मम्मा मुरली मधुबन
सतयुग का स्थापक कौन है
रिकॉर्ड:
कौन आया मेरे मन के द्वारे पायल की झनकार लिए…….ऐसा कौन है, जिसको आँख से देखा नहीं जाता लेकिन दिल पहचानती है । ऐसा कौन है? क्यों राम जी, बाप । बेहद का बाप । जिसको निराकार बाप कहो । शरीर के पिता को साकार, वह निराकार । तो निराकार बाप जिसको निराकार परमपिता परमात्मा कहा जाता है, वो इन आँखों से भले देखा नहीं जाता लेकिन जाना जाता है, पहचाना जाता है । ऐसे नहीं आँखों से नहीं देखा जाता इसीलिए वो कोई चीज ही नहीं है । आँखों से देखने के लिए तो यहाँ का भी सांसारिक पदार्थों में भी कई चीजें हैं जो हम आँखों से नहीं देख सकते हैं परंतु उसका मतलब यह तो नहीं है कि वह कोई चीज ही नहीं है । तो जबकि सांसारिक पदार्थों में से भी हम कोई चीज आँखों से ना देख करके उस चीज की हस्ती समझते हैं कि है , तो वह तो परमपिता परमात्मा है ना । तो ऐसा नहीं आँखों से नहीं देखते हैं तो इसका मतलब वह कुछ है ही नहीं । नहीं, वो है । है तो क्या है वही तो बैठ कर के स्वयं जो है वही समझाता है मैं क्या हूँ । तो अभी उसी बेहद बाप से परिचय मिला है कि मैं क्या हूँ । हूँ तो एक स्टार लाइट, बिंदी कहो, स्टार लाइट कहो, बहुत छोटी लेकिन छोटी में यह सब बड़ा, जिसमें यह सब बेहद की नॉलेज, और उसका बेहद का कर्तव्य का पार्ट भरा हुआ है । इसी तरह से हम आत्माएँ भी बहुत छोटी सी हैं बिंदी, स्टार लाइट लेकिन उसमें हमारे कितने जन्मों का यह पार्ट भरा हुआ है । जैसे रिकॉर्ड है तो रिकॉर्ड में गीत भरा हुआ है । देखो यह रिकॉर्डस का बॉक्स है न, कितने रिकॉर्ड पड़े हैं । तो यह मानो आत्माओं का भी बॉक्स है जिसको निराकारी दुनिया कहेंगे । वह है आत्माओं के स्टॉक का बॉक्स जैसे इस बॉक्स में बहुत रिकॉर्ड पड़े हैं, उसी तरह से आत्माओं के भी स्टॉक का बॉक्स इनकॉरपोरियल वर्ल्ड कहो या उसको कहो आत्माओं के स्टॉक का बॉक्स, जहाँ स्टॉक रहती है और फिर उसी स्टॉक से नंबरवार टाइम अनुसार, जैसे-जैसे जब जिसका पार्ट है आत्माएँ इस कारपोरियल वर्ल्ड में आती हैं पार्ट बजाने । जैसे इस रिकॉर्ड को निकाल करके ग्रामोफोन पर चढ़ाया जाता है, तो चढ़ाया जाता है तो उसको फिर नीडल, यह रखते हैं और फिर वो बजता है, ठीक है ना । इसी तरह से वह निराकारी आत्माएँ भी यहाँ आती हैं, शरीर का आधार लेती है तो इसके साथ वह फिर बोलती है, ये मानो उसको फिर नीडल लगी वो जैसे बजता है फिर यह टॉकी हो जाता है । नहीं तो आत्मा साइलेंस शरीर के बिना, तो शरीर भी कुछ साइलेंस, शरीर भी कोई काम का नहीं और आत्मा भी जो है ना वह साइलेंस । जब दोनों का मेल होता है तो फिर बजता है, फिर टॉकी । तो रिकॉर्ड इसमें पड़े हैं तो भी ग्रामोफोन साइलेंस में पड़ा है जब दोनों का मेल होता तो फिर बजता है । ऐसा होता है ना तो यह सभी चीजें समझने की । तो बाप समझाते हैं सभी आत्माएँ जो हैं ना उनको सबको शरीर में आना है और शरीर लेना शुरू किया आत्मा ने तो उसको बहुत शरीरों में जन्म लेना पड़ेगा । ऐसे नहीं शरीर ले करके फिर वापस चली जाए वहाँ । नहीं, उनको जितना जितना टाइम है पार्ट बजाने का वह शरीर उनको लेने ही है । फिर शरीर लेने का भी स्टेजिस हैं । बाप बैठकर समझाते हैं कि जब पहले पहले जब आत्मा आती है ऊपर से, शरीर लेती है तो पहली आत्मा प्योर है इसलिए उनको शरीर भी अच्छा मिलता है । पीछे जितना-जितना शरीर लेते जाएँगे जितना जितना टाइम होता जाएगा फिर सब स्टेज नीचे पड़ती जाएगी । तो जो आत्मा सबसे पहले आती है शुरू शुरू में यानी गोल्डन एज में उनके बहुत जन्म होंगे, जो पीछे आएँगे सिलवर कॉपर एंड आईरन एज में, देखो अभी भी कई आत्माएँ आती हैं स्टॉक की वृद्धि होती जाती है, संख्या बढती जाती है न, तो उसका माना अभी भी उतरती जाती हैं आत्माएँ । नहीं तो इतनी सोल्स कहाँ से आती है । यह मनुष्य की संख्या जो वृद्धि होती है वह कहाँ से होती है । जो मरते हैं वह भी तो जन्मते ही हैं, फिर अगर जो मरते हैं वही जन्मते होते तो फिर स्टॉक इक्वल रहना चाहिए ना । नहीं यह वृद्धि भी होता है तो उसका माना स्टॉक बढ़ता है तो कोई स्टॉक घर है ना जहाँ से आत्माएँ आती हैं । तो आती भी है और जो मरते हैं वह भी यहाँ ही जन्म लेते हैं । अभी जाने की तो बात है नहीं ऐसे नहीं जो मरते हैं वह जाते हैं दूसरी आती है नहीं जो शरीर छोड़ते हैं वह भी एक शरीर छोड़ करके दूसरा लेते यहाँ ही हैं और स्टॉक वृद्धि को भी पाता जाता है संख्या बढ़ती जाती है उसकी माना नई आत्माएँ भी आती जाती है जो यहाँ स्टॉक बढ़ता जाता है । तो जो अभी आती होंगी उसके बाकी कितने जन्म होंगे क्योंकि आयरन एज का अभी एंड है तो उसका क्या एक-दो जन्म होंगे सो भी छोटी आयु का क्या जन्म होगा । तो इसी तरह से बाप बैठकर के समझाते हैं कि जो-जो आत्माएँ शुरू से आती हैं उनके बहुत जन्म और जो पीछे-पीछे आती है उनका कम । जो शुरू में आत्माएँ आती है उनका तो बहुत में बहुत 84 जन्म और कम से कम दो जन्म भी हो सकते हैं । ऐसे भी जो लास्ट में आती हैं देखो अभी जो आ रही है उनका क्या होगा, एक दो जन्म भी नहीं । अभी लास्ट में, अभी तो डिस्ट्रक्शन का टाइम है बाकी थोड़े टाइम में उसकी बाकि क्या है तो इसीलिए बाप कहते हैं देखो बहुत में बहुत 84 जन्म, कम से कम दो जन्म जिसको मैक्सिमम मिनिमम कहा जाए । तो बहुत में बहुत कहो 84 जन्म और कम में कम दो । इसी तरह से यह जैसे झाड़ होता है ना, झाड़ बढ़ता जाता है, जो जड़ है जड़ का आयु झाड़ में गिनेगे लास्ट तक भाई कहेंगे जड़ को पैदा हुए बहुत टाइम हुआ तो इसकी एज बहुत हुई झाड़ में और यह डार का टाइम थोड़ा कम रहा फिर दूसरा छोटा डार फिर टार फिर टारियां पीछे लास्ट में भी छोटे छोटे पत्ते निकलते हैं तो कहेंगे यह तो अभी अभी हुआ है अभी-अभी इसी झाड़ का लास्ट है, इसको खत्म होना है । तो यह अभी-अभी आया है तो इसकी आयु छोटी । तो झाड़ में भी नंबरवार जड़ की आयु टाइम ज्यादा टार की उससे टारियों की उससे कम, टारी की उससे कम फिर छोटी-छोटी टारी निकलेंगे तो फिर कहेंगे अभी अभी निकली है अभी अभी खत्म होंगे । इसी तरह से यह मनुष्य सृष्टि रूपी भी एक वृक्ष है । इसीलिए गीता में वृक्ष का नाम लिया हुआ है कि यह मनुष्य सृष्टि एक वृक्ष सदृश्य है । इसकी वृद्धि वृक्ष सदृश्य होती है और फिर इसका अनादि है यह सेप्लिंग लगती है, यह वृक्ष सेप्लिंग लगने वाला है । तो इसी तरह से बाप बैठकर के समझाते हैं कि बच्चे अभी जो टाइम है, ये वृक्ष वृद्धि को पा चुका है । अभी यह जड़जड़ीभूत अवस्था को पा चुका है, वृद्धि को पा चुका है । बाकी भी जो वृद्धि होगी वह भी अभी जल्दी जल्दी होती जा रही है लेकिन अभी एंड तो पहुँच गई है ना । तो अभी एंड इसीलिए बाप कहते हैं अभी यह जड़जड़ीभूत अवस्था को पा चुका है । अभी इसको खत्म करके फिर नया सेप्लिंग लगना है, फिर न्यू वर्ल्ड । तो यह सारी है मनुष्य के अनेक जन्मों का सृष्टि का चक्कर जिसको समझना है । और है एक आत्मा देखो बिंदी स्टार लाइट उस एक एक आत्मा में कितने जन्मों का पार्ट भरा हुआ है । तो यह तो हुआ हम आत्माओं का फिर परमात्मा का भी । वह भी तो है आत्मा ही है ना । वह भी स्टार लाइट है ऐसे नहीं उसका शेप बड़ा है, हम छोटे हैं क्योंकि वह बड़ा है इसीलिए वह बड़ा है नहीं । वैसे आप लोगों ने देखे होंगे ना वो बहुत कई शिवलिंग की पूजा करते हैं और एक यज्ञ भी रचते हैं । फिर वह छोटे-छोटे शालिग्राम बहुत शिवलिंग बनाते हैं उसका एक यज्ञ करते हैं । तो वह बहुत शालिग्राम बनाते हैं उसको कहते हैं शालिग्राम छोटे-छोटे बनाते हैं, एक बड़ा बनाते हैं शिवलिंग । उसको शिवलिंग कहते हैं और बाकी सब छोटे-छोटे उसको शालिग्राम कहते हैं । तो इनका भी यही अर्थ है की छोटे-छोटे माना आत्माएँ । आत्मा का भी शेप तो वही है तो आत्मा शालिग्राम और वह परमात्मा शिवलिंग परंतु उसका ऐसा नहीं वह बड़ा है उसका साइज और हम छोटे छोटे हैं, नहीं । हमारा साइज और उसका साइड एक ही है । बाकी फर्क किसका है कि हम जन्म मरण में आते हैं, हमारी लाइट डल हो जाती हैं । ऐसे समझो जैसे यह स्टार्टस है किसी की डल लाइट है किसी की तेज लाइट है ऐसे है ना । इसी तरह से हमारे में भी जितनी-जितनी प्योरिटी है इतनी तेज है और जितनी जितनी इंप्योरिटी है तो डल है फिर डल पड़ते–पड़ते ब्लैक । जैसे चंद्रमा को ग्रहण लग जाता है ना वो काला पड़ जाता है वैसे आत्माएँ मानो काली पड़ गई है । बाकी परमात्मा को तो ग्रहण नहीं लगता है ना माया का इसीलिए वह एवर प्योर और एक वही है जिसके ऊपर कोई आवरण नहीं । एक वही आत्मा जिसको इसीलिए ही परमात्मा कहा जाता है क्योंकि हम सब में उस एक को ही कोई माया का ग्रहण नहीं लगता है क्योंकि आते ही नहीं जन्म मरण में । तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए बाप कहते हैं देखो मैं आता हूँ, मैं आ करके अपना परिचय देता हूँ । तो अभी देखो भले आँखों से देखने की चीज नहीं है लेकिन अभी पहचानते हैं अच्छी तरह से कि हाँ हम कौन हैं, हमारा पिता कौन है । अभी उसको पिता भी क्यों कहते हैं क्योंकि उससे हमें वर्सा प्राप्त होता है इसीलिए हम उनको पिता भी कहते हैं और वह हमारे रचता भी हैं । तो रचता को पिता कहा जाता है जैसे लौकिक में भी बाप बच्चों को क्रिएट करते हैं तब उनको फादर कहते हैं । तो इसी तरह से वह भी हमको क्रिएट करते हैं परंतु क्रिएट का मतलब यह नहीं कि आत्माएँ कभी है ही नहीं जिसको बैठकर बनाता है, या बिंदिया को बनाता है या स्टार लाइट को बनाता है, नहीं, वह तो अनादि है इम्मोर्टल है । उसको बनाने की उनको जरूरत नहीं है लेकिन उसमें क्या बनाता है वह जो इंप्योरिटी आवरण ग्रहण लगा है ना, उसको उतार कर के वह अपना जो प्योरिटी का पावर है न, वह दे करके हमारी इंप्योरिटी का नाश करके हमको फिर प्योरिटी में ले आते हैं । यह हमारी प्योरिटी हमारे में क्रिएट करते हैं इसीलिए मानो हमारी नई लाइफ नई जनरेशंस, नया यह सभी सुख का वो क्रिएट करते हैं तो उनके द्वारा क्रिएट होता है इसीलिए उनको क्रिएटर कहते हैं । बाकी ऐसे नहीं है कि हम आत्माएँ है ही नहीं, जिसको बैठकर वह बनाता है या हमारे शरीर है ही नहीं जिसको बैठकर के मिट्टी का पुतला बनाता है, ऐसी बातें नहीं है । तो यह सभी चीजें बुद्धि में है कि हां आत्माएँ अनादि हैं, इम्मोर्टल है, परमात्मा भी इम्मोर्टल है । जैसे परमात्मा को कोई बनाया नहीं किसने, उसका कोई क्रिएटर नहीं है वैसे आत्माओं का भी कोई क्रिएटर नहीं है । लेकिन क्रिएटर कहा जाता है वो किस अर्थ में कि हाँ वह हमारी इंप्योरिटी को नाश करके, जो इसमें इंप्योरिटी पड़ गई उसको नाश करके हमारे में प्योरिटी ले आते हैं इसीलिए फिर हमारी नई जनरेशंस हमारी प्योरिटी से हमको शरीर भी नया, हमारा संसार भी नया मिलता है, हमारी सारी जीवन नई हो जाती है, तो मानो वो वर्ल्ड का क्रिएटर, आत्मा का क्रिएटर इन सब का जैसे क्रिएटर है इसी नाते । तो वह भी उनका पार्ट है, उस सोल का भी जो सुप्रीम सोल है, उसका भी पार्ट है हमको ये पावर देना इसीलिए कहते हैं मैं आता हूँ तुम आत्माओं का अपने साथ कनेक्शन रखने, योग सिखाने के लिए अर्थात मेरे से कैसे कनेक्शन रखो तो तुमको पावर मिले और पावर मिलने से तुम प्यूरीफाइड होंगे और तेरा संसार नया हो जाएगा । सब कुछ नया होगा तो यह है उस बाप का पार्ट यहाँ इसलिए उनको क्रिएटर, डायरेक्ट यह सभी नाम देते हैं । तो अभी बाप कहते हैं अभी फिर से यह टाइम आया है न्यू वर्ल्ड क्रिएट करने का । अभी ओल्ड वर्ल्ड अपना स्टेज पूरा कर चुका है । अभी इसको कुछ भी मरम्मत करने की और आगे चलाने का टाइम नहीं है । अभी कंडीशन एकदम तोड़ने की कंडीशन है इसीलिए कहते हैं, अभी कंडीशन इसकी अब जड़जड़ीभूत अवस्था बनी है, अभी इसका डिस्ट्रक्शन और फिर न्यू वर्ल्ड का कंस्ट्रक्शन इसीलिए देखो मैं आया हूँ यह सेप्लिंग लगाना मेरा काम है, तो अभी मैं अपने काम पर आया हुआ हूँ । उसका काम चालू है अच्छी तरह से । तो अभी कैसे चालू है वह कहते हैं ऐसे भी तो नहीं मैं तो करन करावनहार हूँ ना । मुझे तो कोई हाथ पाव नहीं है कोई बैठ करके क्या करूं । यहाँ नॉलेज देना है उसके लिए मुख लेना पड़ता है क्योंकि कंस्ट्रक्शन के काम में मुझे नॉलेज देना पड़ता है । नॉलेज से प्यूरीफाइड बनाना पड़ता है इसीलिए नॉलेज देनी पड़ती है और डिस्ट्रक्शन के लिए तो नॉलेज देने की बात ही नहीं है ना । उनको बैठ करके थोड़ी कहेंगे ये एटम ऐसा बनाओ, ये तो प्रेरणा द्वारा इसीलिए कहते हैं शंकर द्वारा वह विनाश का प्रेरक बन करके, यह देखो फिर बैकबोन तो मैं ही हूँ सबका, तो फिर देखो यह सब अभी उसी तरह से वह बुद्धि काम करती रहती है । तो देखो विनाश, डिस्ट्रक्शन । और डिस्ट्रक्शन के लिए तो सिर्फ मनुष्य तो नहीं है ना, खाली यह बोंब्स आदि, उसमें तो नेचुरल कैलेमिटीज भी है फिर उसको क्या बैठ कर के सिखाऊँगा । ऐसे तो बात ही नहीं है ना तो जैसे वो टाइम है मैं हूँ ही बैकबोन इन सब का प्रेरक तो उनको भी प्रेरणा से, तो नेचुरल कैलेमिटीज से भी और यह बोम्ब्स आदि से भी सिविल वॉर के जरिये उसकी बुद्धि से देखो काम ही ऐसे बनते हैं । बिचारे कितने सुधार के करते हैं लेकिन सुधरना तो इसी तरीके से है ना । वह काम ही ऐसे बनते चलेंगे जिसमें टक्कर खाते रहें, टक्कर खाते रहें, खा-खा कर के एकदम क्लश आ जाएगा तो फिर एकदम ख़त्म हो जाएंगे सब । तो यह सभी बातें बैठ कर के बाप समझाते हैं कि इसी तरीके से मेरा काम है यह डिस्ट्रक्शन, कंस्ट्रक्शन और फिर जो कंस्ट्रक्शन करता हूँ, उसी की फिर पालना करने के लिए फिर उनको भी लायक बनाता हूँ । यह देखो अभी अपन को कंस्ट्रक्शन वाली जो दुनिया है, उसमें हम सदा सुख पाते चलें उसकी प्रालब्ध भी हमारे में बनाते जा रहे हैं ये बहुत जनरेशन में हम उसका फल पाते चलें । तो उसकी पालना लायक भी बनाते हैं तो पालनहार भी हो गया ना। हमारे पालनहार भी हो गया, हमारे कंस्ट्रक्शन करने वाला भी हो गया तो डिस्ट्रक्शन तो इसीलिए उसको कहते हैं विनाश, स्थापना पालना कर्ता । परंतु है करन करावनहार । बाकी ऐसे नहीं जैसे कई इसका अर्थ समझते हैं कि वह विनाश, स्थापना, पालना ऐसे करते हैं यह सब मनुष्य जो मरते हैं ना, कभी कोई मरा, कभी कोई मरा यह जो मरते हैं यह मारता भगवान है यह विनाश करता भगवान है और कई जन्मते हैं, आज के दिन में दुनिया में कितने जन्मते होंगे, यह जो जन्म सबको मिलता है वह भगवान देता है यह क्रिएटर है, वह डिस्ट्रक्शन करता है जो मरते हैं, वह सब भगवान करता है और खाना-पीना जो सबको मिलता है, किसी बिचारे को रोटी मिलती है, किसी को नहीं मिलती है यह सब भगवान करता है । पालना में तो सब चलता है ना किसी को अच्छी रोटी मिलती है, किसी को नहीं मिलती है, कितने बिचारे भूखे मरते हैं तो यह पालनहार । तो कई अर्थ ऐसा समझते हैं कि यह सब पालनहार परमात्मा है, विनाश करता भी परमात्मा है और क्रिएट करता भी परमात्मा है यह सब परमात्मा करता है, परंतु परमात्मा कहते हैं यह तुम्हारे जन्म और मरण और यह पालन मैं थोड़ी करता हूँ । मेरा पालन ऐसे थोड़ी होगा किसी को बेचारों को रोटी मिले, किसी को मिले ही नहीं और कोई मरे दु:खी बिचारा होकर के मरे, यह मैं थोड़ी बैठकर धंधा तुम्हारा करता हूँ। यह तो तुम्हारे कर्मों का हिसाब है हर एक का । तुम अपने कर्मों के हिसाब से जन्मते हो, कोई राजा के घर में जन्म लेते हैं, कोई कहाँ लेते हैं, यह सब कर्म से अपना जो बनाए हैं और कोई बिचारे मरते हैं तो यह तो तुम्हारा कर्म का था, यह मेरा विनाश स्थापना पालना ये मेरा अर्थ ये नहीं है । मैं कैसे विनाश स्थापना और पालना करता हूँ जिसको उत्पत्ति कहें परंतु हम उत्पत्त अक्षर इसीलिए काम में नहीं लाते क्योंकि कई उत्पत्त से ये अर्थ निकालते हैं की भाई कभी कुछ था ही नहीं, जिससे उत्पत्त किया । स्थापना कहने से यानी कुछ चीज है जिसके ऊपर आ करके स्थापना किया । तो स्थापना से सिद्ध होता है की कोई चीज पहले है जिसके ऊपर स्थापना किया । ऐसे नहीं कुछ है ही नहीं तो उत्पत्त शब्द से कई ऐसे अर्थ निकालते हैं इसीलिए हम उत्पत्ति अक्षर काम में नहीं लाते हैं कि कहीं कोई ऐसा अर्थ ना समझे कि भगवान ने उत्पत्ति की, प्रलय की । प्रलय माना बिल्कुल नाश, कुछ रहा ही नहीं, उत्पत्त माना कुछ था ही नहीं तो फिर उत्पन्न किया । परंतु ऐसे नहीं ना प्रलय होती है, ना ऐसे उत्पत्ति होती है। प्रलय होती ही नहीं है। कई प्रलय का जो मीनिंग समझते हैं कि एकदम कुछ भी नहीं न जल, ना पृथ्वी, ना पानी, कुछ भी नहीं, सब जलमई, जल भी था भला , जलमई फिर तो जल भी होगा ना, कुछ तो होगा ना, परंतु ऐसे भी नहीं है कि खाली जल ही जल था इसीलिए बिचारे कई चित्र भी दिखलाते हैं न वह पीपल के पत्ते पर कृष्ण छोटा दिखलाते हैं, देखे हैं चित्र में? वो पीपल का पत्ता है जल है, जल के ऊपर पीपल का पत्ता है, उसके ऊपर कृष्ण ऐसे अंगूठा चूसता हुआ दिखाते हैं की बस उस बिचारे के पास ठिकाना ही नहीं था। पत्ते के ऊपर बैठना, जल के ऊपर रहना और ऐसा अंगूठा चूसता रहता है दिखलाते हैं, परंतु ऐसा नहीं है कि एकदम कुछ दुनिया थी ही नहीं, जल के ऊपर या पत्ते के ऊपर कृष्ण आया। इसका अर्थ है, चित्र दिखाते हैं हम देखो ये पत्ते के ऊपर देखा हैं, वो छोटा मिच्नूं, वो मिच्नूं देखो पत्ते के ऊपर दिखलाया है। तुम दिखाओ उठ के, यह देखा है सबने? यह पत्ते के ऊपर मिच्नू दिखलाया है तो यह पत्ता जो है इसी मनुष्य सृष्टि रूपी वृक्ष का पहला-पहला जो पत्ता है ना, वो पहला पहला यह है इसीलिए इसका है कि पहला पत्ता, तो वृक्ष के हिसाब से। बाकी ऐसे नहीं जल्मई है उस में पत्ते के ऊपर जैसे दिखाया है अंगूठा चूसता हुआ। वह देखे होंगे बहुत भक्ति मार्ग में चित्र बनाते हैं । ऐसे अंगूठा उसके मुख में पड़ा है और पते पर तैरता-तैरता ऐसा दिखाते हैं तो ऐसी बातें नहीं है। यह दिखलाया है कि इस वृक्ष का पहला जो पत्ता है वह फर्स्ट यानी फर्स्ट हुमन जिसको कहें नई दुनिया का, तो पहले यह प्रिंस है ना। पीछे वही श्रीनारायण बना है परंतु पहला तो छोटापन गिनेंगे ना। तो यह सभी चीजें बैठ कर के बाप समझाते हैं कि नई दुनिया का पहला- पहला। बाकी ऐसे नहीं एकदम कुछ है ही नहीं तो यह सभी चीजें और गीता में भी है मैं आता हूं अधर्म विनाश, धर्म स्थापन करने के लिए तो अधर्म विनाश करने के लिए आया होगा और धर्म स्थापन करने के लिए तो जरूर अधर्मी भी मनुष्य होंगे ना, इसका मतलब ही है कि दुनिया तो होगी ना। दुनिया थी ही नहीं और भगवान आया दुनिया बनाने के लिए तो उसका मतलब दुनिया थी ही नहीं तो ऐसा क्यों कहा मैं आता हुआ अधर्म विनाश और धर्म स्थापन करने तो इसका मतलब अधर्मी मनुष्य थे ना, तभी तो नाश करने आया तो कोई चीज थी ना, जिसका नाश किया और कोई चीज बनाई । तो नाश करने वाली भी तो कोई चीज थी ना, दुनिया थी न तो यह सभी चीजें समझने की हैं। तो बाप बैठकर समझाते हैं कि ऐसे नहीं है कि दुनिया कभी है ही नहीं । मैं आता हूँ दुनिया पुरानी को खत्म करके नई दुनिया बनाने के लिए तो वह सेपलिंग हो गई ना । बाकि ऐसे नहीं एकदम प्रलय, नहीं, नई दुनिया साथ ही साथ बनाने आता हूँ जैसे वह चेंज, यह जेनरेशंस की चेंज तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं इसीलिए कहते हैं अभी फिर उसी काम पर आया हूँ और वही काम कर रहा हूँ । अभी किस में आना चाहिए, डिस्ट्रक्शन की उस ओर जाना चाहिए या कंस्ट्रक्शन कि इस ओर आना चाहिए, यह तो हर एक को अपना निर्णय अपने से समझना है । कोई चाहेगा हम डिस्ट्रक्शन की ओर जाएँ, क्यों नहीं अपना अभी न्यू वर्ल्ड जो स्थापन हो रही है उसमें अपना सौभाग्य ले लें । और आत्मा को पुनर्जन्म में आना ही है । ऐसे भी नहीं है कोई समझे हम ऊपर बैठ ही जाएँ स्टॉक घर में बॉक्स में बैठे ही रहें, नहीं, रिकॉर्ड भरा हुआ है काहे के लिए, बजने के लिए या भरा रखने के लिए । वह भरा ही पड़ा है उसमें, उसको आना ही है ग्रामोफोन पर, जरूर आना है । ऐसा ही नहीं है कि रिकॉर्ड खाली बॉक्स में रखा रहे, नहीं तो फिर भरा ही किस लिए, काहे के लिए भरा है । तो उसमें पार्ट है, तो रिकॉर्ड में पार्ट है ही, उसको ग्रामोफोन पर आना ही है और यह अनादि है, उसको बजना ही है, उसको शरीर में आना ही है । कोई कहे कि नहीं, हम लीन हो जाएँ । बैठे ही रहे उधर, उसमें लीन हो जाएँ । एक तो लीन नहीं हो सकते जिसका जो-जो पार्ट भरा हुआ है एक दो में मिलते, एक का गीत दूसरा, दूसरे का गीत तीसरा, सबका अपना अपना गीत अपना है न, देखो सब का कर्म का हिसाब अपना है ना, एक ना मिले दूसरे से, मिलता नहीं है इसीलिए सबका अपना है । अनेक जन्मों का ही अपना-अपना है । इसीलिए कहते हैं बच्चे यह तो बातें सब समझने की है कि यह ड्रामा की, बेहद की सब बातें कैसे बनी हुई है, इन्हीं सभी बातों को समझना है । तो यथार्थ रीति से जान करके अभी उसके मुताबिक क्या करना चाहिए । बाकि ऐसे नहीं कि मैं लीन हो जाऊँ, नहीं उसमें लीन नहीं हो सकते, उसका पार्ट अपना है परमात्मा का भी । उसमें कोई लीन नहीं हो सकता है ना । उसका पार्ट अपना है । आत्मा आत्मा में भी लीन नहीं हो सकती है तो परमात्मा में कैसे लीन हो सकेगी, कभी नहीं । आत्मा आत्मा में भी चाहे लीन हो जाए तो भी नहीं हो सकती है । उसका पार्ट अपना उसका पार्ट अपना हर एक का संस्कार अपना तो आत्मा आत्मा में भी मिक्स नहीं हो सकती तो उसमें कैसे होगी । वो तो है ही सबसे न्यारा । कहते है ना तुम्हारी गत मत न्यारी, तुम्हारा सब कुछ न्यारा तो वह जो है ही न्यारा बिल्कुल, जन्म मरण रहित तो हमारे से उसके मिलने की क्या बात है और मिलने से कोई मतलब भी नहीं है इधर हमको जो स्टेज चाहिए सुख की शांति की इसीलिए हम समझते हैं ना हम उसमें मिल जाएँ, शांत स्वरूप हो जाएँगे । परंतु हमको अपने स्टेज में जो शांति लेने की है वह हमारी स्टेज है ना । ऐसे थोड़ी उससे मिलेंगे तभी शांति होगी, नहीं, हमको अपनी स्टेज में शांति की स्टेज है लेकिन हम वह जानते नहीं हैं । हमको वह अपनी स्टेज प्राप्त करने की है । तो वह हम कैसे प्राप्त करें इसी का बैठकर के बाप समझाते हैं कि तुम मेरे में मिलने की लीन हो जाने की कोशिश मत कर । न तू लीन होगा, ना वह स्टेज कोई ऐसे मिलने की है । तुमको कैसे स्टेज तेरी मिलने की है वह तू मुझसे समझ । वह जो तुम्हारे ऊपर जो ब्लैक आवरण ग्रहण माया का चढ़ा है ना वह उतार तो तू भी अपनी स्टेज पर आ जाएगा । तो तुमको क्या उतारना है तुमको कैसे प्योर बनना है तो उसी तरीके से प्योर बन । बाकि कोशिश करते हो की उसमें मिल जाएँ मिल जाएँ, मिलेंगे क्या? उसमें मिलने का या कुछ ऐसा होने का तो है ही नहीं ना । वह होने की नहीं है । उनसे कनेक्शन रखकर के पावर लेने का है और अपने ऊपर जो ग्रहण चढ़ा है ना माया का, ब्लैक हो गए हो, वह चमक तुम्हारी निकल गई है एकदम, तो वह चमक अपने में लाओ । वह मेरे से चमक ले मेरे से वह पॉवर लो, वो शक्ति लो, वो बल लो चमक का, उसी चमक से फिर तुम सदा सुखी बनेंगे । फिर ऐसी चमकीली आत्मा फिर जब शरीर भी लेगी वह भी चमकीले, जैसे देवताओं के शरीर एवर हेल्दी एवर वेल्थी एवर हैप्पी बाकी तुम्हारा ऐसे ही काम है बाकि ऐसे नहीं तुम कोशिश करो मेरे में मिलने की, मेरे मिलने का तो कुछ है ही नहीं । जो है ही नहीं बात, जो स्टेज ही नहीं है, जो होने की नहीं है, उससे कुछ नहीं । जो तुम्हारे को मिलना क्या है, तुम्हारा होना क्या है, तुमको प्राप्त क्या करना है वह तू अपनी समझ ना । तुम चीज क्या हो, तुमको कैसे अपनी चीज अपने लायक बनानी है, अपने कोशिश उसी में रखने की है उसी को समझ । तो यह सभी बातें समझने की है उसी को समझ करके और अपना पुरुषार्थ रखने का है । तो बुद्धि में आती हैं न ये सभी बातें ? तो उसी को समझ के अभी यही पुरुषार्थ अपना रखने का है । अच्छा टाइम हुआ है, दो मिनट साइलेंस । साइलेंस का मतलब है याद करो और उससे पावर लो तो यह ब्लैक आवरण से चढ़ा है ना, वह उतरता जाए, ये उतारना है । याद का मतलब भी यही है कि उससे हमको पावर मिलेगा, शक्ति मिलेगी, बल मिलेगा याद का कनेक्शन और हमको अपना वह उतारना है । बाकी कोई ऐसे नहीं उसमें मिल जाने की कोई बात है कुछ नहीं । उससे हमको मिलना है कुछ, मिलने का मतलब यह नहीं है कि मिल जाना है, नहीं उससे प्राप्त होना है । उससे मिलना है, क्या प्राप्त होने का है, यह पावर, जिससे हमारी आवरण अथवा जो कुछ चढ़ा है, यह अज्ञान का अंधकार कहो या माया का ग्रहण कहो उससे हमें छूटना है । माया का बोंडेज कहो । स्वर्गवासी बना रहे हैं । स्वर्ग बनेगा तभी तो स्वर्गवासी भी बनेंगे ना । स्वर्ग ही नहीं होगा तो स्वर्गवास कहाँ करेंगे । अभी सवर्ग ही तो परमात्मा अभी आया है बनाने । तो अभी आया है बाकी कोई दुनिया बनी रखी नहीं है, बनाने आया है । इसी दुनिया को ही उसको बनाना है न । तो जब स्वर्ग बनाने वाला आवे स्वर्ग बनावे तभी तो हम स्वर्गवासी होवें ना । इससे पहले कोई हुआ होगा स्वर्गवासी, कोई नहीं । कैसे होगा, स्वर्ग ही नहीं है, कहाँ है, किधर है । इसीलिए बाप कहते हैं इससे पहले ही नहीं तो स्वर्गवासी कहाँ होंगे, यही बैठे हैं सब । जो मरे हैं इधर ही हैं कोई ना कोई जन्म में । कोई गया ही नहीं है स्वर्ग में । स्वर्ग ही कहाँ है जो वहाँ गए होंगे । स्वर्ग ही मैं अभी आता हूँ बनाने के लिए । अभी जो बनेंगे ऐसे लायक वो फिर स्वर्ग में शरीर लेते, शरीर छोड़ते स्वर्गवास में रहेंगे, यानी स्वर्ग में शरीर छोड़ेंगे शरीर लेंगे । तो वह स्वर्ग का शरीर छोड़ना और लेना वह मरना नहीं है । तो उसको कहेंगे अमर । तो वो दु:ख से शरीर नहीं छोड़ते हैं, अभी तो दु:ख से छोड़ते हैं ना, इसको अकाले मृत्यु कहते हैं । उसको मृत्यु नहीं कहेंगे, वह मालिक हो करके शरीर छोड़ते हैं जैसे साँप एक खाल उतारता है, दूसरी चढ़ाते हैं इसी तरीके से यह एक शरीर पुराना हुआ, छोड़ दिया इसमें दुःख करने की क्या बात है । और ही पुराना कपड़ा छोड़ते हैं, नया पहनते हैं खुशी करते हैं ना, नया कपड़ा मिला है आज । ऐसा नहीं है? पुराना छूटा तो इसमें भी क्या है । बाल युवा वृद्ध अभी टाइम पूरा हुआ भाई पुराना उतारते हैं नया लेते हैं । पता रहता है न अभी टाइम है उतारने का, अभी नया लूँगा क्या लूँगा । मालूम रहता है इसीलिए वो डर नहीं रहता है । वह दु:ख का तो है ही नहीं जनरेशंस सुख के ही हैं । अभी तो दु:ख है ना तो बिचारे रोते हैं । जिसके घर से कोई मरता है तो घरवाले भी रोते हैं, और वह भी बिचारे दुखी होके हैं । होता है, तो यह दु:ख में जाते हैं ना इसीलिए रोते हैं । कहते हैं स्वर्गवास है परंतु जाते तो दु:ख में है ना तो रोना तभी आता है । आत्मा तो जानती है ना कि वहाँ जाता है दुख में तो रोते हैं तभी । सुख में तो बिचारी जाते नहीं, तो अपन अभी सच-सच स्वर्गवासी होते हैं । तो अभी सच-सच स्वर्गवास बनाने का प्रयत्न करो अपने को । कैसा माताजी अच्छा है? फिर चलेंगी स्वर्ग में? उसके लिए तो फिर पुरानी दुनिया का सब जो अटके हैं कुछ वो छुड़ाना पड़ेगा । नहीं तो कोई पीछे पकड़ेगा तो घसीट के ले जाएगा तो इसीलिए देह सहित देह के सबंधों से बुद्धियोग हटा करके एक में जोड़ना है, उसका पावर खींचने का है । नहीं तो किधर मोह ममत्व लटका हुआ होंगा न तो वो पीछे वाले पकड़ लेंगे फिर बुद्धि उधर चली जाएगी तो अंत मते सो गते । तो फिर ऐसा हो जाएगा । इसलिए बाप कहते अपने को आल राउंड से छुड़ा के बंधनमुक्त हो जाओ, तो फिर मेरे से होगा तो फिर ले जाऊँगा, ठीक है ना । कैसा, अच्छा।