मम्मा मुरली मधुबन
श्रेष्ठाचारी बनने का ज्ञान-1
रिकॉर्ड :-
बनवारी रे जीने का सहारा तेरा नाम रे
यह जो गीतों में आता है ना कि यह झूठी काया झूठी माया झूठा सब संसार सुना ना अभी यह गीत में तो इसको झूठा क्यों कहते हैं यह भी समझने की बात है। जिस दुनिया में हम चल रहे हैं उसी की बात है ना । उसी के लिए ही कहा है कि झूठा यह संसार, झूठी माया झूठी काया। काया कहा जाता है शरीर को । तो झूठी काया झूठी माया झूठा सब संसार तो सब संसार माना यह सब संबंध आदि सब कुछ यह सब झूठा । इनको झूठा क्यों कहा है ? झूठ और सच दो बातें होती हैं, झूठ किसी कंट्रास्ट में जरूर है । इसको अगर झूठा कहा जाता है तो कोई सच्चा भी होगा सच्ची काया सच्चा संसार । जरूर कोई सच्चा भी होगा तो यह समझना है झूठ इसको तभी कहा हुआ है । ऐसे नहीं है कि यह संसार झूठ है यानी जैसे कई समझते हैं ना कि यह संसार बना ही नहीं है , यह संसार मिथ्या है । नहीं, संसार तो अनादि है. ऐसे नहीं कहेंगे कि यह संसार कभी था ही नहीं जैसे कई समझते हैं और इसको मिथ्या मानते हैं । कई ज्ञान के प्रचार वाले इसको मिथ्या बतलाते हैं कि यह संसार मिथ्या है जैसे राम जी को भी उनके वशिष्ठ गुरु ने यही कहा कि राम यह संसार बना ही नहीं है । तो अगर संसार नहीं बना है तो रामजी भी कहाँ रहा, फिर तो कुछ भी नहीं बना ना । तो यह तो सब चीजों को समझना है ऐसे नहीं है कि संसार बना ही नहीं है । संसार तो बना हुआ है, संसार तो चल रहा है ना परंतु किस संसार के लिए कहा, यह जो अभी झूठा हो गया है यह सच्चा था। यही संसार अभी झूठा हो गया है तो झूठ और सच को समझना है। उसका मतलब है यह संसार अभी विकारी हो गया है, तो विकारों के कारण इसको झूठा कहने में आता है अर्थात इसमें दुःख और अशांति है । यह दुःख अशांति वाला संसार अपना संसार नहीं है इसीलिए बाप बैठकर के समझाते हैं कि तुम्हारा जो संसार मैंने बनाया था ना, वह सुख शांति वाला था इसीलिए तुम उस संसार में सुखी थे । अभी यह जो तुमने बनाया है इसको झूठा बना दिया, कैसे बनाया इसमें तुमने विकार लाया तो विकारों के कारण काया भी दुःख की विकारी हो गई और उससे यह संसार के संबंध भी दुःख के हो गए, देखो राजा प्रजा पति-पत्नी बाप बेटा सब संबंध एक-दो के दुःख के हो गए हैं ना इसीलिए बैठकर के बाप समझाते हैं कि यह झूठी काया झूठा सब संसार यह सब झूठा कर दिया है । झूठा किसने बनाया विकारों ने । विकारों के कारण इस दुनिया को झूठा कहा जाता है। झूठे के कारण ही तुम दुखी हो इसीलिए कहते हैं अभी उसे छोड़ो अर्थात इन विकारों से अपना संबंध तोड़ो तो फिर तुम्हारा जो संसार है ना वह सुख का हो जाएगा और सच्चा हो जाएगा । तो सच्चा और झूठा, कहा भी जाता है सचखंड, अभी है झूठखंड । यह अभी झूठा बन गया है तो सचखंड था अर्थात यह दुनिया सच्ची थी । सच्ची का मतलब है स्वच्छ थी, तब इसमें संपूर्ण सुख था और हमारे जीवन में सदा का सुख था तो वह सुख की दुनिया तभी थी जब पवित्रता थी । आज जीवन में अपवित्रता है इसीलिए वह दुःख की है और झूठी है । तो झूठी और सच्ची का भी अर्थ समझना है ना । ऐसे नहीं है ही नहीं, यह संसार बना ही नहीं है । यह संसार तो अनादि है, कैसे कहते हैं नहीं बना है । बना है तभी तो हम आप सब है ना, इसको ऐसे नहीं कहेंगे कि यह संसार ही नहीं है । संसार तो अनादि है लेकिन हाँ पहले सच्चा था और अब झूठा हो गया है । यह झूठा कैसे हुआ है इसमें विकार आए हैं तो विकारों के आने के कारण यह लाइफ दुःख और अशांति की हो गई है इसीलिए इसको झूठा कहते हैं अब फिर बाप कहते हैं कि जो मैंने सचखंड बना करके तुमको उसमें रखा था, तुम्हारी दुनिया सचखंड थी अथवा स्वच्छ थी और सुख की दुनिया थी उसमें मैंने तुमको रखा था । वह जो तुम्हारी लाइफ अथवा जीवन थी ना वह अभी बनाओ, तो वह कैसे बनाओ तो उसके लिए इस अपवित्रता को निकालो । अपवित्रता का मतलब ही है विकारों को निकालो और फिर तुम स्वच्छ बनो तो फिर तुम्हारी निर्विकारी दुनिया, जिसको ही फिर श्रेष्ठाचारी कहते हैं। ये श्रेष्ठाचारी भ्रष्टाचारी आदि यह सब जो भी शब्द है ना, ये कहते हैं परंतु इनका अर्थ समझते नहीं है परंतु इनका अर्थ समझते नहीं है । ये भ्रष्टाचारी श्रेष्ठाचारी तो यह भी हमारे आचरण के ऊपर है ना । श्रेष्ठ आचरण तो उसको कहा गया श्रेष्ठाचारी और आज है भ्रष्टाचारी माना भ्रष्ट आचरण तो हमारा आचरण बिगड़ गया है ना । तो आचरण के ऊपर ही श्रेष्ठाचार और भ्रष्टाचार कहने में आता है । तो आज के आचरण बिगड़ने के कारण इसको कहा जाता है भ्रष्टाचार यानी भ्रष्ट आचरण । वह है श्रेष्ठ आचरण इसीलिए देखो देवताओं के श्रेष्ठ आचरण का गायन है ना । क्या कहते हैं उसको, कहते हैं सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण और संपूर्ण निर्विकारी मर्यादा पुरुषोत्तम यह सब महिमा है ना तो उन्हों की देखो कितनी महिमा है श्रेष्ठ आचरण वालों की उनके पास सच्ची मर्यादा थी । मर्यादा भी तब थी जब विकार नहीं थे । अभी तो विकार में मनुष्य देखो अमर्यादा वाले हो गए हैं ना लोभवश, क्रोधवश, मोहवश, विकारोंवश सब यह बातें हैं इसीलिए बाप कहते हैं यह है ही अभी जो दुनिया उसको कहा ही जाएगा भ्रष्ट आचरण । उसी के कारण देखो यह करप्शन आदि देखो यह किस कारण है, लोभ है ना । लोभ ना होता तो करप्शन कहाँ से होती । यह अहंकार, अभिमान, यह क्रोध, यह दुश्मन एक दो से लड़ना-झगड़ना, आज इतने बोंब्स आदि सब यह कौन बनाता है यह क्रोध शत्रु, यह अहंकार, अभिमान हम बड़े, हम बड़े, यह मेरा यह तेरा, यह सब है ना तो यह विकार है ना । अहंकार कहो, क्रोध कहो, लोभ कहो यह सब चीजें हैं जो यह काम कराती हैं । अगर यह चीजें ना होती तो आज हमारा संसार यह क्रोध, लोभ और इससे जो दु:ख हैं तो यह सब बातें थोड़ी होती ये करप्शन आदि यह सब कहाँ से होती, यह सब लोभ है ना । लोभ के कारण मनुष्य यह सब झूठ चोरी पाप आदि यह सब करते हैं तो यह सभी चीजों को समझना है । तो यही है पांच विकार, जो मनुष्य के आचरण बिगाड़ते हैं। आचरण बिगड़ता है तो उसको कहेंगे भ्रष्ट आचरण । तो आज की दुनिया है भ्रष्टाचार अथवा भ्रष्ट आचरण वाली क्योंकि पांच विकारोंवश अभी सब हो गए हैं इसीलिए देखो अभी यह मोरालिटी आदि सब इन सब चीजों में बिचारे कितने माथा खोटी करते हैं परंतु कैसे हो, जब तलक यह शत्रु बैठे हैं, यह विकार दुश्मन बैठे हैं तो यह मोरालिटी आदि सब कैसे हो सकती है । यह सभी बातों को भी समझना है की हमारी दुनिया कितने श्रेष्ठ आचरण वाली थी। मनुष्य की लाइफ में उसका आचरण कितना अच्छा था, कितना श्रेष्ठ था, आज वह है ही नहीं । तो श्रेष्ठ आचरण को सचखंड कहेंगे अथवा सच्ची दुनिया सचखंड। आज यह हो गई है झूठी दुनिया क्योंकि भ्रष्ट आचरण हो गया है ना इसीलिए भ्रष्टाचार कहो या झूठी दुनिया कहो। झूठ कमाते हैं, झूठ खाते हैं, झूठे चलते हैं, सब झूठ ही झूठ है ना इसीलिए इसको कहा ही जाता है झूठी काया, झूठी माया, झूठा सब संसार इसीलिए दुःख अशांति है। तो अभी बाप कहते हैं इसको सच बनाओ तो कैसे बनाएंगे, देखो सोना होता है ना तो सोने को अगर झूठा बनाना है तो कैसे बनाएंगे। हमको जेवर झूठे बनाने होंगे तो हम सोने में झूठी चीजें तांबा ,लोहा, पीतल आदि जो सोनार मिलाते हैं वो ज़ेवर में नहीं मिलाते हैं लेकिन सोने में मिलाते हैं फिर उसी झूठे सोने से जो जेवर बनता है वह झूठा हो जाता है। अगर हमको फिर सच्चा जेवर बनाना है तो फिर जेवर को गला करके फिर सोने से निकालना होगा, जेवर से नहीं निकालेंगे, तो यह देखो फॉर्म है ना । अभी हमारा झूठ किस में पड़ा है, हमारे यह पांच विकार किस में लगे हैं तो यह शरीर है जेवर, ऐसे समझो, फॉर्म बना है ना, यह फॉर्म किसके आधार से बना है? आत्मा के, तो जैसी आत्मा वैसा फॉर्म, जैसा सोना वैसा उसका फॉर्म । झूठा सोना तो झूठा फॉर्म जो भी फॉर्म बनेगा बैंगल बनेगी रिंग बनेगा जो भी बनेगा तो अगर झूठे सोने की बनेगी तो सब झूठा बेंगल भी झूठा, रिंग भी झूठा जो भी चीज बनाएंगे, परंतु पहले तो सोना ही झूठा होगा ना । इसी तरह से यह हमारा फॉर्म जो है शरीर का वह किसके आधार से बनता है आत्मा के, तो आत्मा पहले झूठी बनती है । ऐसे नहीं कहेंगे आत्मा निर्लेप है, आत्मा को कोई लेप क्षेप नहीं लगता है, आत्मा में ही पांचों विकारों का प्रवेश आता है, फिर उसे विकार के संबंध से आत्मा जो कर्म करती है उसी कर्म के हिसाब से यह शरीर बनता है, शरीर के संबंध, शरीर के रिश्ते आदि यह सब जो भी कर्मों के खाते से कोई बाप बना, कोई बेटा बना, कोई स्त्री बनी, यह कर्म का हिसाब है ना । यह बाप बेटा भी कैसे बना कर्म का हिसाब। बेटा बन करके आएगा उसे हिसाब किताब है, लेना है, स्त्री बनी, पति बना, यह सब कर्म का खाता है ना। राजा प्रजा यह सब कर्मों का खाता है, एक दो से लड़ना झगड़ना यह सब कर्मों का खाता है ना तो दुनिया का यह जो भी कर्म का खाता बना किससे बना, बनाने की रिस्पांसिबिलिटी किसकी हुई, आत्मा की। तो आत्मा इंप्योर हुई तो शरीर भी इंप्योर हुआ और आत्मा और शरीर इंप्योर तो उससे सब रिश्तेदारी, सब संसार की जो बनावट रही सब इंप्योर तो झूठी हो गई ना । तो पहले झूठ कहाँ मिला उसमें मिला आत्मा में इसीलिए फिर आत्माओं का जो पिता है ना वह आ करके कहते हैं हे आत्मा तू तो सोनी थी, कंचन थी, साफ थी एकदम, तुममे यह इंप्योरिटी का लोहा, तांबा यह झूठ आदि पांचो विकारों का यह लोहा तांबा समझो ना, वो उसमें मिल गए हैं तो तू जो कंचन थी ना प्यूरीफाइड सोना इन विकारों से मिलकर के तू झूठी हो गई है, तो अभी झूठी काया, तेरा शरीर भी जो बना फॉर्म वह भी झूठी, सब संसार के संबंध भी झूठे, सब झूठे हो गए हैं तो सब झूठ ही झूठ बना दिया। झूठे से सब झूठे बन गए हैं, आजकल है ना फोर्टीन कैरेट का सोना बनाते हैं दिन-ब-दिन सब झूठा होता जाता है तो तुम भी देखो तुम भी क्या बन गए हो । तुम्हारा भी वह सच जो है वह निकलता जाता है और अभी झूठे बनते जाते हो एकदम। इसीलिए कहते हैं आत्मा इमप्योर तो इंप्योर होने से तुम्हारा जो भी संसार का फॉर्म है ना शरीर का संसार की जो भी फॉर्म बना है इसको भ्रष्टाचारी दुनिया कहो, कुछ भी कहो यह फॉर्म कहाँ से बना, इसी से । इसका रिस्पांसिबल कौन है आत्मा, इसीलिए फिर आत्माओं को बैठकर के बाप अभी प्यूरीफाइड बनाते हैं । सबसे पहले यह प्यूरीफाइड बनेंगे तो उससे फिर शरीर जो बनेगा, फिर शरीर और शरीर का संबंध फिर संसार की सारी रिलेशंस संसार की है आपस की वो फिर सदा सुखी हो जाएगी। राजा, प्रजा यह सभी संबंध है ना, वह सब सदा सुख के बनेंगे। अभी संसार के सभी संबंध जो रिलेशंस हैं वह सब एक दूसरे के दुःख के हैं इसीलिए यह सब दुःख का कारण पहले कहाँ से हुआ आत्मा से, तो आत्मा रिस्पांसिबल हो गई । इसीलिए बाप बैठकर के अभी आत्माओं को प्यूरीफाइड करने का यह नॉलेज दे रहे हैं । तो झूठ और सच को समझना है ना, झूठी कैसे बनी है, झूठ क्यों है बाकी ऐसे नहीं संसार है ही नहीं। कई झूठ का अर्थ यह समझ लेते हैं ना कि संसार ही नहीं है यह स्वप्न है, यह देख रहे हैं यह स्वप्न है इसीलिए यह संसार है ही नहीं बना ही नहीं है । अरे! संसार तो खड़ा है ना, संसार तो अनादि है। हाँ एक मनुष्य शरीर छोड़ता है दूसरा लेता है, वह मनुष्य शरीर छोड़ करके दूसरा लेता है लेकिन संसार तो चलता ही है ना, पुनर्जन्म वाला संसार तो चलता ही रहता है ना। तो यह सारी चीजों को समझना है इसीलिए बाप कहते हैं कि ऐसे नहीं है कि संसार नहीं बना है झूठ का मतलब यह नहीं है । संसार है, लेकिन उसमें यह जो तुमने विकार बनाए हैं ना, जिसमें ही दुखी हुए हो यह मैंने नहीं बनाया है। ऐसे नहीं है यह विकार मैंने बनाएं और दुःख भी तुम्हारे को मैंने दिया, यह तो मेरे पर तुम कलंक लगाते हो । मैं थोड़ी ही दुःख बनाऊंगा, बच्चों के लिए मैं दुःख बनाऊंगा, ऐसा कभी बाप देखा? लौकिक बाप भी कभी बच्चों को दुखी थोड़ी ही करता है, करेंगे आप? बाप हो करके कभी बच्चों को दुखी करेंगे आप? नहीं, कभी नहीं । कैसा भी नालायक बच्चा होगा ना तो भी बाप हमेशा रहमदिल रहते हैं । तो जब लौकिक बाप भी कभी बच्चों के लिए दुःख नहीं बना सकते हैं तो वह तो हमारे पारलौकिक पिता है ना। जब एक साधारण मनुष्य भी किसी मनुष्य के प्रति इतने दुःख का ख्याल नहीं रख सकता है तो वह हमारे परमपिता हम को कैसे दुःख देंगे । फिर भी कहे परमपिता, वाह! परमपिता और दुःख देवें? फिर काहे के लिए उसको परमपिता कहना चाहिए, जो दुःख देता है उसको परमपिता कहना चाहिए? कभी नहीं कहना चाहिए । फिर उसको याद करना चाहिए - हे भगवान, जब दुःख आता है तो उसको याद करते हैं, हे भगवान रहम करो, हे भगवान सुख दो, दुःख जब आता है तब तो उसको याद करते हो तो उसकी माना वह हमारे दुःख को नाश करने वाला है ना, तब तो उसको याद करते हैं ना। कोई दुःख देने वाला हो तो उसको हम कैसे याद करेंगे दुःख के समय की है भगवान दुःख दूर करो। जब वो दुःख ही देने वाला है तो उसको याद ही क्यों करना चाहिए, परंतु नहीं वह दुःख दाता नहीं है। गाते भी हो ना, महिमा करते हो दुःखहर्ता सुखकर्ता ऐसे कहते हो, कभी ऐसे कहा है हे भगवान तू दुःखकर्ता सुखहर्ता ऐसी महिमा तो कभी है ही नहीं उसकी। उसकी महिमा है दुःखहर्ता दुःख हरने वाला, हरने का मतलब है नाश करना तो दुःख का नाश करने वाला है उसकी महिमा ही ऐसी है। तो उसके ऊपर कभी यह नहीं समझना है कि दुःख भगवान ने दिया है या ऐसी दुनिया भगवान ने बनाई है जो अभी दुःख की है । भगवान ने बनाई जरूर है परंतु सुख की इसीलिए उसको सुख के लिए याद करते हैं तेरी दुनिया बड़ी अच्छी थी, तेरी दुनिया में हम बहुत सुखी थे, तू सुखदाता है, तू शांतिदाता है तभी उसको याद करते हैं। याद भी कभी कोई मनुष्य को भी याद करते हैं जब कोई किसी के ऊपर एहसान करता है कोई हमको कोई सुख देता है, तभी हम उसको याद करते हैं । अभी देखो गांधी जी ने कुछ अच्छा किया भारत के लिए, तो उनको याद करते हैं, भाई नेहरू जी ने कुछ अच्छे काम किए तब उसको याद करते हैं , नहीं तो कोई किसी को क्यों याद करेगा । जब मनुष्य भी कोई अच्छा काम करता है तब उसको याद करते हैं, भगवान को तो देखो याद ही करते हैं और सो भी दुःख के समय। जब कोई किसी के पास शारीरिक रोग आएगा या कोई ऐसी फिकरात आएगी या कोई मुसीबत आएगी या कोई भी ऐसी बात होगी तो कहेंगे हे भगवान रहम करना, हे भगवान खैर करना, हे भगवान अभी यह मेरा भला करना भगवान ऐसा करना कहते हैं ना तो उसका माना उसने हमारे साथ भलाई की है ना, कोई बुराई तो की नहीं है उसने । अगर बुराई उसने की होती तो ऐसे क्यों उससे कहते । तो वह हमारे हैं ही अच्छे काम करने वाले, यानी उसने हमको अच्छा ही बनाया है, हमारी बुराई को नाश कराया है। कैसे कराया है तो बुरा हमको बनाने वाले हैं पांच विकार। अभी इन विकारों को बैठकर के नाश करने का उसने उपाय बतलाया है इसीलिए उनको हम याद रखते हैं तो उसने हमारी दुनिया सचखंड, श्रेष्ठाचार बनाया है और यह ये भ्रष्टाचार झूठखंड को नाश कराया है। तो अभी यह देखो झूठी काया झूठी माया झूठा यह संसार है इसीलिए कहते हैं बनवारी, बनवारी कोई कृष्ण को नहीं, कई उसको समझते हैं कि बनवारी वह गए हैं ना कृष्ण, रास रचाया है यह किया है ऐसी-ऐसी बातें परंतु वह बातें नहीं है, वह तो यह शास्त्रकारों ने बैठकर के कहानियों की तरह से बना दिया है परंतु यह कहा ही जाता है निराकार परमात्मा को। कृष्ण को परमात्मा नहीं कहेंगे यह तो बात बहुत समझने की है। कृष्ण तो सतयुग का प्रिंस है । यह कृष्ण, ऐसा मनुष्य परमात्मा ने बनाया यानी कृष्ण जैसा सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी यह प्रिंस है, फर्स्ट प्रिंस । जो किंगडम परमात्मा ने बनाई राजधानी उसका यह फर्स्ट प्रिंस है । तो भगवान ने जो राजधानी बनाई ना उनका यह कृष्ण प्रिंस है जो जब बड़ा हुआ है फिर किंग बना है जिसको फिर श्री नारायण कहा जाए । तो यह समझना है कि भगवान ने ऐसे मनुष्य बनाएं। यह कृष्ण मनुष्य के स्टेटस का निशान है कि यह कृष्ण ऐसा मनुष्य परमात्मा ने बनाया तो यह मनुष्य की स्टेटस है और परमात्मा तो निराकार है ना तो इसको परमात्मा कहने से मनुष्य के स्टेटस चली जाती है। तो ना मनुष्य की स्टेटस रहती है ना परमात्मा का भी। अगर परमात्मा यह कृष्ण है तो फिर तो सारी दुनिया को उसको मानना चाहिए ना कि गॉड इज वन, परमात्मा इज़ वन फिर तो सबको उसको देखना चाहिए ना, फिर सबका अपना-अपना क्यों । नहीं कहते हैं गॉड इज वन, तो निराकार परमात्मा तो एक ही है ना इसीलिए इसको कृष्ण को सब थोड़ी ही मानेंगे, सारी दुनिया मानेगी? नहीं, अगर परमात्मा है तो सारी दुनिया को मानना चाहिए ना। गॉड इज वन तो फिर तो एक ही को मानना चाहिए ना। परंतु नहीं, परमात्मा जिसको कहेंगे वह है निराकार, परंतु वह ना जानने के कारण उनका पता नहीं है कि वह कौन सी चीज है। उनको भी ज्योति रूप निराकार परमात्मा कहेंगे, फिर स्टार लाइट कहो ज्योति या बिंदी लाइट कहो, उनको बिंदु भी कहते हैं तो यह है, परंतु है ज्योति का लाइट। तो यह सभी चीजों को समझना है इसी की प्रतिमा फॉरेन देशों में भी है, जो शिवलिंग की देखते हो ना शिव के लिंग की प्रतिमा इसीलिए बहुत ज्योति का दीवे का भी रखते हैं क्योंकि दिया का भी जोत को लाइट के रूप में रखते हैं। देखो कलयुग में सीख रहे हैं और फिर सतयुग प्रारब्ध है न तो फिर प्रारब्ध में जाकर के इस प्राप्ति को प्राप्त करते हैं तो यह चीजें समझने की है ना । जरूर इन्होंने अगले जन्म में, यह भी क्वेश्चन है ना उसने कौन सा अगले जन्म में कर्म किया जिससे ऐसी प्रारब्ध पाई । जरूर कोई पुरुषार्थ किया होगा ना, कर्म का फल है ना, मनुष्य के लिए तो कर्म का फल है। इन्हों को फल कहाँ से मिला? जरूर अगले जन्म का, तो अगला कौन सा जन्म है - यह, तो यह मानो हम कलयुग के अंत में, इस लास्ट समय में अभी जो पुरुषार्थ करेंगे इसके प्रारब्ध में फिर हमारी जनरेशन आगे सुख की चलती है तो सीधी बातें हैं ना। तो यह सभी पुनर्जन्म और यह जेनरेशंस का यह वर्ल्ड का चक्कर इन्हीं सभी बातों को भी समझना चाहिए और जान करके अभी उसी को प्राप्त करना है इसीलिए कहते हैं कि यह सभी अभी नया कलम लगता है। यह पुराना डाल टार टारिया अभी इसकी एंड इसीलिए देखो यह सब डिस्ट्रक्शन तैयार है अभी, यह सिविल वॉर और नेचुरल कैलेमिटीज ये एटॉमिक बॉम्ब आदि सब चीजें जो बनी है इन सब के जरिए यह दुनिया की संस्था का नाश । तो देखो आत्माएं अभी जा रही है ना मच्छरों सदृश्य, देख रहे हो ना, यह गीता के आधार पर है । उसमें कहते हैं ना तुम्हारे तरफ आत्माएं आ रही है मच्छरों के सदृश्य, जैसे मच्छर होते हैं ना, जब दिवाली होती है तो देखे हैं समा के ऊपर बहुत मच्छर मंडराते हैं फिर सुबह को मर जाते हैं तो बहुत ढेर नीचे पड़े हुए होते हैं। तो कहते हैं यह मच्छरों के सदृश्य मनुष्यों का डिस्ट्रक्शन होगा । यह आत्माएं तुम्हारे पास आ रहे हैं उनको साक्षात्कार हुआ था ना उसमें, तो अभी फिर कहते हैं फिर नंबरवार आत्माएं आएंगे फिर पहले पहले यह नंबर में जो आकर के सदा सुख को पाती हैं फिर सारा सर्किल चलता है। बाकी इसमें मूंझना नहीं है कि ज्योति में समाना है। नहीं, आत्माओं को आना है, आना है तो फर्स्ट चांस लेना चाहिए ना। आए तो फिर इधर क्यों आए, कोऑपरेज में उतरे फिर आयरन एज में आए, आए और क्या सुख लेंगे । आना है तो क्यूँ नहीं इधर आएं, आना है तो फिर फर्स्ट चांस लेना है सुख की दुनिया में । इसीलिए कहते हैं यह राजयोग से जो कर्म श्रेष्ठ करके जाएंगे वह फिर फर्स्ट आएंगे । जो मेरे द्वारा अपने पापों को दग्ध करके नहीं जाएंगे वो पीछे आएंगे, पीछे आएंगे तो फिर उसमें इतना सुख की प्राप्ति तो नहीं होगी न। तो यह सारी चीजों को समझना है यह सर्कल है, आत्माओं का आना, आत्माओं का जाना, आत्माएं फिर कितने जन्म यहाँ लेती हैं सारे चक्र को समझना है। इसी सारे चक्र को लिखा है कल्प ट्री फाइव थाउजेंड ईयर्स का। ये सारा चक्कर 5000 वर्ष में पूरा होता है। तो यह सब चीजों को समझना है कि यह किस तरह से चलता है, और उसी सब को पाना है । समझा, कैसा भूपालम? कुछ आता है समझ में? अभी भूपालम कैसा, भू का पालम, देखो यह है ना, इसी भू पर राज करना है । इस भू पर अभी क्या है भू तो हिलती है इसमें अर्थक्वेक होते हैं, इसमें दुःख अशांति मिलती है, यह भू बिचारी अन्न नहीं दे सकती है, अभी बुड्ढी हो गई है। खिलाते-खिलाते अभी देखो धरती भी बुड्ढी हो गई है, संख्या बढ़ गई है, अन्न भी अभी कैसा है, उसमें ताकत नहीं क्योंकि पृथ्वी में अभी वह ताकत नहीं रही नहीं। तो पृथ्वी में ताकत थी, सब कुछ हमको अच्छा मिलता था, आज देखो सब तत्वों में भी अभी तमोप्रधानता हो गई है ना, हवा आदि सब में। नहीं तो हमारे में बल था तो हर चीज में बल था, इसी से हम को सदा सुख की प्राप्ति थी । कभी कोई बीमारी नहीं, कोई रोग नहीं। यह सभी क्यों होते हैं क्योंकि हमारे में यह पांच विकार रूपी कीड़े पड़ गए हैं ना, तो हमारे को कीड़े खा गए तो सब चीजों को कीड़े खा गए इसीलिए दुखी है मनुष्य। सब में अभी कीड़े ही कीड़े हैं, कीड़ों की दुनिया, रोगों की दुनिया, आओं की, दाओं की, दर्द की, दुःख की दुनिया, सारा दिन क्या है यही, इसीलिए बाप कहते हैं कहाँ तक यह आह दाह दर्द दुःख चलती रहेगी इसीलिए कहते हैं अभी इसका एंड, फिर इसमें कभी आह! दाह! दर्द दुःख रहेगा नहीं। कहते हैं वह जमाना था जब शेर बकरी भी एक घाट पर पानी पीते थे, तो यह इसका मिसाल दिया है कि ऐसा जमाना था कि जनावर भी नहीं लड़ते थे, सब सुखी थे तो मनुष्य क्या होगा । तो यह सभी बातें हैं तो ऐसा सदा सुख का राज्य पाने के लिए अभी हम यहाँ सीख रहे हैं, इसी कॉलेज में परमात्मा जो सिखा रहे हैं, यह राज्य की स्टेटस वह प्राप्ति सीख रहे हैं भविष्य प्रालब्ध जनरेशंस में, और अभी-अभी फ्यूचर दुनिया यही आने की है तो यह सभी बातों को समझना चाहिए ना । मनुष्य जो कुछ करता है देखो पढ़ता है , इसी जीवन में ही भले, मैं डॉक्टर बनूंगा है लेकिन करता तो फ्यूचर के लिए है ना, भले इसी लाइफ की फ्यूचर है । यह है जेनरेशंस की फ्यूचर जो हम सदा काल के सुख को पाते हैं । तो यह जो हम करते हैं वह पाते हैं । हर एक चीज करनी होती है पाने के लिए ना, मनुष्य जो कुछ भी करता है डॉक्टरी पढ़ता है इंजीनियरी पढ़ता है, भाई पढ़ेगा लिखेगा बड़ा होगा, फिर यह करेगा, वह करेगा, रखता तो एम फ्यूचर के लिए है ना, हाँ कल को मर ही जाए तो उसका वह सब कुछ खत्म हो जाए। परंतु यह तो गारंटी है क्योंकि परमात्मा द्वारा यह सारा नॉलेज और हमारी वह जनरेशंस अविनाशी पिता के द्वारा बनाई जाती है तो यह सभी चीजों को अच्छी तरह से समझना है । अभी इसमें कुछ मूझने की बात है नहीं, फिर भी किसी को कुछ नहीं समझ में आता है तो हाँ पूछ सकते हैं । अच्छा, खिलाओ टोली । हाँ, अच्छा, एक दिन गोप एक दिन गोपी, अच्छा । यह पुरानी है ना पार्वती मां, हनुमान है इसका नाम। हनुमान क्यों रखा है बिचारी का? (सभी को जाके संदेश देती है) सन्देश देती है, अच्छा खिलाओ। बाबा को याद करके खिलाना। पहले हमको ? पहले सब बच्चों को, नहीं, फिर भगत बनेंगी, फिर भगत कहेंगे। भगत ऐसा काम करेगा । ज्ञानी तू आत्मा वह तो फिर ज्ञान से काम करेंगे ना । पहले बच्चे।