मम्मा मुरली मधुबन
पुरुषार्थ और प्रालब्ध
यह संगम का सुहावना समय वह अच्छा व हमारा भविष्य जो हम देवी-देवता पद को पाएंगे वह अच्छा? क्वेश्चन करते हैं, कौन से दिन अच्छे हैं ? यह अच्छा? क्यों? देवी देवता बनेंगे, प्रालब्ध पाएंगे सतयुगी बनेंगे, वह नहीं अच्छा और यह अच्छा, क्यों ? यहाँ से ही पद पाते हो तभी, यह ठीक है । हाँ, यह ठीक बात है कि यह दिन उन दिनों से भी अच्छे हैं । क्योंकि कमाई इसमें करते हैं । वह तो खाएंगे, खाते-खाते, खाते-खाते खुट जाएगा । यहाँ तो भरते हैं ना तो इधर तो भरते रहते हैं तो भरने के दिन अच्छे हैं ना और यहाँ हमको बाप का संग मिलता है । उसके साथ हम अपना सौभाग्य बनाते हैं तो यह सौभाग्य बनाने के दिन है । पीछे तो सौभाग्य की प्रालब्ध पाएंगे । सोलह कला से फिर कला कम होते-होते चौदह कला हो जाएगी तो वह तो हुआ खाते रहना और यहाँ है अकाउंट में जमा करते रहना तो यह जमा के दिन अच्छे हैं जो हम अकाउंट में डालते भरपूर होते जाते हैं और बाप के संग के दिन हैं । तो हाँ यह दिन बहुत मीठे हैं जो अभी गुजर रहे हैं । उसमें भी अभी प्रेजेंट क्योंकि कमाई के दिन में भी इस संगम में भी यह टाइम कमाई का है संगम का । आगे चलकर के जब विनाश का सीन चलेगा तब उस टाइम थोड़े बैठकर के सुन सकेंगे, कमाई कर सकेंगे । नहीं, कमाई का यह अभी का टाइम है, यह जो बीच का थोड़ा टाइम है इसी में हम यह कमाई कर सकते हैं इसके बाद दिन और भी खराब होते जाएंगे, जिसमें हम ऐसे बैठ करके सुने, करें मुश्किल पड़ता जाएगा । तो यह सभी बातें समझने की है और इसमें यह हमारा प्रेजेंट एक-एक दिन जो भी बीतता जा रहा है यह सब सुहावने दिन है । संगम में भी यह सुहावने दिन है क्योंकि कमाई के दिन है ना । पीछे, आगे चलकर के कमाई नहीं होगी फिर जो अपना स्टॉक यह जमा करके रखा है ना, उस टाइम पर भी उसी से काम लेना पड़ेगा ना । जितनी-जितनी जिसकी धारणा होगी तो उस धारणा को फिर उसमें लगाना पड़ेगा, जिसमें ताकत होगी । तो ताकत भी जमा करते हो ना ये दिन । संगम के दिनों में भी यह दिन प्रेजेंट के दिन, यह वह दिन जिनमें हम कमाई कर रहे हैं तो ऐसे संगम के सुहावने दिनों को खोते नहीं रहना, ध्यान रखना है । जब कहते हो कि नहीं, उन प्रालब्ध के दिनों से भी यह दिन अच्छे हैं तो इस दिनों से हम इतनी कमाई करते हैं और गाते भी ऐसे हैं शास्त्रों में भी है देवताएँ भी इच्छा करते थे मनुष्य जन्म की । परंतु देवताएं क्यों मनुष्य जन्म की इच्छा करते थे, यह बात कहने की है, ऐसे नहीं कि हम कोई इच्छा करेंगे वहाँ इसकी, हमको तो याद भी नहीं होगा कि हम ऐसे थे, हमने ऐसे यह प्रालब्ध प्राप्त की । डिटेल तो नहीं होगी, हाँ यह होगा कि हाँ अच्छे कर्म किए हैं, जैसे कॉमन होता है की मैंने अच्छे कर्म करते हैं तो अच्छा मिला है तो वैसे ही अच्छा फल पाया है परंतु अभी तो जानते हैं ना । तो गाते हैं कि भाई देवताएं भी मनुष्य जन्म की इच्छा रखते थे, कौन से मनुष्य जन्म की? यह, अभी के अंतिम जन्म की । मनुष्य जन्म तो ऐसे बहुत हैं, देवताओं के भी मनुष्य जन्म तो बहुत चले हैं ना, परंतु यह, अंतिम जिसमें हम बाप के साथ कैसे हमने यह सुहावने दिन बिताए अर्थात यह अपनी प्रालब्ध ऊँची पाई, इन दिनों की वह भी इच्छा रखते हैं । तो इस मनुष्य जन्म की यह अंतिम जन्म क्योंकि इस अंतिम जन्म से ही तो हम इतने ऊंचे बनते हैं ना देवी देवताओं जेनरेशंस में, अपनी प्रालब्ध ऊंची प्राप्त करते हैं । तो इन दिनों को भूलना नहीं । ना भूलना है, ना खोना है और इन दिनों को अच्छी तरह से कमाई में तत्पर होकर के कमाई करने की है और सच्ची कमाई अभी ही है । इस कमाई से हमारी सभी कमाई हो जाती है सब । हमको धन-संपत्ति सब फिर इसमें से पूरा हो ही जाता है ना । तो पीछे हमको बैठकर के कोई शरीर निर्वाह के लिए ऐसे माथा खोटी ऐसे नहीं करना पड़ेगा जैसे अभी । अभी सारा दिन माथा खोटी करते हो तभी पेट की आजीविका निकल सकती है, उधर ऐसा नहीं है । उधर पेट के लिए चिंता ही नहीं है, पेट के लिए तो खाने-पीने का अपना अच्छी प्रालब्ध मिलती है । सब के पास अच्छी जायदाद रहती है, भले राजा हो, प्रजा हो सब खाने-पीने में सुखी क्योंकि वहाँ संख्या भी थोड़ी, माल बहुत सब कुछ तो फिर काहे के लिए चिंता और वहाँ तन दुरुस्त मन दुरुस्त, ख़ुशी जैसी खुराक नहीं, हैप्पी लाइफ होती है ना वहां तो यह सभी चीजें अभी अपन जानते हैं इसीलिए ऐसी लाइफ बनाने का अपना पूरा-पूरा पुरुषार्थ और ख्याल और अटेंशन रखते रहना एक एक घड़ी की बहुत कमाई तो इसीलिए इसमें एक घंटे, एक घड़ी, आधी घड़ी का भी बहुत मूल्य है । इससे हम बहुत जन्म जन्मांतर का बना सकते हैं । उसमें तो देखो आठ घंटे देते हो, आज घंटों में आजीविका का मुश्किल से निकल सकता है और इधर तो इसमें देने से तुम्हारा जन्म जन्मांतर का कमाई निकलती है । इसमें कहते हैं घड़ी, आधी घड़ी, आधी की भी पुनः आधी घड़ी दो तो भी तुम्हारे जन्म जन्मांतर का मिलेगा देखो इसमें कितना मल्टीप्लिकेशन हो जाता है । तो ऐसी कमाई के लिए और ऐसी धारणा बनाने से देखो अब कितना अपना जन्म जन्मांतर का बनाते हैं । तो क्यों नहीं ऐसी कमाई के लिए अपना जितना टाइम बन सके उतना देना चाहिए तो इससे हमारी कितनी कमाई बनेगी और सच्ची । तो ऐसी कमाई के मूल्य को अच्छी तरह से समझते अभी बाप से अपना यह हक लेने का पूरा पुरुषार्थ रखते रहना है । तो अभी अच्छी तरह से बाप को और बाप के द्वारा जो जायदाद कहो या वर्सा कहो प्राप्त होता है उसको जान गए हो ना? अभी इन बातों में तो कोई मूंझता नहीं है ना, ना बाप में कि कैसा बाप है या कैसे आ सकता है या कैसे साधारण तन में आता है ऐसी-ऐसी बातों में तो नहीं कोई अभी मौजूदा है ना, तो अभी बाप को भी समझा है और फिर बाप से जो कुछ प्राप्ति होने की है उसको भी जाना है जिसके लिए तो अभी देख ही रहे हो दुनिया की हालात भी अभी समझाती जा रही है की अभी दुनिया की हालात पीछे पड़ती जा रही है । जो चीज पीछे है तो जरूर है कि उसका अंत हो करके कुछ आगे भी तो आएगा ना । पीछे पड़ते-पड़ते आखिर उनका एंड भी तो होना चाहिए ना, ऐसे थोड़ी है कि पीछे पीछे चलता जाए । नहीं, एंड है तो अभी एंड का भी तो कभी टाइम आएगा ना, तो आया है । दुनिया नहीं जानती है कि एंड है, दुनिया समझती है कि यह तो ऐसे हो करके सुधरेगी । बिचारे चिल्लाते तो सब देखो रहते हैं, कई तो समझते हैं इससे तो अच्छा ब्रिटिश गवर्नमेंट थी तो कुछ अच्छे थे कैसे समझते हैं की स्वराज्य पा करके बेचारे खुद ही तंग पड़ गए हैं जैसे । परंतु नहीं, लिया तो सही, स्वतंत्र तो बने परंतु स्वतंत्रता का पूरा लाभ और पूरा सब वह सभी चीजें तो नहीं है ना । इसमें तो देखो ये भ्रष्टाचार आदि इन सभी बातों ने बाकी भी देखो कर्म को बुरा कर दिया है तो बुरे कर्मों के कारण देखो वह सुख जो वह अपना सुख नहीं पा सकते हैं, यह तो कर्म का हिसाब है ना । तो इसीलिए बाप बैठकर के अभी हमारे कर्मों को अच्छा बनाने का यह यत्न दे रहे हैं कि तुम श्रेष्ठाचारी बनो तो स्रेष्ठाचारी ही तो सुख पा सकेंगे न भ्रष्टाचारी थोड़ी सुख पाएंगे । नहीं, श्रेष्ठाचारी तो अपने आचरण को श्रेष्ठ बनाओ तो प्रकृति तुम्हारे आगे सेवा रखेगी अच्छी तरह से, नहीं तो प्रकृति लात मारती रहेगी, सब तरफ से दु:ख ही दु:ख आता रहेगा इसीलिए बाप बैठकर के यह श्रेष्ठाचार बनाने का अभी यह यत्न बतला रहे हैं इसीलिए कहते हैं पहले आचरण, अपने कर्म जब तलक अच्छे नहीं बने हैं तब तक तो हम उसका प्रालब्ध भी पा नहीं सकते हैं ना । यह हमारी प्रालब्ध अभी जो पा रहे हैं वह तो भ्रष्टाचारी कर्मों की तो भ्रष्टाचारी कर्मों की क्या पाएंगे भ्रष्ट प्रालब्ध अर्थात दुःख की । भ्रष्टाचारी कर्मों की भ्रष्ट प्रालब्ध और श्रेष्ठाचार कर्मों की श्रेष्ठ प्रालब्ध यह तो बुद्धि कॉमन भी समझती है । कहते भले हैं देखो भ्रष्टाचार श्रेष्ठाचार, नाम तो उठाते हैं लेकिन विचारे जानते नहीं हैं कि भ्रष्टाचार क्या है, वो रिश्वतखोरी को, करप्शन को भ्रष्टाचार समझते हैं परंतु खाली करप्शन थोड़े ही है, इधर तो सब, इन पांच विकारों में ही तो भ्रष्टाचार है ना । इन्हीं के कारण ही तो यह सारी बातें हैं । खाली करप्शन है इसीलिए भ्रष्टाचार है, नहीं भ्रष्टाचार तो पांच विकारों का पूरा राज्य है तो यही तो भ्रष्टाचार यानी कर्म गिराना ही तो भ्रष्टाचार है ना । करप्शन भी क्यों हुई है, यह सभी लोभ, लालच यह सभी बातें क्यों होती हैं विकार है, देह-अभिमान है, बॉडी कॉन्शसनेस है, पहले तो यह सब शत्रु है इसी से तो सब हुआ है, परंतु यह थोड़ी ही दुनिया जानती है, बस ऊपर-ऊपर की बातों को कि भाई करप्शन, करप्शन को बंद करो । करप्शन जाएगा कैसे लोभ, लालच आदि यह सब विकार अपना राज्य जमा कर बैठे हैं तो वह ऐसे ही थोड़ी जाएगा । वह तो और भी बढ़ते जाएंगे एक दो को मरते मारते और उसी में और बढ़ते जाएंगे । तो अभी देखो यह दुनिया का हाल तो देखते रहते हो ना इसको मारा, उसको गोली मारी, उसको मारी देखो लगा क्या पड़ा है, समाचार तो सुनो दुनिया का । अखबार में तो यही रोना पीटना लगा हुआ है यह मरा, वह मरा, यह हुआ, वह हुआ तो आज के संसार का समाचार माना दुःख का समाचार । सुख का समाचार तो है ही नहीं की हमारी दुनिया कैसी थी वगैरह । सब जिधर देखो बेचारे इसी में ही सारा दिन कर रहे हैं लेकिन करते-करते आखिरी भी तो आएंगे ना तो आखिर आने का भी समय आ चुका है । तो यह सभी बातों की अपने पास सीन है पूरी प्रैक्टिकल कि आखिर भी कैसा होगा । ऐसा नहीं है आखिर भी बस ऐसे ही जैसे यह समझते हैं कि आखिर में सभी धर्म मिलकर के एक हो जाएंगे, ऐसे नहीं मिलेंगे । यह आपस में टक्कर खाते-खाते एक दो को मर मारकर के पीछे सब के माथे ठीक होंगे । तो यह तो हम जानते हैं ना कि मर के यह मिटेंगे ऐसे, बाकी ऐसे नहीं सुधरने के हैं कि ऐसे ही सब धर्म अपने आप अच्छे हो जाएंगे, मिलकर एक हो जाएंगे ऐसी बुद्धि यहाँ ऐसे ही पलट जाएगी । नहीं ऐसे नहीं पलटेगी, ये मर के पीछे फिर नए आएंगे ना तब फिर बुद्धि कुछ होगी ठीक, बाकी ऐसे ही यह आए तो अभी तमोप्रधान बुद्धि है न, सभी आत्माओं की अभी तमोप्रधान बुद्धि तो उसमें तमो का फ़ोर्स है । वह तमो का फ़ोर्स उनको अच्छे कर्तव्य में लाने ही नहीं देगा । तमो का फ़ोर्स तमो का ही काम करेगा ना, वह तो हो ही रहा है, दिन-ब-दिन जो देखते जा रहे हैं । तो यह सभी बातें अभी बुद्धि में है इसलिए इसका प्रयत्न कौन सा करना है, जो प्रयत्न कर रहे हैं इन प्रयत्नों से कुछ होने का नहीं है यह तो अभी बुद्धि में सिद्ध होता जाता है ना । होना होता तो आज के प्रयत्न थोड़ी ही है यह तो बहुत काल से करते आए हैं तो कुछ तो सुधार होता न । ये बिचारे जितना करते जाते हैं, जितना बनाने की कोशिश करते हैं उतना ही एक बात बनती है तो दो-चार और बिगड़ जाती है, कहते हैं ना बनती एक है चार बिगड़ती है, तो यह सभी बातों से दुनिया का क्या हाल होगा । तो यह सभी बातें अभी है बुद्धि में इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे अभी आप इस दुनिया से बुद्धि हटा करके अपनी पेट की आजीविका के लिए जितना जरूरी है उतना सिर्फ थोड़ा निमित्त काम करते बाकी अपना तो सारा अभी यहाँ से उठाओ, अभी वहाँ अपना लगाओ, अपना सारा कुछ, जो जमा करना है उधर कर दो क्योंकि अभी तो तुम्हारे लिए वही सेफ्टी का स्थान है और वहाँ ही सेफ्टी मिलेगी बाकी इधर तो किसकी दबी रही धूल में, किसकी राजा खाए, किसकी चोरी लूट ले जाए किसकी आग जलाए, इसका अर्थ समझते हो ना किसका चोर लूट ले जाए, जब ऐसे बाप होते हैं ना तो चोरी, डाका वालों को भी चांस मिलता है । वह भी समझते हैं लगे तो अभी लगे ना, तो ऐसा होता है कि तो किसकी चोर खाए, किसकी राजा खाए, देखे हैं ना राजा लोग, अभी गवर्नमेंट भी अच्छी तरह से पीछे लगी है धनवानों के पीछे तो किसकी राजा खाए, देखो खाते जाते हैं ना, तो किसकी राजा खाए, किसकी चोर लूट जाए किसकी आग जलाए, यह सभी होंगे ना, देखो यह जलाते हैं, यह करते हैं, वह करते हैं । वह थोड़ा हंगामा अभी हुआ हिंदी के ऊपर, कितना यह सब हुआ आग जलाओ उसके मकान को, ये करो, वो करो तो यह सब क्या करते हैं और नेचुरल कैलेमिटीज भी बहुत अपने समय पर काम करेंगे । अभी तो यह छोटी-छोटी रहर्सल्स हैं । यह तो प्रैक्टिकल जब सब बातें होंगी तब तो बहुत हंगामा होगा, फिर तो कोई कंट्रोल नहीं कर सकेगा, अभी तो थोड़ा कंट्रोल हो ही जाता है न ।पीछे तो कंट्रोल होना ही इम्पॉसिबल हो जाएगा जब सब भड़क उठेंगे । कोई किसी का सुनेगा ही नहीं । अभी देखो थोड़े में भी तो सुनते नहीं है ना, यह जब जोश बढ़ जाता है फिर तो कभी सुनेंगे ही नहीं, काम करके ही रहेंगे लेकिन अभी तो है भाई एक तरफ थोड़ा शांत है, दूसरी तरफ कुछ होता है तो एक दो को कंट्रोल कर लेते हैं लेकिन वह तो टाइम ही ऐसा रहेगा ना । एटमॉस्फेयर, वायुमंडल वर्ल्ड का सारा उड़ पड़ेगा तो यह सभी बातें बाप बैठकर अभी समझाते हैं बच्चे उसके लिए पहले से ही अपना जो कुछ करना है वह कर लो और अपना जीवन अच्छा बना लो और इसी को करके अपना भविष्य नई दुनिया में जमा करो, इस दुनिया की कोई अभी टेम्पटेशन नहीं रखो, इधर ये करें, शादी करें, बच्चे पैदा करें, इधर हम बड़े साहूकार बने ये करें, यहाँ की अभी कोई टेम्पटेशन रखने की नहीं है यहाँ सब बन के देख लिया । यहाँ सब बनने वालों से ही पूछ लो ना, नेताओं से पूछो, धनवानों से पूछो, साधू सन्यासियों से पूछो, जो बिचारे त्याग करके बैठे हैं उनसे भी पूछो, जो लेकर बैठे हैं उनसे भी पूछो, दोनों बिचारे वह फिर भी यही कहते हैं कि वह चीज नहीं है । भले अल्पकाल का हो परंतु फिर भी वो सुख की बात तो नहीं है ना । वो भी सब खोजनाओं में हैं, सब बिचारे पुरुषार्थ करते ही रहते हैं । इसीलिए बाप कहते हैं वह चीज तो मेरे पास है ना जिसकी चाहना सब को रहती है त्याग किया है, तो भी रहती है, फिर भी शांति के लिए सुख के लिए फिर भी चाहत है इच्छा है । इच्छा फिर भी सब में ही है तो इसीलिए बाप कहते हैं वह चीज तो मेरे पास है ना । इच्छा पूर्ण करना, कंप्लीट संतुष्ट रखना वह चीज मेरे पास है, वो चीज अभी मैं देता हूँ तो कंप्लीट देता हूँ फिर इच्छा मातरम अविद्या, यानि इच्छा क्या होती है उसकी अविद्या । अविद्या माना उसकी नॉलेज ही नहीं है, इच्छा करने की नॉलेज ही नहीं है । अभी तो इच्छा सब में ही है, उसमें फिर बाप कहते हैं तुमको इच्छा मात्र अविद्या यानी इच्छा की अविद्या, तुम्हारे को कोई इच्छा करने की बात ही नहीं उसकी अविद्या । इच्छा क्या होता है वह पता ही नहीं, इच्छा क्यों करें, सब कुछ है, काहे के लिए इच्छा करें उसको कहा जाता है इच्छा मात्रम अविद्या । वह गीता में भी है तुमको ऐसी कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रहेगी जिसको प्राप्त करने के लिए फिर तुमको पुरुषार्थ करना पड़े, ये गीता के वर्संस हैं । कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रहेगी, तो अप्राप्त ही नहीं रहेगी तो फिर प्राप्ति की इच्छा ही कहे के लिए रहेगी । अप्राप्त ही नहीं कुछ, सब प्राप्त है तो अभी बाप कहते हैं देखो मैं अभी तुमको सब प्राप्ति वाला बनाता हूँ, जिसमें सब कुछ तुमको आराम से सब कुछ प्राप्त रहेगा, परंतु कर्म इतने अच्छे रखो ना । रखेंगे अच्छे नहीं और ऐसे ही प्राप्ति का सब कुछ मिलेगा ऐसे तो नहीं है ना, बिन कमाई से तो कुछ काम नहीं होता, पुरुषार्थ है इसीलिए कहते हैं अभी अपनी अच्छी कमाई करो, अपने को अच्छा बनाओ, अपना अच्छा पुरुषार्थ रखो और उसी से फिर अपनी प्रालब्ध तो ऑटोमेटिक है ही । रखो इच्छा ना रखो लेकिन प्रालब्ध जो अच्छे कर्म करते हैं उसकी प्रालब्ध तो ऑटोमेटिक होती ही है । यह तो नहीं अभी कोई समझते हैं न कि हम निष्काम है, निष्कामता कुछ होती नहीं है । निष्काम भी कामना होती है । कोई कहे की हमारी कोई कामना नहीं है, कामना क्यूँ नहीं है, भाई सुना है न कामना नहीं रखने से भगवान् अच्छा काम कर देता है, तो अंदर में तो है ना की हाँ कामना नहीं रखेंगे तो भगवान अच्छा करेगा । जबान से नहीं बोले, संकल्प ना करें लेकिन अन्दर अंडरस्टूड समाया हुआ है कि बिना कामना से काम पूरा होता है तो यह तो हुई न कामना । कामना के बिना कोई काम होता ही नहीं है, निष्कामता भी कामना ही है इसीलिए ये निष्कामता कहना एक अभिमान है, ये आप अभिमान है मैं निष्कामी हूँ, वो टाइटल देते हैं कहीं-कहीं यह फलाना निष्कामी है, ये ये है, कोई निष्कामी हो ही नहीं सकता है । भले कोई गरीबों की सेवा करके जाते हैं, या कहीं हॉस्पिटल खोली है भाई यह निष्कामी था, बस देता ही देता था, भले परंतु उसके अंदर तो है ना कि ऐसा करने का भी फल बड़ा है इसीलिए निष्कामी है तो निष्कामी में भी कामना तो है ना । बिना कामना कोई काम होता ही नहीं है इसीलिए बाप कहते हैं निष्कामी तो एक मैं ही हूँ क्योंकि मैं तो कामना नहीं रखूंगा कि मैं कोई स्वर्ग का अधिकारी बनूँ, ये बनूँ क्योंकि मुझे बनना ही नहीं है और ना मुझे जरूरत है इसीलिए निष्कामी अगर कोई है तो एक बाप, परमपिता परमात्मा क्योंकि उसको कामना रखने की जरूरत है ही नहीं । मनुष्य को कामना है और मनुष्य को ही प्राप्त होनी है वह तो मनुष्य से ऊपर का है ना इसीलिए उसको ना कामना है, ना नीचे आता है ना ऊँचा होना है । वह तो है ही ऊंचे से ऊंचा भगवन, वह नीचा ही नहीं होता जो ऊंचा होने की कामना हो ।ऊँचा होए तो फिर नीचा भी हो । नहीं वह तो है ही ऊँचे ते ऊँचा । एक ही बाप है जिसको निष्कामी कह सकते हैं मुझे तुमसे एक ही बाप है जिसको निष्काम ही कह सकते हैं इसलिए तो बाप कहते हैं देखो मैं आता हूं तुम बच्चों को इतना सौभाग्य प्राप्त कराने के लिए लेकिन मेरी कोई तुम्हारे में ये कामना थोड़ी ही है कि मैं भी पाऊंगा । नहीं, विश्व का मालिक तुमको बनाता हूँ, मैं तो फिर जैसा हूँ वैसा ही हूँ, मेरे में कोई फर्क पड़ने की बात ही नहीं है, फर्क तुम्हारे में आता है, नीचे तुम आते हो, ऊँचे तुम बनते हो मैं तो जैसा हूँ वैसा ही हूँ, मुझमें फर्क है ही नहीं । तो एक वो ही है जिसके पास कोई कामना की बात ही नहीं होती है तो निष्कामी भी कहें ना तो उनको कह सकते हैं बाकी कोई मनुष्य अपने को निष्कामी कहलाए, नहीं, मनुष्य माना ही कामना फिर गुप्त या प्रत्यक्ष, वह तो उनके कर्म का फल है ही । मनुष्य के लिए यह लो है कि मनुष्य आत्मा के कर्म का फल है तो यह लॉ जो है वह हर एक से बंधा हुआ है । यह लॉ है हर एक के लिए, ईश्वर का यह नियम है । जैसे हर चीज का नियम है ना, तो आत्मा का भी नियम है जिसके साथ कर्म और कर्म का फल लगा हुआ है । उसको कर्म भी अवश्य करना है और फिर उसका फल भी अवश्य मिलना ही है इसीलिए यह लॉ है । तो लॉ को भी समझना है, हर बात के लॉ और फिन्ड्स को भी समझना होता है तो यह ईश्वरीय लॉज भी कौन से हैं, यह प्रकृति के लॉज़ क्या हैं, मनुष्य आत्मा के लॉज़ क्या हैं, यह सभी संसार का चक्र किस लॉ में चलता है यह सभी बातों को समझना है । ऐसे नहीं है की नियम बिगर कोई चीज है । सब नियमों से बंधी हुई है और वह चलती है जिसको कहते हैं नेचर परंतु नेचर को भी तो समझना है ना । कह देना ऑटोमेटिक चलती है परंतु ऑटोमेटिक के भी नियम क्या हैं, किसके आधार पर किसका आधार है, यह सभी बातों को भी तो समझना है ना । तो अभी बैठ कर के बाप समझाते बातें हैं की देखो अभी तमो बिल्कुल, तमोप्रधान तो तमोप्रधान के बाद फिर सतोप्रधान, तो एक के के ऊपर एक का कैसे आधार तो अभी वो टाइम है इसीलिए उसके लिए अभी क्या करना चाहिए, वह बैठ करके अभी समझाते हैं इसीलिए कहते हैं उसमें मेरी मदद की दरकार है । इस टाइम पर ही मुझे आना पड़ता है क्योंकि यह टाइम मेरे काम का है । इसके बीच में मेरा काम है ही नहीं । उसमें तो फिर सभी आत्माओं का अपने आप अपने नियम से चलने का है, इसमें फिर मुझे आना पड़ता है । जब बिल्कुल तमोप्रधान पतित दुनिया हो जाती है तो मेरा काम होता है तो मैं अपने टाइम पर आता हूँ । मैं अभी लॉ के मुताबिक बंधा हुआ हूँ, मैं कहूं नहीं मैं नहीं आता हूँ इस बार, ऐसे नहीं हो सकता है । मैं भी लो में बना हुआ हूँ, मुझे भी आना है । जब बिल्कुल सब की ताकत चली जाती है तो मुझे आना ही है फिर मुझे उसको ठीक करना है ये सभी नियम हैं । तो यह सभी बातों को भी समझने का है ना, तो देखो जैसे सूर्य है, सूर्य पानी को खींचता है, तो यह फिर पानी ऊपर से आता है यह सब नियम बंधे हुए हैं न । यह सब चीज का अपना अपना नियम है, ये` बारिश कैसे आती है? बारिश पानी तो यहाँ से ही खींचती है न, पानी खीचता है फिर वो बादल बनते हैं, फिर बादल बरसते हैं फिर उससे सूरज खीचता है फिर उससे बादल बनता तो ये चक्र, इसी तरह से हम भी जब खत्म हो जाते हैं फिर बाबा आ करके हम बादलों को भरते हैं । हम बादल है ना हमको भरते हैं, फिर हमको भरने से फिर हम गरजते हैं, फिर सदा हम उसमें चलते हैं, फिर खाली हो जाते हैं फिर बाबा आते हैं तो यह भी सब नियम से सभी बातें बंधी हुई है, उस सुप्रीम सौल का भी पार्ट है इसी तरह से यह सभी के नियम, सभी के कानून अनादि यह ड्रामा फिक्स्ड बना हुआ है इसको भी बहुत कायदे से समझने का है । इसीलिए कोई परमात्मा को जानना मुश्किल नहीं है और परमात्मा को इस तरीके से मानना भी मुश्किल नहीं है । मानते और मुश्किल समझते वह है, जो नहीं जानते हैं, जिन बिचारों को इन लॉज का पता नहीं तो अभी तो खुद जो मालिक है इन लॉज का वह बैठकर समझाते हैं न कि मैं भी बंधा हुआ हूँ, मेरा भी पार्ट है आने का और मैं भी अपने टाइम पर आता हूँ । मैं भी टाइम पर आऊंगा ना जैसे बारिश की सीजन है ना फिर बरसने का भी टाइम है ना, बादल भरने का भी टाइम है ना, इन सभी बातों का टाइम है, इसी तरह से मेरा भी टाइम है । मैं जब चाहूँ तब आ जाऊं या जब हो तब आओ नहीं मेरा भी नियम है । जब यहाँ सब खाली हो जाते हैं तो खींचते हैं । दुखी होते हैं ना, तो दुःख में फिर याद करते हैं तो फिर मैं आता हूँ, फिर आकर के तुम्हें भरता हूँ, फिर भर करके ले चलता हूँ, फिर तुम आते हो नंबरवार फिर भरी हुई आत्माएं आती हो ना संपूर्ण । तो फिर जब संपूर्ण आती हो तो यहाँ कुछ-कुछ टाइम, जितनी-जितनी जिसकी ताकत है उतना-उतना टाइम यहाँ सुखी रहते हैं तो पहली जो आत्माएं हैं सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकार वो बहुत काल यहाँ सुखी रहती हैं और उसी समय संसार सुखी है उसको कहा जाता है सतयुग और क्या स्वर्ग । अभी इसमें क्या मूंझने की बात है कि कैसा स्वर्ग होगा, कैसे हम समझे, यह कल्पनाएं हैं, ये कैसे है, इसमें मूंझने की बात नहीं खाली नियम समझना है । अगर कोई नेचर भी समझे ना तो नेचर वाले को भी हम अच्छी तरह से समझा सकते हैं । कोई साइंस वाला हो ना उनको भी और अच्छी तरह से समझा सकते हैं क्योंकि साइंस तो अभी ही सिद्ध करती है तो यह सभी बातों से हम समझा सकते हैं कि आप साइंस वाले नेचर वाले अच्छी तरह से समझ सकते हो क्योंकि नेचर का नियम भी क्या है, परमात्मा को भी अपने टाइम पर आना, उसका टाइम है अभी लेकिन वह जानते नहीं है कि यह टाइम है हम खाली हो गए हैं । वह समझते हैं अभी हमारे में बहुत ताकत है लेकिन यह ताकत लड़ने मरने मारने की बहुत है । अभी जो ताकत निकलती है मनुष्य से वह काहे की निकलती है एक-दो को मरने मारने की । अभी ताकत जाकर के तमो ताकत हो गई है, अभी ताकत है लेकिन ताकत उल्टा काम करती है क्योंकि बुद्धि उल्टी उल्टी हो गई है न तमोप्रधान तो अभी सबकी तमो प्रधान बुद्धि है सिवाय मरने मारने गिराने एक-दो की हानि करने के बिना काम नहीं चलता है इसीलिए इसका भी प्रभाव है तमो का, उसका राज्य है ना । सबका अपना-अपना टाइम है ना, इसीलिए बाप कहते हैं अभी यह टाइम ऐसा है, उसी टाइम पर ही तो मुझे आ करके उसका फिर नाश क्योंकि इनको नाश करना और किसकी ताकत नहीं है । यह पांच शैतान है ना, तो इन शैतानों को तो मैं ही नाश कर सकता हूं मेरा बल । तुम कैसे करेंगे, तुम आत्माओं में तो खुद ही बल नहीं तुम तो शैतान के वर्ष हो गए हो ना । एकदम उसके कंट्रोल में आ गए हो तुम कैसे अपने में से वह बल निकाल सकते हो तुम्हारे में बल है ही नहीं, कोई मैं भी नहीं है । भले साधु सन्यासी हैं लेकिन वह कंप्लीट बल नहीं है इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे मुझे आना पड़ता है तो इसीलिए मैं आता हूँ और आ करके यह सभी पांच विकार शैतानों का नाश करने का उपाय बतलाता हूँ । मैं भी उपाय दे करके तुमसे ही कराऊंगा क्योंकि कर्म का फल तो तुमको पाना है मैं थोड़ी ही करूंगा । मैं करूंगा तो फिर मैं पाऊं । ऐसे थोड़ी ही है कि मैं करूं और तुम पाओ । नहीं, फिर तो ऐसा हो जाएगा तुम करो और मैं पाऊं, फिर तो ऐसा भी हो जाना चाहिए न परंतु ऐसा नहीं है, जो करेगा सो पाएगा इसीलिए लॉ है तुम्हारे लिए तुमको करना है तुमको पाना है तो मुझे भी आ करके उस लॉ के मुताबिक काम कराना पड़ेगा । तुम्हारे से ही तुम्हारे कर्म को ऊंचा कराना पड़ेगा । मैं ऐसे ही समझूँ जादू का हाथ फिरा दूं तो सब ठीक हो जाओ नहीं, मेरा बल का यह काम नहीं है । मैं अपना बल जो मेरे पास बल है तेरे लिए वह तुमको देता हूँ, तुम वह ले करके अपने को बलवान बनाओ तो लेना है ना बनाना है बाकी ऐसा नहीं छूमंतर से कोई काम होने का है । नहीं, भगवान हूँ तो मतलब छूमंतर से काम करूं, इसका मतलब यह नहीं है भगवान इसीलिए नहीं है । कई बिचारे ऐसे समझते हैं कि भगवान है तो उसके लिए तो क्या बड़ी बात है वह ऐसे हाथ फिर मुर्दा को जिंदा कर दे वह ऐसे समझते हैं कि ऐसे करें परंतु बाप कहते हैं बच्चे मुझे कोई ऐसे मुर्दे जिंदे नहीं कराने हैं, वह शरीर को तो छोड़ना ही है लेकिन मुझे मुर्दे को जिंदा कैसेकराना है जो तमोप्रधान, ऐसे मुर्दे बने हैं उनको उनको जिंदा करता हूं उनकी लाइफ को ऊंचा बनाता हूँ, पीछे उनका मरना-जन्मना जिसको फिर देवताओं के मरने जन्मने को अमर कहा जाता है । उनके शरीर छोड़ने को भी अमर कहा जाता है क्योंकि वह अपने कानून से अपने टाइम पर शरीर छोड़ते हैं इसीलिए उनको मृत्यु नहीं कहेंगे देवताओं को । मृत्यु कहें की भाई देवता मृत्यु में आया, देवता के लिए कभी कहने में नहीं आता है । देवताओं को अमर पद गिना जाता है, क्यों? ऐसे नहीं देवताएं शरीर नहीं छोड़ते हैं, छोड़ते हैं परंतु अपने टाइम पर अपने बल से अपनी ताकत से इसीलिए वह अपनी ताकत से शरीर छोड़ना और लेना उनको मृत्यु नहीं कहा जाता है । वह अमर पद क्योंकि शरीर छोड़ते भी वह सुखी हैं और लेते हैं तो सुख का मिलना ही है लेना ही है इसीलिए उनके पास जैसे पुराना वस्त्र उतारा, नया पहनेंगे तो क्या फिर रोते हैं ? नहीं, और खुश होंगे, पुराना छूटा अब नया मिलता है तो उनको और ही खुशी रहेगी ना, उसमें दुःख की क्या बात है तो वह ऐसी लाइफ हो जाती है । तो यह सभी चीजें बैठकर के बाप समझाते हैं इसीलिए कहते हैं बच्चे मैं अमर पद, अमरलोक का वहाँ का भी तुमको मालिक बनाता हूँ । अमरलोक अमरलोक कहेंगे सतयुग को, देवतालोक को अथवा जहाँ हम इस दुनिया में अमर पद पाते हैं बाकी वह आत्माएं तो अमर और मन दोनों से ऊपर है ना, उनको अमर नहीं कहेंगे आत्माओं को जब हम शरीर में यहाँ कंप्लीट शरीर आत्मा भी पवित्र और शरीर भी पवित्र है तो उसको कहेंगे अमर पद यानी सतयुग को । स्वर्ग को अमर और नर्क को मृत्यु लोक ऐसे, बाकी वह हमारी निराकारी दुनिया उसको अमरलोक नहीं कहेंगे बाकी वह तो आत्मा ना मरना अमर वह तो है ही इम्मोर्टल, उनको तो काटे काटे नहीं जाए, जले जलाए नहीं जाए, उसके लिए तो इस सब का क्वेश्चन ही नहीं है मरने और जन्मने का लेकिन यह कैसा है, आत्मा किस तरह से एक शरीर छोड़ करके दूसरा लेती है, लेने में उसका कैसा पवित्र शरीर और पवित्र आत्मा है उसी को फिर कहेंगे भाई अमरपद । तो यह सभी चीजें बहुत अच्छी तरह से एक एक पॉइंट क्लियर बुद्धि में रखनी है और क्लियर फिर समझाने की है । तो समझाने का भी टैक्स अच्छा रखना है फिर उसको कहेंगे सर्विसेबल की यह बच्चे सर्विसेबल हैं, यह दूसरों को अच्छी तरह से कुछ समझा सकते हैं तो यह सेवा है सबसे ऊंची, अभी इसमें तो और कोई नहीं है ना । भले कोई को धन नहीं है धन से सेवा नहीं कर सकते हैं तो तन तो है ना, बुद्धि तो है ना, बुद्धि से सेवा करें, बुद्धि का दान दे दूसरों को अर्थात यह ऊँच नॉलेज जो है वह नॉलेज से दूसरों को रोशनी देवे, तो इस जैसी सेवा कोई है बहुत ऊंची सेवा है जो जिसके पास अगर तन का है तो हाँ तन का, तन से भी कोई हार्ड वर्क थोड़े ही है, नहीं यह सुनाना है, समझाना है । हाँ कोई कहेगा बूढ़ा हूँ भाई, नहीं किसी के पास जा सकता, अच्छा भाई कोई जवान है, यंग है, वह तो जा सकता है ना । देखो जैसे यहाँ करुना है, भागता है दौड़ता है किसी के पास जाता है, कोई बिचारा बूढ़ा होगा, कहेगा तो अच्छा बेचारा बूढ़ा है, नहीं निकल सकता है, घर में बैठकर याद करो बाबा को तो यह भी सेवा है । उनको याद करने से तुम्हारे भी पाप दग्ध होंगे और उसका बल दूसरों को भी मिल सकता है तो घर में बैठे भी सेवा कर सकते हैं । चलो किसी का शरीर बेचारे का ऐसा है, नहीं चल सकता है, चलो घर में भी सेवा करो । है अगर तन का कुछ बील तो चलो तन का करो, अगर धन का बल है तो चलो धन से करो, जितना जिसको बल है तीनों ही है तो तन-मन-धन तीनों से करो, जैसा जिसको है उससे करो । मतलब करो, करने से तुम्हारे कर्म श्रेष्ठ बनेंगे और उसी श्रेष्ठ कर्म की फिर प्रालब्ध पाएंगे, तो ठीक बात है ना । इसमें तो मूंझने की है नहीं कोई बात । जितना है उतना अपना करना है पुरुषार्थ, इसमें मूंझने की है नहीं है हमारे पास धन नहीं है तो हम कैसे करें, कोई धन से ही तो बनने की नहीं है न, जितना जो है इतने से करना है, बदलाया ना कोई गरीब है लेकिन वह दिल से अपना जितना चलता है उसका उतना ही बनता है, कोई धनवान है परंतु कंजूस है तो उसका क्या बनता है कुछ नहीं । यह दिल से है, वह गरीब आगे चला जाएगा, साहूकार पीछे हो जाएगा और देखते भी हो साहूकार बिचारे है, कोई आते हैं समीप? सब गरीब, क्योंकि भगवान है भी गरीब नवाज । साहूकारों को तो बिचारों को अभी थोड़ा साहूकारी का नशा है तो अभी थोड़ा टेंप्टेशन है ना धन की तो उसमें लटक बैठे हैं इसीलिए बाप कहते हैं मैं जब आता हूँ, उस टाइम जो साहूकार है ना वह बहुत गरीब समझो क्योंकि आगे चलकर के दुनिया में गरीब होंगे ना । अभी जो गरीब है ना वह बहुत साहूकार समझना है क्योंकि वह अपना भविष्य प्रालब्ध बना सकते हैं इसीलिए गरीब होना इस टाइम और भाग्यशाली की बात है इसलिए ऐसा नहीं समझना कि हम गरीब हैं, कुछ नहीं कर सकते हैं, कैसा भूषण? हम बहुत साहूकार बन सकते हैं और बहुत धनवान बन सकते हैं क्योंकि हम बाप के हो करके सच्चे अगर चलते हैं, तो वह तो हर एक को अपने से पूछना है कि हम सच्चे हैं । उनके साथ कितने सच्चे हैं, सच्चे का अर्थ समझते हो ना, जैसे हम अपने से हैं वैसा उनसे, अपने से कैसे हैं? सब अपना पता है ना, मैं क्या हूँ, कैसा हूँ, बुरा हूँ या अच्छा हूँ बुराई अंदर करता हूँ तो अपने को मालूम है ना मैंने बुराई किया है अंदर तो खाता है ना कॉन्शियस तो बाइट करता है ना । तो हाँ उसके साथ भी ऐसा सच्चा कि हाँ बुराई की है तो बाप कहते हैं हां मेरे आगे रखो तो फिर तुम्हारा माफ़ हो जाएगा । ऐसा नहीं करते रहो, बुराई करो मेरे आगे रखो, बुराई करो मेरे आगे रखो तो उसका माना तुमको माफ होती जाएगा । ना, ना, ना, बाप है तो फिर कहते हैं नहीं खबरदार, अच्छा एक बार भूल हो गई चलो कोई माया की उंगली लग गई, चलो एक बार फिर अगर दूसरी बार तो और दंड तीसरी बार तो खत्म एकदम । तो इसीलिए बाप कहते हैं की नहीं भूल भी घड़ी-घड़ी नहीं, घड़ी-धडी गिरा तो खत्म हो जाएगा इसलिए कोई भी भूल में अपने को ना लाना है और अपनी भूलों से अपने को बचाते आगे बढ़ते चलना है तो ऐसे बनने वाले जो है वही कुछ अपना पा सकेंगे और अपना कुछ ले सकेंगे । तो अभी पॉकेट बढ़ते जाते हो ना? पॉकेट समझते हो ना, कहाँ है पॉकेट? बुद्धि, यह पॉकेट नहीं । बुद्धि पॉकेट है उसने भरते जाओ अच्छी तरह से । बहुत हैं, यह बेंगलुरु वाले तो होशियार होते जाते हैं, बहुत अच्छे । अच्छा टोली खिलाओ । देखो, यह टोली भी आई है मधुबन से । देखो सिकिलधे हो ना बेंगलुरु वाले, तो आप लोगों को आपके भाई बहन सभी याद करते हैं कि बेंगलुरु वाले हमारे भाई बहन, तो देखो मधुबन वालों ने आप लोगों को याद किया है सिकिलधे हो ना इसीलिए । अच्छा, जी? दादी खिलाए? दादी.... किसने बोला? किसने भी बोला, अच्छी राय कोई देता है तो एक्सेप्ट करना चाहिए ना, इसमें बेचारे ने कोई बुरी राय थोड़ी ही दी, बहुत अच्छी दी, अच्छी राय ले लेना चाहिए, (बहुत माइट मिलती है माताजी के हाथ से) हाँ हाँ क्यों नहीं, माताजी के हाथ की (और मम्मा के हाथ से मिले तो ?- मम्मा के हाथ से मिले तो अहो सौभाग्य) टीचर से प्रेम स्टूडेंट्स का दिखाई पड़त है की टीचर से प्रेम है और टीचर का भी स्टूडेंट्स से प्रेम है । हाँ जो पालते हैं, सँभालते हैं, चलाते हैं तो नेचुरल है उसके साथ थोड़ा हो तो जाता है और टीचर भी अच्छी है मीठी है बिचारी भोली भाली । हाँ भोलों का तो भगवान है ना । कोई बिचारी में वो नहीं है, बहुत इधर-उधर में नहीं रहती है । अच्छी है बेंगलुरु के लिए फिट । बेंगलुरु के भी भोले भाले हैं ना तो भोले भालों को भोली ही चाहिए । हाँ......लाठी भी देती है! अगर लाठी भी ना दे तो फिर आप चलो कैसे । आप पहले से ही ऐसे हुए पड़े हो, आपको लाठी मिले तो थोड़ा सीधा तो चलो ना । लाठी ना मिले तो फिर चलो ही कैसे, बाकी फिर ऐसे ही गिर जाओ । देखो जो जो सही न चलने वाले होते तो थोड़ा लाठी देते हैं, थोड़े अंधे होते तो लाठी देते हैं, लाठी के आधार पर चलते हैं तो लाठी भी चाहिए न । लाठी ना मिले तो खड़े कैसे हो, सुस्त पड़ जाओ । पहले से तो सोए ही पड़े हो, माया ने तो सुला दिया बाकी भी सो जाओ, तो थोड़ा सुस्त पड़ेंगे तो लाठी तो चलाएंगी ना तब तो थोड़े खड़े होगे । तो यह भी तो चाहिए ना, टीचर अगर थोड़ा आँख भी ना दिखलाय तो काम कैसे चले, काम थोड़ा चलाने के लिए थोड़ा आँख दिखलानी पड़ती है, परंतु आँख दूसरी थोड़े ही है, यह तो मीठी-मीठी आंखें हैं, और इसी से तो हम तेज बनते हैं । अच्छा, वाह! दादी । दादी भूल गई, अच्छा, अभी तुमने बुलाया है इसीलिए तुमको कम देंग। अच्छा लो, तुमको खिलाएं ? एक हाँथ में, एक मुख में । ऐसा बन्दर करता हैं हम हंसी करते हैं ऐसे ही, दादी है ना, तो ऐसे ही चिट-चैट करते हैं । अपनी ज्ञान की चैट है, बंदर से मंदिर, वो गाली देते हैं एक-दो को ऐ बन्दर, ऐ सूअर, ऐ कुत्ते के बच्चे कहते हैं न ऐसा? गाली देते हैं परंतु ये तो मनुष्य को गए हैं कुत्ते बने है, सूअर बने हैं, जैसे गिरावट से भी बदतर । अभी तो हम देखो बंदर से मंदिर बनते हैं क्योंकि आत्मा को पवित्र बनाते हैं उसका यह घर उसको भी पवित्र, अभी देखो सच-सच मंदिर बनते हैं न, अभी पता चला है । उसके लिए फिर हमारी दुनिया भी ऐसी स्वच्छ रहेंगे फिर उसी के यादगार यह चित्र बनाते चलते हैं लेकिन पहले तो प्रैक्टिकल चैतन्य थे फिर जड़, उनका फिर मंदिर बनाते हैं जड़ यादगारों का, जड़ चित्रों का । पहले तो चैतन्य थे न तो चैतन्य में क्या होंगे, सोचना है । अच्छा ऐसा बापदादा और माँ के मीठे-मीठे बहुत अच्छे सपूत सयाने समझदार बच्चों को याद प्यार और गुड मॉर्निंग जिसको टोली नहीं मिली भूल तो नहीं गई दादी, अच्छा ।