मम्मा मुरली मधुबन
008. Bap Se Varsa Lene Ki Vidhi
ओम शांति। यह कमाई सहज नहीं है ? बिल्कुल सहज, अति सहज। इसमें और कोई भी डिफिकल्टी की बात ही नहीं है जितनी मनुष्य समझते आए हैं । ज्ञान का नाम सुनते हैं ना तो डरते हैं, ज्ञान... ज्ञान तो इस आयु में थोड़ी ही और समझते हैं और समझते हैं आज की दुनिया जो कलयुगी तमोप्रधान है उसमें तो इन बातों का नाम ही नहीं है ज्ञान आदि । वो समझते हैं आज की दुनिया कैसी है, उसमें कैसे हो सकता है, विश्वास नहीं पा सकते हैं लेकिन शास्त्रों में फिर यही तो गाया हुआ है ना कि जब-जब अधर्म हुआ है, पाप हुआ है परमात्मा का आना भी तब हुआ है तो आया होगा तभी तो ज्ञान दिया होगा ना, अधर्म के समय में आकर के अधर्मी मनुष्यों को ही तो आकर के ज्ञान दिया होगा ना नहीं तो आया क्यूं, ऐसे ही घूमने आया क्या? आया होगा ज्ञान भी तभी दिया होगा ना तो जरूर ऐसे अधर्म के टाइम पर ही ज्ञान लेने वालों ने ही तो तभी लिया होगा ना। यह तो एक तरफ तो शास्त्रों में देखो ऐसी बातें हैं और दूसरी तरफ समझते हैं ऐसे कलयुगी अति तमो प्रधान समय पर ऐसे कोई पवित्र रहते होंगे, यह परमात्मा आया है और यह सभी धारणाएं इस युग में हो सकती है तो यह विश्वास नहीं इन्हों को बैठ सकता है, इतनी भारी जिसमें पांचों विकारों का उसमें क्या मानना ही बड़ा मुश्किल हो जाता है परंतु यह भी देखो समझने की बात है एक तरफ तो शास्त्रों में भी तो यही गाते हैं कि ऐसे ही पाप के, अति पाप के समय पर अति पाप के समय पर आता हूं तो इसकी माना जरूर पाप के समय पापी ही मिलेंगे ना । जरूर पापियों को ही तो अति पापियों को ही तो बैठ कर के ज्ञान दिया होगा और उन्होंने लिया होगा, नहीं तो आया ही क्यों और आने का अभी वो टाइम है, ऐसा नहीं है कि मैं सतयुग में आता हूं, मैं कोई पावन दुनिया में आता हूं, मैं कोई ऐसे नहीं आता हूं। वह कहते हैं अति पतित और जब एकदम गिरावट का समय है तभी तो आता हूं ना, तो आने वाले का भी तो टाइम सिद्ध है। शास्त्र भी गाते हैं कि ऐसे ही टाइम पर उसको आना ही है। लेने वालों का भी टाइम सिद्ध ही है तो आया है तो उसी टाइम पर ही तो लिया है और जरूर ऐसे पतित ही पावन बने हैं तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है। तो देखो अभी अपन समझते हैं, भले शास्त्र पढ़ने वाले यह पढ़ते हैं लेकिन बिचारे समझ नहीं सकते हैं, जब प्रैक्टिकल होता है तो इन बातों को समझ नहीं पाते हैं इसीलिए समझते हैं आज के संसार में इतनी छोटी छोटी या इतने छोटे छोटे यह दावा लगाते हैं पवित्रता के और सो भी ऐसे गृहस्थ व्यवहार में रह करके स्त्री पति साथ रहकर के। अरे इतने ऋषि मुनि और इतने सब साधु सन्यासी ये भी घर गृहस्थ में रहकर पवित्र न रह सके इन्हों को भी अपना घर छोड़ना पड़ा और ऋषि मुनियों का भी गायन है भाई फलाने मुनि चलायमान हुए ये हुए कई बातें हैं ना शास्त्रों में ऐसी। देवताओं के भी नाम पर ऐसी ऐसी बातें रख दी हैं ब्रह्मा जैसे शंकर जैसे जिसको कहते हैं महादेव, महादेव के ऊपर भी कलंक कि भाई वह भी मोहिनी के ऊपर फिदा हुआ, है ना। तो समझते हैं महादेव जैसे ऋषि मुनि जैसे फलाने जैसे गिरे और आज यह कैसे यह छोटे-छोटे बच्चे या यह लड़कियां या घर गृहस्ती में रहने वाले और वह समझे कि हम पवित्र रहे ये कैसे तो मनुष्यों के ये बिलीव में आना इंपॉसिबल लगता है, परंतु यह भी सिद्ध बात है कि ये ऐसे ही यह मनुष्य नहीं कर सकता है, यह तो इंपॉसिबल है कि मनुष्य नहीं बना सकता है बाकी हां सर्व समर्थ जो बाप है उसके लिए करना और कराना कोई डिफिकल्ट नहीं है क्योंकि वह बाप मिलता है ना, एक चीज मिलती है ना। कोई चीज छूटती है जब कुछ मिलता है, एक आना हमसे छूटेगा तब जब हमको दो आना मिलेगा, चलो और दो पैसा ज्यादा मिलेगा तब कुछ तो ज्यादा बड़ी चीज खींचता है ना। तो यह कुछ छूटता है किसी प्राप्ति के ऊपर। तो अभी जबकि सर्व समर्थ खुद आ करके अपने सभी संबंधों का साथ देकर के और हमें टेंप्टेशन कि तुमको इससे क्या अधिकार प्राप्त होगा, जब मिलता है जरूर कोई ऊंची टेंपटेशन मिलेगी तब तो वो टेंप्टेशन छूटेगी ना, नहीं तो विकारों की टेंप्टेशन कोई कम थोड़ी ही है। देखो दुनिया इसके ही ऊपर चटकी हुई है एकदम तो विकारों की टेंप्टेशन कोई कम नहीं है तो इसके छूटने के लिए कोई इसके ऊपर की टेंप्टेशन चाहिए ना तभी तो वह बुद्धि की थी ना उधर तो वह बुद्धि खिंचवाने वाला, वह टेंप्टेशन देने वाला वह कोई अथॉरिटी चाहिए ना । तो अभी अथॉरिटी ने बैठ कर के उसकी भी ऊपर की टेंप्टेशन दी है प्रैक्टिकल में इसीलिए छूटना आसान है। तो यह तो बेचारे अपने को अनुभवी समझते हैं ना, यह दूसरे को तो नहीं समझ सकते हैं ना कि इनको क्या टेंपटेशन मिली है, किस आधार पर इन्हों से यह सब छूट सकता है, नहीं तो छूटना मुश्किल है यह तो बराबर है और हम अनुभव में भी देखते हैं कि बरोबर मुश्किल है , कोई चल पाते हैं कोटो में कोई । परंतु चल पाते हैं ऐसे नहीं कहेंगे इंपॉसिबल है, पॉसिबल है क्योंकि अभी परमात्मा मिला है, सर्व समर्थ मिला है और उसने सहज तरीके से बैठ करके हमें इस गंद से निकाला है इसीलिए अभी वह गंद दिखाई पड़ता है । यह विकार सभी गंद दिखाई पड़ते हैं इसीलिए गंद में कौन फिर डुबकी लगाएंगे या उनकी और देखेंगे इसीलिए वह चीज ऑटोमेटिक छूट जाती है क्योंकि कंट्रास्ट दोनों का बुद्धि में आ जाता है ना कि वह गंद है और यह बहार है । तो बहार और गंद, कौन चाहेगा बहार को छोड़कर फिर गंद तरफ जाएं। गंद छूट करके बहार तो देखो यह सतयुगी पवित्र जीवन की टेंप्टेशन बैठी है तो फिर यह गंद की कलयुगी विकारी जीवन की गंदगी जो कुछ है वह गंदगी छूट जाती है तो देने वाले ने अथॉरिटी ने दिया है ना तब, नहीं तो छूटना मुश्किल है, यह तो अनुभव भी कहते हैं देखो कई तो चल करके भी टूट पड़ते हैं उसका कारण ही क्या है कि जब यह चीज विश्वास से निकल जाती है तो फिर टूट पड़ते हैं ना परंतु हां जिन्हों को यह है अनुभूति, अनुभव और प्रैक्टिकल लाइफ में जो चल रहे हैं वह देखो आसान होती जाती है तो फिर तो देखो छोटा है, बड़ा है सबके लिए आसान है कोई डिफिकल्टी नहीं है। तो यह तो हम अनुभवी जानते हैं ना दूसरे कैसे समझें कि यह इन्हों को कैसे क्या अनुभव है तो इसीलिए जो आवे अनुभव कर करके देखे तो उसको इस टेस्ट का पता लगे, नहीं तो बिचारे ऐसे कई मूंझते हैं वह समझते हैं कि भाई ऐसे कैसे होगा। बहुत बिलीव नहीं करते हैं वह समझते हैं यह पवित्र रहते होंगे यह तो इंपॉसिबल है लेकिन पवित्र ना रहते होंगे तो खाली पवित्रता का नाम रखने से फायदा ही क्या है। ऐसा थोड़ी कोई बोगस बनाकर बैठेंगे या कोई ऐसे बैठ करके बातें रखेंगे वो तो कोई मतलब ही नहीं है ना इससे क्या अपने को मिलेगा दूसरों से हमको कुछ लेना या दूसरों से कुछ करना वह तो बात ही नहीं है यह तो अपने जीवन का है परंतु दुनिया बिचारी के आगे क्या है कि ऐसी बहुत काल की उल्टी बातें बुद्धि में पड़ी हुई है ना, ये ऐसे ऐसे ऋषि मुनि फलाने फलाने ऐसे युग में ऐसे जमाने में भी बड़ा मुश्किल रहा ऐसी ऐसी जो बातें रखी हैं इसीलिए आज मनुष्य को अपनी हिम्मत नहीं होती है कि अभी कुछ विकारों से छूट सके लेकिन कई विचारों में हिम्मत हो कर भी विकारों में पड़े हैं यानी हिम्मत ना होने के कारण क्योंकि उनकी हिम्मत गिराई गई है ना, ऐसी बातों ने उनकी हिम्मत गिरा दी है क्योंकि समझते हैं ऋषि मुनि नहीं जीत पा सके हम कैसे जीत पा सकेंगे, हमारे जैसे कैसे तो उन्होंने हिम्मत हार दी है ना। तो देखो बाप तो ऐसे कहेंगे ना कि देखो यह शास्त्रों से और ऐसी ऐसी उल्टी बातों से तुम्हारी देखो अभी हिम्मत गिर चुकी है कि भाई फलाने ब्रह्मा जैसा फलाना शंकर जैसा वह नहीं जीत सका तो हम कैसे कर सकेंगे सो भी आज की कलयुगी दुनिया में यह बड़ा मुश्किल है हो ही नहीं सकेगा इसीलिए हम गंद में पड़े ही अच्छे हैं तो ऐसे ऐसे समझ कर के बिचारे कई हिम्मत नहीं रखते हैं आगे बढ़ने की परंतु बाप कहते हैं नहीं बच्चे यही टाइम है। इसमें ही तो मैंने आकर की निकाला है ना। ऐसी पतित दुनिया से ही तो मैंने पावन दुनिया निकाली है, हां मैंने पावन दुनिया बनाई है इस दुनिया से पतित दुनिया से, एक आदमी की बात नहीं है। एक आदमी नहीं बनाया कि मैंने खाली अर्जुन या फलाना या फलाना जैसा शास्त्रों में दिखलाता आए हैं इसका उद्धार किया फिर उसका उद्धार किया कई नाम देते हैं ना भक्ति मार्ग में फलाने का उद्धार किया फलाने का उद्धार किया तो एक का ही थोड़ी ही, उद्धार वाले सभी का नाम एक ही टाइम का है ऐसे नहीं एक बारी आया तो फलाने का उद्धार किया, दूसरी बार आया तो तो दूसरे का उद्धार किया नहीं, आया एक ही बार और सबका उद्धार किया है। वह तो उन्होंने बैठकर के अलग-अलग टाइम अलग-अलग स्थान अलग-अलग बातें बना रखी है लेकिन है तो एक ही समय की बातें यानी करा है तो सबका उद्धार किया है। तो मैंने जो काम किया है वह ऐसे टाइम पर किया है तो देखो काम बहुत भारी है ना, करने वाला भी ऐसा भारी चाहिए ना। कोई मनुष्य की ताकत थोड़ी है कि ऐसे बैठकर कि यह काम कर सके इसीलिए कहते हैं मनुष्य का काम तो है ही नहीं, मैं सर्व समर्थ हूं इसीलिए सर्व समर्थ गाया हुआ हूं । कहते हैं ना भगवान है तो कोई शक्ति दिखलाए, यही तो भगवान की शक्ति है और क्या दिखलाएंगे । जो मनुष्य नहीं कर सकते हैं वहीं आकर के परमात्मा कराते हैं की ऐसी अति पतित दुनिया के टाइम पर पतित दुनिया से ही पावन दुनिया निकालते हैं परमात्मा अर्थात बनाते हैं यही तो उनकी शक्ति है और क्या शक्ति। शक्ति का मतलब यह थोड़ी है कि मुर्दों को जिंदा करें, यही तो मुर्दों को जिंदा करते हैं ना प्रैक्टिकल। यही शक्ति है और क्या शक्ति दिखलाएंगे बाकी वह मुर्दा तो क्या फिर भी तो मुर्दा तो बनना ही है ना, शरीर तो छूटना ही है कोई ऐसे थोड़ी मुर्दे को जिंदा किया चलो जिंदा हुआ फिर क्या हुआ? बस फिर जिंदा ही रहा, जिंदे के साथ तो सब रहे ना फिर तो जिंदगी में सब कुछ चाहिए ना, खाली जिंदा से थोड़ी ही जिंदा रहते हैं। जिंदे वालों से पूछो ना आज, उनमें अगर कई दुख के कारण है तो जिंदगी जिंदगी नहीं है तू जिंदा के साथ तो सभी पदार्थ साधन दुख के जो हैं जीवन में चाहिए, अगर वह साधन नहीं है तो जिंदगी जिंदगी नहीं है इसीलिए कई बिचारे अपने को आत्मघात कर लेते हैं , कई डूब मरते हैं, क्यों मरते हैं? समझते हैं ऐसी जिंदगी ना होगी, वह समझते हैं परंतु ऐसे नहीं है फिर भी कर्म जो करके गए उल्टे इसी के अनुसार फिर जन्म ले लेंगे। उनको वह जन्म याद नहीं पड़ता है ना इसीलिए समझते हैं हम तो छूट जाएंगे ना, वह याद नहीं रहता है परंतु सिर कर्म का हिसाब तो ले जाएंगे ना। वह भी इतना बड़ा पाप आत्मघात महापाप, जो किया तो उसका भी नतीजा उसको जा करके भोगना ही पड़ेगा परंतु वह बिचारे समझते थोड़े ही है। वह समझते हैं कि मरेंगे फिर याद थोड़ी ही पड़ेगी ये, यहां से छूट जाएंगे लेकिन छूटना कोई ऐसा तो नहीं है ना कर्म का हिसाब तो मनुष्य लेकर ही जाते हैं । जो भी देखो जीवन में दुख आता है यह भी तो कोई कर्म के हिसाब लेकर आए हैं दुख भोगते हैं तो समझते हैं ये छूटे तो छूटने का तरीका यह तो नहीं है मारे तो छूटे, नहीं इन्ही कर्मों को काटना है। यह कर्म का हिसाब जो बना है उसी हिसाब को काटना है जिंदगी नहीं काटनी है, यानी जिंदगी को नहीं खत्म करना है, इसमें जो हिसाब हमारा दुख का बना है उसको काटना है । जब तलक उसको ना काटे तब तलक हम दूसरी जिंदगी में सुख नहीं पा सकते हैं ना, तो भी दुखी मिलेगा तो इसीलिए बाप कहते हैं बच्चे देखो मैं तुमको बैठ कर के यह कर्म की सब नॉलेज समझाता हूं कि तुम दुख से कैसे छूटो, तुम दुख को कैसे काटो। तो मरने से दुख नहीं कटेंगे, मरो कैसे जीते जी मरो । यह अभी अपन जीते जी मरते हैं ना, हैं जीते परंतु मरते हैं। काहे में मरते हैं, यह विकारी खाता अपना खत्म करते हैं तो हम मरते जा रहे हैं न, तो यह है जीते जी मरना, मरीजीवा बनना तो हम देखो मर करके अब जीते बने हैं, इसको कहेंगे मरजीवा। मर के जिए हैं तो मरे कहां से हैं, जिए कहां हैं यह अभी समझते हैं कि मरे हैं पुरानी दुनिया के देह सहित देह के सर्व संबंधों से मरे हैं और फिर जिए कहां है नए संबंधों में अर्थात नए बाप से रिलेशन से फिर हमारा खाता भी नया ही रहेगा तो इसको कहां जाएगा मरजीवा। तो अभी मरजीवा बने हो ना, जीते जी मरे हो ना तो, अभी देखो बाप बैठ करके हमको मरना भी सीखलाते हैं मरो तो कैसे मरो । मरने का भी अकल कहते हैं तुमको नहीं है, ऐसे ही मर जाते हो। वह तो तुम अपने कर्मों का जो हिसाब है वो ले जाते हो। मरो तो फिर ऐसा मरो, मरना भी सीखो मेरे से जीना भी सीखो मेरे से, तो मैं तुमको अकल सिखाऊं कि मरो तो कैसे मरो तो अभी देखो मरना सीख रहे हैं ना, मरना और फिर जिंदा होना तो हम जिंदा रहे तो ऐसी जिंदाबाद दुनिया में जिंदा रहें, मरे तो ऐसी मरने वाली दुनिया से मरे। बाकी ऐसे थोड़ी ही है कि जिंदाबाद दुनिया से मरे और मरने वाली दुनिया में जिंदा रहे तो उसमें क्या पाएंगे, कुछ नहीं पाएंगे ना दुख ही लेना पड़ेगा तो इसीलिए बाप बैठ अकल सिखलाते हैं तो देखो यह मरने और जन्मने का अक्ल तो यह भी बुद्धि अभी बाप ने बैठकर के दी है। तो अभी हम जानते हैं कि मरो तो कैसे मरो जियो तो कैसे जियो तो अभी सीखे हो ना मरना जीना। तो अभी यह जो मरना जीना यह मरजीवा जानते हैं ऐसे मरजीवा पाए हुए ही फिर जब सतयुग में शरीर छोड़ेंगे ना फिर भी तुम जानेंगे मरना जीना अपने टाइम पर, मालिक हो करके शरीर छोड़ना शरीर लेना इसका तुमको बल मिलेगा क्योंकि अभी तुम मरना जीना सीखते हो ना तो यह मरजीवा से तुम फिर कभी ऐसे नहीं मरेंगे अकाले, फिर तुम्हारा अमर पद रहेगा उसको करेंगे अमर। तो देखो बाप हमको अभी हम अमर बनाते हैं फिर हम ऐसे कभी नहीं मरेंगे यह मृत्यु लोक के सदृश्य दुख में मरे, दुख से जन्मे, दुख से चले नहीं, फिर हमारा शरीर छोड़ना सुख से, लेना सुख में, पलना सुख में, शरीर में होते भी सुख, छोड़ते भी सुख, लेते भी सुख , सुख ही सुख है फिर तो कोई दुखी नहीं होगा ना तो इसलिए कहते हैं कि फिर तुम्हारा मैं ऐसा बनाता हूं तो उसको कहेंगे अमर तो अभी बैठकर के बाप हमको अमर पद अर्थात यह सिखलाते हैं कि कैसे, मरो तो किससे मरो तो अभी देखो मरना जीना और जीवन में रहना कैसे चाहिए यह सभी बाप बैठकर के सिखलाते हैं क्योंकि जीवन की सारी फिलॉसफी की नॉलेज यथार्थ बाप बैठकर के समझाते हैं कि जीवन कैसी होती है और जीवन लेकर के जीवन को कैसे रखना है और कैसी जीवन की प्रालब्ध पानी है वह अपनी कैसी बनानी है इन सभी बातों की अभी बाप रोशनी देते हैं तो उसी रोशनी को पाकर के ऐसा बनने का है । इसके लिए कहते हैं अभी यह एक जन्म सिर्फ यह जन्म अब पूरा मेरे हवाले कर दो, मैं तुमको इस जन्म में बिल्कुल कंप्लीट तैयार कर दूंगा और यह तुम्हारा जन्म है भी छोटा क्योंकि छोटे का मतलब है अभी लास्ट निशानियां आ गई है ना मृत्यु की, वर्ल्ड के डिस्ट्रक्शन की बस इसी टाइम के अंदर मैं आकर के तुमको इतना सभी जन्मों का तुमको यह सिखाता हूं , तुम्हारा खाता ठीक करता हूं इसीलिए कहते हैं कि बस यह थोड़ा ही टाइम मेरे प्रति करदो, मेरे हवाले कर दो जैसे कहूं वैसे चलो बाकी मैं तुमको रॉन्ग तो डायरेक्शन नहीं दूंगा, रॉन्ग तो नहीं चलाऊंगा, कोई ऐसी भी बात नहीं जिससे तुम्हें उल्टा या दुख का कारण बने, सुख का ही बनाऊंगा लेकिन करोगे तो तुम ना । तो बाप बैठकर समझाते हैं कि बच्चे मेरे हवाले करने से तेरा कल्याण होगा , तो अभी ये जीवन तन मन धन से मेरे हवाले हो जा। हवाले का मतलब यह नहीं मुझे दे दो, नहीं मेरी डायरेक्शंस पर, मेरी मत पर जिस की मत पर कोई रहते हैं तो वो उसका ही हो जाते हैं ना, बाकी हो जाने का मतलब यह नहीं देखी दे दो बाकी मैं क्या करूंगा तेरा तुम्हारे शरीर को लेकर बैठूंगा क्या, यहां तेरा तन मन धन मैं क्या करूंगा। तुम्हारे से ही बैठ कर के मत दे करके तुमको राय दे करके डायरेक्शंस दे करके तुम्हारे से राइटियस कर्म करवाउगा तो उसी से तुम्हारे कर्म अच्छे बनते जाएंगे मत दूंगा राय दूंगा डायरेक्शन दूंगा क्योंकि तुम्हारी बुद्धि की मत जो है ना, वह तो मत मारी गई है। माया ने तुम्हारी मत को मार डाला है यानी तुम्हारी मत खराब कर दी है तमोप्रधान इसीलिए तुम्हारी बुद्धि में अच्छे विचार नहीं आएंगे। मैं तुमको वह शक्ति दूंगा, बल दूंगा, राइटियस वे बताऊंगा कि ऐसे चलो ऐसे करो, तुम्हारी कहीं उल्टी हो सकती है। हां जितना जितना फिर उस पर चलते रहेंगे उससे तुम्हारी बुद्धि स्वच्छ होती जाएगी, फिर तुम अपनी मत का भी स्वच्छ चलने का ताकत रख सकेंगे। इसीलिए कहते हैं कि अभी तो फकंप्लीट ऐसे तो नहीं हो ना कि फ्री हो जैसे चाहो वैसे चलते रहो, देखो अर्जुन को भी कहा ना आखिर में उसने पूछा की नष्टोमोहा? तो उसने कहा हां बाबा नष्टोमोहा तो कहा हां बच्चे अभी जो चाहो सो करो, अभी फ्री हो, अभी मेरी मत कि तुम्हें दरकार नहीं है। अभी तुम नष्टोमोहा विकारों से सब छूट गया, अभी तुम बालिग हो गए अब तुम फ्री हो अब जैसे चाहो वैसे करो । परंतु अभी हमको बाप नहीं कहते तुम बालिग हो गए, कहते हैं तुम अभी मेरे अंडर हो क्योंकि अभी तक तुम्हारी वह बुद्धि इतनी नहीं बनी है जो तुमको हम कहे कि अभी नष्टोमोहा फ्री हो, जो चाहो करो फ्री हो, नहीं फिर कहीं तुम्हारी उल्टी बुद्धि चल पड़े फिर कोई विकार काम क्रोध लोभ मोह अहंकार फिर घसीट लेवे इसीलिए अभी फ्री नहीं हूं, अभी तो गीता चल रही है ना, अभी तो हमको सुनाए रहें है जैसे अर्जुन सुन रहा था न, फिर पिछाड़ी में कहा नष्टोमोहा पीछे गीता समाप्त हुई है तो वो स्टेज पिछाड़ी में ना। अभी तो बाप गीता पढ़ा रहा है ना , अभी तो पाठ पढ़ रहे हों अभी तो सुन रहे हैंअभी तो गीता चल रही है अभी तो नॉलेज हमको बाप दे रहे हैं अभी जब वो अवस्था आएगी न पीछे बाप कहेंगे बच्चे अभी सब समझ लिया अब मेरा भी काम पूरा हुआ तुम भी अभी ठीक रहे तो बाप भी कहेंगे अभी टाइम भी पूरा हुआ पूरा डिस्ट्रक्शन का भी टाइम पूरा हो जाएगा और इधर अवस्थाओं का भी ऊंची ही रहेंगे फिर काम पूरा हो जाएगा तो कहते हैं हां इतने तक मेरे डायरेक्शंस पर अपने को चलाना है, यह तुमको अपने से ही पता चलेगा ना मेरी अवस्था कहां तक है, मैं कहां तक बाप के फरमान पर आज्ञा पर पूरा चलता हूं, नहीं चलता हूं यह तो तेरे चलने से ही तुमको पता चलता है यह तो ऐसे ही बातें है ही नहीं कि छिपा हो, प्रत्यक्ष है। मनुष्य अपने कर्तव्य से देख सकता है कि मेरी धारणा कहां तक है । तो यह सभी बातों को बैठकर के बाप समझाते हैं और अभी प्रैक्टिकल उनके द्वारा समझ रहे हैं तो अभी ऐसे बाप के मत पर जिसको ही श्रीमत, श्रीमद् एक ही है यानी श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत। तो श्रेष्ठ जो है उसकी ही तो श्रेष्ठ मत होगी ना तो सबसे श्रेष्ठ कौन है? एक ही है इसीलिए बाप कहते हैं अभी उसी की मत पर चलो। मनुष्य मत जो भी सब है ना , शास्त्र मत भी तो मनुष्य मत हो गई ना, गुरु की मत भी लौकिक का वह भी तो मनुष्य मत हो गई, अपनी मन मत वह भी तो मनुष्य मत हो गई तो कहते हैं बाकी सब हैं मनुष्य मत अभी परमात्मा की मत जो है वह एक की ही है मत वह है सबसे श्रेष्ठ इसीलिए सभी मनुष्य मत अभी छोड़ो शास्त्रमत, गुरु मत, मनमत, सब मत अभी छोड़ो, सब मनुष्य मत में आ गई । यह मनुष्य मत तो सब जितना काम तुम्हारा उस मत से चलना था वह तो चल करके अभी उसका भी टाइम पूरा हुआ और उससे तुमको वो मेरी चीज जो है गति सद्गति वह नहीं मिलती है वह मेरी मत से मिलेगी, वह अभी मैं देता हूं तो अभी मेरी मत लो, तो लेनी चाहिए ना । तो अभी बाप की मत लेकर के और बाप से जो श्रेष्ठ मत है उसी श्रेष्ठ मत से श्रेष्ठ कर्म करने हैं तो श्रेष्ठ कीमत श्रेष्ठ बनाएगी ना । तो अभी बाप कहते हैं देखो मेरी मत तुमको अभी ऊंचा बनाती है इसीलिए देखो देवताओं को भी श्री कहते हैं क्योंकि श्रेष्ठ ने बनाया है ना, उसी की मत से ऐसे बने । देवताओं को किसने बनाया है परमात्मा ने, तो परमात्मा ने मत दे करके बनाया , बाकी ऐसे नहीं कि उसके बोते बनाएं, उसमें सांसो फूंका ऐसा तो नहीं बनाया न, कैसे बनाया वह तो अभी समझते हो ऐसे बनाया। तो ये ज्ञान से उनके कर्म को श्रेष्ठ बनाया उससे फिर इंसान और मनुष्य ऐसे बने तो अभी देखो हम बन रहे हैं इसलिए बाप के फरमान और आज्ञा का पूरा पालन करते और बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार पाने का पूरा पुरुषार्थ रखना है तो अभी एम एंड ऑब्जेक्ट बुद्धि में है ना । तो देखो कितनी सहज है, बाप ने बैठकर के सहज बातें सुनाई है इसीलिए अभी वह टेंप्टेशन है बुद्धि में इसीलिए पुरुषार्थ अवश्य उसी प्राप्ति को प्राप्त करने के लिए करना ही चाहिए बाकी मनुष्य तो इतनी टेम्पटेशन दे ही नहीं सकते हैं ना। मनुष्य तो बस जैसे भी तू मुक्त हो जाएगा, तू ये कर, तेरा मुक्ति हो गया तू चले जाएंगे, बहुत गए हैं, ऐसे ऐसे सुनाते आए हैं परन्तु बस वो इतना ही नहीं, बाप तो साथ ले चलते हैं, प्रैक्टिकल दुनिया को बदलाते हैं। प्रैक्टिकल है ना, वह तो सुनाते सुनाते खुद ही बिचारे चले गए और सुनाते सुनाते सुनने वाले भी चले गए, यह तो होता ही आया है बहुत जन्मों से लेकिन दुनिया तो हमारी ऊंची चली नहीं। दुनिया तो और ही नीचे गिरती जा रही है यह तो देखते ही जा रहे हैं। सुनाते तो रहते ही हैं कोई आज के थोड़ी ही सुनाते हैं, यह तो वेद, शास्त्र, ग्रंथ वाले बहुत काल से हैं, शास्त्र बहुत काल से हैं, बहुत काल से सुनाते आए हैं तो सुनाने का कुछ इफ़ेक्ट तो दुनिया के ऊपर आना चाहिए ना। जो अगर हम ऊंचे जाते रहे तो उसका कुछ दुनिया को भी फल मिलना चाहिए ना, परंतु नहीं दुनिया नीचे ही चलती जा रही है उसका मतलब है कि हम नीचे ही बढ़ते जा रहे हैं ऊंचा उठने का कुछ और तरीका है इसीलिए बाप कहते हैं मुझे आना पड़ता है और ऊंचा उठने का मैं तो प्रैक्टिकल दुनिया को ऊंचा कर जाता हूं, वह तो प्रैक्टिकल। तो जो चीज प्रैक्टिकल है उसको तो कोई छुपाए रखने की बात ही नहीं है, वह तो छिपने वाली बात ही नहीं है । तो अभी-अभी यह सभी बातें प्रत्यक्ष होती रहेंगी परंतु कहते हैं मैं काम आ करके बड़ा गुप्त तरीके से करता हूं, मेरे काम का तरीका बड़ा गुप्त है क्योंकि मैं भी हूं ही गुप्त मैं पहले से ही निराकार हूं, जो इन आंखों से पहले से ही देखने में नहीं आता हूं बाकी जो काम करता हूं ना बड़ा साधारण तरीके से इसीलिए मेरा काम बहुत साधारण है, देखो किसको बैठकर पढ़ाता हूं, अबलाएं, कन्याएं, माताएं, कहा भी है ना अबलाओं को बल देने वाला तो नाम कोई ऐसा नहीं है बलवानों को बल देने वाला, नहीं अबलाओं को। देखो अबला कहा है , अबला किसको कहा जाता है, निर्बल को बल देने वाला तो ये सभी चीजें । देखो गायन कैसे कैसे हैं अबला को बल देना निर्बल को बल देना । कईयों को खुद में विश्वास नहीं बैठता है कि हम कैसे ऐसे हो सकते हैं ऐसे समझते हैं परंतु नहीं बाप कहते हैं मैं आता हूं अजामिल जैसा कोई पापी भी हो न तो ऐसा पापी भी क्षण में पुण्य आत्मा हो सकता ही क्योंकि बाप मिला है न इसलिए अपने में हिम्मत नहीं हारो हम कैसे ऐसे हो सकते हैं हिम्मत रखो अपने में और ऐसे हिम्मत रखने वाले को ही कहा हुआ है हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा तो जरूर है अभी खुदा, खुदा दोस्त बनकर आया है। दोस्त बन कर आया है ना अभी, तो अभी बाप कहते हैं अभी मेरे से दोस्ती रखो, तुम माता पिता तुम विद्याद्रविणं, तुम सखा, सखा भी कहते हैं, सखा किसको कहा जाता है दोस्तों को, सखा हिंदी वर्ड है, अंग्रेजी में फ्रेंड कहते हैं, उर्दू शायद दोस्त हैं, दोस्त कहो, फ्रेंड कहो, सखा कहो बात तो एक ही है ना तो गाते हैं ना तू सखा, सखा किसको कहा जाता है सखी सखा फ्रेंड को, तो फ्रेड सखा दोस्त खुद परमात्मा दोस्त बन कर आते हैं कहते हैं अभी मेरे से दोस्ती रखो तो मेरे द्वारा तुम को देखो कितनी सुख की प्राप्ति रहेगी तो अभी उससे ठीक से अपना अटेंशन ऐसा न हो कहीं माया फिर आँख हटा देवे, आँख पूरी रखना एकदम टिकटिकी जरा भी नजर वहां से न हटे, परंतु नजर कोई यह नजर नहीं, बुद्धि से। इस नजरों से तो काम करना है न , उधर दूसरे काम जाना पड़ेगा तो आँखों से फिर उधर भी काम करना पड़ेगा, तो इन आंखों को भले हिलाओ परंतु वो बुद्धि को मत हिलाओ, बुद्धि स्थेरियम किसमें बाप में, हम उनके हैं चलो तो बाप कहते हैं फिर मेरे हो करके हर बात में रहेंगे ना, हम बाबा के हैं बाप के हैं, उसके बच्चे हैं हम इससे बुद्धि हिले नहीं तो ऐसी जो स्थेरियम बुद्धि धारणा वाले हैं वह अपना हर कर्तव्य में मेरा ही कर्तव्य का पालन करते चलेंगे। वो समझेंगे हर कर्तव्य में कि हम बाप के हैं और बाप की आज्ञा और फरमान के ऊपर रह करके हर कर्तव्य का पालन करना है तो ऐसे चलने वाले जो बच्चे हैं वह सदा सुखदाई और सुख को पाएंगे, ठीक है न । ठीक है ना तो ऐसे सुख पाने के लिए अपना पुरुषार्थ अच्छा रखते रहो और बाप से सदा सुख का वर्सा पाने में अपने को तेज चलाओ, तेज रफ्तार, तेज पुरुषार्थ । तो ऐसे तेज पुरुषार्थ करने वाले ज़रूर है की आगे भी तेज आएँगे, तेज का मतलब है आगे आएंगे नई दुनिया में। अभी फिर तेज पुरुषार्थ की प्रारब्ध नई दुनिया में आगे आने की, पहले नंबर । ऐसा होता है न, पढ़ाई में मनुष्य तेज होते हैं उसका मतलब ही क्या है, नंबर आगे आएंगे, नंबर आगे आएंगे तो फिर स्कॉलरशिप फिर आगे स्टेटस में उनका फायदा उनको मिलेगा यह तो कायदा ही है ना, तो इसमें तेज होना माना हम आगे अपनी प्रालब्ध में नंबर आगे, अपना बड़ा स्टेटस पाएंगे । तो ऐसे स्टेटस पाने वाले जो होते हैं वह पुरुषार्थ का पूरा अटेंशन रखते हैं, ऐसे नहीं है कि चलो थोड़ा बहुत किया, क्या किसी ने दे,खा क्या होगा चलो जो मिलेगा ले लेंगे, ऐसे ऐसे डल पुरुषार्थ नहीं, तीव्र, तेज तो ऐसे तेज पुर साथ में चलते रहो। अच्छा टाइम हुआ है, आज छुट्टी तो नहीं है इसीलिए अपने टाइम पर आप लोगों को छोड़ना है, फिर आप लोगों को अपना अपना भी काम है, किसीकी नौकरी दफ्तर आदि। अच्छा, कैसे? सब अच्छे हो? सब अच्छे हो, अच्छा का मतलब अच्छा, अच्छा किसको कहा जाता है अभी अच्छा का अर्थ तो जान गए हो ना अच्छी तरह से । अच्छा किसने नहीं खिलाया है? सब ने खिलाया है? इसने नहीं खिलाया है? ओ....देव कैसा है? गारंटी पक्की ? देखना , जब कहेंगे गारेंटी पक्की माया ही तभी आएगी लड़ने के लिए, उसके पहले कहेंगे यह तो शांत स्वरूप है, कहां गारंटी, वो कहेगी ये कहते है गारंटी? मेरा ग्राहक उससे गारंटी करता है, दूसरे से, भगवान से तो पकड़ो फिर पकड़ेंगी । फिर आएगा तूफान आएगा, युद्ध होगा लड़ेंगे सब, सगे वाले, इधर के उधर के, सब दुश्मन बनेंगे बता देते हैं, हाँ? भले बनें ? परवाह नहीं है ? हिम्मत है ? चलो देखो, हम क्यों आपमें अशुभ भावना उठाएँ, हम तो शुभ भावना रखेंगे फिर देखेंगे। ये हम डराते हैं देखें कि डरता तो नहीं है। शिव बाबा को याद करते हो? करके देते जाओ । याद करो भी और देते भी जाओ दोनों काम करो बुद्धि से याद करो, हाथ से काम करो। कहा जाता है दिल यार डे कम कार डे यानी हाथों से काम, इसका मतलब है दिल यार, यार माना दोस्त, फ्रेंड दिल उसकी तरफ और काम हाथ से, हाथ से काम करो दिल उसको दो इसमें क्या भारी लगता है हां ? यह भी आता है कुछ टाइम से, कुछ समझ में आती है बाते ? इसका नाम क्या है, आपका शुभ नाम क्या है? देव? देवराज? ओ....हो..! नाम तो पहले से ही देवराज है, देखो श्री नारायण को कहेंगे ना देवराज, वह देवता राजा था, महाराजा था देवराज महाराज, बहुत अच्छा अभी देवराज से देव महाराज बनने का है, महाराजा, ऐसा पुरुषार्थ करने का है। अभी नाम है फिर काम करने है ऐसा, प्रैक्टिकल एक्शंस में अपने को ऐसा बनाना है, समझा । तो एक्शंस में कैसे बनना है वो तो समझते जाते हो ना, अपने एक्शंस को प्योर करना है । प्योर कैसे करना है, वो भी समझते हो ना? पांच विकार जो है उसको छोड़ना है, उसको छोड़ने से प्योर हो जाएंगे । तो अभी छोड़ते जाते हो ना विकारों को? कौन से विकार छोड़े हैं? कौन से छूटे हैं विकार? अभी छोड़े नहीं है? ओहो ! यह बिचारा सच कहता है, देखो यह भी इसका गुण अच्छा है । देखो साफ कहा नहीं छोड़ा है तो कहा, यह फिर भी सच कह रहा है । तो हां सच बोलना है फिर अच्छा बोला सच, परंतु इसको भी छोड़ना है । अपनी लाइफ की स्टेज की सत्यता को जानना है और प्रैक्टिकल हम जैसे सच्चे हैं, (इसको डबल देना है ना) तो ऐसा प्रैक्टिकल सच्चे बनना है तो अभी फाइव वॉइसेज को छोड़ना है । वॉइसेज का मालूम है कौन से हैं, कौन से हैं बताइए । काम, हां काम और दूसरा? क्रोध, तीसरा मोह, अच्छा चलो फिर लोभ, फिर? पांचवा कौन सा ? अहंकार, तो पहला पहला है देह अभिमान, अहंकार, बॉडी कॉन्शियस, यही पहला शत्रु है उसके बाद सब शत्रु आते हैं । काम क्यों आता है, काम तभी आता है जब हम सोल कॉन्शियस छोड़ करके बॉडी कॉन्शियस यानी देह का अहंकार में आते हैं, मैं फलाना हूं यह मेरी स्त्री है, मैं पति हूं, हमारा विकार का ही संबंध है, तब तो फिर विकारी दृष्टि, क्रिमिनल आई लगती है तो क्रिमिनल आई तब लगती है जब हम पहले पहले देह अभिमानी, बॉडी कॉन्शियस होते हैं । तो बॉडी कॉन्शियस वाला विकार तो पहले छोड़ना है यानी पहले सौल कॉन्शियस आई एम सोल, नॉट बॉडी, आई एम सोल, सन ऑफ़ सुप्रीम सोल समझा ? तो आई ऍम सोल, सन ऑफ़ सुप्रीम सोल, तो आई एम प्योर सोल । सन ऑफ़ सुप्रीम सोल तो प्योर सोल होगा ना, सन ऑफ सुप्रीम सोल इम्प्योर थोड़े ही होगा, नहीं आई एम सोल, सन ऑफ सुप्रीम सौल, प्योर सौल तो प्योर रहना है समझा । पीछे आएगा, जब सोल रियलाइज करेंगे और गॉड रियलाइज करेंगे तब फिर तुमको आएगा कि अभी हम प्योर रहें तो यह हो गया पहला देही अभिमानी बनना, तो देहि अभिमानी बनना माना अपने को बाप को समझना । देह का अभिमान नहीं, देही, देही कहा जाता है आत्मा को, देह कहा जाता है शरीर को, यह सब समझने की बात है । तो अभी पहले वह ठीक करने से फिर काम नहीं आएगा, फिर क्रोध नहीं आएगा, फिर लोभ नहीं आएगा, फिर मोह नहीं आएगा, अभी समझा? अच्छा । अभी हमारे होते ही बाकि एक सप्ताह भर हैं कुछ तो उसके अंदर अंदर फिर हम पूंछे तो आप कहो अभी छोड़ा है, शुरू किया है छोड़ना, ठीक है ना । शाबाश! कोई शुभ कार्य में देरी थोड़ी ही लगानी चाहिए, नहीं शुभ कार्य में तो जहात से खड़े हो जाना चाहिए कि आज से प्राण करता हूँ, आज से बस अभी विकारों का हम अपना उससे संग नहीं रखेंगे । ठीक है? शादीशुदा हो? बाल बच्चे हैं? कितने बच्चे हैं? पाँच, ओहोहो! बाकी क्या रहा, पाँच बच्चे अभी क्या बाकी, अभी बर्थ कंट्रोल गवर्नमेंट भी कहती है और आलमाइटी गवर्नमेंट भी कहती है बर्थ कंट्रोल । विकारों को कंट्रोल ठीक है न । ऐसे चलने से अपना सौभाग्य पाएंगे । तो ऐसा बाप और दादा, जानते जाते हो ना और मां की मीठे-मीठे बहुत ही अच्छे सपूत समझदार बच्चों प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग । अच्छा, अच्छे हैं बच्चे, कैसा है बैकुंठ वासी? वासी है या नाथ है? वासी है, नाम ऐसा है । वैकुंठ में वासी होना? शाबाश! हां, याद करो अपना वैकुंठधाम और अपना मुक्तिधाम । जीवन मुक्तिधाम और मुक्तिधाम बस दो याद रखो बस और कोई बात नहीं, ठीक है ना । यह दुःख धाम तो भूलना ही है, अभी चलना है अपने घर शांति और सुख धाम । अच्छा, सब ठीक हो ? ओके ? चार्ट, दिनचर्या, सब ठीक है? अच्छा शाबाश, ठीक है तो शाबाश, करो करो कौन बात करता है । है कोई करने वाला, बस ? बोलो, बोलो, और कोई बोलने वाला है बोलो, क्या बोलते हो, नमस्ते शिव बाबा ।