सम्पूर्णता के आठ कदम
ये चार्ट दिव्य-दर्पण जेसा है। इस चार्ट रूपी दिव्य दर्पण में हम क्या-क्या देख सकते हैं, वह नीचे दर्शाया गया है।
इसमें हम देख सकते हैं कि ज्ञान मार्ग में मैं कितने कदम आगे बढ़ाहूँ और अभी कहाँ पर रूका हूँ और वहाँ से आगे कैसे बढें, उसका मार्ग भी बताया गया है।
इस समय मेरा पुरुषार्थ कैसा चलता है और वर्तमान पुरुषार्थ के अनुसार मेरी सम्पूर्णता अर्थात् मेरा पद क्या होगा?
जैसे बाबा कई मुरलियों में बताते हैं कि लॉस्ट सो फास्ट और फास्ट सो फर्स्ट जा सकते हैं। लेकिन कैसे जा सकते हैं, उसकी विधि और निशानी इसमें बताई गई हैं। जैसे आदरणीय दादा विश्वरतनजी ने कई बार क्लास में बताया है कि दो मास के बच्चे भी अष्ट रतन में आ सकते हैं। तो उसका राज क्या है, वह भी इसमें बताया गया है।
जब बाबा साकार में थे, तो कई बार बच्चो से कहते थे कि अगर कोई बच्चा मुझसे पुछे कि इस समय मेरा शरीर छूट जाये तो मुझे क्या पद मिलेगा? तो बाबा बता सकते हैं। ऐसे आज बाबा साकार में हमारे सामने नहीं हैं, मगर बाबाने जो ज्ञान दिया वह इतना स्पष्ट है कि वह हमारे लिए दिव्य दर्पण जैसा बन गया है। हमने यहाँ पर ज्ञान के आधार से इस चार्ट को शीश महल जैसा बनाने का प्रयास किया है। इसमें हमारी वर्तमान स्थिति के आठ स्टेप बताये गये हैं और हम अभी किस स्टेप पर पहुंचे हैं, उसकी निशानी भी बताई गई है। हम जहाँ तक पहुंचे हैं, उस स्टेप के आधार से हमारा भविष्य पद क्या हो सकता है, उसका भी अन्दाजा लगाया है। तो इस चार्ट को पूरा समझने के बाद आपको भी मालूम पड जायेगा कि इस समय मेरा शरीर छूट जाये अथवा विनाश हो जाये तो मुझे क्या पद मिलेगा।
(१) पहला कदम है अपने आप में निश्चय
पहले कदम में बताया गया है कि भक्ति, उपवास, जप, तप, यात्रा आदि करने के बाद ज्ञान प्राप्त होता है। सेन्टर पर बहनसें कोर्स कराया हैं, फिर जब हम ज्ञान मार्ग में चलना शुरू करते हैं तो हम जानते हैं कि हमारा ज्ञान नारद जैसा है। शुरू-शुरू में नियम और धारणा के कारण घर में झगडा शुरू हो जाता है। उस समय हमारी स्थिति डांवाडोल हो जाती है क्योंकि हमारे मन में भक्ति की भावना बहुत होती है और अभी ज्ञान से विवेक जागृत नहीं हुआ है। तो उस समय हम जोश में आकर कभी राइट निर्णय लेते हैं, तो कभी रोग। ऐसे समय पर विवेक और भावना के बैलेन्स की आवश्यकता होती है। इसलिए यहाँ पर ज्ञान के प्रथम काल में विवेक और भावना के बैलेन्स को ठीक रखेंगे तो यथार्थ निर्णय कर सकेंगे। इसके लिए अपने में द्रढ निश्चय चाहिए। इसलिए पहला कदम है अपने आप में निश्चय.......
(२) दूसरा कदम है बाप पर निश्चय
जब हमको बाबा पर निश्चय बैठ जाता है और हम उनके बनकर अलौकिक जीवन जीने का निर्णय कर लेते हैं तब हमारे निश्चय अर्थात बुद्धि रूपी पाँव को हिलाने के लिए लौकिक परिवार की और से पेपर आता है। ऐसे समय पर हमारी स्थिति अंगद के समान अचल अडॉल रहनी चाहिए। एक बाप के ऊपर पूर्ण निश्चय चाहिए। तो दूसरा कदम है बाप पर निश्चय.....
(३) तीसरा कदम है बाह्मण परिवार पर निश्चय
जब हम तीसरे कदम पर पहुँचते हैं तो हमारे संस्कार हमारे ऊपर वार करते हैं। चलते-चलते अचानक दिल शिकस्त हो जाते हैं, कभी-कभी दैवी परिवार से किनारा करके बैठ जाते हैं, कभी किसी के साथ ईर्ष्या, नफरत उत्पन्न होती है, किसी के लगाव झुकाव में आ जाते हैं, तो कोई संस्कारों की टक्कर में अपना समय नष्ट करते हैं। जैसे जंगल की तरह स्वयं के ही संस्कारों की जाल में हम स्वयं ही फँस जाते है। इसमें से कई आत्मायें ज्ञान योग के बल से या किसी के अच्छे संग के आधार से बहुत जल्दी पार हो जाते हैं और कइयों का तो दो साल, पाँच साल, दस साल भी इसी में चला जाता है और कई आत्मायें तो थक्कर वापस माया की दुनिया में ही चली जाती हैं। अब इस जंगल से निकलने की युक्ति कया है? जैसे पानी को जिस रंग के साथ मिलाते हैं तो वह उसके साथ मिल जाता है। ठीक उसी तरह सरलता के गुण से हमारे संस्कार सरल बन जाते हैं। परिस्थितियाँ सरल, सम्बन्ध-सम्पर्क भी सरल बन जाते हैं और हम कदम आगे बढा सकते हैं। सरलता के गुण के आधार से हम बाह्मण परिवार के साथ मिलझुल कर रह सकते हैं। जब ये निश्चय हो जाता है कि यही मेरा सच्चा परिवार है, जन्म-जन्म का साथी परिवार है, यह हमारा ईश्वरीय परिवार है, इनके साथ ही भविष्य नई दुनिया में हमारे सम्बन्ध होंगे, उनके साथ ही रहना होगा, तो परिवार के साथ रहना सरल हो जाता है और उससे आत्मा इस संगमयुग का सच्चा सुख अनुभव करती हैं।
(४) चौथा कदम है ड्रामा पर निश्चय
अभी यहाँ पर ड्रामा का पाठ पढाने के लिए हमारे पास निम्नलिखित चार पेपर में से कोई एक पेपर आता है। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक। शारीरिकः अर्थात् शरीर की व्याधि, बीमारी आदि, मानसिकः अर्थात् मन की बीमारी। जैसे हताशा, निराशा, संशय, आलस्य अलबेलापन आदि। ये सब मानसिक पेपर हैं। आर्थिक इसमें दो प्रकार के पेपर आ सकते हैं। एक तो किसी को आर्थिक समस्या ऐसी होती है कि उनकी गृहस्थी को चलाने के लिए रात दिन पैसा कमाने के लिए मेहनत करनी होती है। इसलिए नियम प्रमाण ज्ञान-योग करना मुश्किल लगता है। दूसरा किसी का धन्धा ही इतना बडा है कि उसके पास ज्ञान सुनने का समय ही नहीं है। तो ये है आर्थिक समस्या।
सामाजिकः अर्थात् किसी के सामने ऐसी सामाजिक परिस्थितियाँ आ जाती हैं, जिसके कारण अपने घर से या बाबा के घर से दूर जाना पडता है या किसी की सामाजिक मर्यादायें ही बन्धन बन जाती हैं या कोई सम्बन्ध ही बन्धन का रूप ले लेते हैं। अभी इसमें से पास होने के लिए ज्ञान का बल। ड्रामा के ज्ञान को यथार्थ रीति समझकर ज्ञान के बल के आधार से हम अपने सोचने का तरीका बदलें और पेपर को आगे बढने का स्टेप समझें । ऐसे ही शरीर की बीमारी के समय ये समझें कि ये हमारा पिछला हिसाब-किताब चुक्तू होता है या इसमें कोई न कोई हमारा कल्याण समाया हुआ है। ऐसे ज्ञान के आधार से अपने चिन्तन को बदलें और जब धन का पेपर आये तो इस ज्ञान धन से उसकी तुलना करें। ये निश्चय का चौथा कदम है।
ड्रामा के ज्ञान में यथार्थ निश्चय न होने के कारण योगी इन चार प्रकार की समस्याओं में फँस जाता है। इन समास्याओं के कारण उसमें देहाभिमान बढ जाता है, ड्रामा के ज्ञान में यथार्थ निश्चय न होने के कारण वह सदा सोचत रहता है कि ये समस्यायें हमारे पास ही क्यों आती हैं। इसलिए ड्रामा का सही ज्ञान और उस पर निश्चय होना भी अति आवश्यक है।
(५) पांचवा कदम है स्वयं ही स्वयं का दर्शन
अभी देखो ये चार कदम तक तो माया स्थूल रूप से सामने आती है। लौकिक की ओर से, शरीर की बीमारी, सामाजिक समस्या, से सब पेपर तो हमने स्थूल आँखों से देखा और स्थूल आधार से उन पर विजय प्राप्त करते आये। जैसे सेवा की खुशी, दैवी परिवार का स्नेह-प्यार और संगठन के सहयोग के आधार से चार कदम तो पास कर लिये। अब देखो हम ज्ञान मार्ग में जितना जितना रुस्तम बनते हैं और आगे बढ़ते हैं तो माया भी हमारे सामने रूस्तम के रूप में आती है। तो यहाँ पर पांचवे कदम पर हम पहुँचते हैं तो माया सूक्ष्म स्वरूप धारण करती है। इसलिए उसको पहचानने और उस पर जीत पाने के लिए हमारा पुरुषार्थ भी सूक्ष्म होना चाहिए। यहाँ पर ही ब्राह्मणों का बहुत समय चला जाता है। इसको द्वापर त्रेता का संगम ही समझें। जैसे बाबा कहते हैं कि कर्मेन्द्रियों का रस योगी के लिए जहर के बराबर है। शरीर को देखना माना साँप को देखना। ये सब बाबा की जो सूक्ष्म श्रीमत है। बाबा की ये श्रीमत तब समझ में आती है, जब आत्मा पाँचवें कदम पर पहुँचती है। तब ही आत्मा इसको महसूस करती है और शूद्रपन के संस्कारों को बदल कर सतो सामान्य संस्कारों को धारण करने का पुरुषार्थ करती है। यहाँ पर उसको चारो और के शूद्रपन के संस्कार खींचते हैं। देह के सम्बन्धों का रस, कर्मेन्द्रियों का रस, पदार्थों का रस, साधन और वैभवों का आकर्षण, योगी होते हुए भी उसकी स्थिति को डावांडोल कर देते हैं। इसलिए नाव उदाहरण लिजीये। जैसे नाव पानी में चलती है तो डोलती है मगर नाव में पानी नहीं आता है। ऐसे ही ये योगी भी संसार में रहता है मगर योगी में संसार नहीं रहता है। जैसे नाव के लिए कहते हैं कि सत्य की नाव हिलेगी-डोलेगी लेकिन डूब नहीं सकती। ऐसे ही जिसने पुरुषार्थ का सही मार्ग ढूँढ लिया है, उसका हाथ बाबा से कभी छूट नहीं सकता। परिस्थितियाँ भले हिलायेंगी, डुलायेंगी लेकिन ड्बा नहीं सकती। जब आत्मा पाँचवें कदम पर पहुंचती है तब अन्तर्मुखता की गुफा में प्रवेश करती है। यहाँ से आत्मा के अन्दर एक योगी का लक्षण दिखाई देने लगता है। इस स्टेज पर आत्मा स्वयं ही स्वयं का दर्शन अच्छी तरह कर सकती है।
(६) छठा कदम फूल स्टॉप
अब देखो इसने शूद्रपन के संस्कार छोड दिये, देह व देह के सम्बन्ध, कर्मेन्द्रियों का रस सब छोड दिया। अब इसका संसार ही बाबा बन गया। इसको कहते हैं सच्ची समर्पणता अब इसको कोई भी समस्या हिला नहीं सकती, इसलिए उसको कमल का आसन दिया है। जैसे कमल कीचड में रहता है, परन्तु कीचड उसको टच नही कर सकता है। कमल की जो डण्डी है, जिसको कमल क्कडी कहते हैं, वह कीचड में है अर्थात् उसका सम्बन्ध कीचड के साथ है परन्तु कमल कीचड से न्यारा है। ऐसे ही ये योगी, जिसके सम्बन्ध सम्पर्क में आते हैं, वे लोग साधारण हों या विकारी हों मगर उनका प्रभाव इस योगी पर नहीं पड़ता है। वह उन सबसे न्यारा रहता है। इसलिए इस योगी को कमल का आसन दिया है और ये कमल आसनधारी योगी ही बाबा के महावाक्यों को जीवन में धारण करता है। बाबा जो मुरली सुनाते हैं वह ऐसे आठों कदम वाली आत्माओं को सामने रखकर सुनाते हैं। नौकर-चाकर, प्रजा, राजा और महाराजा सब एक ही मुस्ती से बन जाते हैं। बाबा की मुरली एक से चार कदम वाले सिर्फ सुनते हैं। जैसे भक्त मन्दिर में जाते हैं और दर्शन करके कुछ प्रसाद लेकर आ जाते हैं, ऐसे यहाँ भी चार कदम वाले आते हैं, मुरली सुनते हैं और अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए कोई एक पोइन्ट लेकर चले जाते हैं। ऊपर के तीन कदम वाले मुरली को नम्बरवार धारणा करते हैं, इसलिए बाबा भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार याद प्यार देता है। पांचवा कदम तक पहुँचा हुआ योगी आत्मा मुरली को धारण करने का पुरुषार्थ करता है, बाबा की बातों महसूस करता है, रियलाइज भी करता है और रियलाइज कर परिवर्तन करने का पुरुषार्थ भी करता है। उदाहरणार्थ बाबा कहते है बच्चे फुल स्टॉप लगाओ, तो यह महावाक्य आठों ही कदम वाले सुनते हैं, मगर धारणा नम्बरवार करते हैं। पहले और दूसरे कदम वाला सुनेगा तो उनका फुल स्टोप क्या है, वह समझ में ही नहीं आयेगा और तीसरा कदम वाला सुनेगा तो वह तो स्वयं के संस्कारों की जाल में ही उलझा हुआ है। मुरली सुनते-सुनते भी किसी के साथ उसकी युद्ध चलती होगी तो वह फुल स्टोप कैसे लगा सकता है। चौथा कदम वाला भी समस्या में उलझा हुआ है तो वह भी फुल स्टोप नहीं लगा सकता है और पाँचवें कदम वाला महसूस करता है, फुल स्टोप लगाने का पुरुषार्थ करता है परन्तु सही रीति से लगा नहीं सकता है। छड्डे कदम वाला फुल स्टोप लगा सकता है क्योंकि उसका संसार ही एक बाबा बन गया है। उसके सर्व सम्बन्ध एक बाप से हो गये हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि एक ही मुरली से राजा महाराजा, प्रजा, दास-दासी सब अपने आप ही बन जाते हैं। महाराजा अपना महावाक्य उठायेगा, प्रजा बनने वाला अपना उठायेगा। अगर कोई प्रजा बनने वाले को महाराजा का महावाक्य अथवा धारणा सुनायेगा तो प्रजा वाला प्रश्न करेगा कि ऐसा बाबा ने कब कहा? जैसे द्वापर के बाद की आत्माओं को हम ज्ञान सुनायेंगे तो इतना सत्य और स्पष्ट ज्ञान भी उनकी बुद्धि में बैठेगा ही नहीं क्योंकि सतयुग में उनका पार्ट ही नहीं है। उसने सतयुग देखा ही नहीं, का पार्ट ही नहीं बजाया है तो वह महाराजा की श्रीमत को समझ नहीं सकते। इसलिए बाबा कई बार एक ही महावाक्य को दो बार प्रयोग करते हैं। कई बार बाबा कहते है कि बच्चे तुम्हें शादी में जाने की जरूरत नहीं है, तो महाराजा क्वालिटी की आत्मा उसको धारण कर लेगी और प्रजा वाला प्रश्न करेगा कि ऐसे समाज में कैसे रहेंगे, घर वाले बोलेगें। तो फिर बाबा बाद में दूसरी मुरली चलाते हैं और उसमें उसी श्रीमत को थोडा ढीला छोड देते हैं और कहते हैं आप सादी में जा सकते हो, वहाँ जाकर भी बाबा का सन्देश देना, तो वे खुश हो जायेंगे कि बाबा ने कहा है तो हम सेवा के लिऐ शादी आदि में जाते है। बाबा कभी कहते हैं बच्चे, तुमको बर्थ डे आदि मनाकर खर्चा करने की जरूरत नहीं हैं। कभी कहते हैं बच्चे भक्ति मार्ग की तरह गीत आदि बजाने की जरूरत नहीं है। तो कभी कहते हैं - बच्चे, कभी मूड ऑफ हो जाती है तो गीत आदि बजाओ। फिर कभी किन्हीं आत्माओं को सामने रखकर कहते हैं बच्चे तुम्हें रोना नहीं है, तुम विधवा नहीं हो। तुम्हें सेवा डिस्टर्ब करती है तो वह सेवा छोड दो। इस प्रकार से प्रजा क्वालिटी वाली आत्माओं को रोना बन्द कराकर के खुश रहना सिखाते हैं और महाराजा क्वालिटी वाली आत्माओं में निरन्तर खुश रहने का संस्कार भरते हैं। बाबा के ऐसे महावाक्यों को यथार्थ रीति समझ धारण करने वाले ही फुल स्टॉप लगा सकते हैं, इसलिए इसको कहते हैं कमल आसनधारी पक्के योगी। उनके लिए बाबा कहते हैं-बच्चे, शरीर भले चला जाये मगर खुशी नहीं जानी चाहिए और ऐसी आत्मायें ही हर परिस्थिति में खुशहाल रहती हैं।
(७) सातवां कदम हाई जम्प
जब आत्मा सातवें कदम पर पहुँचती है तो उसके पास ज्ञान, गुण और शक्तियों का स्टॉक जमा हो जाता है। उनके सामने परिस्थितियाँ आती हैं तो उनको पार करने में उनकी शक्ति नष्ट नहीं जाती है क्योंकि कोई भी परिस्थिति आने पर वह आत्मा हाई जम्प लगा देती है। इसलिए इस योगी को महावीर की तरह उडता हुआ दिखाया है। उनको कोई स्थूल आसन भी नहीं दिया अर्थात् वह इस दुनिया से पार रहता है। जैसे बाबा कहते हैं-बच्चे, तुमको देखते हुए भी नहीं देखना है, सुनते हुए भी नहीं सुनना है। यह आत्मा ऐसी स्टेज को प्राप्त कर लेती है।
(८) आठवाँ कदम फरिश्ता
जो आत्मा आठवें कदम पर पहुँचती है, वह हाई जम्प वाले से भी आगे चली जाती है क्योंकि हाई जम्प लगाने में थोडी शक्ति लगती है। ऐसी आत्मायें तो फरिश्ता बनकर उडती रहती हैं, वे अनेकों आत्माओं का सहारा बनते हैं इसलिए इस धरा पर वे आत्मायें सूर्य के समान बनकर पार्ट बजाती हैं और परिस्थितियों को बादल की तरह अनुभव करते हैं। उनके हर स्वांस, संकल्प, बोल में बाबा ही बाबा रहता है।
अब समझो अभी अगर विनाश हो जाये तो जो आत्मा जहाँ पर पहुंची है, वहाँ ही उसका पद निश्चित हो जाता है। अभी हम अपने आप को देखें कि हम किस कदम तक पहुंचे हैं। इस स्थिति में हमारा शरीर छूट जाये तो हमको कौनसा पद प्राप्त होगा। इस चेकिंग के लिए यहाँ पर कुछ और निशानियाँ भी बताई हैं, जिनके आधार पर हम चेक कर सकते हैं कि हम किस कदम (स्टेप) तक पहुंचे हैं।
(८) जो आत्मा आठवें कदम पर पहुँच गई और विनाश हो गया तो वह आत्मा अष्ठरतन में आयेगी और अष्ठ रतन में सिर्फ आठ ही आत्मायें आयेंगी, वह भी हम जानते हैं।
(७) जो आत्मा सातवें कदम तक पहुँची है और विनाश हो गया तो वह आत्मा १०८ की माला में आयेगी क्योंकि उस आत्मा ने हाई जम्प लगाया, लेकिन उडती कला तक नहीं पहुँची अर्थात् एक कदम पीछे रह गई इसलिए वह १०८ में आ जाती है। बाबा यह भी कहते हैं कि सिर्फ आठ आत्मायें ही पास विद् ऑनर होती हैं, जिनको कोई सजा नहीं खानी होती, बाकी १०० वाले भी थोडी-बहुत सजा खाते ही हैं।
(६) जो आत्मा छठे कदम तक पहुंची है और विनाश हो जाता है तो वह आत्मा १६१०८ की माला में आयेगी। जैसे शास्त्रो में बताया है कि श्रीकृष्ण को १६१०८ रानियाँ थी। तो जो आत्मायें छठे कदम तक पहुँचती हैं, उनका संसार एक बाबा ही होता है। तो बाबा भी उनको सर्व सम्बन्धों की अनुभूति कराता है। वहाँ भी शास्त्रो में श्रीकृष्ण को एक-एक गोपी के साथ-साथ दिखाया है। तो यहाँ भी बाबा उनको सर्व सम्बन्धों की अनुभूति कराता है।
(५) जो आत्मा पाँचवें कदम पर ही पहुंची है और विनाश हो गया तो वह आत्मा रॉयल फेमिली अथवा साहुकार प्रजा में आयेगी क्योंकि उसने संस्कारो की टक्कर और चक्कर से स्वयं को मोल्ड कर लिया और अपने संस्कारों को रॉयल बनाकर तीसरा कदम पास कर लिया और साथ-साथ ज्ञान-बल के आधार से चोथा कदम भी पास कर लिया। ज्ञान को धन भी कहते हैं, इसलिए ये आत्मायें रॉयल संस्कार और ज्ञान धन के आधार पर स्थूल धन के अधिकारी साहुकार अथवा रॉयल फेमिली में आ जायेंगी।
(४) जो आत्मायें चौथे कदम तक पहुँचती है और विनाश हो जाता है तो वे आत्मायें दास दासी बनेंगी क्योंकि वे चमडी का आसन लगाकर कैठे हैं अर्थात् कर्मेन्द्रियों का रस ले रहे हैं। इसलिए वे स्थूल समस्याओं में ही उलझे रहते हैं उदास होकर बैठे रहते हैं। इसलिए बाबा कहते हैं कि जो यहाँ उदास रहते हैं, वहाँ दास दासी बनते हैं।
(३) जो आत्मा तीसरे कदम तक ही पहुंची है और विनाश हो गया तो वह आत्मा नौकर-चाकर बनेंगे क्योंकि वे स्वयं के संस्कारों की जाल में फंसे हुए हैं। परस्पर संस्कारों में टकराता रहता है, इसलिए वह नौकर-चाकर में आ जाता है।
(२) जो आत्मायें दूसरे कदम पर पहुंची है और सिर्फ बाबा को जाना, बाकी कोई पुरुषार्थ नहीं किया और विनाश हो गया तो वे फिर प्रजा में आयेंगे क्योंकि उन्होंने चार विषयों में से कोई एक विषय में थोडा-बहुत जमा किया है, इसलिए वे स्वर्ग में जरूर आयेंगे परन्तु प्रजा में आयेंगे।
(१) जो आत्मायें पहले कदम पर आई हैं अर्थात् जिनको बाबा का सन्देश मिला है और विनाश हो गया तो वे फिर त्रेत्रा के अन्त की तैंतीस करोड की प्रजा में आयेंगे।
अभी आपको थोडा बहुत तो मालूम पड ही गया होगा कि मैं कहाँ तक पहुंचा हूँ। अगर कोई कहे कि मुझे बाबा में पूर्ण निश्चय है, संस्कार भी सभी के साथ मिलजुल कर चलता हूँ और यहाँ दिखाई गई चार परिस्थितियों में से कोई परिस्थिति भी नहीं है, तो ऐसा न समझें कि हम पाँचवें या छठे कदम पर पहुँच गये हैं। ये तो स्थूल निशानियाँ हैं, उनकी सही चेकिग करने के लिए कुछ अन्य प्वाइन्ट्स यहाँ हैं, जिनके आधार से आपको स्पष्ट मालूम पड जायेगा कि मैं कहाँ पर हैं।
अब आठो ही कदम वाले अपना जो अनुभव सुनाते हैं और उनके जो बोल होते हैं, उनका यहाँ वर्णन करेंगे। यहाँ हम पहले आत्मा की अनुभूति का वर्णन करेंगे।
१ पहले कदम वाले का अनुभव -कई प्वाइन्ट्स के आधार से लगता है कि हमारे में आत्मा है।
२ दूसरे कदम वाले का अनुभव - मैं जानता हूँ कि मेरे में आत्मा है लेकिन मुझे आत्मा का अनुभव नहीं है।
३ तीसरे कदम वाले का अनुभव - मैं जानता हूँ कि में आत्मा हूँ परन्तु मुझे उसका कम अनुभव है।
४ चौथे कदम वाले का अनुभव -मुझे कभी-कभी आत्मिक स्थिति का अनुभव होता
है।
५ पांचवें कदम वाले का अनुभव - मैं बार-बार आत्मिक स्थिति का अनुभव करता हूँ।
६ छठे कदम वाले का अनुभव - आत्मिक स्थिति को जारी रखने के लिए मुझे बहुत अटेन्शन देना पडता है।
७ सातवें कदम वाले का अनुभव - मैं आत्मिक स्थिति में ही रहता हूँ लेकिन कभी-कभी कई परिस्थितियों में शरीर के भान में आ जाता हूँ।
८ आठवा कदम वाले का अनुभव - मैं निरन्तर आत्मिक स्थिति में ही रहता हूँ।
अब आप चेक कर सकते हैं कि मुझे आत्मा का अनुभव कितना होता है? मैं
कहाँ तक पहुंचा हूँ। ऐसे ही आठों कदम वाले को योग की अनुभूति कैसे होती होगी, वह देखेंगे।
१ मैं भगवान से बात करता हूँ लेकिन मुझे उनसे कोई प्राप्ति का अनुभव नहीं होता है।
२ मैं भगवान के साथ बात करता हूँ लेकिन एक तरफी लगता है अर्थात् भगवान से कोई उत्तर नहीं मिलता है।
३ मैं भगवान के साथ बात करता हूँ तो मुझे अच्छा लगता है।
४ मैं बाबा के साथ बात करता हूँ तो कई बार मुझे प्रेरणा मिलती है। तो मैं अनुभव करता हूँ कि मुझे सही उत्तर मिल गया।
५ मैं बाबा के साथ प्रेम से रूह-रुहान करता हूँ, मेरी कोई भी समस्या का निवारण
बाबा ही कर देते हैं।
६ मैं बाबा के साथ दिन में कई बार निकट सम्बन्धों की अनुभूति करता हूँ।
७ मैं बाबा से सहजता से बात करता हूँ, मेरी जिम्मेदारी बाबा ही उठाते हैं, ऐसा मैं अनुभव करता हूँ।
८ मेरे स्वासों-स्वांस में बाबा ही बाबा है, बाबा विश्व की सेवा करने के लिए मेरे साथ बंधायमान है।
अभी आपको और क्लीयर हो गया होगा कि हम कहाँ तक पहुंचे हैं। अब हम देखेंगे कि मुरली की समझ किसको कितनी होती है।
१ मुरली की कई बातें मुझे अच्छी लगती हैं, तो कई बाते कंटालाजनक लगती हैं। ऐसा लगता है कि वहीं का वहीं रीपीट होता है।
२ मुरली की कोई-कोई बातें मुझे बडी उपयोगी लगती हैं।
३ वैसे तो रोज मुरली पढता हूँ, परन्तु क्लास में समय पर नहीं जा सकता हूँ, तो बाद में जाकर पढ लेता हूँ।
४ मैं मुरली के क्लास में रोज जाता हूँ परन्तु कभी-कभी नींद आती है तो कभी बुद्धि बाहर धन्धे आदि में चली जाती है।
५ मुरली मुझे अच्छी लगती है और मुरली की बातें मैं धारण करने का पुरुषार्थ करता हूँ।
६ मुझे मुरली घ्यान से सुनने मैं बहुत मजा आती है। मुरली के महावाक्य ही मेरी समस्याओं का निवारण करते हैं।
७ मुरली ही मेरा जीवन है और मुरली की एक-एक बात अपने जीवन में धारण करता हूँ।
८ मैं मुरली को सुनता नहीं लेकिन मुरली को पीता हूँ। पूरा दिन मुरली के ही महावाक्य मेरी बुद्धि में गूंजते रहते हैं।
अभी ये चार्ट दिव्य दर्पण जैसा बन गया है। अब आप कौनसे कदम पर हो, वह समझ सकते हो। अभी अगर हमारा शरीर छूट जायें तो हमको क्या पद मिलेगा, वह समझ सकते हो। पुरुषार्थ का मार्ग और मन्जिल दोनों क्लीयर हैं। रास्ता, दिशा, चिन्ह भी बताया है, जिसके आधार से अपनी गति को चेक भी कर सकते हो, बढा भी सकते हो और सही दिशा भी दे सकते हो। बाबा कहते हैं - मैं राजयोग सिखाता हूँ, प्रजायोग नहीं। मगर बच्चे अपनी यथा शक्ति पद पा लेते हैं। जैसे महाराजा का श्रृंगार अलग होता है और साधारण प्रजा का श्रृंगार अलग होता है। तो हम पेहले अपना स्थान फिक्स करें, फिर वही श्रृंगार धारण करें। एक ही मुरली से राजा-रानी, नोकर-चाकर, दास-दासी सभी का श्रृंगार हो जाता है। मुरली के लिए भी बाबा का जनरल डायरेक्शन है कि मुरली क्लास से १५ मिनट पहले आकर योग करना है, मुरली क्लास में युनिफार्म पहनकर आना है, बैज लगाना है, नोटबुक पेन लेकर आना है। ये बाबा की जनरल श्रीमत है। इसमें जो आत्मा अष्टरतन में या विजय माला में आने वाली है, सम्पूर्णता के आठ कदम उसके लिए बाबा अलग डायरेक्शन एक्स्ट्रा देते हैं, जिन डायरेक्शन्स को प्रजा बनने वाले घ्यान पर ही नहीं लेते हैं। विजयी रतन आत्मा के लिए बाबा ने एक बार बताया था कि जब आप मुरली सुनने बैठते हो तब कोई कहे कि मुझे अशरीरी बनना या बीजरूप में मजा आता है या बाबा के साथ सखा का सम्बन्ध में रूह-रुहान करने में मजा आता है, तो बाबा ने इसके लिए कहा है कि ये भी सुप्रीम टीचर का डिसरिगार्ड है। उस समय आप सुप्रीम टीचर की स्मृति में बैठकर ही मुरली सुनो। कितना स्ट्रिक्ट महावाक्य हैं। प्रजा के लिए बिल्कुल ढीला छोड दिया, उसके लिए बाबा ने कहा-बच्चे आप रोज क्लास में नहीं आ सकते हो तो घर में भी मुरली पढ सकते हो परन्तु महाराजा बनने वाले के लिए ढीला नहीं छोडा है। बाबाने यहाँ तक कहा है कि अगर बहुत बीमार है तो भी स्ट्रेचर में भी क्लास में ले आओ। इस प्रकार बाबा की हर धारणा की श्रीमत में इतना अन्तर है। हर धारणा की प्वाइन्ट्स के लिए स्ट्रिक्ट से स्ट्रिक्ट भी श्रीमत मिली है तो हर बात को थोडा ढीला भी छोडा हुआ है। अब हम बाबा की श्रीमत को जितना सूक्ष्म रूप में समझेंगे, धारण करेंगे, उतना ऊंच पद पायेंगे।
ओम् शान्ति