मम्मा मुरली मधुबन
परमात्मा का कर्तव्य - 2
गुड मॉर्निंग । आज सोमवार अप्रैल की छबीस तारीख है। प्रातः क्लास में प्राण मां की मुरली सुनते हैं।
रिकॉर्ड:
तुम ही हो माता पिता तुम ही हो
यह महिमा सुनी अपने बेहद के बाप की क्योंकि यह कोई कॉमन मनुष्य की ऐसी महिमा नहीं हो सकती । यह उसी एक की महिमा है, जो इस महिमा का अधिकारी है । यह उनकी महिमा उनके कर्तव्य अनुसार है गाई जाती है । उसका कर्तव्य सभी मनुष्य आत्माओं से महान है क्योंकि सभी मनुष्य आत्माओं के लिए ही उसका कर्तव्य है तो वह सबसे ऊंचा हो गया ना क्योंकि सबके लिए, सबका गति-सद्गति दाता एक ही है । ऐसे नहीं कहेंगे थोड़ो की गति-सद्गति दाता है। नहीं, सर्व का, तो सर्व की अथॉरिटी हो गई ना । तो सबका गति सद्गति दाता एक । तो वह एक जो है, उसने आकर के हम सबके लिए क्या महान कर्तव्य किया है जिसकी महिमा है और महिमा होती भी तभी है, वैसे भी कॉमन तरीके से भी देखा जाए तो महिमा होती भी तभी है जब कोई कर्तव्य करता है । भाई गांधी ने कुछ किया, फलाने ने कुछ किया जिन्हों-जिन्होंने ने कुछ ना कुछ थोड़ा-बहुत जैसा-जैसा भी काम किया है तो उसकी देखो महिमा है । तो बाप की भी जो महिमा है, वह भी ऐसे ही नहीं है क्योंकि वह है ही ऊंचा इसीलिए नहीं । उसने काम ऊंचा किया है तो उसके भी कर्तव्य की महिमा है। उसकी भी बिना कर्तव्य के महिमा नहीं है। यहाँ आकर के उसने महान कर्तव्य किया है और वह हमारे संबंध में कर्तव्य है तभी तो हम गाते हैं ना, नहीं तो हम क्यों गाते । हम जो उसकी महिमा गाते हैं और महिमा करते हैं उसे याद करते हैं तो जरूर हमारे लिए किया है । तो हमारे लिए किया है और उसने सबसे ऊंचा कर्तव्य किया है इसलिए सबसे ऊंची उसकी महिमा है । तो यह है उसी बाप की महिमा जिसने हमारे लिए, मनुष्य सृष्टि के लिए कहेंगे महान ऊंच कर्तव्य किया है क्योंकि इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता उसे कहा जाता है ना । तो उसने आकर के मनुष्य सृष्टि को ऊंच बनाया है । सृष्टि को, कोई थोड़े आदमियों को, या थोड़ी संख्या को या किसको ऐसा नहीं है । उसने आकर के सारी सृष्टि को बनाया है। उसमें सब आ जाता है न, यह तत्व आदि सब आ जाता है जिस सब को आकर के परिवर्तन में लाया है । लेकिन लाया किस युक्ति से है वह बैठ करके समझाते हैं कि ऐसे नहीं है, पहले मनुष्य आत्मा, आत्मा को चेंज में लाने से फिर आत्मा के बल से अपने कर्म के बल के आधार से फिर आत्मा का शरीर, फिर उस शरीरधारी मनुष्य के लिए ये सब प्रकृति तत्व आदि पर भी उनका बल काम करता है लेकिन बनाने वाला तो हो वह हो गया ना इसलिए बनाने वाला वह, परंतु बनाते कैसे हैं जब तलक मनुष्य आत्माएं ना ऊंची बने, तब तलक आत्मा के आधार से शरीर, प्रकृति तत्व आदी यह सभी नंबरवार उसी ताकत में आते हैं। उससे फिर यह सारी सृष्टि हरी-भरी कहो या सृष्टि कहो सुखदाई बनती है। तो सुखदाई बनाने वाला बाप जानता है कि मनुष्य सृष्टि सुखदाई बनेगी कैसे, जब तलक आत्माएं स्वच्छ ना बनी है तब तलक संसार सुखदाई नहीं हो सकता है इसीलिए वह आते हैं पहले-पहले आत्माओं को ही आकर के स्वच्छ बनाते हैं । तो स्वच्छता वहाँ से होगी क्योंकि लगी भी आत्मा को है ना। जो भी कुछ लगा है इंप्योरिटी वह लगी है आत्मा को । तो जब तलक वहाँ से इंप्योरिटी ना निकली है तब तलक हर चीज से इंप्योरिटी निकल नहीं सकती है । तो पहले पहले निकलनी है उनसे, आत्मा से तो फिर आत्मा के बल से हर चीज से उनकी इमप्योरिटी अर्थात तमोप्रधानता जो है वह बदल कर के सतोप्रधानता हो जाएगी जिसको कहेंगे कि सभी गोल्डन एजेड में आ जाते हैं तो फिर यह तत्व आदि भी गोल्डन एजेड स्टेज में आ जाते हैं, परंतु पहले स्टेज किसकी बदलेगी, आत्मा की इसीलिए आत्माओं का बदलाने वाला अर्थात आत्माओं को प्यूरीफाइड बनाने वाला फिर अथॉरिटी वह हो गया । तो वह बाप जानता है ना कि यह संसार अथवा दुनिया भी बदलेगी कैसे । तो बदलने वाला वह इसी तरीके से आकर के हमको बदलते हैं अर्थात हमारी दुनिया को बदलते हैं । फिर देखते हो ना दुनिया बदलती जा रही है। बदलते जा रहे हो ना, पहले तो अपने को बदलना है ना । हम अपने को बदलेंगे उसके आधार से फिर दुनिया बदलेगी तो अभी बदलते जाते हो अपने बदलाव को देखते जाते हो? क्योंकि अपने को जांचते जाना है अथवा देखते जाना है कि हम अपने में बदलते जा रहे हैं, हमारे में क्या फर्क आया है । अगर फर्क नहीं आया है, इधर नहीं बदले हैं, अपने मैं नहीं बदले हैं तो फिर हाँ, बदली हुई दुनिया में नहीं आएंगे । इसीलिए पहले देखना है, अंदाजा अपना लगाना है अपने से कि हम अपने में बदले हैं? तो अपनी जांच रखो रोज रात को , तो सारा दिन जब बीतता है रात को अपनी जांच करो । जैसे पोतामेल रखने वाले रात को अपना खाता देखते हैं ना कि हाँ क्या जमा हुआ, क्या निकला, क्या हुआ सब अपना हिसाब रखते हैं तो यह भी अपना सारा पोतामेल रखने का है तो फिर जांच करो कि हमारे सारे दिन में कितना फायदा रहा, कितना नुकसान रहा, क्या नुकसान में गया, क्या फायदे में आया, अगर नुकसान में कुछ ज्यादा गया तो फिर दूसरे दिन के लिए खबरदार रहना है कि नुकसान ना हो फायदे में आवे तो इसी तरीके से अपना अटेंशन रखने से फिर हम फायदे में जाते-जाते अपने को ठीक अपनी जो पोजीशन है उसको पकड़ते चलेंगे तो यह अपनी जांच रखने की । तो ऐसी जांच रखते और अपने को बदलता हुआ देखना है कि हम बदलते जा रहे हैं वह महसूस होना चाहिए ना । ऐसे नहीं हम सो देवता बनेंगे वह तो पीछे बनेंगे अभी जैसे हैं वैसे ही । नहीं, वह बदलने का तो यहाँ ही मालूम पड़ेगा ना कि हमारे में हमारे में हमारे संस्कार में क्या परिवर्तन है । हमारे को क्या पता चलेगा । हमारे संस्कार आगे जो पांच विकारों के वश संस्कार चलते थे, अभी देखना है कि उस विकारों से हम छूटते जा रहे हैं तो फिर वह छूटे हुए दिखाई पड़ेंगे ना । आगे क्रोध था भई हमारे में ज्यादा, अभी हम देखते हैं कि हमारे में वह क्रोध निकलता जा रहा है अथवा हमारे में लोभ था, मोह था जो भी विकारों का है तो यह सभी बातों को देखते जाना है कि हमारे यह संस्कार बदलते जा रहे हैं । अगर बदलते जा रहे हैं छूटते जा रहे हैं तो मानो हम बदलते जा रहे हैं । अगर नहीं छोड़ते हैं तो समझेंगे अभी बदले नहीं हैं तो बदलने का फर्क महसूस होना चाहिए । अपने में चेंज आनी चाहिए तो यह जांच करनी है अपने से । तो यह रोज अपना देखना है क्योंकि हमारे रोज के जो हम सारा दिन करते हैं, उसी से ही तो हमारा खाता बनता है ना कर्मों का । तो जहाँ से बनता है वहाँ से ही तो हमको संभालना है ना । बाकी ऐसे नहीं है कि सारा दिन हम अपने विकारी खाते में चलते रहे बाकी समझे कि हमने अच्छा किया, कोई दान किया पुण्य किया बस उससे हमने अच्छा किया। नहीं, हमारा कर्म का जो खाता चलता है उसी में ही तो हमको संभलना है ना कि हम जो कुछ करते हैं वह हम कोई विकार के संग में अपना विक्रमी खाता तो नहीं बनाते हैं तो अपने को संभालना है । तो यह सारी जिसको कहा जाता है सारे दिन की दिनचर्या और यह सारा अपना पोतामेल रखने का है कि सारा दिन कैसा बीता, तो यह रात को जाँचना है । जब सोते हैं ना तो सोने से पहले दस पंद्रह मिनट अपनी इन्हीं बातों को देना चाहिए। विचार रखना चाहिए कि आज सारा दिन हमारा कैसा बीता। कई होते हैं जो नोट भी करते हैं कि हाँ ख्याल में रहेगा आज हमारे से यह ऐसी बात ये क्रोधवश हुई । इस विकारी संग से यह बात हो गई, तो जो कुछ हो तो फिर दूसरे दिन के लिए खबरदार रहेंगे। तो यह सारे दिन का अपना रखना और साथ-साथ अपने पिछले पापों का भी जो बोझ है सिर पर उनके लिए भी अपना चार्ट रखना कि हां उनको भी तो हमें मिटाना है ना। तो उसे मिटाने के लिए बाप का फरमान है मुझे याद करो तो वह भी हमने कितना समय उस याद में दिया जो पिछले खाते का पाप का बोझा मिटे । तो यह चीजें ख्याल में रखने की है कि हम सारे दिन में अपना चार्ट अथवा सारे दिन की दिनचर्या कैसे रही तो यह ख्याल रखने से फिर हम दूसरे दिन के लिए सावधान रहेंगे । ऐसे सावधान रहते रहते सावधान हो जाएंगे फिर हमारे कर्म अच्छे रहते चलेंगे। फिर ऐसा कोई पाप नहीं होगा। तो पापों से ही तो बचना है ना । बुरा बनाते हैं हमको यह विकार और विकारों के कारण ही हम फिर दु:खी होते हैं क्योंकि पाप बनता है तब तो दुःख होता है ना । अभी हमने छूटना है दुःख से मुख्य चीज यही है बाकी और कोई बात तो नहीं है । परमात्मा को भी हम पुकारते हैं, याद करते हैं जो भी कुछ है यह सभी यत्न किसलिए हैं? चाहे सांसारिक पदार्थों के यत्न, चाहे यह ईश्वरीय मार्ग के यत्न काहे के लिए हैं? अपने सुख और शांति के लिए, एम तो यही है ना । लेकिन वह एम् हमारे में आएगी कैसे हम पाएंगे कैसे उसका यह प्रैक्टिकल प्रैक्टिस जब उसमें आएंगे तभी तो होगा ना । तो यह है प्रैक्टिस इसीलिए इसको कहा ही जाता है प्रैक्टिकल कॉलेज, उस प्रैक्टिस के लिए जिससे हम अपने को स्वच्छ अथवा पवित्र बनाकर के फिर हमारा जो आदि सनातनी पवित्र प्रवृत्ति का आदर्श है वह हम पा लेते हैं । तो यह उसी की कॉलेज जैसे डॉक्टरी कॉलेज में कोई जाएगा डॉक्टर बनने के लिए तो डॉक्टरी प्रैक्टिस से डॉक्टर होता जाएगा ना । इसी तरह से हम भी इस कॉलेज में कहो या इस स्कूल में कहो, इस पढ़ाई से अथवा इस प्रैक्टिस से हम इन विकारों से अथवा पाप कर्म करने से कैसे छूट जाए, तो हमको उसकी प्रैक्टिस में चलना है। तो जितना हम उसकी प्रैक्टिस में रहेंगे उतना-उतना हम स्वच्छ होते जाएंगे। स्वच्छ की डिग्री क्या है देवता। ये देवता ही तो स्वच्छ गाए हुए हैं ना। उनकी ही तो महिमा है न सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण संपूर्ण निर्विकारी तो यह महिमा है न। तो बनना है, ऐसे नहीं है बने बनाए हैं । नहीं, बनना है क्योंकि हम ही बिगड़े हैं । हम ही देवता थे सो बिगड़े हैं अभी बिगड़े से फिर सुधारना है। तो यह हमको ही बनना है ना। ऐसे नहीं देवताएं कोई बैठे हैं, दूसरी कोई दुनिया है। नहीं, यह हम ही, मनुष्य ही देवता बनने के हैं और देवता ही फिर ऐसे हुए हैं, गिरे हैं अब फिर चढ़ना है । कैसा? तो फिर चढ़ना है ना अभी? लेकिन चढ़ने का भी ढंग बैठ करके बाप समझा रहा है। उसको समझ के चलने का है। कैसा? ख्याल में है ना पूरा ?अच्छा! आते हैं सबका मुखड़ा देखने के लिए, खुश खैराफत पूछने के लिए। तो सब अपने बेहद बाप से जो बाप वर्सा देने के लिए वर्सा कहो या अपना ही हक कहो जो बाप के पास है। यह मिलेगी चीज उसी से ही, यह ख्याल में रखना है कि उसी से ही मिलेगा। तो जो चीज उसके द्वारा ही मिलने की है इसीलिए उसके साथ ही हमको अपना रिलेशन अभी जोड़ना है । टूट गया था रिलेशन, अभी बाप ने आकर की रोशनी दी है कि तुम मेरे हो अभी मेरे हो करके कैसे रहो। प्रैक्टिकल जैसे लौकिक में बाप बच्चों का बच्चे बाप का कैसे हो करके रहते हैं। रहते हो ना, देखो रह रहे हो, चल रहे हो ना । अभी बाप कहते हैं नहीं, मेरे होकर के रहो। प्रैक्टिकल तन मन धन से मेरे हो करके चलो । कैसे चलो, आदर्श है कि जिसके तन में आता है, उसने अपना तन मन धन किसका बना करके रखा, उनका रखा ना। जैसे वह प्रैक्टिकल में उनका हो कर के चल रहे हैं कहते हैं फॉलो फादर । अभी फॉलो करना है कि मनुष्य को क्या करना है वह वह मनुष्य से करा करके दिखाते हैं तो अभी करना है ना। तो अभी करते चलो। इसमें और कोई पूछने की और मूंछेंने की भी बात नहीं है। सीधी है ना साफ बात, तो अभी चलते रहो। अच्छा, टाइम हुआ अभी । क्योंकि सुनना है थोड़ा। एक एक बात बहुत मूल्य वाली है । ऐसे नहीं बहुत सुनो और धारण करो थोड़ा । नहीं, सुनो थोड़ा, धारण करो बहुत। करना तो प्रैक्टिकल धारण है ना इसीलिए जो सुनते हो उसको प्रैक्टिकल में कैसे लाओ उसका पूरा ख्याल रखते रहो । तो अभी आप लोगों में यह प्रैक्टिकल डाली जाती है कि थोड़ा सुनो और धारण बहुत करो, नहीं तो बहुत सुनते हो ना, उसमें से थोड़ा उठाते हो । अभी सुनो थोड़ा और धारण करो बहुत वह प्रैक्टिस कराई जाती है। तो अभी थोड़ा सुनो और धारण करो बहुत ऐसी अपनी प्रैक्टिस को आगे बढ़ाते चलो । अगर कोई इसको एक अक्षर सुने और प्रैक्टिकल में लाए ना तो देखो क्या हो जाए, बस सुने और लाए । ऐसे नहीं सुनते रहे सुनते रहे। नहीं, सुने और लाए तो देखो क्या हो जाए। तो आज जो सुना उसको अगर कोई प्रैक्टिकल में लाए की बस आज से हम इसी स्टेज में चलेंगे। अपने से कोई विकार संग या कोई ऐसा काम नहीं करेंगे और अपनी ऐसी दिनचर्या और अपना ऐसा चार्ट ये रखेंगे, अगर इसको कोई प्रैक्टिकल प्रैक्टिस में उठाए और चले तो देखो क्या हो जाएगा। तो अभी इसकी प्रैक्टिस प्रैक्टिकल में लाओ। समझा! तो जो सुनते हो वो लाओ, अभी ऐसी प्रैक्टिस में चलना है बाकी नहीं तो बहुत सुना है। सुना है बहुत प्रैक्टिकल में बहुत थोड़ा करते हो इसीलिए अभी सुनाएंगे थोड़ा और प्रैक्टिकल प्रैक्टिस में बहुत लाने का ख्याल रखने का है । तो यह ध्यान रखना है प्रैक्टिकल प्रैक्टिस में चलें और उसकी प्रैक्टिकल की धारणा । कैसे हैं हमारे ये छोटे-छोटे मुंबई के लाडले फूल कहो, फूल कहें कली कहें? फूल? ओहो! अच्छा फूल कहो। भला फूल खुशबूदार कहें या क्या कहें? खुशबूदार । फूल कहीं बिना खुशबू के होते हैं? अच्छा, भला खुशबूदार में भी कौन सा फूल कहे? गुलाब का कहें ? देखो तो यह तो बड़ा झाड़ लगाते गए हैं, कुछ नहीं छोड़ा। पहले कहा फूल कहो, पीछे कहा खुशबूदार कहो, फिर कहा गुलाब का कहो तो कंप्लीट जगह भर दी एकदम, बाकी कुछ रखी ही नहीं । बहुत अच्छा । अब जो कहा ना उसको प्रैक्टिकल में चलाओ । तो अभी ऐसी प्रैक्टिस करो की जो कहते हो जो सुनते हो वह करो, बस दूसरी बात नहीं । जो कहो, जो सुनो सो करो । करने के ऊपर जोर दो समझा । समझते हैं हमने क्या देखा, किस से मिले या बाबा ने क्या सुनाया, क्या हुआ उसका भी ज्ञान है ना तभी मजा है । नहीं तो बिना ज्ञान ऐसे भक्ति मार्ग में भी बहुत जाते हैं तो बस देखा फिर क्या । वो तो समझते हैं न, बस देखा ना हमारे स्वर्ग के खुल गए । हम पहुंच गए उधर । परंतु नहीं, देखो पहुंच थोड़ी ही जाते हैं। फिर उसको भेज देता उतार करके, कहते हैं अभी मेहनत करो। करेंगे तो अपने कर्म से ना। प्रैक्टिकल तो तभी जाएंगे जब अपने कर्म को बनाएंगे। बाकी तो अच्छा देखा जैसे स्वप्न । अच्छा ज्ञान जैसा मिला है और जैसा दादा को बनाया है अभी ऐसा बनने का है। फॉलो करना है तो ऐसा बाप और ऐसा दादा दोनों को जानते हो ना अच्छी तरह से अब फॉलो करो । ऐसे जो फॉलो करने वाले हैं सपूत बच्चे हैं अथवा मीठे मीठे बच्चे हैं ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग।