मम्मा मुरली मधुबन
. 018. Mukti Jeevan Mukti
रिकॉर्ड :
चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना....
ओम शांति। ऐसे गीत हैं पछताने वालों के ना, यहां पछताने वाले हैं क्या ? क्यों, पछताने वाले हो? नहीं, कभी नहीं । अपन तो हैं, हर एक ऐसा कहेंगे ना कि जिसके साथ जोड़ा है संबंध उसी से निभा करके और अपना पूरा लेकर के रहने का ही पुरुषार्थ करेंगे तो अकेले क्यों रह जाएंगे, दूर क्यों रह जाएंगे। दूर के मुसाफिर से दूर क्यों रह जाएंगे। दूर के मुसाफिर से तो जहां वह, वहां उनके साथ जो संबंध जोड़ा है, तो इसीलिए तो जोड़ा है कि उसके धाम जाकर के उसी के ही धाम से फिर सुखधाम में उतरने के लिए । इसीलिए जबकि उसको जाना है कि हां बेहद का मुसाफिर आया ही इसीलिए है तो अभी उससे ऐसा संबंध ना जोड़ें कि दूर के दूर रह जाएं, यह बात कोई शोभा देती है? इसीलिए ऐसे गीत पछताने वाले हैं। हां कोई पछताने वाला हो तो उनके लिए हां ठीक है बाकी अपन तो अभी यही रखेंगे कि क्यूं हम उनसे दूर रहें ही क्यूं । ये तो बुद्धियोग की बात है ऐसे भी नहीं है कि उनके कोई हमको शरीर से समीप होने की बात है यह तो है बुद्धि योग की बात , वह तो अपने पुरुषार्थ की बात है इसीलिए बुद्धियोग बल से उसके समीप होते जाना है और उसके समीप हो करके उसी के धाम में ही निवास करके फिर अपने सुखधाम में जरूर आएंगे । सिवाय उसके धाम में जाने के सुखधाम में आ भी नहीं सकते हैं इसीलिए अपने सुखधाम आने के लिए उनके धाम चलना तो पड़ेगा ना। तो यहां इसीलिए उनके धाम का ख्याल करना क्योंकि वापस पहले वहां होना है इसीलिए उन्हीं का ख्याल रखना है कि यह दुखधाम पुरानी दुनिया से अपनी बुद्धि हटा करके अभी वह शांतिधाम कहो या परमधाम कहो उसी धाम में अभी जाना है क्योंकि आए थे वहां से अकेले आत्मा और फिर जाना भी है उधर को इसीलिए जिधर जाना है उनको याद करना है । तो जिधर जाना है अभी बुद्धि में वही रखने का है इसीलिए बुद्धि योग की बात है। बुद्धि योग के बल से ही सारा काम होने का है और ऐसे जब बाप बैठ करके समझा रहे हैंऔर इतने सहज तरीके से तो अभी ऐसा पुरुषार्थ ना करेंगे तो कब करेंगे और तो कोई मौका नहीं है और तो कभी करने की बात नहीं। जाने का टाइम अभी है ऐसे नहीं है अच्छा अभी नहीं गए फिर जाएंगे , फिर जाने का टाइम नहीं है ना, जाना अभी है। मुक्ति जीवनमुक्ति, गति सद्गति का टाइम अभी है इसीलिए जाना अभी है वापस घर। कैसे भी जाना है जबरदस्ती भी जाना है लेकिन उसी जाने में जरा कुछ पाके नहीं जाना होगा इसीलिए जब बाप के द्वारा पता चला है तो यह भी समझने की बात है ना अभी बुद्धि में आई है कि वापस होने का अभी टाइम है तो इसीलिए बाप से वापस होने के लिए अभी यह सब पुरुषार्थ है । समय अभी है ऐसे नहीं है कि कई मुक्त हो चुके हुए हैं, कभी भी हो सकते हैं , जब जो चाहे तब पुरुषार्थ करें तभी तभी होता है यह तो बातें अभी बुद्धि में है ही नहीं ना, नहीं। हां आने का भले सब आत्माओं का अपना अपना नंबरवार और अपना अपना टाइम हो सकते हैं लेकिन जाने का तो जानते हैं कि बाप आता ही है एक बार और ले चलने के लिए इसलिए वापसी का टाइम एक ही है यह ख्याल रखना है। तो अभी है वापसी वाला टाइम की वापस होना है, जाना है इसीलिए जाने के समय पर क्या करना चाहिए उसको बैठ करके पुरुषार्थ को करना है । तो अभी वापसी का सोचना है अर्थात गति सद्गति दाता इसीलिए गाया हुआ है एक बार आकर के वह वापस ले चलते हैं । तो अभी वापसी का टाइम है इसीलिए वापसी के टाइम पर वापसी की सोचनी होती है। उसी टाइम पर यह नहीं सोचेंगे क्या अभी वापस होना है इसीलिए कहां जाना है, किधर जाना है जैसे कहते हैं नंगे आए नंगे जाना है। इन कपड़ों का भी, यह शरीर रूपी, ये कपड़े तो शरीर के ऊपर कपड़ा है, आत्मा का कपड़ा तो यह है ना तो हां यह उन्हीं के लिए कहते हैं कि अभी यह भी कपड़े पहनते पहनते पुराने हो गए हैं, देखो ना टूटे-फूटे चित्ती लगे हुए उनको चलाना पड़ता है इसीलिए बाप कहते हैं अभी यह भी पुराने हो गए हैं। अब फिर एकदम नए आएंगे अपने नए खाते से फिर जो शरीर भी है ना वह नए-नए मिलेंगे अच्छे-अच्छे जिसको गोरे कहो। तो फिर वही शरीर मिलेंगे इसीलिए बाप बैठकर के अभी नया खाता बनवाते हैं तो मानो अभी यह नाटक पूरा होता है। तो नाटक पूरा होता है तो अभी पूरे होने की बातें सोचनी है ना। तो अभी ऐसे सोचने वाले और ऐसी धारणा वाले ही अपने पुरुषार्थ में ऐसा ख्याल रख करके वापसी का शटर बंद करेंगे कि वापस में क्या करना होता है यह पुराने को समेटना होता है । पुराना समेटना, ऐसे नहीं है छोड़ना है । छोड़ने से समेटा नहीं जा सकता है इसीलिए देखो सन्यासी घर बार छोड़ते हैं उसको समेटा नहीं जाता है तो फिर हिसाब किताब के अनुसार फिर आना पड़ता है। घड़ी घड़ी सन्यास ही करना पड़ता है, गृहस्थी भी बनना पड़ता है फिर सन्यासी भी बनना पड़ता है यानी गृहस्थ घर में ही जन्म पीछे भले कोई तीखे हैं तो ब्रम्हचर्य में ही फिर जाकर सन्यास लेते हैं भाई ब्रह्मचारी जो कहलाते हैं परंतु फिर जन्म तो गृहस्थियों के घर में ही लेंगे, नहीं तो कहां लेंगे। कोई सन्यासी सन्यासियों में थोड़ी ही जन्म लेंगे तो वहां फिर इसीलिए यह सभी बातें अपन जानते हैं कि दोनों हिसाब किताब उनको चलाना पड़ता है । वह तो हो गया जन्म जन्म का खाता अभी अपना तो वह नहीं हैं। अपन तो इसीलिए इसी जन्म में अनेक भविष्य जन्मों का बनाते हैं और अनेक पिछले जन्मों का खाता मिटाते हैं, यह है इस जन्म का पुरुषार्थ इसीलिए ऐसे पुरुषार्थ में अपने को तत्पर रखते और उसका ख्याल रखना है । तो ऐसे है वापसी बातों का ख्याल करना तो ऐसे ही ख्याल करने वाले क्या, दूर थोड़ी ही रहेंगे। वह इतना दूर से आया है ले जाने के लिए और उनसे फिर हम दूर रहें तो यह तो, वह तो दुनिया बिचारी जो नहीं जानती है उनकी तो बात ही एक अलग है । जानते और फिर उनसे दूर रहें फिर यह तो बड़ी पछताने वाली बातें हैं । ऐसे रहे हैं ना, आगे भी हुआ है कि बहुतों ने आकर के भी और अपना कुछ ना कुछ थोड़ा बहुत करके भी फिर हट गए हैं ना तो जभी फिर वह समय आया हुआ है उन्होंने देखा है कि देखो औरों ने कुछ बना करके अपना जा रहे हैं तो फिर उन्हों को ही जरूर है कि पछताना पड़ा है। तो वो बैठकर के आगे जो हुआ है उसकी बैठकर के ये यादगारो में यह गीता आदि में सब है लेकिन अपना तो कोई ऐसा पुरुषार्थ नहीं है ना। तो यह भी गीत वीत है इसीलिए कि कहीं पछताना ना पड़े इसलिए जरा भाई सावधान हो जाओ कि कहीं पछताना ना पड़े। उनसे दूर मत रहो इतनी दूर से अभी आया है लेने के लिए तो उनके सम्मुख आओ, उनके समीप आओ और ऐसे बाप से अपना हक लेने के लिए पूरा पुरुषार्थ करो। तो यह सावधान करते हैं ऐसे गीत भी और ऊंचा उठाते हैं कि कहीं पछताना ना पड़े इसीलिए खबरदार रहो । माया है , देखते भी रहते हो चलते-चलते कैसे टूटते हैं । देखते तो हो ना, अनुभव तो करते जाते हो कोई छिपी बातें तो है नहीं। सारा सामने है पच्चीस छब्बीस सत्ताइस अट्ठाइस वर्ष का सारा पोतामेल सामने है इसीलिए जो जो जैसा जैसा जो जो करते रहते हैं वह क्या-क्या अपना बनाते रहते हैं आगे आए हुए पीछे आए हुए सब अपना अपना पुरुषार्थ का तो सामने है कोई भी ऐसी छिपी बातें नहीं है । भले दुनिया से छुपा हुआ है वह तो बेचारे जानते नहीं है लेकिन जो जानते हैं उनको तो सभी बातों की रोशनी होती भी जा रही है लेकिन देखते हो ऐसे ऐसे चलते भी कहां न कहां टांग लटक जाती है तो देखो कैसे फिर बैठ जाते हैं। देखते भी हो ना गिरते कैसे हैं, टूटते कैसे हैं और फिर कैसे माया के विघ्नों से पार ना हो करके फिर बिचारे अपनी तकदीर को लकीर लगा करके बैठे हैं ना । कहेंगे तो ऐसे न बिचारे तकदीर को लकीर लगाते हैं । बिचारे कहना पड़ता है क्योंकि जानते हैं कि इतना तकदीरवान बनने से वंचित रह जाते हैं तो फिर जरूर होगा ना बेचारे, नहीं तो देखो कितनी तकदीर बना सकते हैं परंतु माया के विघ्नों में आकर के अपने को वंचित कर देते हैं तो ऐसा वंचित तो अपना करने का रखना ही नहीं है। हर एक को अपने में यही दृढ़ता रखेंगे की नहीं पक्के रहेंगे, पक्के रहेंगे इसीलिए ऐसे पुरुषार्थ में लगते और अपने पुरुषार्थ को अच्छी तरह से आगे आगे बढ़ाते रहो बाकी तो नॉलेज सब रोज सुनते हो अच्छी तरह से बुद्धि में आती जाती है सब पॉइंट्स है अपनी धारणाओं के लिए भी हैं दूसरों को समझाने के लिए भी हैं और कई बातें जरूर कहीं सरकमस्टेंसस हैं उनमें भी हमें कैसे-कैसे अपना करना अभी ये सभी बातें अभी रोशनी तो मिलती जाती है । तो अभी बाप कहते हैं बच्चे में बैठा हूं अभी और कोई भी श्रीमत लेनी है तो डायरेक्शंस लेते अपना कल्याण करते रहो इन्ही बातों में बाकी मूंझने की है ही नहीं । अपने से कुछ नहीं हो सकता अपनी बुद्धि कहां काम नहीं करती है तो इतना तो याद रखो कि हां बाबा बैठा है, मत देने वाला बैठा है, उसकी मत कल्याणकारी है इसीलिए तो आए हैं इसीलिए मनुष्य तन का आधार लिया है, मुख से बोल सकता है अभी कानों से सुन सकता है अभी तो इसीलिए बाप कहते हैं जैसे तू भी आत्मा शरीर का आधार लेकर बोल सकती हो तुम भी आत्मा निराकार हो ना, क्यों तुम नहीं बोलती हो निराकार आत्मा बोलती है ना, सुनती है ना , आत्मा तो निराकार है इसी तरह क्या मैं भी टेंपरेरी करके मुझे अपना कर्मों के हिसाब का शरीर का बंधाए मानी नहीं है इसीलिए तो मैं जन्म मरण रहित गाया हुआ हूं परंतु टेंपरेरी मैं आता हूं और इसीलिए कि मुझे तुम्हें समझाना है इसलिए मैं टेंपरेरी लेता हूं। भले मेरे कर्म का हिसाब का शरीर नहीं है लेकिन लोन पर कहो, टेंपरेरी कहो, बैठ करके उसका सहारा ले करके फिर तुमसे बोलता हूं । तो जब तुम्हारे लिए मैंने यह पार्ट बजाया है और यह ड्रामा में है कल्प कल्प अगर परमात्मा भी कहे ना कि यह पार्ट मैं ऐसा ना बजाऊं तो बदल नहीं सकता। परमात्मा भी कुछ नहीं कर सकता, अरे सर्वशक्तिमान भी कुछ नहीं कर सकता देखो तो सही । तो बाप कहते हैं सर्वशक्तिमान भी कहे कि यह बदली हो जाए, कहने की तो बात है नहीं परंतु समझो तो भी यह बात बदलने की है नहीं। ड्रामा में पार्ट है मेरा भी पार्ट है नूंधा हुआ है । मुझे भी इस नूंध के अनुसार आना है और यह पार्ट ऐसे बजाना है और यह सब बना बनाया इसी तरीके से चलता ही रहता है इसीलिए इसमें भी बने बनाए के ऊपर भी कोई संशय उठाने की जरूरत नहीं है , नहीं तो कैसे बने । खेल तो है, नहीं तो खेल कैसे बने कोई बताए ना। कोई बताए परमात्मा को खेल बनाना था यह यह था तो ऐसे बनाते। ऐसे बनाते तो फिर खेल ही नहीं होता था ना । खेल में माना दुख सुख , हार जीत दोनो ही है ना तभी तो खेल है ना। तो यह सभी बातें अभी समझ में आई हुई है कि कैसे आधा समय माया का राज है आधा समय फिर बाप आ करके अपना बल दे करके फिर उन्हीं के द्वारा जो स्थापना करते हैं उसकी जो फिर सुख की प्राप्ति रहती है वह कैसे हैं यह सभी बातें अभी बुद्धि में अच्छी तरह से बैठती है ना। कोई शंका हो, कोई संशय हो हो तो पूछो, कोई रोग को छुपाओ मत । कोई बीमारी रखने से या रोग को छुपाने से फिर वह रोग जो है ना वह नासूर बन जाता है या बढ़ जाता है इसलिए कोई भी बात ऐसी हो तो उसे दे करके उसका निवारण करना चाहिए मतलब अपने को साफ करते चलाना चाहिए । उससे क्या होगा कि आगे आगे वृद्धि होती जाएगी इसीलिए कोई भी किसी के दिल के अंदर कोई भी शंका कोई भी बात तो फिर हां पूछ सकते हैं। बाकी यहां ना कोई अपने को छुपाए चल सकते हैं और ना कोई अपने रोगों को इस तरीके से रखकर के चलने से कोई लाभ भी पा सकते हैं इसीलिए अच्छी तरीके से जबकि ऐसा बाप मिला है तो उसके साथ साफ क्योंकि वह तो सच्चा बादशाह है ना तो उसके साथ हमको भी ऐसा ही रह करके चलना है तभी हम उनके द्वारा पूरा-पूरा कुछ पा सकते हैं। वह भले दाता है परंतु दाता का मतलब यह भी नहीं है उनसे हमें कुछ ऐसे ही करना है। नहीं उनसे हम कुछ उलट-पुलट कर करके क्या पा सकते हैं इसीलिए हमें उनसे सुलझना है। हम अपने लिए करते हैं इसीलिए अपने कर्मों की और अपने सब बातों को अच्छी तरह से समझना है और समझ करके चलना है । इसीलिए अभी कर्मों की गति का नॉलेज तो बहुत क्लियर है । इसमें भी कुछ मूंझने की बात नहीं है कि क्या अच्छा कर्म है, क्या बुरा कर्म है, किस कर्म का क्या है, यह सभी बातें तो अभी, इतनी नॉलेज के बाद तो बुद्धि में यह बात स्पष्ट होनी चाहिए और होगी इसलिए कर्म गति, है ही सारा उसी के ऊपर आधार और अपने जीवन का भी उसके ऊपर आधार है इसलिए अपने करम गति को जानते और अपने कर्म को उसी कर्मगति के आधार पर आगे बढ़ाते चलना है । बाकी तो कई बातें हैं जिसमें चलना पड़ता है, अगर उसको देखेंगे, दुनिया को देखेंगे, यहां कोई भी, कहीं उलट-पुलट बातें भी होती हैं कहीं कलंक भी लगते हैं कई ऐसी भी बातें होती हैं, सब कुछ है, देखो देखो शास्त्रों में थोड़ी थोड़ी हिंट सब बातों की है इसलिए यह सब कुछ होता है। इसलिए नाम उनसे डरना है ना उन बातों में तंग होना है । अपने को क्या करना है बस इसी में ही चलते आगे बढ़ते चलना है। ऐसे चलने वाले जो है ना वह अपनी मंजिल मकसद को पा ही लेंगे इसलिए ऐसे मंजिल मकसद को पाने वाले ऐसे रफ्तार में चलते रहे । वह है ना पांडवों का उन्होंने कहा की बस चलते रहो पीछे मत देखना, पीछे देखेंगे तो खत्म हो जाएंगे ऐसी ऐसी कुछ लगाई है शास्त्रों में बात । तो पीछे का मतलब है यह दुनिया की आवाज, लोगों की निगाहें, दुनिया की आवाज यह सब बातें हियर नो इविल सी नो इविल टॉक नो इविल ये सब बातें हैं तो इन्ही सभी बातों को, उसमें सब आ जाती हैं। इधर की भी आ जाती है, बाहर की भी आ जाती है सब किस्म की आ जाती है ऑल राउंड इविल तो इविल है ना। तो यह सब बातें हैं , बाप कहते हैं बच्चे इन सब बातों में ना मूंझ करके पीछे मत देखो, आगे बढ़ते चलो, अपना कदम बढ़ाते चलो। कदम बढ़ाते चलो गीत है ना, बढ़ते चलो और कदम बढ़ाते चलो, पीछे मत देखो, सामने देखो, जहां अभी नजर पड़ी है और नजर डालने वाले ने नजर खड़ी कराने का पूरा निशान बता दिया है । बस अपने को उधर रखकर चलते रहो ठीक है ना। पीठ दो पुरानी दुनिया को मुंह दो उधर जिधर कि अभी मरते हैं ना। वो मरते हैं ना तो उनका सिर उधर कर देते हैं और टांगे उधर कर देते हैं वह मरते हैं तो उसको ऐसा बदली कर देते हैं। अपना हम तो जीते जी मरते हैं ना तो अपन अपना आपे ही मुंह फेर लेते हैं । नई दुनिया की तरफ अपना सिर कर लेते हैं और पुरानी दुनिया की तरह अपनी लात कर देते हैं । वह है ना कृष्ण का चित्र भी बनाया है ना लात उधर है कलयुगी पुरानी दुनिया की तरफ और मुंह उधर है सतयुगी सतोप्रधान दुनिया की तरफ तो अभी उधर करना है ना । तो ऐसे चलने वाले अपने पूरे पुरुषार्थ से चलते रहो। अच्छा, बाकी सब राजी खुशी हो ? और अच्छी तरह से अपने चलने में कोई दिक्कत तो नहीं पड़ती? कुछ ऐसी हो तो हां मम्मा बैठी है। कुछ भी सर्विस हो तो कह भी सकते हो। बाकी मूंझ करके कहीं अपनी तकदीर को लकीर मत लगाओ, इसका अपना ख्याल रखते रहना । किधर भी हो, कहां बिजी हो अपना पूरा ध्यान रखना । अच्छा, बाकी सब राजी खुशी हो तो बहुत अच्छा है। अगर राजी खुशी हो तो बाकी क्या चाहिए, फिर तो यही तो है कि हम सब, बाप यही कहते हैं हम सब चलें, चल करके अपना जो कुछ तकदीर का है वह पाएं , अगर ऐसे पुरुषार्थी चल रहे हो तो बहुत अच्छा है। फिर तो मुंबई से ही काफी है , कैसा। आज सब लोगों को बहुत खुशी है हां जरूर हमें भी बहुत खुशी है। क्यों नहीं, जितना जितना संग रहते हैं, जितना जितना संग होते हैं तो अच्छा ही है, यह तो ठीक है परंतु कारण या अकारणे जो ड्रामा का , बताया था ना उस दिन भी परंतु ड्रामा, ड्रामा तो आगे ढाल रखनी चाहिए तो फिर ड्रामा देखो जो होता है ड्रामा में तो होता वही है फिर कई कारण अकारणे सब तो इसीलिए ड्रामा पर बहुत, यह भी एक अच्छी है पॉइंट। अगर है तो अच्छी है, नहीं है तो फिर ड्रामा के भी राज को कई ना समझ करके उसमें विचलित रहते हैं। वो समझते हैं कि ड्रामा है सब कुछ फिर तो हमारे कर्म का तो कुछ वैल्यू ही नहीं है। फिर हमको क्यों की जाती है ऐसे करो ऐसे ना करो फिर तो हमारा कुछ नहीं है फिर तो ड्रामा ही कराता है और करता है । परंतु नहीं, यह तो ठीक है कि जो होता है देखो अभी-अभी का हम कहते हैं कि ड्रामा था, जो होता है ऐसा कोई बात में बुद्धि हिले नहीं, यह ऐसा क्यों, ऐसा क्यों, क्यों और क्या है यह सब इसीलिए बाकी ऐसे नहीं है कि ड्रामा में हम कुछ करें और फिर कहे कि ड्रामा में ऐसा रहा होगा या भूल कर के कहे कि यह ड्रामा में था ऐसा तो नहीं ना, उनके लिए तो सोचना है, समझना है अपनी बुद्धि को ठीक रखना है, अपनी धारणाओं में अपने को लाना है तो यह सभी बातें भी अच्छी तरह से समझने की है ना । तो ऐसी बातों को समझते और अपने पुरुषार्थ को आगे करते इसीलिए अभी तो कुछ रोज ठहरे हैं फिर जो ड्रामा होगा। ड्रामा, ड्रामा तो करते रहना है। कहां तक होगा, क्या होगा यह तो हम भी देखते चलेंगे, हर एक अपना देखते चलेंगे इसीलिए ड्रामा पर स्थित रहो । बाकी बाप के फरमानों को अच्छी तरह से पालन करते रहना है । पांचों विकारों को तो अच्छी तरह से समझा है ना? तो उन विकारों की पूरी तरह से संभाल रखना। संभाल रखना ऐसे नहीं बिठाए रखना , ना ना माना उनको निकालते रहना। तो निकालते कि हां कहीं वह हमारे से कुछ ऐसा तो नहीं है कि हमारा कोई विकर्म खाता बनाता है इसीलिए उसी खाते की संभाल करते रहना है । ऐसे संभाल करते रहने वाले जरूर हैं कि अपने बाप से पूरा पूरा हक ले करके ही रहेंगे। अच्छा आजकल छुट्टी के दिन नहीं होते हैं, आप लोगों को देरी दे रहती है इसीलिए जरा टाइम पर ठीक रहता है। अच्छा सदा हर्षित चित्त और हर्षितमुख ऐसे रहते हो ना। भले आते हैं, सब कुछ आएगा लेकिन आते भी, अभी की ही तो बात है ना कि आते भी हर्षित चित्त हर्षित मुख भी अभी है, पीछे तो बात ही नहीं है जब प्रालब्ध ऊंची होगी । वहां तो कोई ऐसी बातें ही कुछ ना होंगी तो जिसमें कोई ऐसी, अभी के लिए तो सब है ना। इसीलिए उसमें बहुत मजे से चलते रहो। यही अच्छे दिन है जिसमें हम अपने को देखो कितना अच्छा बनाते हैं, तो अच्छे हो गए ना? कैसा हमारे वीर कृष्ण ? कृष्ण वीर हां?कि अभी हम अपना देखो महावीर महावीरनिया बनते हैं क्योंकि पांचों विकारों को जीत पाते हैं ना । उन देवताओं को नहीं कहेंगे महावीर, महावीरनिया कौन थी? महावीरनिया अभी ब्रह्मानिया। ब्राह्मण और ब्राह्मनिया जो अभी हम अपना बनते हैं उन्हीं के लिए कह सकते हैं । वह जिस्मानी ब्राह्मणों की बात नहीं है, यह। यह तो सब बातें अभी बुद्धि में आ गई है परंतु कभी कोई नए आ जाते हैं ना तो फिर समझाना पड़ता है । नयों के लिए फिर नई बातें समझानी पड़ती हैं क्योंकि उन्हों को तो फिर एक एक बात, उनको ब्राह्मण अक्षर कहेंगे तो वह समझेंगे कि कि हां भाई यह शायद इन ब्राह्मणों के लिए कहते हैं। परंतु नहीं, ब्राह्मण ही कौन थे, ब्राह्मण किसको कहा जाता है उनके यथार्थ प्रैक्टिकल अर्थ को अभी जानते हैं। बाकी पुनर्जन्म वाले ब्राह्मण थे ही नहीं, यह तो जिस्मानी नाम रख कर के चले आए हैं और एक अपनी जाति बना दी है वह तो चलते रहते हैं। वह तो नाम दे दिया है, कोई पानी के ऊपर गंगा का नाम पतित पावनी गंगा, पतित पावनी वह पानी थोड़ी ही है, नाम रख दिया है ऐसे ही ब्राह्मण नाम रख दिया है, ऐसे ऐसे कई नाम रख दिए हैं वो तो सब बाप इसी के यादगार में सभी नाम रखकरके ये काम ऐसे चलते रहें हैं। बाकी असूल में कैसे है , पतित पावनी गंगा कैसे है जिन्होंने पतियों को पावन किया है यही ज्ञान है और इसी पर ही नाम रहा है ये सब बातें हैं । वो कहते हैं भागीरथ में जाता में लाई ये सब ऐसी ऐसी सब बातें बैठ कर के बनाई हैं । लेकिन अभी जानते हैं कि कैसे बैठकर के बाप प्रजापिता ब्रह्मा के तन द्वारा बैठ करके यह ज्ञान अमृत पिलाते हैं फिर यह ज्ञान गंगाए हैं फिर बैठकरके वो भी करती हैं तो ऐसे ऐसे यह सब बातें। तो यह तो सब समझते जाते हो इन्हीं सभी बातों में तो अभी कोई मूंझने वाली बात नहीं रही होगी। अभी अठारह भुजाएं, चार भुजाएं, तीन आंखें दस सिर रावण के कहां यह सब बातें का तो बुद्धि में अभी फिर न होगा की न ये दस शीश वाले थे ना ये थे न वो थे । यह सब अर्थ क्या इन सब बातों का प्रैक्टिकल कैसे हैं यह सभी बातों को समझते हैं । अच्छा, कैसा , यह भी जानते हो कि परमात्मा को आना है तो कैसे आएंगे , इसी तरीके के सिवाय और कोई तरीका नहीं। अभी यह भी तो बुद्धि में अच्छी तरह से बैठ गई है ना , फिर कैसे आएगा बताएं कोई। आना है तो भी ऐसे ही आएंगे । सिवाय साधारण तन के, सिवाय इस तरीके के और कोई तरीका नहीं। यह सब बातें तो अभी हैं। अच्छा जो है वह दूसरों को समझाओ बाकी अपनी धारणाओं में जहां कमजोर हो वो अपने में धारणा लाओ और दूसरों को फिर धारणा लायक, अपने में होंगी तो दूसरों को भी कह सकेंगे। अपन बीड़ी पीता रहेगा और दूसरों को कहेगा भाई मत पियो तो ? तो ऐसे थोड़ी काम हो सकता है इसीलिए अपनी बीड़ी बंद करनी है तब फिर दूसरे को कहने का अधिकार हो सकता है । तो हां अपने को भी ठीक रखो और दूसरों को भी ठीक बनाने का काम करते चलो । तो जितना जितना जिससे हो सकता है परंतु अपने लिए तो हो सकता है ना। उसके लिए तो कोई नहीं कहेगा ना फुर्सत नहीं, टाइम नहीं, यह नहीं, वह तो अपने आप से करनी है मेहनत । वह तो ऐसे भी हम काम करते भी कर सकते हैं । ऐसी भी नहीं है कि यह सब छोड़ने के लिए कोई हमको कुछ हाथ पाव से मेहनत करने की है। यह तो अपने निश्चय से, अपनी दृढ़ता से अपने धारणा से, अपने समझ से काम को करना है। इसमें क्या डिफिकल्टी है? पांचों विकारों के लिए कोई ऐसी तो बात नहीं है यह तो अपने से दृढ रह कर के अपने से वह गंदगी निकालनी है बस न। इसके लिए कोई हाथ से थोड़ी कुछ करना है, पांव से थोड़ी कुछ करना है, कुछ नहीं। तो यह सब चीजों को समझते आगे बढ़ते चलो। अच्छा , बाप, बाप को जानते हो ना अभी ? दादा को तो जानते ही हो । दादा को ही जानते बाप को जानना बड़ा आसान है । परमात्मा वह तो कहते भी आते हैं हां करके उनको सर्वव्यापी बना दिया है अब लेकिन फिर भी उसको जानना आसान है लेकिन दादा की आगे तो उसी पर ही तो मूंझ जाते हैं। कोई सर्वव्यापी नहीं है, परमात्मा एक है । दादा में ही क्यूं आते हैं इसी पर ही तो आ करके अटकते हैं कि ऐसा क्या सदा ही उसको मिला , इसी पर अड़ते हैं न, इसी में आकार के मूंझते हैं। अच्छा , ऐसा बाप और दादा मां के मीठे मीठे बहुत सिकिलधे, बहुत सिकिलधे क्योंकि पांच हजार वर्ष के बाद मिले हुए हैं इसीलिए बहुत सिकिलधे हो गए न, कितने अरसे के बाद। तो ऐसे मिले हुए परंतु हां फिर सपूत भी ख्याल रखना। ऐसे मिले तो सही , सिकिलधे में भी सपूत पन और कपूत पन है। तो अपने में देखो कि हमारे में सपूत पन कितना है, ऐसे जो सपूत हैं ऐसे बच्चों प्रति याद प्यार गुड मॉर्निंग गुड डे गुड इवनिंग ।