मम्मा मुरली मधुबन
011. Brahmano Ka Karthavya
रिकॉर्ड :
इक बात बताएं तुम्हें… ये जोगन कब तेरी होगी.....
ये जो गीत में सुना कि यह योगिनी कब तेरी होगी, क्या अभी होगी या हो चुकी है, क्या कहेंगे आप? हो चुके हो उनके या अभी होंगे? हमारे आशुतोष? हो चुके हो? हो चुके, हां यही ठीक है कि होंगे नहीं अभी, हो चुके। हो चुकने में फिर प्राप्ति भी अधिक रहेगी । अभी होंगे तो प्राप्ति तो पीछे रह गई, और अगर होंगे, होंगे कहते स्वांस छूट जाए तो क्या होगा? होंगे होंगे, यह करेंगे, वह करेंगे, करेंगे, होंगे , तो स्वांस अगर छूट जाए तो रह जाएंगे, और अगर हो चुके तो हां, उसके ऊपर दाव लग चुका । तो बाप कहते हैं बच्चे अभी मेरे पर दाव तो जल्दी लगा दो । कोई स्वांस के ऊपर भरोसा तो नहीं ना, अभी आज दांव लगाया और समझो स्वांस निकल भी जाए ना तो दाव का मिल तो जाएगा ना, कितना फायदा हो गया । और अगर होंगे, करेंगे, यह होंगे करेंगे कहते कहते और स्वांस निकल जाए तो भरोसा नहीं है। सांस निकल गया तो रह जाएंगे ना तो फायदे की बात वह हुई ना की हो तो जाएं । हो तो क्या जाएं, बाप कहते हैं, देखो पुरुषार्थी तो हम भी हैं, ऐसे थोड़ी कहेंगे कि नहीं, परंतु उसके हो गए हैं ना। ऐसे तो कह दिया हम उसके तो हो चुके हैं, अभी और किसी के थोड़ी ही हैं अभी उसके हैं , तो उसके तो हो चुके न बाकी उसका हो करके फिर पुरुषार्थ कर रहे हैं । उसका होने के बाद ऐसे नहीं पुरुषार्थ करना ही नहीं है, नहीं उनके बाद पुरुषार्थ करना है क्योंकि वही बाप फिर वही टीचर बनता है तो पहले बाप के तो बन जाए ना। बच्चे उनके प्रैक्टिकल हो करके पीछे फिर बाप बैठकर के बच्चों को अपनी नई राजधानी जो स्थापन कर रहा है स्वर्ग की उसमें ऊंच स्टेटस दिलाने के लिए पढ़ाता है कि हां बच्चे स्वर्ग में तो अधिकार कर दिया, मेरे हो चुके माना स्वर्ग के तो अधिकारी हो चुके, उसके ऊपर तो अपना हक लगाया, अभी उसमें फिर ऊंचा पद प्राप्त करो, उसके लिए फिर यह पढो तो इस पढ़ाई से फिर तुमको उसी नई दुनिया में भी स्वर्ग में भी ऊंचा पद मिलेगा क्योंकि वहां भी तो राजा प्रजा होगी ना स्वर्ग में भी ऐसे तो नहीं ना होगी, स्वर्ग में भी राजा प्रजा सब है तो कहते हैं कि फिर उसमें भी फिर तुमको ऊँच पद प्राप्त रहे उसके लिए फिर ये पढ़ाई पढ़ाता हूं । लेकिन मेरे तो बन जाओ यानी स्वर्ग के ऊपर अपना अधिकार तो लगा दो । इसीलिए कहते हैं मेरे तो जल्दी हो जाओ और उस होने में कोई ऐसी भी बात नहीं है कि क्या करना है, कैसे वैसे नहीं, कहते हैं बस जैसे कोई साहूकार गोद का बच्चा लेते हैं, किसी को बच्चा ना होवे तो किसी गरीब का बच्चा ले लेवे, गोद का बच्चा तो कोई साहूकार का बच्चा थोड़ी ही आ करके बच्चा बनेगा गोद का , जरूर गरीब का बच्चा ही आ करके गोद का बच्चा बनेगा, हाँ कोई गरीब बच्चा बन सकता है बाकी ऐसे नहीं है कि कोई साहूकार का बच्चा किसी गरीब का जाके गोद का बच्चा बने, ऐसा नहीं है। तो हां, बाप कहते हैं अभी मैं तो शहं का शाह, मैं तो देने वाला दाता ही हूं, अभी मेरे गोद के बच्चे बनो, अडॉप्टेड चिल्ड्रन, तो अभी कहते हैं मेरे बनो, कैसे बनो वह बैठ करके बताते हैं। अभी कहते हैं मेरे बनो, बनो का मतलब ही है खाली शूद्रपन का जो है वह छोड़ करके अभी ब्राह्मण हो जाओ यानी पवित्रता का अपने में धारणा को ले आओ तो उसका मतलब हुआ हो जाओ कि बस, हमको अभी जैसे यह कहेंगे वैसे मैं करूंगा, वैसा हो करके चलूंगा, अभी उनके फरमान पर ही रहूंगा, बस यही तो संकल्प अथवा दृढ़ता अपने दिल के अंदर रख लो बाकी है कि वह जैसे डायरेक्शंस देते जाएं, चलाते जाएं उसमें तो चलते ही चलना है, वह तो अभी भी हम उनके डायरेक्शंस पर उनकी मत पर, उनकी राय पर कदम कदम चलाते रहते हैं परंतु उसके तो हो गए हैं ना, भाई उनके हैं तो हां उनके हैं वह तो हो जाओ । जो कहते हैं ना हो चुके हैं वह ठीक है परंतु हो चुके हैं सच क्या वह तो हर एक को अपने आप ही पता है । वह कहते हैं ना ब्राह्मणों का काम है पढ़ना पढ़ाना परंतु क्या पढ़ना क्या पढ़ाना, वह भी तो समझना है ना । वह तो जाकर के शास्त्र पढ़ते हैं और पढ़ाते हैं तो समझते हैं ब्राह्मणों का काम यह है, क्योंकि वो भक्ति मार्ग उन्होंने फिर ऐसा उठा दिया परंतु असल में बात यह है कि ब्राह्मणों को तो खुद परमात्मा ने बैठकर के पढ़ाया है । वह जिस्मानी ब्राह्मण नहीं, सच्चे ब्राह्मण तो यह है ना मुख वंशावली तो ब्राह्मणों को देखो हमको खुद बैठकर के परमात्मा पढ़ाई पढ़ाते हैं। क्या पढ़ाई पढ़ाते हैं आ जाती है, आ जाती है ना? तो इसीलिए कहते हैं बाप इसमें सब आ जाती है, सबसे ऊंचे स्टेटस की पढ़ाई है, इसके ऊपर कोई स्टेटस है ही नहीं तो तुमको बाकी क्या चाहिए । यह स्टेटस मिल जाए देवी देवता तो अभी सूर्यवंशी और उसी के राजे महाराजे अगर यह स्टेटस की पढ़ाई तुमको मिले फिर क्या डॉक्टर बनना है? इंजीनियर बनना है? बैरिस्टर बनना है? अरे! डॉक्टर क्यों बनेंगे, रोग ही न होगा तो कहे के लिए बनेंगे, सब पढ़ाई आ गई । बैरिस्टर क्यों बनेंगे, इस पढ़ाई की स्टेटस उसके आगे क्या है, कुछ नहीं है ही नहीं इसीलिए कहते हैं ऐसे स्टेटस स्वर्ग में है ही नहीं, इधर तो कोई डॉक्टर बनता है तो कहते हैं, भाई डॉक्टर है बड़ा है यह बैरिस्टर है बड़ी बात है, बीएएलएलबी बड़ी बात है, बड़ा उनका रखते हैं इधर उसका मान है, सतयुग में तो कहते हैं वह है ही नहीं । चोर चकार ही ना होगा तो बैरिस्टर क्या करेगा, दरकार ही नहीं है इन डिग्रियों की वहां कुछ वैल्यू नहीं है, वो डिग्रियां ही नहीं है, क्यों ? चोर चकार हो, कोर्ट हो तो हां बीएएलएलबी भी हो, वहां यह है ही नहीं तो यह डिग्री ही नहीं है । वहां रोग है ही नहीं तो डॉक्टरी ही नहीं है तो यह वहां यह डिग्रियां है ही नहीं, कुछ काम की नहीं है । इधर देखो वह डिग्री है, कोई पढ़ा लिखा है तो हां भाई ये डॉक्टर, बरिस्टर फलाना यह पास है, उधर कहते हैं यह सब इनकी दरकार ही नहीं है यह चीजें ही मैं नहीं रखता हूं, ना रोग रखता हूं कि तू उनके लिए तो डॉक्टर बन तो इसीलिए कहते हैं कि यह पढ़ाई जो मैं पढ़ाता हूं उसकी स्टेटस इतनी ऊंची है जिसके ऊपर तुमको कोई स्टेटस लेने की बात ही नहीं है, सब कुछ तुम को प्राप्त हो जाता है । तो यह मेरी विद्या सब विद्याओं की राजा, कहा है ना गीता में मैं वह विद्या पढ़ाता हूं जो सब विद्याओं की राजा है तो देखो यह सभी विद्याओं की सबका मुख्य है ना । तो बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसी नॉलेज पढ़ाता हूं, मैं ऐसा स्कूल खोलता हूं, ऐसी कॉलेज कहो, यूनिवर्सिटी कहो खोलता हूं जो मैं वह पढ़ाई पढ़ाता हूं जिसके ऊपर फिर कोई पढ़ाई की स्टेज ही नहीं है । पढ़ करके देखो तुम क्या बनते हो जिसमें ऊपर फिर कुछ बनने की मार्जिन ही नहीं है, जो तुम इच्छा रखो कि नहीं इससे डिग्री ये ऊपर है, इससे डिग्री यह ऊपर है हम अगर यह पढ़ें यह पढ़ें होता है ना, परंतु नहीं उसमें कहते हैं तुमको इससे ऊपर कोई है ही नहीं, मार्जिन ही नहीं है आगे कुछ, ऊंचे में ऊंचा मनुष्य बनाता हूं तुमको क्योंकि बाप भी ऊंचे में ऊंचा है ना, जैसे मैं हूं ऊंचे में ऊंचा हूं तो तुम को भी ऊंचे में ऊंचा बनाता हूं । क्यों मैं ऊँचे में ऊंचा, मेरा गायन ही क्यों है क्योंकि मनुष्य को मैं ऊंचे में ऊंचा बनाता हूं जिसके ऊपर मनुष्य के लिए कुछ और है ही नहीं बनने का । देवी देवता से ऊपर क्या बनेगा, मनुष्य को परमात्मा तो बनना ही नहीं है, वह तो परमात्मा तो एक ही है बाकी मनुष्य के लिए ऊंचे में ऊंचा में है ही क्या, बस यही देवी देवता, देवी देवताओं के ऊपर कोई है ही नहीं । मनुष्य के लिए जो ऊंचे में ऊंचा पद है, स्टेटस है वह यह है और देवी-देवताओं में भले सबको कहेंगे ना वहां सतयुग में, सबको देवी देवता कहेंगे राजा रानी प्रजा सब परंतु हाँ फिर भी उनमें राजा रानी ऊँच पद इसीलिए कहते हैं मैं तुमको वह बैठ करके पढ़ाता हूं जो सतयुग में भी तेरा ऊँच पद रहे फिर उसके ऊपर क्या रहा । तो ऐसी पढ़ाई बैठकर के बाप पढ़ाते हैं परंतु कहते हैं बाप पढ़ाता है ना, तो बाप के तो बन जाओ जल्दी, उसमें तो देरी नहीं लगाओ बाकी टीचर से पढ़ाई में जरा टाइम लगता है, तो टीचर से पढ़ाई में जरा टाइम लगता है लेकिन बाप का हो जाने में देरी नहीं लगती, वह तो बस हम तुम्हारे हैं और बस अभी तुम्हारे हो करके रहेंगे, वह कहते हैं बस यह जीवन मेरे हवाले कर दो मेरे हो जाओ तो जैसे मैं चलाऊं क्योंकि अभी शगीर हो, बालिग नहीं हुए हो जैसे चाहो वैसे जाकर के करो । वह तो देखो अर्जुन को भी कहा ना पिछाड़ी में कि अभी तुम नष्टोमोहा, पूँछा उससे तो जब उसने कहा कि हां नष्टोमोहा, अभी मेरा मोह नष्ट हुआ तब उसको कहा कि अब तुमको जो चाहे सो कर, यह है ना गीता में भी ऐसा है, परंतु वह तभी जब वह बालिग बना, कहा कि हां अभी मेरा नष्टोमोहा, अभी कोई विकार सताता नहीं है तब, अभी तो विकारों का वार हो जाता है ना इसीलिए कहते हैं अभी शगीर हो, छोटे हो तो अभी तो मेरे डायरेक्शन पर, शरीर का काम है बाप के पर डायरेक्शंस पर, और उस पर वह बाप का फर्ज है कि बाप को संभालना ही है, जभी बालीग हो जाए तो फिर अपने पांव पर, बॉडी को अपने पांव पर, ये नहीं है न अभी कहते हैं मेरी मत पर, अभी कहते हैं तेरी मत पर अभी वो तमोप्रधानता का बैठा है वह भूत यह पांच विकारों का तो कभी फिर वो तेरी मत तेरे को कहाँ उल्टा ना ले जाए इसीलिए मेरी राय, मेरी मत, मेरी आज्ञा मेरा फरमान जो कुछ है सभी बातों का लेते और उसी पर चलते रहो तो उसमें तुम्हारा कल्याण है । तो अभी बाप का तो बन जाओ बाकी टीचर की पढ़ाई के लिए तो पढ़ ही रहे हैं वह तो हम सब देखो अठाईस वर्ष हुआ है पढ़ते रहते हैं, पढ़ते रहते हैं । यह पढ़ाना भी पढ़ना है ना । दूसरों को पढ़ाते हैं यह भी अपनी पढ़ाई है । दूसरों को हम कहते हैं पहले तो अपने के ऊपर अटेंशन रखेंगे ना भाई हम कहते हैं दूसरों को यह मत करो पहले हमारे में देखें, हम अगर करते हैं तो दूसरों को कहने का वो असर नहीं पड़ेगा, हक नहीं क्योंकि पहले तो अपना है ना, तो यह पढ़ाई हो गई ना ये तो अपनी पढ़ाई है । तो बाप बैठकर कहते हैं कि पढ़ो-पढ़ाओ यह भी पढ़ाई जो है उसी तरह से तो यह ब्राह्मणों का काम है तो सच्चे ब्राह्मण बनना चाहिए ना । तो अभी ब्राह्मण और ब्राह्मणियां सच्चे हो ना? कहते हैं ना हो चुके हैं, यह तो फिर सबने कहा ना? हाँ सब हो चुके हो ना उनके, तो अभी उनके तो हो चुके हो, अभी है पढ़ करके पढ़ाना, तो अभी सच्चे ब्राह्मणों का काम क्या है । ब्राह्मण देखो रोज कथा करते हैं, कहते हैं ना जाएंगे कथा सुनाएंगे तो अभी ब्राह्मणों और ब्राह्मनियों का काम क्या है कथा सुनाते हो? खाली सुनते हो, नहीं, सुनाओ ब्राह्मणों का काम है कथा सुनाना क्योंकि ऐसे बहुत निकलेंगे, देखो अभी निकले हो ना, कथा सुनने वाले आप भी निकले हो, निकलेंगे भले सौ को सुनाएंगे ना एक निकले ना उससे तो भी समझो बहुत हुआ क्योंकि है ही अपना लास्ट कोटो में कोऊ । कोट सुनेंगे निकलेगा कोई एक इसीलिए इसमें थको नहीं । कोई सुनता नहीं है, कोई ऐसा करता है, कोई ऐसा करता है, इसमें देह अभिमान भी नहीं होना चाहिए कोई क्या करें, कोई हमारी ग्लानी करते हैं, कोई यह नहीं, वह तो बिचारे जानते नहीं हैं ना, वह बिचारे जानते नहीं है, वह तो ऐसे कहेंगे, करेंगे परंतु हां फिर भी देख करके नब्ज ताकत, कहते हैं ज्ञान भी उसको दो जो सत्कार से सुने, ऐसे नहीं ज्ञान का तिरस्कार करें । अगर तिरस्कार करते हैं तो फिर सुनाने वाले के ऊपर भी, ऐसे को न सुनाओ जो खाली तिरस्कार करें, हाँ परंतु हां किसको समझना भी है ना कि हाँ बिचारे की जागृति जगानी भी है परंतु ऐसे बिचारे सोए पड़े हैं उनको पता ही नहीं है क्या करना है, क्या नहीं करना है तो उनको जगाना भी है । तो यह सब सौख रखना चाहिए और जा करके किसी को कथा सुनाना और यह सेवा करना अच्छी है । हो सकता है सुनने से किसी का भाग्य जग जाए तो उसके भाग्य जगने का हिस्सा उसको भी मिल जाएगा न तो उसका सौख रखना चाहिए जैसे देखो कल भी वो आई थी ना एक वह माताजी, वह बेचारी कहती थी भले कोई कैसे भी हो परंतु अपना काम है ना हो सकता है कभी उसकी आत्मा जागृति हो जाए तो हाँ एक के द्वारा बहुतों का कल्याण हो जाए, तो ऐसे ऐसे वो कहती थी वो आवे हमारे पास, हम कुछ सुनें तो ऐसे । ऐसे भी नहीं है कि सर्विस यहां नहीं हैं, काफी ढंग से सर्विस कर सकते हो । देखो उस दिन भी हमारा कहता था यह हमारा यह क्या नाम है सिद्धार्थ तो उसकी भी शायद घरवाली कुछ है, भले कुछ हो उनका कैसा जैसे यह हमारी है पंजाब की तो इनका है आपस में क्योंकि आपस में पंजाबी पंजाबी तो जाना चाहिए शौक है जैसे हमारी माताजी है बुजुर्ग है जाए या जो भी जिसका असर पड़े तो जाना चाहिए, ऐसी ऐसी सर्विस अगर कोई निकाले ना, यह हमारी शीला है क्या बैठकर करती है इनका काम है ऐसी ऐसी माताएं जो हैं हाँ छोटी की जगह कोई बड़ी बुजुर्ग होंगी ना तो जरा सुनने में कहेंगे कि हां यह आज की सुनाती है तो हो सकता है कि बुजुर्ग है, अनुभवी है उन्होंने कुछ गँवा के अपना सुधारा है तो वो अपना सुनाएंगे ना मैंने कैसे समय गंवाया क्या हम भक्ति मार्ग में क्या करते थे, कैसा होता था, अभी हमको क्या शांति मिली है क्या सुख मिला है अपना अनुभव सुनाएंगे तो वह तो कहेंगे ना कि भाई सुनाते हैं तो झूठ थोड़े ही बनाकर सुनाएगा । नहीं, तो हो सकता है कभी किसी को तीर लग जाए तो ऐसी ऐसी भी बहुत सर्विस अपने आपस में भी हो सकती है और ऐसे कई स्थान भी हों ढूँढने में ऐसे नहीं है कि नहीं हों तो जाकर के कहां सुनाना, करना तो जरा यह शौक रखना चाहिए । बाकी दो-तीन दिन आकर सुना और गया और घर को गया और घर का ही फिर धंधा और यह सब और उसमें ही बस खाया पिया सोया टाइम गया बस उसमें, नहीं थोड़ा सौख रखना चाहिए, कुछ सर्विस को भी अपना देना चाहिए तो इससे क्या होगा अपने को खुशी आएंगी और अपने को ही बल आएगा कि हां हमारे में भी कुछ है दम जो हम किसी को दम भर सकते हैं, किसी में तो भर सकते हैं तो ये है कि अपने का भी होस उनमें से दिखाई पड़ेगा कि हमारे में भी कुछ है तो उसका रिटर्न मिलेगा । कहते हैं ना धन दान करने से तो उसका मिलता है तो यह भी धन दान है ना, धन दान है तो यह देखो यह दान करना चाहिए । इसी इसी तरीके से देखो क्लास में भी है, कोई वीक है क्लास में तो हाँ जो अच्छा है उसका काम है, आपस में भी आप सब कर सकते हो कि उनको जाकरके घंटा आधा घंटा समझाना, जो भी आगे हो जा करके उसको उठाना चाहिए, उनको खड़ा करना चाहिए, वह सौख रखना चाहिए । ऐसे नहीं कोई सुनता नहीं है जाएं पता नहीं क्या, कोई ऐसा ऐसा करता है तो देह अभिमान आ जाता है । कोई सुनता नहीं है यह भी देह अभिमान है ना, वह तो बेचारों को किसको जगाना भी पड़ता है ना । तो यह सभी बातें अपने पास होनी चाहिए तो यह ब्राह्मणों का काम तभी कहेंगे सच्चे ब्राह्मण । तो कथा रोज, रोज समझो बाबा कहते हैं ना कभी-कभी मुरलीयों में बाबा भी समझाते हैं कि हां नहीं तो खाना नहीं खाना चाहिए, एक कथा रोज जरूर सुनानी चाहिए तो समझो आज हमने कथा सुनाई किसको, नहीं तो खाना अच्छा नहीं लगना, भाई कथा सुनाई नहीं तो फिर बिना कथा सुनाएं कैसे खाएं । तो ऐसा होना चाहिए जैसे खाना रोज खाते हो ना, दो बारी, तीन बारी जो भी नियम खाने का है तो यह भी कथा भी सुनाने का रखना चाहिए तो ये शौक होना चाहिए । जो क्लास में ढीले , कभी आते हैं कभी देखो कोई कभी-कभी आते हैं तो हां कम से कम उनको जा करके सुनाना करना आपस में भी बहुत कर सकते हो और बाहर भी बहुत सर्विस है । जाते हैं आप लोगों का मुझे यहां का मालूम नहीं होते होंगे कोई सत्संग, कोई कुछ इधर, जिन्हों को है, फिर भी टीचर है पूँछ करके तो जा करके सुनाना चाहिए, तो कुछ शौक रखने से फिर क्या है थोड़ा खुलेंगे और खिलेंगे, नहीं तो फिर तो देखो जैसे हो जाते हैं ना खाली बस खाया, खाया, नहीं कुछ उसको दान भी करो ना तो फिर अपना भी देखेंगे कि हम भी कुछ करने वाले हैं, हम भी कुछ कर सकते हैं तो अपने करने का भी पता पड़ेगा कि हमारे में भी दम कितना है, हमारे में भी ताकत कितनी है तो उससे पता चलेगा ना तो यह सभी थोड़े सौख रखना चाहिए । तो यह भी दान करने का दानी बनो, खाली खाने वाले नहीं, दानी भी बनो तो दान करो और भी बहुत तरीके से हो सकते हैं । कहां जो थोड़े थोड़े स्वतंत्र हैं वह कहां जा करके मास, आधा मास चक्कर भी लगा सकती हैं, ऐसी बहुत जगह हैं जहां जरूरत भी रहती है, जो जो थोड़ा टाइम दे सकते हैं तो ऐसे ऐसे भी थोड़ा ट्राई करना चाहिए । तो इससे क्या होगा अपनी अवस्था में भी बहुत फर्क पड़ेगा और बहुत कुछ आप में परिवर्तन भी आएगा और यह सेवा करने का फल भी मिलेगा सो जो करता है सो पाएगा यह भी एक्स्ट्रा सेवा हो गई ना । करते हैं ना ये कर्म श्रेष्ठ, यही तो श्रेष्ठ कर्म हुआ ना तो यह कर्म करने का भी तो फल मिलेगा ना । तो अभी फल अपना कैसे बढ़ाएं, किस तरह बढ़ाए तो उसके लिए ये होनी चाहिए अपने में शौक होना चाहिए तो शौक से चलना चाहिए तो क्या होगा तो फिर अपनी अवस्था में बहुत आएगा । तो अभी जो अवस्था में उमंग उल्लास जो उठना चाहिए यह तभी उठेगा जब उसी तरीके से कुछ अपने को कर्म श्रेष्ठ में लगाओ, कर्म करने में । बाकी हां आया, सुना, गया बस इसी से कुछ इतना नहीं होगा, उसको फिर दो । देने के भी बहुत तरीके हैं जिस तरह से कर सकते हो । तो यह सभी बातें समझ करके अपने को चलाने से कुछ अपना जीवन और अपना तकदीर ऊंचा बना सकते हैं यह है तदबीर की बातें, तकदीर समझते हो ना- पुरुषार्थ की, तो अपने पुरुषार्थ में क्या-क्या करें, कैसे कैसे बढ़ाएं तो यह सब हैं तरीके जिस तरह से अपने को आगे पुरुषार्थ में बढ़ाते और फिर अपना जो कुछ हक है बाप से लेना है । बाकी वह तो बात समझ लो कि बाप के तो हो ही जाओ । उसमें ऐसा नहीं है अभी कोशिश कर रहा हूं, अभी उसका बनूंगा । बनूंगा, बनूंगा, बनूंगा, बनूंगा कह कर के फिर ना मालूम कुछ स्वांस का थोड़ी ही है, समझो चला जाए, फिर तो रह गया ना । उसका बना ही नहीं तो हक थोड़ी ही लगा । नहीं, इसलिए बाप कहते हैं बच्चे मेरे तो बन जाओ इसीलिए मेरे बन करके फिर वह पुरुषार्थ रखो तो अभी बाप के बनने में तो कोई देरी नहीं डालें । कोई अगर यह सोचता हो कोशिश करूंगा, बनूंगा, नहीं उसके तो हो जाओ । बाकी है जो उसकी पढ़ाई मिल रही है, उनकी सब बातें हैं उसी को धारण करके आगे बढ़ने का बाकी जो उनका है वह तो रख करके जैसे वह चलाएं जैसे कहेगा वैसे करूंगा । ऐसे जो तीव्र पुरुषार्थ वाले हैं ना देखो जैसे यह हमारे जीवनलाल है आते हैं अभी, उनके अंदर में है कि हां अभी तो उनका हो करके बस चलेंगे, अभी बाकी क्या करने का है । अभी यह ऐसे ही ऐसे कीचड़ में रह करके कीचड़ वाला बनना कोई अच्छा थोड़े ही लगता है । अभी जीवन का कुछ करना चाहिए । अभी तो देखो छोटा बच्चा है ना वह भी वानप्रस्थी है, वह बच्चा छोटा अभी वह भी वानप्रस्थी है । वानप्रस्थ का मतलब है अभी आत्माएं सब जो हैं ना जन्म लेती लेती लेती लेती अभी उसकी ओल्ड जेनरेशंस की भी लास्ट जन्म है, समझा । तो अभी सब आत्माओं को वापस जाना है इसीलिए अभी कोई छोटा बच्चा है ना वह भी वानप्रस्थी है, बड़ा जो है वह भी वानप्रस्थी । भले इनका शरीर छोटा है लेकिन आत्मा पुरानी है । अभी सभी पुरानी आत्माओं को जाना है वाणी से परे स्थान पर इसीलिए तो देखो अभी मौत भी परमात्मा ने ऐसा खड़ा किया है जिसमें छोटे, बड़े, बूढ़े सब मरे, ऐसे थोड़े ही खाली बूढ़े मरेंगे, नहीं छोटे-बड़े सब । तो अभी बाप कहते हैं कि समय आया है वाणी से परे स्थान जाने का इसीलिए अभी सभी को हक है, छोटे बच्चे को भी हक है तो बुड्ढे को भी हक है हर एक को हक है बाप से अपना यह वर्सा लेने के लिए तो अभी उससे प्राप्ति के लिए पूरा रखना चाहिए ना कनेक्शन । तो अभी बाप से पूरा कनेक्शन रख करके और ऐसा पुरुषार्थ करने से ही फिर आगे कुछ पा सकेंगे । तो यह रखना चाहिए अपने दिल के अंदर कि अभी हम कुछ करके रहेंगे । अभी हम आज से अपना, तो ये भी एक दृढ़ता अपनी धारणा है, ये होनी चाहिए, ऐसे नहीं चलते रहें हाँ, कोशिश करते रहे, करेंगे, करेंगे, कहते हैं ना करेंगे करेंगे कहते कहते और फिर काल’ खा जाए तो । तो इसीलिए यह ख्याल रखने का है नहीं, जो करना है वह कर दो लेवें । हां बाकी तो जहां जीए है, वहां पिए वह तो है ही ना । वह तो हम भी कहते हैं जहां तक जीते हैं वहां तक ज्ञान का अमृत पीते ही रहना है । तो ऐसा मतलब नहीं है कि हां वह तो रखना ही है पुरुषार्थ बाकी ऐसे तो नहीं कहेंगे ना अभी उसके नहीं है, उसके होने की कोशिश करेंगे नहीं, वह तो हो जाए । तो उनके तो होकर बैठे हैं ना? हां अपने में भी देखना है कि हमारी अभी समझो स्वांस निकल जाए तो हमारे में क्या है, हम क्या भर के ले जाएंगे । तो अपना देखना चाहिए हमारे में स्टॉक अच्छा है, हमने अपने पास अच्छा जमा किया है, हमारे में कमाई अच्छी रखी है अपने में । तो यह देखना चाहिए हर एक को अपनी अवस्था भी । अगर हममें कोई ऐसी खामी है कोई मोह की कोई क्रोध की कोई लोभ की, जो भी जिसकी खामी है अगर कोई ऐसी खामी है तो निकाल देनी चाहिए क्योंकि वह अगर रही हुई होगी तो अंत मति सो गति, यह होता है ना तो इसीलिए जबकि अभी पता चला है तो अपनी जांच रखनी चाहिए कि ऐसी तो कोई हमारे में नहीं है जो फिर हम वो ले जाएं इसलिए अपने को हमेशा तैयार रखो जिससे कि हमारे में कोई ऐसी खामी रहे नहीं जितने तक हमारे नजर में है । यह मोटी चीज हमारे में दिखाई पड़ता है यह मोह, यह लोभ, यह क्रोध तो वह चीजें निकाल देनी चाहिए । बाकी हां सूक्ष्म थोड़ा-थोड़ा यह उनको तो जितना जितना बाप की याद में रहेंगे उतना उतना वह भी कटते जाएंगे । तो यह सभी बातों को ख्याल में रखना है और कर्म से कोई विकर्म ना होवे उसको तो झट से खत्म कर देना चाहिए । देखो वाचा से हम कुछ बुरा बोलते हैं या क्रोध की जिसमें है उसमें आ करके तो यह तो हमारा कर्म हो गया ना, तो ऐसे भी कोई आदत हो कुछ बोलने करने की उलटे तथा उसमें झट से करेक्शन ले आनी चाहिए । जो हमारे कर्म की बात हो तो कर्मों में तो झट से संभल जाना चाहिए इसीलिए देखो हम यहाँ ब्रह्मचर्य के ऊपर बाप का बहुत फोर्स रहता है कि उसकी पालना तो झट से क्योंकि वह तो हमारा कर्म अगर चलेगा, खाता विकर्म का हो जाएगा ना विक्रम वह तो है ही कर्म सीधा ही सीधा तो इसीलिए ऐसे नहीं आस्ते आस्ते जैसे कई समझते हैं आस्ते आस्ते, थोड़ा-थोड़ा करके छोड़ना है, नहीं थोड़ा थोड़ा उसमें होता ही नहीं है । अगर इन विकारों में रहते शरीर छूट जाए तो क्या होगा, रिजल्ट में तो विकारी हुआ ना, वह थोड़ा-थोड़ा की रिजल्ट नहीं होगी । उसमें थोड़ा बहुत होता ही नहीं है, विकार तो विकार ना, न विकार तो न विकार । कर्म तो हुआ ना विकर्म तो बन गया ना तो हम विक्रमी तो होके जाएंगे ना तो विकर्मी का नतीजा क्या पाएंगे जरूर विकर्मी नतीजा पाएंगे इसीलिए बाप कहते हैं कर्मों में जो तुम्हारे विकारों का चलता है, वह तो एकदम कंट्रोल कर दो बाकी अगर मनसा, मन में अगर कोई संकल्प विकारों के या कोई बात होती भी है, हां वह तो बहुत काल से संस्कार बने हुए हैं ना तो उसको भी कहते हैं कि फालतू जब बुद्धि देखो इधर उधर तो मेरी याद में लगाओ तो वैसे भी, लगाए रखो तो तुम्हारे पास फालतू आवे ही नहीं परंतु देखो फिर भी कभी चली जाती है उधर तो झट से ब्रेक दे करके मन को मेरे में स्थित करो फिर मेरी बातों में, मेरे ज्ञान के उसमें बुद्धि को लगा दो फिर उसी रफ्तार में बुद्धि चली जाएगी ना तो वह फालतू निकल जाएगा । तो यह फिर युक्तियां हैं जिसके आधार से हम फालतू संकल्पों से भी अपना टाइम वेस्ट ना करें परंतु उसमें भी विकर्म नहीं बनता है संकल्प से । हां कर्म से तो बन जाएगा ना क्योंकि हमने कर्म किया बुरा और हमारा विकर्म बना इसीलिए कर्मों में तो फौरन अपना कंट्रोल डाल देना चाहिए तो अभी कंट्रोल डाल दो कर्मों में तो । बाकी हां संकल्प के लिए भी रास्ता है बाप ने बैठकर समझाया है कि हां निरंतर मुझे याद रखने से, यह तो याद रखने की चीज का तो तुम्हारे को काम मिला ही हुआ है, जब देखो फालतू बुद्धि इधर उधर जाती है झट वहां से ब्रेक ले करके बंद करके बाप की याद में और नहीं तो यह ज्ञान का है बैठ करके पढ़ो, मुरलिया हैं इतना लिटरेचर है उसमें मन लगाओ तो फिर क्या है उसी रफ्तार में बुद्धि जाने से ना फिर फालतू जो है बातें वह निकल जाएंगे बुद्धि से तो वह आदत बन जाएगी फिर शुद्ध विचार चलने का तो उसी में बुद्धि चल जाएगी । तो यह सब युक्तियां है जिसके आधार से अपने मन को भी सेफ रखना है अपने कर्म को भी सेफ रखना है परंतु पहले कर्म को, ऐसे नहीं है पहले मन को । कई ऐसे समझते हैं मन अगर चलता है ना उससे तो अच्छा कर्म कर दें तो अच्छा ही है ना । मन में जो चलता है पाप तो ऐसे ही बनता है तो वह समझते हैं कि मन में तो विकारों के संकल्प चलते ही रहते हैं इसी से तो कर देते तो अच्छा ही है तो फिर वह विकारों में चले जाते हैं क्योंकि समझते हैं मन तो चलता ही है ना, परंतु नहीं मन अगर चलता है तो मन में कोई विकर्म नहीं बनता है । यह समझने की बात है कि मन से मैंने कोई कर्म तो नहीं किया ना, खाली मन चला, संकल्प चला तो संकल्प का कोई विकर्म नहीं बनता है खाली उसमें टाइम वेस्ट हो जाता है यानी वही टाइम अगर हम बाप की याद में अपना मन लगाए तो फायदा निकाल सकते हैं तो फायदा नहीं निकलता है वह हमारा टाइम वेस्ट जाता है । बाकी हमारा विकर्म नहीं बनता है, विकर्म तभी बनते हैं जब भी हम कर्म में आते हैं । अभी समझो कोई चोर है, उसको चोरी का ख्याल आया तो ख्याल आया ना तो अभी कर्म तो नहीं किया ना। हां चोरी किया तो भी कम हो गया। तो ऐसे नहीं संकल्प आया तो उससे तो कर ही देवें चोरी या संकल्प आया मन तो चलता ही है ना, तो मन चलता है हम कोई बुरा काम कर ही देवें, नहीं करने से तो फिर खाता जमा हो जाएगा ना। हम करते हैं और खाता हो गया इसीलिए खाते को बंद करना है अभी उल्टा खाता हमारा बने नहीं, जुटे नहीं तो खाते को हमारा कंट्रोल करना है तो उल्टा खाता बने नहीं। बाकी हां मन के बहुत काल के पुराने उल्टे संस्कार पड़े हुए हैं वो चलेंगे तो उसको भी कंट्रोल करने के लिए बाप ने रास्ता दे दिया है कि उसका कंट्रोल मन को मेरे में लगाओ, मेरी याद रखो हां हम कौन, किसकी संतान है, अभी हम उसकी संतान हमको क्या करना है, फिर बाप ने जो नॉलेज सुनाया है उसी चक्कर को घुमाओ जोर से। देखो कितना ज्ञान है विस्तार है सारा तो घुमाओ अन्दर से बुद्धि को उसमें ले जाओ उसमे ले जाने से वह चक्कर घुमाएंगे ना तो स्वदर्शन चक्र जो है ना वह यह विकारों से काट देंगे। वह कहते हैं ना जब दुश्मन आता था तो वह स्वदर्शन चक्र फिराते थे तो उसका गला काट लेते थे, ऐसे शास्त्रों में सुनाया है। तो दुश्मन कौन से हैं यही विकार । तो जब यह कोई भी विकार दुश्मन आए तो यह स्वदर्शन चक्र घुमाओ। घुमाओ तो फिर हाँ उसके गले कट जाएंगे अर्थात वह जो भी है मर जाएंगे। तो असल में यह बात बाकी वह कोई चक्र वक्र नहीं था। यह जो अलंकार भी दिया है ना चतुर्भुज को अपने यहां भी दिया है परंतु वास्तव में ये अलंकार कोई चीजें थोड़ी ही है। कोई शंख गदा पदम तो यह थोड़ी ही जिससे कुछ हम..नहीं यह जो हम ज्ञान सुनाते हैं यह शंख है । अभी वह शंख कोई बजाने का थोड़ी है वह तो भक्ति मार्ग में रखा है मंदिरों में बजाते हैं परंतु उन बिचारों के पास वह ज्ञान की बातें तो है ही नहीं ना तो उन्होंने वह शंख रख दिया, नहीं तो असल में शंख ध्वनि यानी यह ज्ञान । यह देखो ज्ञान सुना रहे हैं यह तो सुनाने की बात है। वह देखो गदा, गदा कोई हाथ में थोड़ी कुछ है मारने के लिए , यही हम जो बैठ कर के यह जो ज्ञान और योग के बल से यह विकारों को मारते हैं तो कोई वो चीज थोड़ी ही है हाथ में, तो यह सभी हैं। कमल का फूल दिया है हाथ में भई यह है कि घर गृहस्थ में रहते प्रवृत्ति का है कि उसमें रहते भी पवित्र रहना जैसे कमल का फूल पानी में रहते पानी के स्पर्श से अलग रहता है, उसी तरह से। तो यह सभी हमारे जीवन की धारणाओं के अलंकार है बाकी ऐसे नहीं कोई चीजें हैं या यह चक्र भी कोई अस्त्र-शस्त्र है, नहीं यह अस्त्र-शस्त्र की भई अपनी बुद्धि को इसी अस्त्र शस्त्र की धारणा से फिर हमारी बुद्धि स्थिर हो जाएगी और उसी से फिर वो जो भी विकार के तूफान आएंगे ना कुछ भी वह मिट जाएंगे तो देखो गला कट गया ना, मर गए ना दुश्मन तो यह है स्वदर्शन चक्र फिराना। तो इसको कहा है कि स्वदर्शन चक्र बुद्धि में फिराते रहो । जितना-जितना फिराते रहेंगे ना उतने उतने तुम्हारे फालतू संकल्प विकल्प जो भी फालतू है ना, वह कटते जाएंगे तो कटते जाएंगे दुश्मन कटते जाएंगे, खत्म होते जाएंगे। तो यह सभी बातें हैं जो बुद्धि में अच्छी तरह से रखकर के चलना है । तो यह अपने अंदर की धारणा रखनी है फिर दूसरों को भी धारण कराना है। दूसरे के पीछे भी यह स्वदर्शन चक्र घुमाना है, लगाना है ना यानी यह ज्ञान का, तो यानी यह ज्ञान का सुना करके दूसरे का भी बुद्धि योग ठीक करना है। उसका भी जो आसुरी सिर है ना वह कट करके डेम सिर रखने का है समझा, तो उनको भी ऐसा बनाना है। तो यही हमारा काम है स्वदर्शन चक्र फिराना और दूसरे को भी स्वदर्शन चक्रधारी बनाना समझा । तो अभी तुम सब स्वदर्शन चक्रधारी हो ना? सब हो ना? यह शंख, चक्र, गदा, पदमधारी हर एक हो, यह हर एक का अलंकार है वो कुछ नहीं है ये हम है और हमारा है अभी का । देवताओं को ये नहीं है , देवताएं वो क्या करेंगे , वह थोड़ी ज्ञान बैठकर सुनाएंगे । देवताओं के जमाने में तो कोई अज्ञानी है ही नहीं जहां ज्ञान सुनने की दरकार हो अज्ञान तो अभी है ना। वहां तो कोई गदा वदा या यह विकारों को नाश करने की इन सभी बातों की दरकार नहीं है क्योंकि वहां तो देवताओं की दुनिया में है ही देवताऐं सब तो देवताओं के पास में तो कोई यह विकारों की बात है ही नहीं ना जहां इन सब चीजों से काम लेना पड़े परंतु हां चित्रों में वह देवता का रूप दे करके उनको दिया है। अगर इसी समय तुम्हें दे दे देवें न शंख चक्र तो वो पहले ही कहते हैं दादा को ब्रह्मा बनाया है बाकी भी स्वदर्शन चक्रधारी बनाकर इन्हों को चक्र गदा पदम दे देवें तो कहेंगे देखो यह ब्रम्हाकुमारीयां अपने को भी समझने लगी है चक्रधारी, स्वदर्शन चक्रधारी और गदा पदम यह देवताओं के अलंकार खुद को दे दिए हैं। तो बिचारे समझते नहीं है ना, नहीं तो वास्तव में यह सब हमारे हैं यानी हम ब्राह्मणों का जो अभी हम बैठकर के यह पुरुषार्थ अभी करते हैं ना परंतु यह शरीर में। देवता बनेंगे फिर थोड़ी पुरुषार्थ करेंगे तो करते अभी हैं तो होना तो अभी है ना, है तो यह सब अलंकार अभी ना, परंतु अगर चित्रों में ऐसा दें ना करेक्ट करके तो लोग बेचारे मूंझ जाएंगे। अभी देखो जैसे यह सत्या है अभी यह पुरुषार्थ कर रही है। इसको चार अलंकार है । इसको देखकर के इसका चित्र बनाएं समझो, वो कहेंगे देखो यह अपने को चतुर्भुज समझने लगी है वह तो उल्टा समझ लेंगे ना । वह तो नहीं समझते ना इन बातों का परंतु है तो हमारे लिए तो शरीर तो यह है ना परंतु चित्रकारों ने शरीर वह देवताओं को रख करके उसका दे दिया है नहीं तो देवताओं को क्या ऐसी बातों की दरकार है मेहनत करने की। मेहनत तो अभी है ना वह तो प्रालब्ध है। तो यह सभी चीजें अभी अपन जानते हैं इसीलिए हम हैं स्वदर्शन चक्रधारी या शंख, चक्र, गदा, पद्म धारी यह सब हमारे लिए हैं तो अभी सबको अपना अलंकार देखना है हमारे पास है शंख है, चक्र है, गदा है, पदम है, सब है ? ऐसे भी नहीं है एक अलंकार हो दूसरा हो ही ना, सब होने चाहिए ना नहीं तो फिर कैसा हो जाएगा, एक हो दो ना हो फिर कैसे काम चलेगा तो देखना है कि अपने पास सब है, तो हम ऐसे चक्रधारी और चक्रधारी गदा पदम सब तो यह सभी चीजें अपनी संभालनी है समझा। ऐसे भी नहीं शंख हो , कैसे सिद्धार्थ? खाली शंख हो और चक्र ना हो तो भी काम कैसे चलेगा, तो भी नहीं है। शंख चक्र गदा पदम सब हो । पवित्र प्रवृत्ति का भी अपना बनाना है और गदा भी हो , पूरा माया के ऊपर विकारों के ऊपर अपना भी हो। ऐसे नहीं गदा ही ना हो केवल शंख हो तो कहेंगे हो ही फिर पंडित । दूसरों को कहते रहते हो अपना कुछ है नहीं फिर ऐसी बात हो जाएगी तो वह भी तो बात नहीं बनेगी । तो एक अलंकार से भी काम नहीं चलता है चारों ही होने चाहिए जिससे बुद्धि में यह स्वदर्शन चक्र भी घूमता रहे यानी यह हो कि मैं सो तो ऐसी फिर अपनी धारणा भी हो ना। सो खाली कहने की थोड़ी बात है । सो तो सो, तो फिर उसमें स्थित रहना है ना तो यह सभी चीजें होनी चाहिए । तो बाकी एक से काम नहीं चलता है तो देखो चारों है। है चारों तो फिर शंख भी अच्छा बजेगा, गदा भी अच्छी रहेगी फिर सब अच्छे चलेंगे तो यह सभी चीजों को अच्छी तरह से समझते फिर अपना ऐसा पुरुषार्थ रखने का है। पीछे ऐसे पुरुषार्थी जो तदबीर करने वाले हैं उसकी तकदीर क्या होगी , वह तो बहुत ऊंची तकदीर और उस तकदीर का तो साक्षात्कार बाप करा ही रहे हैं कि तुम्हारी तकदीर कितनी ऊंची मैं बनाता हूं और ऐसे भी नहीं है कि यह बैठे हैं, ऐसे तो नहीं समझते हो न । ये तो मनुष्य से देवता हो चुके हुए हैं , वही बात फिर बाप समझाते हैं कि अभी फिर होने की है। जो हो चुकी है वह होगी ना । ऐसे कोई समझते हैं क्या कि ये देवताएं थे ही नहीं। नहीं, यह देवताएं थे परंतु उन देवताओं की जो बायोग्राफी बैठकर के सुनाइए ना उसमें बहुत बातें मिक्सअप हो गई है परंतु देवताएं थे जरूर । देवता का मतलब ही है दैवीय लाइफ वाले मनुष्य, तो खाली क्या आसुरी लाइफ वाले मनुष्य थे क्या? संसार क्या आसुरी आसुरी है ? आसुरी कंट्रास्ट रखता है दैवीय से तो जरूर आसुरी हैं तो दैवीय भी होंगे । ऐसे है नहीं की दैवीय थे ही नहीं खाली आसुरी हैं । तो आसुरी भी नहीं कहो ना फिर तो कहो बस खाली ये ही है । ऐसे ना कहो कि यह दुःख अशांति है । दुःख अशांति भी दुनिया ना कहो ना कहो बस दुनिया यही है। नहीं, परंतु है नहीं, यह दुःख अशांति की भी बरोबर है तो जरूर फिर कोई सुख शांति भी तो दुनिया होनी चाहिए ना । कंट्रास्ट कोई चीज का होता है तो दो का होता है। हम कहे भाई ये रात है , अगर रात है तो कोई दिन के भेंट में रात है ना । हम कहे कि सर्दी है अभी तो भाई सर्दी कोई गर्मी के भेंट में है तो जरूर कभी गर्मी भी होगी ना । तो हो चुकी है गर्मी, फिर भी आएगी सर्दी के बाद गर्मी आएगी ऐसे भी तो मानना पड़ेगा ना । तो यह सभी चीजें समझने की है इसीलिए ऐसे नहीं कहेंगे अभी खाली सर्दी है, सर्दी है तो भाई गर्मी के भेंट में है ना। नहीं तो उसको सर्दी भी नहीं कहो बस यह है । जो है वही है बस उसका कुछ कहने का बात ही नहीं है । परंतु नहीं, कंट्रास्ट वाली चीजें इस चक्र में चलती हैं तो यह सभी चीजों को समझना है इसीलिए दुःख अशांति की दुनिया है तो सुख शांति की भी दुनिया है । जब पावन दुनिया है तो उसमें कोई पतित नहीं, अभी पति तो दुनिया है तो उसमें कोई पावन है ही नहीं। भले कोई साधु, सन्यासी कितने भी हैं लेकिन उनको पावन नहीं कहेंगे । भले आज की पतित दुनिया की भेंट में, पतित मनुष्यों की भेंट में, वह उनके भेंट में थोड़ा पावन है लेकिन पावन दुनिया की भेंट में पतित हैं क्योंकि वह पावन तो फिर पावन थे ना। वह शरीर छोड़ते, शरीर में रहते, शरीर लेते सदा पावन थे यानी उनमें कोई विकार का वह नहीं था, यह तो शरीर छोड़ेंगे तो कहां जाएंगे सन्यासी । विकारों से जन्मेंगे, विकारी घर गृहस्थ में जाएंगे फिर उसमें थोड़ा छोटेपन की पालना ले कर के फिर उनको सन्यास का संस्कार आएगा फिर चले जाएंगे सन्यास में परंतु विकारी दुनिया में तो उनका सब कनेक्शन चला ना । कोई रोग होता है कोई दुःख होता है कर्मों का सभी हिसाब तो है ना लगा हुआ इसीलिए बाप कहते हैं वहां कोई हिसाब ही नहीं है तुम्हारा इस दुनिया का । उसको कहा जाता है पावन दुनिया। तो इसीलिए कहते हैं पावन दुनिया बना रहा हूं जिसमें कोई पतितपने का खाता नहीं । अभी पतित दुनिया है तो उसमें पावनपन की कोई निशानी है ही नहीं तो इसीलिए कहते हैं अभी उसका ख्याल रखो और ऐसा अपने को बनाने के लायक बनाओ। तो अभी पुरुषार्थ समझा ना, क्या करने का है और पहले पहले तो क्या अपने को उसका तो बना लेना है इसीलिए उसका तो अभी हो ही जाओ। इसके लिए ऐसे नहीं ख्याल करो कल होंगे, कभी होंगे, नहीं बाप का बच्चा बनने के लिए तो बच्चा बनना माना समझो आज बना कोई साहूकार का गोद का बच्चा आज बना कल मर जाता है परंतु हां समझो बाप मर जाता है तो उसका हक तो हो गया ना। हक तो लग गया क्योंकि बच्चा जो बना तो उसकी प्रॉपर्टी का वह हकदार हो ही गया। हो जाता है ना, तो देखो हक लगा दिया । अगर बने ही न, जब तलक बना नहीं है तब तलक तो उसका हक हो भी नहीं सकता है ना । तो बच्चे तो बन जाओ अपना हक तो लगा लो तो उसकी प्रॉपर्टी के ऊपर दाव तो लग जाएगा ना। बाकी हां है उसके लिए अपने को लायक बनाना बाकी पुरुषार्थ करना ऊंच दुनिया में अपनी ऊंची स्टेटस बनाना उन्हीं सभी बातों के लिए फिर पुरुषार्थ करना वह तो फिर हम भी कहते हैं हम सब पुरुषार्थी हैं कर रहे हैं, वो तो जहां जीय तहां पीय तो उसके लिए तो कोई बात ही नहीं है । परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि पुरुषार्थ चलना ही है इसीलिए हम ठंडे ठंडे चलें क्योंकि चलना ही है ना। बाबा मम्मा भी कहते हैं हमको हम पुरुषार्थी हैं तो हम तो जरूर पुरुषार्थी रहेंगे ना, हम तो भूलें करते ही रहेंगे ना , ऐसा तो ख्याल नहीं है ना ? नहीं, जो करेगा तो पाएगा । भूले करेंगे तो विकर्म तो बन ही जाएंगे ना, तो विकर्म थोड़ी बनाना है, नहीं। इसीलिए ऐसा भी ख्याल नहीं रखना है अपने पुरुषार्थ को आगे करते चलने का है। अपनी जो देखने में आती है कि यह भूल है, यह विकार है, यह मोह है, यह फलाना है, यह क्रोध है, यह भूत है, यह भूत कोई अपने में मत रखो। यह भूत है ना सब, भूतों को भगाओ। तो अपने में देखो हमारे में कोई भूत है तो नहीं है तो इन भूतों को भगाओ, निकालो। तो निकालते जाने का है। कैसा अर्जुन ? तो अभी सच्चा सच्चा अर्जुन बनना है , समझा। अच्छा , यह मोहन है । मोहन है ना नाम ? तो कैसा, इसका क्या है ऑक्यूपेशन , यह भी चलता है कुछ । चलते रहो, चलते का अर्थ समझते हो ना , पुरुषार्थ में आगे बढ़ते रहो। अपनी तकदीर को ऊंचा करते रहो । उसके लिए तदबीर अर्थात पुरुषार्थ करते रहो। तो अपने को चलाओ अच्छी तरह से तो बाप से अपना पूरा पूरा अधिकार पा सको सब । अभी कुछ थोड़ा-थोड़ा पुणे वालों का परिचय रहा है । हम जब जाते हैं ना तब परिचय पूरा होता है फिर चले जाते हैं । फिर तो जो जीते रहते हैं वह याद रहते हैं। जो हो जाते हैं उधर तो वो फिर भूल ही जाते हैं। वो भुलाते हैं मेरे बाप को तो हमारे को भी भूल ही जाएंगे । जो मेरे बाप को याद रखते हैं अर्थात अपने बाप को तो हां वह बाप वाले बच्चे , भाई बहने क्यों नहीं याद रहेंगे । सो भी जो अच्छे अच्छे होंगे वह जरूर रहेंगे । भाई यह अच्छा सर्विसेबल है, यह अच्छा काम कर रहा है, यह अच्छा मददगार है तो वह क्यों नहीं याद रहेगा जरूर रहेंगे। बाकी जो मददगार भी नहीं होंगे और है ही नहीं कुछ पुरुषार्थ तो वह कैसे रहेंगे वो याद नहीं रह सकते । अज्ञान में भी ऐसा ही होता है जो सपूत बच्चे होते हैं , अच्छे बच्चे होते हैं उनके प्रति मां-बाप का लाड प्यार रहता ही है वह तो नेचुरल है तो इसीलिए अपने को देखो कि मैं कैसा हूं , मैं कितना अच्छा हूं , बाप का लायक बच्चा हूं? लायक हूं या ना लायक और सीधा अगर कहेंगे तो नालायक , तो नालायक किसको कहेंगे तो गाली हो जाएगी। बाप कहेंगे भाई यह ना लायक है तो ना लायक कहने से वह जरा कोडेड है क्योंकि कोडेड होती है ना कॉइनेन। तो वो जरा कोटेट, कॉइनेन हो जाती है और कहने से नालायक तो गाली हो जाती है , परंतु है यही तो है न। तो अपने को क्या बनाना है लायक, बाप के लायक बच्चे बनो । तो अभी हर एक देखे कि हम लायक हैं ? लायकी क्या है, सो तो अभी पता है अच्छी तरह से, लायकी आदर्श कौन सा है वह तो अभी अच्छी तरह से साक्षात्कार पूरा-पूरा बुद्धि में हर एक के हैं । कैसा प्रत्युषण? तो अभी क्या बनना है ? लायक बच्चा । अगर लायक बच्चा ना हुआ तो क्या हुआ, कुछ नहीं। कुछ नहीं क्या? लायक के बदले में अल्टरनेटिव क्या हुआ? नालायक, हां, तो अभी बनना है लायक बच्चा। तो ऐसा अभी अपने को लायक बनाने का और लायक रखने का ख्याल रखने का है तभी बख्तावर बाप से पूरा पूरा बख्त लेंगे तो बख्तावर बाप का बख्तावर बच्चा बनना है। अगर ना बनेंगे तो क्या होगा, कमबख्त । कमबख्त, नालायक तुम बोलो हम लायक और बख्तावर बोले क्योंकि वो निकालना है। अच्छा, इसीलिए अपने इन बातों को समझते और अपना ऐसा पुरुषार्थ रखो । अच्छा। कैसा है, बाप की ओर से की याद में ठीक है ना । अभी उससे पूरा-पूरा लेने का है तो ऐसा पुरुषार्थ रखते रहना । उसके लिए क्या करना है सब बुद्धि में है । खाली बुद्धि में रखना नहीं है, कर्मों में लाना है तो उसी को अच्छी तरह से लाते रहना है । सभी धर्म वाले निराकार परमात्मा को मानते हैं। ये शिवलिंग को शिव की प्रतिमा को, शिवलिंग को, भले ही इसके कई शेप हैं, शिवलिंग के भी बहुत शेप बनाते हैं, उनका किताब मिलता है बड़ा क्योंकि हम तो इन बातों के पीछे रहते हैं ना तो मंगाया था किताब। शिवलिंग की भी बहुत-बहुत शेप है कहां कैसा कहां कैसा। तो यह मुसलमान लोग भी इनके मक्के मदीने में भी शिवलिंग का है। उनको भी पता नहीं क्या नाम देते हैं। क्या कहते हैं आप? संग ए मकसद, हां कुछ ऐसा है बाकी कुछ और भी नाम है। आप क्या कहते हो हाजिर ए आलम, हां होगा कुछ नाम इनके तो देखो यह कहते हैं ये शिवलिंग को कहते हैं। इनके में भी शिवलिंग के प्रतिमा की मान्यता है। इनके मक्के मदीने में भी हैं और वहां क्रिश्चियन लोग में भी इस चीज की मान्यता है । तो अपना अपना नाम देते हैं तो देखो हैं न परंतु बिचारों को उनको पता नहीं है कि निराकार परमात्मा की प्रतिमा है, जो सबका पिता है । तो मानते सब हैं परंतु हां यहां शिव कहते हैं वो उधर देखो दूसरा नाम देते हैं तो अपने अपने नाम दे दिया है। तो यह सभी चीजें हैं इसीलिए यह बाप अभी सबका पिता है वो आ करके अभी अपना भी परिचय देकर के अभी कहते हैं सबको ले जाना है हिंदुओं को, मुसलमानों को, सबको अभी वापस ले जाना है तो इसीलिए फिर कहते हैं अभी सबको मुक्तिधाम और फिर जो जीवन अपना पवित्र बना रहे हैं उसको फिर जीवन मुक्तिधाम। यह दुनिया भी रखनी है ना तो इस दुनिया को फिर जीवन में बाकी तो मुक्त। तो अभी ऐसे बाप को समझा हैं ना कि वह काम करने वाला बेहद का बाप आया है। यह वह पढ़ा रहा है यह बुद्धि में अच्छी तरह से लाना चाहिए। अच्छा ऐसा बाप और दादा, हां बापदादा को समझती जाते हो ना । दादा मैं भी मूंझते तो नहीं हो ना। अभी बाप और दादा, दादा क्या है, बाप कौन है, बाप दादा का क्या बना रहा है, दादा क्या बनता है, यह सभी चीजें समझने की है । यह कोई एक दादा नहीं है उसके साथ में हम भी सब, सब पुरुषार्थ कर रहे हैं, जो करेंगे सो पाएंगे। तो बापदादा और माँ के मीठे मीठे और बहुत अच्छे ऐसे समझदार, लायक, बख्तावर ऐसे जो बच्चे हैं ऐसे बच्चों के प्रति याद प्यार और गुड मॉर्निंग। गुड मॉर्निंग।