ना । गुप्त का भी तो महत्त्व है न, गुप्त दान आदि ये सब क्यों रखते हैं क्योंकि वो आए हैं गुप्त, गुप्त और क्या हो सकता है । पता है न देखो है न गुप्त ।